छुपाए नहीं छुपते-1

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मेरे और सुगंधा के बीच प्रथम संभोग के बाद अगले दिन उसकी परीक्षा थी, जिसे दिलवाकर मैं शाम की ट्रेन से उसे गाँव वापस छोड़ आया।

दो महीने बाद उसे महिला छात्रावास में कमरा मिल गया और उसकी पढ़ाई-लिखाई शुरू हो गई। तभी सिविल सेवा की प्रारंभिक परीक्षाओं का परिणाम घोषित हुआ और मैं उनमें सफल रहा। अब मुझे मुख्य परीक्षाओं की तैयारी करनी थी। मुख्य परीक्षाओं के लिए मेरे विषय थे हिंदी और राजनीति विज्ञान। मेरे मकान मालिक को पता चला कि मेरा प्रारंभिक परीक्षाओं में चयन हो गया है तो उन्होंने मुझे बधाई दी और मुख्य परीक्षाओं के बारे में मेरी योजना जानने के बाद मुझसे बोले- तुम्हारी हिंदी तो काफी अच्छी होगी, तभी तुमने मुख्य परीक्षाओं के लिए हिंदी का चुनाव किया है। तुम मेरी बेटी नेहा को हिंदी पढ़ा दिया करो। तुम तो जानते ही हो कि वो हिंदी माध्यम की छात्रा है। गणित, विज्ञान तो कोचिंग में पढ़ लेती है हिंदी पढ़ाने वाला कोई नहीं मिलता। हिंदी में उसके नंबर भी बहुत कम आते हैं।

मैंने कहा- अंकल, मेरे पास खुद ही पढ़ने के लिए इतनी सामग्री है कि समय कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता। मैं कैसे उसे समय दे सकूँगा।

अंकल बोले- बेटा, रोज मत पढ़ाना, कभी सप्ताह में एक दिन रख लो। वैसे भी हिंदी ऐसा विषय है कि सप्ताह में एक दिन भी किसी से मार्गदर्शन मिल जाए तो विद्यार्थी स्वयं ही तैयारी कर लेता है।

मैं बोला- ठीक है अंकल, रविवार को मैं उसे एक घण्टा पढ़ा दिया करूँगा।

अंकल खुश हो गए, उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया कि मेरा मुख्य परीक्षाओं में चयन हो जाए।

रविवार को मैं “मुक्तिबोध” की लंबी कविता “अँधेरे में” पढ़कर समझने की कोशिश कर रहा था जब दरवाजे पर दस्तक हुई।

‘यहाँ कौन आ गया?’ सोचते हुए मैंने दरवाजा खोला। सामने स्कर्ट और टॉप पहने नेहा खड़ी थी। इसके पहले मेरी दो तीन बार उससे औपचारिक बातचीत भर हुई थी।

वो बोली- भैय्या, मैं हिंदी पढ़ने के लिए आई हूँ। पापा ने कहा है रविवार को मैं आपसे हिंदी पढ़ लिया करूँ।

मैं बोला- आओ बैठो, किताब लाई हो क्या?

उसने अपने हाथ में थमी किताब मुझे थमा दी। किताब पर उसने अखबार चढ़ाया हुआ था, किताब थी काव्यांजलि, जो उन दिनों उत्तर प्रदेश में विज्ञान संकाय के छात्रों को सामान्य हिंदी विषय में पढ़ाई जाने वाली किताबों में से एक थी।

परीक्षा में इसका एक पूरा पैंतीस अंकों का पर्चा होता था। मैंने उसे हिंदी में ज्यादा नंबर पाने के कुछ तरीके बताए, सुनकर वो खुश हो गई। फिर मैंने कबीर के कुछ दोहों की व्याख्या की और उसके बाद मैं बोला- आज के लिए इतना ही काफी है। बाकी अगले सप्ताह।

वो खुश होकर चली गई।

अगले रविवार को सुबह-सुबह मैंने पास के पीसीओ पर जाकर सुगंधा के छात्रावास में फोन लगाया। वो फोन पर आई तो मैंने पूछा- कैसी चल रही है तुम्हारी पढ़ाई आजकल?

वो बोली- अच्छी चल रही है। आप बताइए आपकी प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम घोषित होने वाला था?

मैं बोला- हो गया। अब मुख्य परीक्षाओं की तैयारी कर रहा हूँ।

वो वोली- इतनी अच्छी खुशखबरी बिना मिठाई के दे रहे हैं?

मैं बोला- अब फोन से मिठाई खाएगी क्या?

वो बोली- मिठाई लेकर जल्दी से आइए।

मैंने बाजार से तीन चार तरह की मिठाइयाँ मिलाकर आधा किलो का पैकेट बनवाया और लेकर उसके छात्रावास की तरफ चल पड़ा।

छात्रावास के गेट पर पहुँचकर मैंने अंदर संदेशा भिजवाया तो वो बाहर निकली। उसने एकदम कसी जींस और टॉप पहना हुआ था। पिछले दो तीन महीनों में उसके उरोज और नितंबों में काफी बदलाव आया था और वो भरे भरे लग रहे थे। क्या संभोग भी शरीर के हार्मोनल बदलावों की गति बढ़ा सकता है, मैंने सोचा।

जीव विज्ञान में मेरा सामान्य ज्ञान कमजोर पड़ रहा था।

तभी उसकी आवाज मेरे कानों में पड़ी- लाइए, पैकेट दीजिए, मैं अपनी सहेलियों को देकर आती हूँ।

कहकर उसने पैकेट मेरे हाथों से छीन लिया और छात्रावास के भीतर चली गई।

वो बाहर आई तो पैकेट उसके हाथों में नहीं था, वो बोली- ये तो था मेरी सहेलियों का हिस्सा, अब बताइए मैं क्या खाऊँ।

मैं बोला- चलो, चलकर और खरीद लेते हैं।

साथ साथ चलते हुए हम मिठाई की दुकान पर आए। मिठाई लेने के बाद मैं उससे बोला- यहाँ तो बहुत भीड़ है। चलो मेरे कमरे पर चलकर आराम से खाते हैं।

इतना कहकर मैंने उसके चेहरे की ओर देखा। उसके चेहरे से मुस्कान धीरे धीरे गायब हो गई और वो भाव उभर आए जो समर्पण करने को तैयार लड़कियों की आँखों में होते हैं और जिन्हें मैं पहले भी उसकी आँखों में देख चुका था।

उसके बाद पूरे रास्ते हममें कोई बात नहीं हुई। मैं आगे आगे और वो मेरे पीछे पीछे चलती रही। मुड़कर देखने की मुझमें हिम्मत नहीं थी। वैसे ही चुपचाप हम कमरे पर पहुँचे।

उसके अंदर आने के बाद मैंने दरवाजा बंद किया, वो फोल्डिंग बेड पर बैठ गई। पिछले संभोग के बाद से मैंने दूसरे फोल्डिंग बेड को हटाया नहीं था। मैंने डिब्बा खोलकर उसे मिठाई दी और रसोई से एक गिलास पानी लाकर दिया। उसने थोड़ी सी मिठाई खाई और थोड़ा सा पानी पिया फिर गिलास बेड के नीचे रख दिया। मैंने उसके पास आकर उसकी आँखों में झाँका, उसकी साँसें तेज हो गई थीं और टॉप में कैद उसके वक्ष तेजी से ऊपर नीचे हो रहे थे।

मैंने उसके कंधों पर अपने दोनों हाथ रखे। उसने अपने हाथ मेरी कमर पर रख दिए। मैंने उसको खुद से सटा लिया। उसका चेहरा मेरी छाती से सट गया। मैंने उसे कंधों से पकड़कर उठाया और अपनी बाहों में भींच लिया। उसने भी मुझे कसकर पकड़ लिया। मेरे हाथ धीरे धीरे उसकी पीठ पर फिरने लगे।

“सुगंधा दो-तीन महीनों में ही कितनी गदरा गई है !” मैंने सोचा।

मैंने अपना हाथ पीछे से सुगंधा की जींस में डालने की कोशिश की। जींस बहुत तंग थी। केवल हाथ का उँगलियों वाला हिस्सा ही अंदर घुस सका। मैंने हाथ बाहर निकाला और जींस के ऊपर से ही उसके नितंबों को दबाना शुरू किया। यह मेरे लिए एक नया अनुभव था। हाथों को महसूस तो जींस का मोटा कपड़ा ही हो रहा था लेकिन एक अलग ही आनन्द आ रहा था। शायद यह इसलिए था कि अब तक जींस पहनी हुई लड़कियों के नितंब देखदेखकर मन में उनको मसलने की ख्वाहिश इतनी तेज हो चुकी थी कि जींस का कपड़ा नंगे नितम्बों को सहलाने से ज्यादा मजा दे रहा था। यह कामदेव जो न करवाये सो थोड़ा।

थोड़ी देर में मेरा मन उसके नितम्बों से भर गया तो मैंने उसे बेड पर लिटा दिया। उसकी आँखें बंद थी।

मैंने उससे कहा- आँखें खोल लो सुगंधा, अब मुझसे कैसी शर्म?

उसने अपनी आँखें खोलीं, मैं उसके ऊपर लेट गया। मेरा उभरा हुआ पजामा उसके जाँघों के बीच उभरे जींस से सट गया। मैं उसके होंठों को अपने होंठों के बीच लेकर चूसने लगा और मिठाई की मिठास मेरे मुँह में घुलने लगी। फिर मैंने उसकी टीशर्ट ऊपर उठानी शुरू की।

उसने सफेद रंग की ब्रा पहनी हुई थी। उसने मेरा मलतब समझकर अपने हाथ ऊपर उठाए और मैंने उसकी टीशर्ट खींचकर बाहर निकाल दी। मैंने ताबड़तोड़ उसके शरीर के नग्न हिस्सों को चूमना शुरू किया। उसके मुँह से सिसकारियाँ निकलकर कमरे में गूँजने लगीं। शायद वो भी इन दो महीनों में उतना ही तड़पी थी जितना मैं तड़पा था।

मैंने उसके ब्रा का बायाँ कप हटा दिया और उसका चुचूक मुँह में भर कर चूसने लगा। वो मचलने लगी पर मैं अब कहाँ रुकने वाला था। मैंने उसका चुचूक अपने दाँतों के बीच पकड़ा और धीरे धीरे काटने लगा। बीच बीच में मैं थोड़ा जोर से भी काट लेता था और वो चिहुँक उठती थी। मगर यहाँ ऊपर कौन सुनने वाला था। यही हाल मैंने उसके दूसरे चुचूक का भी किया।

मेरा लिंग पूरी तरह तन चुका था, अब अगर मैंने इसे आजाद न किया तो मेरा अंडरवियर ही फट जाएगा, मैंने सोचा।

मैं उठा और फटाफट अपने कपड़े उतार कर फेंके, कौन सा कपड़ा कहाँ गिरा, इसकी सुध लेने की फुर्सत मुझे कहाँ थी। तभी मुझे याद आया कि मस्तराम की कहानियों के नायक तो नायिका को अपना लिंग भी चुसवाते हैं।

सुगंधा ने फिर अपनी आँखें बंद कर ली थीं। शायद वो मुझे नग्न देखकर शर्मा गई थी। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।

मैं अपने पैर उसके शरीर के दोनों तरफ करके उसके वक्ष के ऊपर इस तरह बैठ गया कि मेरा भार उसके शरीर पर न पड़े। मैं अपना लिंग उसके मुँह के पास ले आया, मैंने कहा- सुगंधा आँखें खोलो।

उसने आँखें खोली और अपने मुँह के ठीक सामने मेरे भीमकाय लिंग को देखकर डर के मारे फिर से बंद कर लीं।

मैंने कहा- सुगंधा, इसे चूसो। जैसे मैं तुम्हारी योनि चूसता हूँ वैसे ही।

उसने आँखें खोलीं और बोली- नहीं, मुझे घिन आती है।

मैंने कहा- घिन तो मुझे भी आती है तुम्हारी योनि चूसते हुए, मगर तुमको मजा देने के लिए चूसता हूँ न। उसी तरह तुम भी मुझे मजा देने के लिए चूसो।

कहकर मैं अपना लिंग उसके मुँह के पास ले आया। उसने कुछ नहीं किया तो मैंने खुद ही अपना लिंग उसके होंठों से सटा दिया। फिर भी उसने कुछ नहीं किया तो मैंने अपना लिंग उसके होंठों पर रगड़ना शुरू किया।

अचानक उसने मेरा लिंग अपने हाथों में पकड़ लिया और बोली- आपका लिंग तो बहुत बड़ा है।

मैं चौंक गया, मैंने पूछा, “तुम्हें कैसे पता? तुमने तो आजतक सिर्फ़ मेरा ही लिंग देखा है।

उसने फिर अपनी आँखें बंद कर लीं और शर्म से उसके गाल लाल हो गए।

मैंने कहा- बता सुगंधा की बच्ची, तुझे कैसे पता कि मेरा लिंग बहुत बड़ा है?

कहानी जारी रहेगी।

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