यादगार सफ़र

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प्रेषक : आनन्द सिंह

मेरा नाम अमन है और यह मेरी अन्तर्वासना पर पहली कहानी है। मैं रुद्रपुर, उत्तराखंड का रहने वाला हूँ, उम्र 28 वर्ष है। मेरा काम मार्केटिंग का है इसलिए मुझे काफी वक़्त यात्रा में ही बिताना पड़ता है।

मैं अपने काम के सिलसिले में जनवरी 2006 में पिथोरागढ़ गया था और वहाँ से लौटने में थोड़ी देर हो गई। वहाँ पर काफी ठण्ड होती है इसीलिए मैं किसी प्राइवेट गाड़ी में ही चला गया, वापिस आने के लिए मुझे एक टाटा सुमो मिल गई जिसमें एक परिवार नेपाल का भी था।

थोड़ी दूर चलने पर ही अँधेरा हो गया था और बरसात भी होने लगी, जिससे ही हम मुश्किल से 10-15 किलोमीटर आये होंगे, गाड़ी में कुछ खराबी आ गई और ड्राईवर ने भी अपने हाथ खड़े कर दिए।

कुछ देर इंतजार करने पर एक छोटा ट्रक आया जिस पर हम सब लोग सवार हो गए।

ट्रक के पिछले हिस्से में कुछ तिरपाल (ट्रक का कवर) रखा हुआ था जिसका सहारा लेकर मैं लेट गया और ठण्ड से बचने के लिए मैंने शाल भी निकाल ली। मेरे बराबर वाली जगह पर नेपाली परिवार भी टिक गया।

थोड़ी देर बाद मुझे महसूस हुआ क़ि मेरे हाथ से कुछ टकरा रहा है, मैंने ध्यान दिया तो वो हाथ साथ में बैठी हुई नेपाली महिला का था। मैंने भी सोचा क़ि क्यों न लगे हाथ कुछ मजे ही ले लिए जाएँ, मैंने अपना हाथ उसके हाथ से चिपका दिया। थोड़ी देर में ही उसका हाथ मेरे हाथ में था।

चूंकि रात का अँधेरा था और सबका ध्यान ठण्ड से बचने की तरफ था, तो हम दोनों अपने काम में मस्त थे और किसी का ध्यान हमारी और नहीं था। मैंने धीरे से उसको अपनी तरफ खींचा तो तो खिसक कर मेरी तरफ नजदीक आ गई और मैंने भी अपना हाथ उसके पेट पर रख दिया, पहाड़ी रास्तों के मोड़ मेरा सबसे ज्यादा सहयोग कर रहे थे, एक मोड़ पर आकर मैंने उसके गले पर किस कर दिया ! उसके बाद वो मेरे और पास आ गई। अब वो धीरे धीरे गर्म होने लगी, मैंने भी अपना हाथ उसके पेट और मम्मों पर फेरना शुरू कर दिया। इसी सारे काम में मेरा रास्ता कट गया, जब हम टनकपुर पहुँचे तो रात के दो बज चुके थे।

अब मुझे वहाँ पर रुकने का ठिकाना देखना था, होटल कोई मिला नहीं तो मैं धर्मशाला में पहुँच गया जहाँ पर वो परिवार भी कमरे की तलाश में खड़ा था जिसमें उस महिला की माँ, भाई और बहन थे। चूंकि कमरा वहाँ भी खाली नहीं था तो काफी देर बात करने पर धर्मशाला वाले चौकीदार ने हमें हाल में सोने की इजाजत दे दी, जहाँ कुल मिला कर चार बिस्तर और लिहाफ थे, पर मेरी नज़र तो उस नेपाली महिला पर टिकी हुई थी, जब मैंने उनसे बात करने की कोशिश की तो पता चला कि उनको हिंदी नहीं आती और मुझे नेपाली भाषा नहीं आती !

जैसे तैसे हम सोने की कोशिश करने लगे तो मैंने उसको इशारे से अपने पास आने के लिया कहा तो उसने मुझे थोड़ी देर रुकने का इशारा किया। अब मेरी नींद उड़ चुकी थी और मैं सोच रहा था क़ि इसको चोदा कैसे और कहाँ जाये। फिर मैं उठ कर पास में बने हुए टोयलेट की तरफ गया तो मुझे एक स्कीम समझ में आ गई, मैंने उसे बाथरूम में बुलाने का विचार बना लिया। और मजे की बात यह थी क़ि वो भी मुझे देख रही थी, मैंने जैसे ही सारा मुआयना किया और दोबारा अपने सोने वाली जगह पर आया तो देखा क़ि वो मेरे बिस्तर पर ही बैठी थी, मैं उसका हाथ पकड़ कर उसे बाथरूम में ले आया जहाँ पर आते ही वो मुझसे चिपक गई और उसके होंठ मेरे होंठों पर कस कर चिपक गए। मैंने धीरे से उसको कहा- बस करो !

तो वो और जोर से चिपक गई, जिसके बाद मैंने भी अपना आपा खो दिया। धीरे धीरे उसके हाथ मेरे लंड तक पहुँच गए और उसने मेरा लंड निकाल कर अपने मुंह में ले लिया। फिर मैंने भी उसको नंगी कर दिया। उसका शरीर सफ़ेद दूध की तरह चमक रहा था !

फिर मैंने उसके निप्पल चूसने शुरू कर दिए तो उसका कण्ट्रोल अपने आप से हटने लग गया और मुझे भी लगने लगा क़ि अब चुदाई कर देनी चाहिए। तो मैंने उसको नीचे लिटा कर दोनों टांगें फैला दी और लंड का टोपा उसकी चूत पर टिका दिया और फिर धीरे से लंड को उसकी चूत में सरकाने लगा तो उसने अपने दोनों हाथों से मुझे इतना कस के पकड़ा क़ि उसके नाखून मेरी पीठ में चुभने लगे।

मैं लंड को आधा डाल कर थोड़ी देर रुका जिससे क़ि उसका दर्द कम हुआ तो मैंने पूरा लंड उसकी चूत में ड़ाल कर झटके मारने लगा जिससे उसकी चूत से फचाक फचाक की आवाजें आने लगी, थोड़ी देर में ही वो झड़ गई और करीब दस मिनट बाद मैं भी उसकी चूत में ही झड़ गया, उसके बाद हम दोनों वापिस आ कर सो गए !

सुबह वो परिवार नेपाल चला गया और मैं वापिस आ गया !

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प्रकाशित : 07 अक्तूबर 2013

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