आंटी के लिए वासना-1

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प्रेषक : अंशु

मेरा नाम अंशु है, 23 साल का लड़का हूँ। मेरा लण्ड 7 इंच लम्बा और दो इंच मोटा है।

मेरा हमेशा से ही लड़कियों और आंटियों के साथ सेक्स करने का मन करता रहा है, ख़ास तौर से आंटियों के प्रति कुछ ज्यादा ही वासना रही है।

आज मैं आपको अपने जीवन की सच्ची कहानी बताने जा रहा हूँ। दो साल पहले की बात है मैं अपनी बी टेक सेकंड इयर की छुट्टियों पर घर आया हुआ था। मई का महीना था, एक दिन पड़ोस में ही रहने वाली संगीता आंटी हमारे घर मम्मी से मिलने आई।

आंटी क्या वो तो बला थी, उम्र लगभग 32-34 होगी, उनका सावंला चिकना बदन और उस पर 36-28-34 का उनका फिगर !

आंटी को अपने 8 साल के लड़के बंटी के लिए एक टीचर की तलाश थी। मैं उनकी बातें दूसरे कमरे से सुन रहा था। जैसे ही मैंने यह सुना, मैं तुरंत उनके सामने जा पहुंचा, मैंने कहा- आंटी मेरी अभी छुट्टियाँ चल रही हैं, मैं बंटी को पढ़ा देता हूँ !

आंटी मान गई, उन्होंने कहा- ठीक है कल से शाम पांच से सात पढ़ाने आ जाना।

मैंने कहा- आंटी दोपहर तीन से पांच कर लीजिये, क्यूंकि पांच बजे से मेरा पढ़ने का टाइम हो जाता है।

आंटी मान गई। मैं खुश हो गया क्यूंकि मुझे पता था कि सात बजे तक अंकल ऑफिस से आ जाते हैं।

अगले दिन मैं अच्छे से तैयार होकर सही समय पर आंटी के यहाँ पहुँच गया। दरवाजा आंटी ने खोला, क्या लग रही थी आंटी उस हरी साड़ी में ! साड़ी उनके बदन से एकदम कसकर लिपटी थी, उनके नितम्बों की गोलाइयाँ साफ़ दिख रही थी, उनका भरा हुआ नशीला बदन मुझे मदहोश किये जा रहा था, ब्लाऊज़ भी उनका काफी गहरे गले का था और गर्मी होने वजह से पीछे पीठ पर भी गहरा था। उनकी चिकनी पीठ पर बार बार मेरा हाथ फिराने का मन कर रहा था।

उन्होंने मुझे पढ़ाने का कमरा दिखाया, जब वो चलती थी तो उनके नितम्बों का ऊपर नीचे होना पागल कर देता था। मैं अपने आप को बहुत मुश्किल से संभाल पा रहा था।

मैंने उनकी ओर देखना बंद कर दिया और बंटी को पढ़ाने लगा।

आंटी रसोई में चली गई एक घंटे बाद आंटी चाय नाश्ता लेकर आई, मैंने कसम खा ली थी कि इस बार उनको नहीं देखूँगा। लेकिन आंटी बिल्कुल मेरे सामने आकर बैठ गई और मुझसे पूछा- अंशु, चाय में चीनी कितनी लोगे?

मैं बंटी की तरफ देखते हुए बोला- बस एक चम्मच।

फिर आंटी ने चीनी घोलना शुरु किया। इस बार मैंने उनको एक नज़र देखा लेकिन सामने का नज़ारा तो एकदम नशीला था, आंटी थोड़ा झुक कर चीनी घोल रही थी, इससे उनके स्तनों के दर्शन होने लगे थे, हालाँकि ब्लाऊज़ गहरा होने के कारण स्तन बाहर आ रहे थे लेकिन साड़ी का पल्लू उसके ऊपर हल्का सा आवरण डाले था, मगर फिर भी उनके चिकने भरे भरे स्तनों की गोलाइयाँ देख कर मैं पागल हुआ जा रहा था, अपने आप को संभालना मुझे मुश्किल लग रहा था।

मैंने आंटी से पूछा- बाथरूम कहाँ है?

उन्होंने आगे आगे चल कर मुझे बता दिया, मैं तो सिर्फ उनके ही नशे में खोया हुआ था, बाथरूम जाकर मैंने मुठ मारी तब जाकर मेरी वासना शांत हुई, वापस आकर मैं नोर्मल हो गया और आंटी के नशीले बदन हो निहारता हुआ मस्त चाय नाश्ते का आनन्द लिया।

अगले एक हफ्ते तक सब कुछ ऐसे ही चलता रहा, मैं आंटी के नशीले बदन में खोता ही जा रहा था, उनके बारे में सोच सोच कर कभी उनके बाथरूम में तो कभी रात को बिस्तर पर मुठ मार लेता था। आंटी के लिए मैं पागल हुए जा रहा था, मैं दिन रात बस संगीता आंटी के लिए परेशान रहने लगा।

एक दिन बंटी को पढ़ाते समय आंटी आकर कमरे में झाड़ू लगाने लगी, वो झुक कर झाड़ू लगते समय इतनी मस्त लग रही थी कि मन कर रहा था कि इसी पोज़ में उनको चोद दूँ। उनकी भरी हुई कमर साड़ी से कसकर लिपटी हुई थी, लग रहा था कि मुझे चोदने के लिए निमंत्रण दे रही हो।

मुझसे रहा नहीं गया, मैं उठ कर बाथरूम चला गया वहाँ जाकर अपनी पैंट खोली ही थी कि मैंने देखा, वहाँ पर संगीता आंटी की ब्रा और पैंटी धुलने के लिए पड़ी थी। मैंने उनकी पैंटी उठाई और उसे सूंघना शुरु किया। क्या खुशबू थी, मैं उस नशीली खुशबू में खोता जा रहा था। अब मैंने पैंटी को चाटना शुरु कर दिया। मुझे लग रहा था कि जैसे मैं संगीता आंटी की चूत चाट रहा था।मुझे समय का पता ही नहीं चला, एकदम से संगीता आंटी की बाथरूम का दरवाजा खटखटाने की आवाज़ आई, वो बोल रही थी- क्या हो गया अंशु? क्या कर रहे हो अंदर इतनी देर से?

मैं अंदर बिल्कुल पसीना-पसीना हो गया था, मुझे कुछ सूझ भी नहीं रहा था, हालाँकि बस एक बात अच्छी थी कि मैं मुठ मार चुका था। मैंने अंदर से कहा- आंटी, मेरा पैर फिसल गया है, मैं बिल्कुल भी चल नहीं पा रहा हूँ।आंटी परेशान होकर बोली- बेटा, तुम किसी तरह दरवाजा खोल लो और बाहर आ जाओ।

मैंने आंटी की पैंटी को एक बार जी भर कर और चाटा, फिर नीचे फेंक दी। उसके बाद मैंने पानी की कुछ बूंदों से अपने नकली आंसू बनाये, थोड़ा सा पानी लेकर अपना पैंट गीली कर ली और करीब एक मिनेट बाद दरवाजा खोला और अपनी रोने की एक्टिंग जारी रखी।

मुझे लंगड़ाता और घिसटता देख कर आंटी को मुझ पर दया आ गई, उन्होंने मुझे अपने दोनों हाथों से पकड़ा और ऊपर उठाने की कोशिश की। उन्होंने मुझे सामने से पकड़ा, उनके दोनों हाथ मेरी पीठ पर थे। मैं भी यह मौका कहाँ छोड़ने वाला था, मेरा एक हाथ उनकी चिकनी पीठ को सहला रहा था तो दूसरा उनके रसीले नितम्बों की गोलाइयाँ नाप रहा था और मैं उनसे चिपका जा रहा था, मुझे लग रहा था कि बस यही स्वर्ग की अनुभूति है।

उसी समय मुझे एक और शरारत सूझी, मैंने अपना वजन थोड़ा भरी किया और लड़खड़ा गया, इससे हुआ यह कि मैं नीचे गिरने लगा और इस चक्कर में आंटी का पल्लू नीचे गिर गया। नीचे गिरते हुए मेरे दोनों हाथ आंटी की पीठ से होते हुए उनके पेट पर,फिर उनकी कमर का स्पर्श लेते हुए उनकी दोनों जांघों पर टिक गए मैंने उनकी दोनों जांघों को कसकर पकड़ लिया और जी भर का उनकी रसीली जांघों का स्पर्श-आनन्द लिया।

इससे पहले कि आंटी अपना पल्लू सम्हालती, मैं जोर जोर से रोने लगा, इस कारण आंटी अपना पल्लू सम्हलना भूल कर मुझे फिर से उठाने के लिए झुकी। उनके बूब्स अब मुझे पूरी तरह से देख रहे थे। इस बार तो मैंने मैदान मारने की ठान ली थी।

आंटी बोली- अंशु बेटा, कहाँ लगी? चलो, रोते नहीं ! चलो उठो !

मैंने अपने दोनों हाथ उनके कंधों पर रख लिए और उनके खुले हुए वक्ष से चिपक कर रोने लगा।

फिर हम दोनों धीरे धीरे आंटी के बेडरूम जाने लगे, बेडरूम बाथरूम के बगल में था।

कहानी जारी रहेगी।

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