कामना की साधना-1

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पिछले तीन दिनों की व्यस्‍तता के बाद भी आज मेरे चेहरे पर थकान का कोई भाव नहीं था आखिर आज मेरे घर मेरी स्वप्न सुन्दरी यानि ड्रीम गर्ल जो आने वाली थी।

मैं आफिस से जल्दी घर आ गया और नहा धोकर अपनी पत्नी ‘शशि’ से तैयार होने को कहा।

शशि बोली- कामना से मिलने के लिये मुझे कहने की जरूरत नहीं है वैसे भी आज 2 साल बाद कामना मुझसे मिलने वाली है। मैं तो बहुत पहले से तैयार बैठी हूँ, तुम ही लेट हो।’

कामना शशि की बचपन की सहेली थी। जिसने 5 साल पहले मेरी शादी में मुझे सबसे ज्यादा छेड़ा था और शायद मुझे जीजा साली के रिश्ते का पूर्ण रूपेण आनन्द का अनुभव कराया था।

मैंने घड़ी देखी उसकी ट्रेन के आने का समय 6 बजे का था और साढ़े पांच बज चुके थे, मैंने समय ना गंवाते हुए गाड़ी की चाबी उठाई और मोबाइल उठा कर 139 डायल किया ताकि गाड़ी की वर्तमान स्थिति का जायजा लिया जा सके।

इंक्वायरी से पता चला कि ट्रेन 2 घंटे लेट है। मैंने मरे मन से यह बात शशि को बताई।

शशि बोली- चलो अच्छा हुआ यहीं पता चल गया, नहीं तो स्टेशन पर 2 घंटे काटना कितना मुश्किल हो जाता।

मैं टाइम पास करने के लिये अपनी जेब से मोबाइल निकाल कर उस पर गेम खेलने लगा पर समय था कि कट ही नहीं रहा था। 2 घंटे मानो बरसों लग रहे थे, बड़ी मुश्किल से 1 गेम पूरा किया ऐसा लगा जैसे 1 घंटा तो हो गया होगा, पर घड़ी में देखा तो पौने छह: ही बजे थे, समय काटे नहीं कट रहा था कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

कमोबेश यही स्थिति शशि की भी थी मैंने मोबाइल से कामना का नम्बर डायल किया तो उसका नम्बर ‘पहुँच से बाहर है’ का संदेश मिला। मेरे लिये एक एक पल काटना मुश्किल हो रहा था। आखिर समय बिताने के लिये मैंने शशि को चाय बनाने का आग्रह किया, और आंख बंद करके पास पड़े हुए सोफे पर लेट गया।

‘मुझे सेहरा बंधा हुआ था, बारात लड़की वालों के दरवाजे पर खड़ी थी, मिलनी हो रही थी, प्रवेश द्वार पर मेरी निगाह गई तो गहरे नीले रंग के स्लीवलेस सूट में शायद गोरा कहना उचित नहीं होगा, इसीलिये दूधिया रंग बोल रहा हूँ, तो बिल्कुल दूधिया रंग के चेहरे वाली सुन्दरी पर मेरी निगाह जाकर टिक गई उसके सूट की किनारी पर सुनहरा गोटा लगा था। पूरे सूट पर रंगबिरंगे फूलों का डिजाइन, कानों में मैचिंग बड़े-बड़े झुमके, बहुत खूबसूरत लहराते हुए बाल, और इन सबसे अलग उसके बिल्कुल गुलाबी होंठ, जैसे खुद गुलाब की पंखु‍‍डि़याँ ही वहाँ आकर बैठ गई हों, कहर ढा रही थीं।

वहाँ बहुत सारी लड़कियों का झुंड था, सभी दरवाजे पर मेरा वैलकम करने के लिये खड़ी थी परन्तु मेरी निगाह रह-रह कर उस एक अप्सरा के चेहरे पर ही जा रही थी वो पास खड़ी लड़कियों से बीच-बीच में बात करके मुस्कुरा रही थी। मैं तल्लीनता से सिर्फ उसी के खूबसूरत चेहरे को निहार रहा था और उसके चेहरे में बची उस खूबसूरती को ढूंढने की कोशिश कर रहा था जिसको देखने से मैं वंचित रह गया हूँ।’

तभी अचानक मुझे ऐसा लगा जैसे मुझे किसी ने धक्का दिया हो। मेरी आँख खुल गई, मैं स्वप्न से जागा तो मेरी पत्नी के हाथ में चाय की प्याली लिये खड़ी थी और मुझे जोर जोर से हिलाकर जगा रही थी।

मेरी आंख खुलते ही वो मुझ पर बरस पड़ी और बोली- मेरी सहेली के आने का समय हो गया है और तुम हो कि नींद के सागर में गोते लगा रहे हो।

अब मैं उसको क्या बताता कि जो दिव्य-स्वप्न मैं देख रहा था वो मेरे कितने करीब आने वाला था !

मैंने चाय की प्याली हाथ में ली और सिप-सिप करके चाय पीना शुरू किया। अब मैं शशि के साथ इधर उधर की बातें करके खुद को सामान्य करने की कोशिश कर रहा था।

चाय खत्म करने के बाद मैंने घड़ी देखी सवा सात बज चुके थे, तभी मेरा मोबाइल बजा। मैंने देखा यह कामना का ही काल था। मैंने फोन उठाया- हैल्लो !’

उधर से कामना की मीठी चाशनी जैसी आवाज आई- हैल्लो जीजाजी, मेरी गाड़ी बस 15-20 मिनट में स्टेशन पहुँचने वाली है, बताओ कहाँ मिलोगे?’

‘तुम जहाँ बोलो, वहाँ मिल लेंगे !’ दिल तो सही कहना चाह रहा था पर मैंने खुद पर काबू करने की कोशिश की और कामना से कोच नम्बर और सीट नम्बर पूछ कर उसको बता दिया कि मैं उसके कोच पर ही उसको लेने आ रहा हूँ। इतनी बात करके मैंने फोन काट दिया और शशि को जल्दी से चलने को कहा।

शशि बोली- अब बहुत लेट हो गया है रात हो गई है, आप कार ले जाओ, कामना को ले आओ, तब तक मैं खाने की तैयारी करती हूँ। मेरी तो जैसे लाटरी ही लग गई। आज बरसों के बाद मैं कामना को देखने वाला था और 4 किलोमीटर का सफर मुझे उसके साथ अकेले तय करना था अपनी कार में।

यही सोचते सोचते मैं बाहर आ गया गैराज से कार निकाली और स्टेशन की ओर चल दिया।

जब तक मैं स्टेशन पर पहुँचा तो उसकी गाड़ी के पहुंचने की घोषणा हो चुकी थी। मेरे प्लेटफार्म पर पहुँचने से पहले कामना की गाड़ी वहाँ खड़ी थी। मैंने तेजी से कोच नम्बर बी-2 के दरवाजे की तरफ अपने कदम बढ़ाये और अन्दर जाकर उसकी सीट नम्बर 16 को प्यार से निहारा। कामना वहाँ नहीं थी, मुझे उस सीट से जलन हो रही थी जिस पर 7 घंटे का सफर तय करके कामना आ रही थी, सोचा कि काश इस सीट की जगह मेरी गोदी होती तो कितना अच्छा होता। सोचते सोचते मैं गाड़ी से बाहर आया और कामना को फोन मिलाया।

तभी किसी ने मेरी पीठ पर हाथ मारा, मैंने मुड़ कर देखा तो चुस्त पंजाबी सूट में मेरे पीछे कामना खड़ी मुस्कुरा रही थी। मैं उसके गुलाब की पंखुड़ी जैसे होंठों को देखकर वहीं जड़वत हो गया।

तभी कामना बोली- जीजा जी, आपके साथ घर ही जाऊँगी स्टेशन पर ऐसे मत घूरो, घर जा कर घूर लेना।’

मैंने एक बार फिर से खुद को नियंत्रित करने की कोशिश की और बिना कुछ भी बोले उसके हाथ से अटैचीकेस लिया और वापस कार की तरफ चल दिया।

कामना भी मेरे पीछे-पीछे चलती हुई बोली- लगता है जीजाजी नाराज हैं मुझसे कोई बात भी नहीं कर रहे।’

अब मैं उस को क्या बताता कि 5 साल बाद उसको दोबारा देखकर मैं अपने होशोहवास खो चुका हूँ, फिर भी मैंने बात को सम्भालने की कोशिश करते हुए बोला- ऐसा नहीं है यार, दरअसल शशि घर में तुम्हारा बेसब्री से इंतजार कर रही है तो इसीलिये तुमको जल्दी से जल्दी से घर ले जाना चाहता हूँ।’कामना बोली- जीजाजी, इसीलिये तो मैं आपकी फैन हूँ क्योंकि आप शशि का बहुत ध्यान रखते हैं मेरे हिसाब से आप नम्बर 1 पति हो इस दुनिया के।’

मैं उसकी तरफ देखकर मुस्कुराया और उसका अटैचीकेस कार की डिक्की में धकेल दिया।

मैंने कार का स्टेयरिंग सम्भाला और बराबर वाली सीट पर उसको बैठाया। अब मेरे सपनों की कामना मुझसे बस कुछ इन्च की दूरी पर बैठी थी और मैं उसकी खुशबू को अपने नथुनों में महसूस कर पा रहा था। मैंने धीरे धीरे कार को आगे बढ़ाना शुरू किया। कोशिश कर रहा था कि यह 4 किलोमीटर का सफर 4 घंटे में कटे और कामना से इधर उधर की बातें करके खुद को संयत कर लूँ।

तभी कामना सीट पर मेरी तरफ तिरछी हो गई और अपना दांया पांव सीट पर रखके बैठ गई अब मैं थोड़ी सी नजर घुमाकर उसको अच्छी तरह देख सकता था, जैसे ही मैंने उसकी तरफ नजर घुमाई मेरी निगाह उसके गले में पड़ी गोल्डन चेन पर गई। उसके गले के नीचे दूधिया बदन पर वो गोल्डन चेन चमक रही थी। मेरी निगाह उस चैन के साथ सरकती हुई उसके लॉकेट पर गई। लाकेट का ऊपरी हिस्सा जो चेन में फंसा हुआ था वो ही दिखाई दे रहा था बाकी का लॉकेट नीचे उसकी दोनों पहा‍डि़यों के बीच की दूधिया घाटी में कहीं खो गया था। मेरी निगाहें उस लाकेट के बहाने उस दूधिया घाटी का निरीक्षण करने लगी।

तभी शायद उसने मेरी निगाहों को पकड़ लिया और बोली- जीजाजी, काबू में रहिये, सीधे घर ही चल रहे हो ! ऐसा ना हो कि घर जाते ही शशि आपकी क्लास लगा दे।’

इतना बोलकर वो हंसने लगी। मैं एकदम सकपका गया और निगाह सीधी करके गाड़ी चलाने लगा। उसने जो लाइन अभी एक सैकेण्ड पहले बोली, मैं मन ही मन उस को समझने की कोशिश करने लगा कि वो मुझे निमंत्रण दे रही थी या चेतावनी। जो भी था, पर मुझे उसका साथ अच्छा लग रहा था और मैं चाह रहा था कि काश समय कुछ वक्त के लिये यहीं रुक जाये।

यही सोचते सोचते पता ही नहीं चला कि कब हम घर पहुँच गये। शशि दरवाजे पर ही खड़ी हम लोगों का इंतजार कर रही थी। जैसे ही मैंने गाड़ी रोकी, कामना कूद कर बाहर निकली और शशि को गले से लगाकर मिली। मैं भी गाड़ी गैराज में लगाकर कामना का सामान लेकर घर के अंदर दाखिल हुआ।

तब तक कामना मेरे सोफे पर आसन ग्रहण कर चुकी थी। शशि उसके सामने वाले दूसरे सोफे पर बैठी थी। मैं तेजी से अंदर जाकर सोफे पर कामना के बराबर में जाकर बैठ गया मैं नहीं चाहता था कि किसी भी स्थिति में मेरे हाथ से वो जगह निकले।

दोनों सहेलियाँ एक दूसरे को गले लगाकर मिलीं। मैंने भी मन में सोचा कि एक बार यह अप्सरा मुझसे भी गले मिल ले पर शायद मेरी किस्मसत ऐसी नहीं थी पर कामना के बराबर में बैठने का सुख मैं अनुभव कर रहा था।

तभी शशि ने आदेश दिया कि खाना तैयार है, आप दोनों फ्रैश हो जाओ।

मैंने तुरन्त कामना को बाथरूम का रास्ता दिखाया और तौलिया उसके हाथ में थमाया। वो मुँह पर पानी मार कर मुँह धोने लगी और मैं उसके चेहरे पर पड़ने के बाद गिरने वाली पानी की बूंदों को देख रहा था एक एक बूंद मोती की तरह चमक रही थी मुँह और हाथ धोने के बाद तौलिये से पोंछकर वो बाहर आ गई और मैं अंदर जाकर हाथ मुँह धोने लगा। बाहर आकर मैंने भी उसी तौलिये से मुँह पौंछा। कामना की खुशबू उस तौलिये पर मैं महसूस कर रहा था।

मैंने देखा कि दोनों सहेलियाँ मिलकर खाना लगा रही हैं। डाइनिंग टेबल पर घरेलू बातचीत और हल्का-फुल्का मजाक चलता रहा। खाना खाकर हम लोग टीवी देखकर आइसक्रीम खाने लगे।

तभी शशि ने कहा कि कामना अभी तू सो जा कल सुबह उठकर तुझे औघड़नाथ मंदिर ले चलेंगे, घूम आना।

मैं समझ गया कि सोने का आदेश मिल चुका है और एक आदर्श पति की तरह मैं दूसरे कमरे में सोने चला गया क्योंकि मेरे कमरे में तो आज मेरी पत्नी के साथ मेरी स्वप्न सुन्दरी को सोना था।

मैं प्रात:काल अपने समय पर उठा और अपना ट्रैक सूट पहन कर जागिंग के लिये तैयार हुआ तभी देखा कि शशि और कामना बातों में तल्लीन थी।

मैंने पूछा- सारी रात सोई नहीं क्या?’

कामना बोली- जीजा जी, आज गलती से मैं आपके बिस्तर पर सो गई इसीलिये आपकी बीवी को नींद नहीं आई। लगता है आपने इसकी आदत खराब कर दी है, इसको आपकी बांहों में सोना अच्छा लगता है, तभी सुबह 5 बजे उठ गई और मुझे भी जगा दिया।’

मैंने मुस्कुरा कर कहा- हम जिसको प्यार देते हैं इतना ही देते हैं कि फिर वो हमारे बिना रह नहीं पाता।’

‘तभी तो आपसे टिप्स लेने आई हूँ कि कैसे आप जैसा पति ढूंढू अपने लिये? जो मुझे भी इतना ही प्यार करे।’ इतना बोलकर वो मुस्कुराने लगी।

मेरे तो पूरे बदन में यह सुनकर घंटियाँ बजने लगी। मन हो रहा थी कि सुबह की उस अलसाई सी खूबसूरती को आगे बढ़कर बाहों में भर लूँ, पर खुद पर नियंत्रण करते हुए मैंने शशि को बोला- मैं टहलने जा रहा हूँ !

तभी कामना बोली- रुकिए जीजा जी, मैं भी चलती हूँ, आपके साथ। थोड़ा सा फ्रैश हो जाऊँगी। फिर वापस आकर, मंदिर जाने के लिये तैयार भी होना है।’

शशि बोली- आप लोग जल्दी आ जाना, तब तक मैं नहा धोकर तैयार हो जाती हूँ।’

पत्नी रानी का आदेश प्राप्त करने के बाद मेरे कदम बाहर दरवाजे की तरफ बढ़े, मेरे पीछे पीछे कामना भी बाहर आ गई, कुछ तो सुबह सुबह बाहर का मौसम वैसे ही खुशगवार होता है, पर आज मुझे ज्यादा ही खुशगवार लग रहा था, मैं कामना से ढेर सारी बातें करना चाहता था।

मुझे पता था कि समय बहुत कम है 4 दिन बाद कामना वापिस चली जायेगी। पर मेरे साथ समस्या यह थी कि मेरी इमेज पत्नी-भक्त की थी और मैं किसी के सामने अपनी को छवि खराब नहीं करना चाहता था, और वास्तव में मुझे शायद शशि से अधिक प्यार किसी से नहीं था।

पर यह भी सत्य है कि कामना को सामने पाकर मैं उसकी अद्वीतीय सुन्दरता पर आसक्त था। इसी अंर्तद्वन्द्व में मैं हल्के हल्के दौड़ रहा था। मेरे साथ साथ कामना भी दौड़ लगा रही थी। थोड़ी ही देर में हम पार्क तब पहुँच गये, पर तब तक कामना तो थक चुकी थी और बोली- जीजा जी वा‍पिस चलो, मैं और नहीं दौड़ सकती।’

‘बस इतना ही स्टेमिना है तुम्हारा? बातें तो बहुत बड़ी बड़ी करती हो।’ मैंने कहा।

मेरे इतना बोलते है उसको स्त्रीयोचित जोश आ गया और फिर से मेरे पीछे दौड़ने लगी। पार्क का एक चक्कर लगाते ही वो बोली- जीजा जी अब तो मैं गिरने वाली हूँ, खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा।’

मैंने उसको एक बैंच पर बैठने की सलाह दी और बस 2 चक्कर लगाने के बाद घर चलने को कहा।

पर जैसे ही मैं एक चक्कर लगाकर वहाँ वापस आया तो देखा कि वो पसीने से तरबतर बैंच पर लेटी थी और बुरी तरह हांफ रही थी, मैंने नजदीक जा कर पूछा- क्या हुआ?’

‘पानी !’ उसने हल्की सी आवाज में कहा। मैं स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए सामने नल पर पानी लेने को भागा, पर मेरे पास पानी लेने के लिये कोई गिलास तो था ही नहीं। मैंने नल चलाया और दोनों हाथ की औंक बनाकर पानी भरा और उसके लिये लेकर आया, मैंने अपने हाथ लेटी अवस्था में ही उसके गुलाब की पंखुड़ी जैसे खूबसूरत होंठों पर लगा दिया और उसको पानी पिलाने लगा, वो सारा पानी पी गई।

मैंने पूछा ‘और लाऊँ?’

अब उनसे लेटे लेटे ही अपनी कातिल नजरों को मेरी तरफ घुमाया और मुस्कुरा कर बोली- अगर इतने प्यार से पानी पिलाओगे तो सारा दिन यहीं लेटकर पानी पीती रहूँगी मैं।’

मैं तो उसका जवाब सुनकर धन्य हो गया। मन ही मन गद्गद् मैंने वापस चलने को पूछा, तो वो दो मिनट रुकने का इशारा करने लगी। मैं उसके बराबर में ही खड़ा था, कि अचानक मेरी निगाह उसके टॉप के अन्दर फंसी पर्वत की दोनों चोटियों पर गई, जो ऊपरी आवरण को चीर कर बाहर आने को बेताब लग रही थी। मेरी तो निगाह वहाँ जाकर एकदम ही रुक गई।

उन दोनों को ऊपर नीचे होते देखकर ऐसा लग रहा था, जैसे वो मेरे जीवन में आने वाले किसी तूफान की मौन चेतावनी दे रहे हों। गौर से देखने पर मुझे अहसास हुआ कि कामना ने टॉप के नीचे कोई अधोवस्त्र नहीं पहना था, क्योंकि उन पहाडि़यों की ऊपरी चोटी पर स्थित अंगूर के दाने का अहसास हो रहा था, ऐसी अनुभूति हो रही थी जैसे वर्षों से प्यासे किसी राही को एक छोटे से जल स्रोत का पता चल गया हो, मेरी शारीरिक परिस्थितियों ने विषम रूप धारण करना प्रारम्भ कर दिया, जिसकी परिणीति मेरी पैंट के ऊपरी मध्य हिस्से में देखी जा सकती थी।

मुझे जैसे ही लिंग जागृत होने का अहसास हुआ। मैंने खुद को संभाला और कामना की तरफ देखा तो पाया कि वो मेरे लिंगोत्थान की प्रक्रिया का अध्ययन कर रही थी। इस बार पकड़े जाने की बारी उसकी थी। अचानक हम दोनों की निगाहें एक दूसरे से मिली और कामना ने शरमा कर नजरें नीची कर ली। मैंने पूछा ‘घर चलें?’

कहानी जारी रहेगी। [email protected] 3111

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