घने जंगल में मंगल

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पाठकों को मेरा नमस्कार। प्रस्तुत है मेरी नई कहानी ‘जंगल में मंगल’। इस कहानी के सभी पात्र व घटनाएँ काल्पनिक हैं।

एक ईसाई मिशनरी ने अपने कुछ लोग उड़ीसा के अलग थलग, दूर-दराज़ के आदिवासी इलाके में भेजे, लोगों का मुफ्त इलाज करने के लिए और उनकी सेवा करने के लिये।

यह जगह सिर्फ पिछड़े हुए आदिवासियों से भरी पड़ी थी। यहाँ तक सिर्फ कच्ची सड़क थी, जो बरसात में बिल्कुल बंद हो जाती थी। आज़ादी के इतने सालों बाद भी सरकार को इन लोगो की चिंता नहीं थी- न यहाँ बस आती थी, न यहाँ स्कूल था, न चिकित्सा केंद्र, न बिजली और न हैण्ड पम्प।

यहाँ के मर्द अभी भी नंगे घूमा करते थे- सिर्फ लंगोट या छोटी सी धोती में। औरतें फिर भी साड़ी में रहती थीं।

मिशनरी के दल में तीन डॉक्टर, तीन ईसाई भिक्षुणी (नन) और दो तीन नौकर चाकर भी थे। इन सबके अलावा एक अमन नाम का कम्पाउण्डर भी आया था, उम्र रही होगी इक्कीस साल, चिकना, दुबला पतला और सुन्दर।

इन आदिवासियों के बीच कोई भी नहीं गया था, इसीलिए इनके बारे में लोग बहुत कम जानते थे। जैसे कि सारे आदिवासी होते हैं, ये लोग भी भुच्च काले थे, और घने जंगलों में कच्चे झोंपड़े बना कर रहते थे।

लेकिन यहाँ की कुछ ख़ास बातें किसी को नहीं पता थी- एक कि यहाँ समलैंगिता बहुत थी। दूसरे यहाँ के जंगलों में एक कीड़ा पाया जाता था, जिसके काट लेने पर वैसे तो कोई नुकसान नहीं होता था, लेकिन इंसान के शरीर में हवस का सैलाब उमड़ आता था और उसकी हवस काबू के बाहर हो जाती थी, चाहे वो मर्द हो या औरत।

यह हवस इतनी प्रचंड थी कि आदिवासी मर्द कीड़े के काट लेने पर दैहिक शोषण पर उतारू हो जाते थे। औरतें अपनी चूत में उंगली करती रहती थी या फिर किसी दूसरी स्त्री के साथ अपनी चूत रगड़ लेती थी।

समलैंगिकता बढ़ने में इस कीड़े का बहुत बड़ा हाथ था। अक्सर किशोर लड़के अपने से किसी मर्द से चुद जाते थे या फिर अपने ही किसी साथी को चोद देते थे।

मिशनरी के कर्मचारी आदिवासियों के बीच पहुँच कर अपना ताम झाम फ़ैलाने लगे- कोई तम्बू गाड़ने में जुट गया, कोई मेज़ कुर्सी लगाने में, कोई क्लोरीन की गोलियां ढूँढने लगा।

आदिवासी लोग उन्हें घेर कर देखने लगे। उन आदिवासियों में एक था मंगा। उम्र छबीस-सत्ताईस साल, और राक्षस जैसा भीमकाय शरीर, ऊँचाई छ: फुट तीन इंच और रंग तारकोल जैसा काला (वैसे तो उन सारे आदिवासियों का रंग तारकोल जैसा काला था), हट्टा -कट्टा, लम्बा चौड़ा !

मंगा की नज़र हमारे कम्पाउण्डर अमन पर पड़ी। मंगा के बारे में आपको बता दें, जैसा कि अब आप जान गए हैं, उन आदिवासियों में समलैंगिकता आम बात थी, एक नंबर का चोदू था और उसे लड़के बहुत पसंद थे। वैसे तो वो लड़कियों को भी चोद चुका था।

शाम को जब उस दल ने अपने तम्बू गाड़ कर आदिवासियों को दवाइयाँ देना शुरू किया तो मँगा भी दवा लेने आये झुण्ड में खड़ा हो गया, हालांकि उसे कुछ नहीं हुआ था। वो तो बस अमन को घूर रहा था। अमन की नज़र उस पर भले कैसे न पड़ती? मंगा का डीलडौल ही ऐसा था। अमन मंगा को बहुत पसंद आया। अमन था भी सुन्दर- गोरा चिट्टा, इकहरा शरीर, बड़ी बड़ी आँखें, सुन्दर मुलायम रसीले होंठ, और मुस्कान इतनी प्यारी की परियाँ भी शर्मायें।

मंगा उसके सामने सिर्फ एक छोटी सी लंगोट पहने खड़ा था। अमन ने चोर नज़रों से उसके भीमकाय शरीर को देखा- चौड़ी विशाल बालदार छाती, विशाल कंधे, मोटी-मोटी बालदार मांसल जांघें, चेहरे पर घनी-घनी मरदाना मूंछें। अमन के दिल और गाण्ड में मंगा को देख कर कुछ-कुछ होने लगा। वो जितनी देर तक आदिवासीयों को दवा देता रहा, मंगा उतनी देर तक वहीं खड़ा उसे घूरता रहा।

अमन भी चोरी-चोरी उसे देखता रहा।

मंगा जान गया कि अमन उससे चुद जायेगा। अंधेरा होते उन मिशनरियों ने अपना सामान समेटा और रात की तैयारी करने लगे। उनके नौकर चाकर खाना बनाने में जुट गए, बाकी लोग- डाक्टर, ननें और अमन गाँव में घूमने लगे। मंगा की नज़र अभी भी अमन पर थी और अमन भी मंगा को चोरी-चोरी देख कर मुस्कुरा देता था।

थोड़ी देर बाद उन लोगों ने भोजन किया और अपने अपने तम्बुओं में सोने चले गये। न जाने कब मंगा और अमन दोनों को उस बदनाम कीड़े ने काट लिया।

अब दोनों की हालत खराब थी। मंगा को बस एक गाण्ड चाहिए थी अपना लंड घुसेड़ने के लिए और अमन को एक लौड़ा चाहिए था, अपने अन्दर लेने के लिये। दोनों की हवस बेकाबू हो चुकी थी।

अमन भी सोने की तैयारी करने लगा। उसके तम्बू में सिर्फ दो लोग थे- वो और एक बूढ़ी नन। रोशनी के लिए सिर्फ उनके पास एक पेट्रोमैक्स था। मंगा को पता था कि अमन कौन से तम्बू में था, लेकिन उसे यह भी मालूम था कि अमन के साथ नन भी थी।

नन का भी इलाज मँगा के पास था। जंगल से एक पौधे के पत्तियाँ ले आया और मसल कर एक कपड़े में रख लीं। इन पत्तियों का रस ऐसा था कि अगर कोई उसे सूंघ ले तो उसे कुछ घंटों के लिए लकवा मार जाता था। व्यक्ति जिस अवस्था में हो, उसी में स्तब्ध मूर्ति बन जाता था, न बोल पाता था, न हिल पाता था, सिर्फ आँखें खुली रहती थीं और सांस चलती रहती थी।

मँगा अमन के तम्बू में घुस गया। बाहर घना अँधेरा था और जंगल में होने के कारण बिल्कुल सन्नाटा था, सिर्फ हवा के सरसराने की आवाज़ और झींगुरों का शोर था। वो हवस के मारे इतना पागल हो गया था कि उसने अपनी लंगोट उतार फेंकी थी। उसका साढ़े ग्यारह इंच का भुट्टे जैसा मोटा लौड़ा तन कर खड़ा हो गया था और हवा में रेडियो के एंटीना की लहरा रहा था।

इधर तम्बू के अन्दर अमन की हालत ख़राब थी- उसे भी उस बदनाम कीड़े ने काट लिया था। उसकी गाण्ड में ज़बरदस्त खुजली मची हुई थी। उसका मन कर रहा था कि कोई उसे आकर चोद दे या वो अपनी गाण्ड में कोई सख्त सी चीज़ घुसेड़ ले, लेकिन इतनी रात गए इस बियाबान जंगल में क्या करे, किसके पास जाये?

ऊपर से यह बुढ़िया उसके सर पर सवार थी। सिवाए ईश्वर की भक्ति के उसको कुछ दिखाई नहीं देता था।

अमन यूँ ही बिस्तर पर पड़ा उधेड़बुन में लगा था कि मँगा उसके तम्बू में घुस आया। अमन उसे देख कर बौखला गया, उसके सामने एक पूरा भीमकाय काला दानव नंगा होकर खड़ा था और अपना प्रचंड काला विकराल लण्ड अपनी कमर हिला-हिला कर उसे दिखा रहा था। पेट्रोमैक्स की रौशनी में वो और भी दैत्याकार लग रहा था। मंगा अपनी कमर चुदाई के भाव में हिल रहा था और मुस्कुरा रहा था, जैसे अमन के सामने वो कोई तोहफा लेकर खड़ा हो।

वैसे उसका लण्ड और वो खुद भी एक तोहफा था। अगर आप उसके भुच्च काले रंग को नज़रंदाज़ कर दें, तो मंगा एक सम्पूर्ण पुरुष था- लम्बा चौड़ा, तगड़ा, भीमकाय और उसका लण्ड भी उसके शरीर के जैसा था।

अमन सकपका कर उठ बैठा। उसके सामने लेटी मदर भी उसे देख चौंक कर उठ बैठी। मदर की खाट अमन के बगल थी, लेकिन वो अमन की तरफ पैर करके लेटी थी। मँगा ने अमन के सामने से एंट्री मारी थी, यानि मदर की पीठ मँगा की तरफ थी। मदर को लगा शायद तम्बू में कोई जंगली जानवर घुस आया है।

मदर ने पीछे मुड़ कर देखा। इससे पहले कि उस बुढ़िया नन के कुछ समझ में आता, या फिर वो कुछ करती, मँगा ने झपट कर उन पत्तियों से भरा कपड़ा बुढ़िया के नथुने पर जड़ दिया और उसका सर ज़ोर से जकड़ लिया।

कुछ पलों बाद पत्तियों का असर हुआ और मदर जड़ होकर बैठ गई। अमन यह सब देखे जा रहा था। उसकी तो बांछें खिल गई थी। वो जान गया कि मँगा उसे चोदने आया है। इतना बड़ा लण्ड तो उसने पहले कभी नहीं देखा था।

अगले ही पल मँगा लपक कर अमन के सर पर चढ़ आया। अमन ने न आव देखा न ताव, मँगा का लण्ड चूसने लगा। अमन के मुँह की गर्मी जब मँगा ने अपने लौड़े पर महसूस की, तब जाकर बेचारे को थोड़ा आराम मिला वरना वो तो हवस की आग में जल रहा था।

अमन लपर-लपर उसका लौड़ा चूसे जा रहा था। एक तो उसे लण्ड मिले बहुत महीने हो गए थे, दूसरे उसे भी ज़ोरों की हवस चढ़ी हुई थी कीड़े के काटने की वजह से, ऊपर उसे मंगा जैसा लम्बा-चौड़ा, विशालकाय लण्ड वाला मर्द मिला था।

अमन पूरे जोश से मँगा का लौड़ा चूस रहा था। मँगा को भी बहुत आनन्द आ रहा था। गाँव में कोई उसका लंड ढंग से नहीं चूस पाता था। ये शहर वाले गोरे चिट्टे और सुन्दर तो होते ही हैं, साथ में इन्हें ये सब भी करना आता है।

मँगा के चेहरे पर शांति और आनन्द का भाव था। उसके चेहरे को देख कर ऐसा लगता था मानो उसे कितना मज़ा आ रहा हो और कितना सुकून मिल रहा हो।

अमन इतना बड़ा लौड़ा लेकर बहुत खुश था, बस चूसे चला जा रहा था। हालांकि मँगा का लंड इतना विकराल था कि सिर्फ वो उसका आधा ही ले पा रहा था, लेकिन फिर भी अपनी जीभ से चाट-चाट कर उसके लण्ड को प्यार कर रहा था। उसने अपना लौड़ा धोया नहीं था, जिसकी वजह से उसमें से मूत और वीर्य की दुर्गन्ध आ रही थी, लेकिन फिर भी अमन चूसे चला जा रहा था। मंगा का मोटा भीमकाय घोड़े जैसा काला-काला लंड अमन के थूक में सन गया था।

अमन तो ऐसे चूस रहा था जैसे उसे कोई रसीला लोलीपोप मिल गया हो। उसकी जीभ से चाटने की आवाज़ ज़ोर-ज़ोर से आ रही थी :

‘लपर-लपर, लपर-लपर…’

इधर मंगा बड़े चाव से अमन के कन्धों पर अपने हाथ टिकाये अपना लौड़ा चुसवा रहा था। वो हल्के-हल्के अपना लौड़ा भी अमन के मुँह में चला रहा था और मुँह खोले थोड़ी देर तक अमन मंगा के लंड का दुलार करता रहा, लेकिन अब मंगा उसे चोदना चाहता था। उसने अपना लौड़ा पीछे कर लिया और अमन को बिस्तर से उठने का इशारा किया। अमन ने उस वक़्त बिना आस्तीन की टी शर्ट और बॉक्सर शॉर्ट्स पहनी हुई थी।

अमन झटपट उठ कर खड़ा हो गया। उसकी नज़र एक पल के लिए उस बुढ़िया मदर पर गई- बेचारी मूर्ति बनी बिस्तर उसी तरह बैठी थी, आँखें और मुंह दोनों खुले थे, होठों पर उस बूटी की एक आध पत्तियाँ चिपकी हुईं थीं। पता नहीं उस बुढ़िया को समझ में भी आ रहा था या नहीं।

अब मंगा अमन की चारपाई पर बैठ गया और अमन की बॉक्सर शॉर्ट्स नीचे खींच दी। उसके नरम मुलायम गोरे-गोरे चिकने चूतड़ों को देख कर मंगा लौड़ा अपने-आप ही उछाल मारने लगा। उसने अपने लौड़े पर अपना ढेर सारा थूक गिराया और अमन को कमर से पकड़ अपने पगलाए लौड़े पर बैठाने लगा।

मंगा अभी भी पहले जैसा खुश था। वो ख़ुशी और उतावलेपन में मुस्कुरा रहा था। वैसे उतावले और खुश दोनों थे- दोनों को अपनी मुंह मांगी मुराद मिल गई थी और दोनों हवस के सैलाब में बह चुके थे।

अमन उसका लौड़ा अपनी गाण्ड में लेने के लिए मचल रहा था। लेकिन एक मिनट को वो डर भी गया। उसने आज तक इतना बड़ा लौड़ा असल ज़िन्दगी में कभी नहीं देखा था। वैसे वो चुदा-चुदाया लड़का था। न जाने कितने हज़ारों बार उसने अपनी गाण्ड मरवाई थी, कुछ एक बार तो उसने ग्रुप में में तीन चार लड़कों से अपनी गाण्ड मरवाई थी। लेकिन बड़ी आकार के लौड़े उसने बहुत कम लिए थे, और मंगा जितना तो उसने सिर्फ ब्लू फिल्मों में अफ्रीकियों का देखा था।

अमन ने अपनी गाण्ड के मुहाने को मंगा के लौड़े के सुपाड़े पर टिकाया और धीरे धीरे बैठने लगा। मंगा ने उसकी पतली कमर को जकड़े रखा था।

अमन ने अभी तक उसका सुपाड़ा ही लिया था कि उसकी गाण्ड फटने लगी। मंगा का विशाल रोडरोलर उसकी कच्ची पगडण्डी को आठ लेन का हाइवे बनाने वाला था। अमन ने आहें लेना शुरू कर दिया था। साले ने जोश में आकर इस भीमकाय जंगली दैत्य को अपने ऊपर हावी कर तो लिया था, लेकिन उसने जब अपना खम्बा उसके अन्दर घुसेड़ना शुरू किया तो उसकी गाण्ड फट गई। अमन इतने में ही रुक गया। उससे और अन्दर नहीं लिया जा रहा था।

मंगा अभी तक अपने को किसी तरह से रोके हुए था वर्ना जब उस पर हवस सवार होती थी, तो वो बेरहमी से चोदता था। लेकिन जब अमन उसके लंड पर अटक गया, तब उससे रहा नहीं गया। तब उसने अमन को कन्धों से जकड़ा और उछल कर खड़ा हो गया। एक झटके में उसका साढ़े ग्यारह इंच का, पत्थर जैसा सख्त, भुट्टे जितना मोटा, काला लौड़ा अमन की गाण्ड में पूरा का पूरा अन्दर घुस गया।

अमन दर्द के मारे गूंगा हो गया, उसकी आँखों के आगे अँधेरा छा गया और उसका मुंह खुला का खुला रह गया, सिर्फ आवाज़ नहीं निकल पाई। मंगा था तो जंगली, ऊपर से हवस का मारा। उसने अमन को उसी अवस्था में, अपना लौड़ा उसके अन्दर घुसाए-घुसाए बिस्तर पर खींचा और बगल से लिटा कर उसे पीछे से हपर-हपर चोदने लगा।

अमन बेचारा दर्द में अपनी आँखें मींचे, अपना सर झटकता उस कामातुर जंगली काले दैत्य का प्रहार झेले जा रहा था। लेकिन मंगा को बड़ा मज़ा आ रहा था। एक तो अमन बहुत सुन्दर और चिकना लड़का था, फिर उसकी गाण्ड बहुत मुलायम और कसी हुई थी।

करीब दस मिनट तक मंगा अमन को उसी तरह करवट से दबोचे चोदता रहा फिर उसने अमन तो पेट के बल लिटाया और उसके ऊपर चढ़ कर उसे चोदना जारी रखा। दोनों अपने गाल सटा कर चुदाई कर रहे थे। अगर आप सामने से देखते तो मंगा का भुच्च काला चेहरा अमन के गोरे-चिट्टे चेहरे से बिल्कुल विपरीत लग रहा था।

अमन के मुंह से अब हल्की-हल्की सिसकारियां निकल रही थीं, वो ऐसे तड़प रहा था जैसे प्रसव पीड़ा में कोई औरत तड़पती है…

‘अह्ह्ह…अह्ह… उऊ ह्ह्ह !!’

मंगा को इससे और जोश चढ़ रहा था, उसके विशालकाय काले लण्ड-मुसंड के थपेड़ों से पूरी चारपाई चूँ-चूँ की आवाज़ के साथ हिल रही थी, जैसे कोई भयानक भूडोल आया हो।

अमन ने पहले कई बार गाण्ड मरवाई थी, चुदा-चुदाया लड़का था इसीलिए वो इस पगलाए जंगली दानव और उसके पगलाए लण्ड-मुसंड को झेल पा रहा था। कोई और होता तो उसके लण्ड से डर कर भाग जाता या फिर चुदवा-चुदवा कर मर जाता।

मंगा का काला लौड़ा पिस्टन की तेज़ी से भकर-भकर अमन की गोरी-गोरी गाण्ड के अन्दर-बाहर आ-जा रहा था। वो तो अच्छा था कि उसके लण्ड में से चिकना करने वाला पानी निकला करता था वरना उसका पत्थर जैसा सख्त और खीरे जितना मोटा लण्ड अमन की गाण्ड फाड़ देता।

करीब पन्द्रह मिनट तक मंगा अमन पर जुटा रहा, उसे राक्षस की तरह चोदता रहा और अमन अपना सर झटकता, टाँगें चलाता, उसके भीमकाय काले शरीर के नीचे दबा चुदवाता रहा। फिर मंगा आनन्दातिरेक में आ गया। अब तक मंगा की आँखें खुली थी और अमन की बंद, लेकिन अब चरम सीमा पर पहुँचने पर मंगा की आँखे बंद हो गई और अमन की खुल गईं।

मंगा ने तो चरम आनन्द में आँखें बंद कर ली थी, लेकिन अमन ने चरम पीड़ा में आँखें खोल ली थी, उसकी आहें और ज़ोर हो गई थी- उह्ह्ह…!! ‘ नहीं .. अह्ह्ह… !!’ ‘ ह्ह्म्म्म… !’ और फिर अचानक अमन के मुंह से हलकी सी चीख निकली: ‘ ईईईइ…ह्ह्ह !!!’

मंगा उसकी गाण्ड में झाड़ रहा था और माल गिराता हुआ उसका लौड़ा फुंफकार मार रहा था जिससे अमन को और दर्द हो रहा था। मंगा के चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे उसे न जाने कहाँ की शांति मिल गई हो। अमन बेचारे की गाण्ड को अब आराम मिलने वाला था। मंगा अब पूरी तरह झड़ चुका था। वो उसी तरह अमन की गाण्ड में अपना लौड़ा घुसेड़े-घुसेड़े अमन के ऊपर शिथिल होकर गिर पड़ा, जैसे कोई अजगर अपना शिकार लीलकर कर बेदम हो जाता है।

थोड़ी देर वो यूँ ही अमन पर लदा सुस्ताता रहा, फिर हल्के से उसने अपना लण्ड बाहर खींचा और खड़ा हो गया। अमन भी उसके नीचे दबा-दबा थक गया था। वो भी चारपाई पर बैठ कर सांस लेने लगा। आखिर इतने विशालकाय मर्द से चुदवाना कोई आसान काम नहीं था। उसकी हालत मरियल गधे के जैसी हो गई थी।

उसने मंगा को देखा। खड़ा हुआ लालची गधे की तरह उसकी तरफ देखता हुआ खींसे निपोर रहा था। उसका लौड़ा अभी भी पहले की तरह तन कर खड़ा था। एक बार को अमन को लगा कि वो उसे फिर से न दबोच ले, क्यूंकि अब उसमें बिल्कुल भी ताकत नहीं बची थी।लेकिन मंगा ने अपनी जंगली बोली में मुस्कुराते हुए कुछ बड़बड़ाया और उसके तम्बू से भाग गया।

कहानी कैसी लगी, ज़रूर बताइएगा। [email protected]

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