बदतमीज़ की बदतमीज़ी-2

प्रेषक : बदतमीज़

मुझसे है तेरी शत्रुता तो जान मेरी जान ले। बस याचना है एक तूँ इस याचना को मान ले। बन्दूक रख दे फेंक अब ये हाथ से तलवार दे। इस लाल लँहगे में मुझे अब ढाँक कर तूँ मार दे।

दूरी बहुत तड़पा रही है किस तरह इसको सहूँ। सब कुछ भुलाकर चाहता हूँ संग तेरे अब रहूँ। मैं काश तेरी चड्ढियाँ बन जाउँ इच्छा है यही। छूवूँ जवाँ बुर गंध सूँघू खाउँ मैं तेरी दही।

ना ‘आय लव’ ना ‘हाय’ तुम उस माल लड़की से कहो। इज़्ज़त सलामत चाहते हो तो कसम से चुप रहो। कुछ दूसरे ही ढंग की है दोस्त चालू राँड़ वो। चुद जावगे खुद चूचियों से मार देगी गाँड वो।

रंडी बनें जो नारियाँ ना छोड़िए उनको कभी। कुछ कीजिए तूफान ठण्डी रंडियाँ होंगी तभी। ऐसी चुदाई कीजिए बुर हो चकित मुँह खोल दे। ‘अब बस करो’ ‘अब बस करो’ जो चुद रही वो बोल दे।

गोरी रहे काली रहे बुर देख मत तूँ भेद से। मतलब हमेशा तूँ रखाकर मस्त कोमल छेद से। मैं झूठ तो कहता नहीं हूँ बात मेरी मान ले। आनन्द दोनों में मिले है चोदकर ये जान ले।

घटना बताता हूँ तुम्हें मैं जो घटी थी रात को। तुमको हँसी आ जायगी सुन के हमारी बात को। इक नार बैठी सेज पर थी खोलकर बम भोसड़ा। खुल्ली किवाड़ी देखकर इक चोर मच्छर घुस पड़ा।

तुम स्वर्ग की नृत्यांगना हो या सुकोमल हो परी। इस लोक में किस ध्येय से तुम आइ हो हे सुन्दरी। कह दो तनिक है नाम क्या तुम बोल दो अब कौन हो? कुछ प्रश्न हम से भी करो इस भाँति क्यों तुम मौन हो?

लड़की लगी वो चीखने मैं डर गया उस शोर से। मैं दूध खातिर चूचि दाबा था बड़े ही जोर से। दुद्धू नहीं आया बताया यार ने मुझको तभी। बच्चा बिना पैदा किये ना दूध दे नारी कभी।

तनकर खड़ा अकड़ा हुआ ये लंड मेरा शेर है। ये झाँट जंगल है तुम्हारे फिर कहो क्या देर है? अवसर घुसाने का मुझे दो शेर ये तैयार है। ये रक्त की धारा बहाता है बहुत खूँखार है।

तूँ है कमलिनी मैं भ्रमर कर बन्द मुझको कोश में। अब प्राण हर ले आ निकट कस ले मुझे आगोश में। इन स्निग्ध बाँहों में यदी जो जान मेरी जायगी। तो स्वर्ग में ही उच्च पदवी रूह मेरी पायगी।


साथी बदलना आज की तो पीढ़ियों की रीति है। लव सेक्स धोखा नौजवानों की यहाँ अब नीति है। अब प्रेम करके बहुत कम ही प्रेम को निर्वाहते। लंड लड़कियाँ हैं माँगती अब चूत लड़के चाहते।

उस दिन डुपट्टा उड़ गया इस वेग से दौड़ी हवा। सब एकटक तकते रहे कुछ ने दिया सुध बुध गंवा। जब मुस्कुराई देखकर मैं चौंक तब सारे गये। मेरे नयन के तीर से सब छोकरे मारे गये।

यादव पिटाया गुप्त से फिर पाल से झगड़ा किया। मलहोतरा राठौर का सिर फोड़कर लफड़ा किया। चोली बनाकर तंग सजकर मैं गई श्रृंगार में। मेरी वजह से चूतिये सब भिड़ गये बाजार में।

देसी विदेसी देख लें हर तरह का सामान है। इस देश की सबसे बड़ी ये लंड की दूकान है। बुर में घुसाकर लंड कोई चैक तो कर लीजिए। मन को नहीं भाये अगर तो लंड मत क्रय कीजिए।

पालक नहीं परवल नहीं ना ही तरोई भिंडियाँ। मूली खरीदेंगी मुझे तो ज्ञात है ये रंडियाँ। जिन नारियों के सजन रहकर दूर करते काम जी। मूली बिना उनकों नहीं क्षण भर मिले आराम जी।

मैं तो समझता था कि बिगड़ी शहर की ही छोरियाँ। लेकिन तनिक पीछे नहीं हैं गाँव की भी गोरियाँ। ये बदतमिज बेशर्म इतना अधिक बनती जा रहीं। गन्ने कभी अरहर चने के खेत में चुदवा रहीं।

उस रात झट से झड़ गया जब चोदकर उसका पिया। तो पाल्तू कुत्ते से उसने आग को बुझवा लिया। बेटा जनम लेवे यही वो नित्य करती थी दुआ। दुर्भाग्यवश बेटा नहीं उस नार को पिल्ला हुआ।


लचका कमरिया लूट ले हम छोकरों को गोरिया। ठुमका लगाके दिल दिवाने की तुँ कर ले चोरिया। कुछ हो नया रंगीन महफिल आज मस्ती में जमें। बोतल नहीं इन चूचियों का दूध पीने दे हमें।

संभोग का औसत समय तुम तीन घंटे कह रहे। फिर बोल दो सच सच जरा तुम मूठ पर क्यों रह रहे। पत्नी तुम्हारी भागकर के दूसरे संग क्यों गई। व्याकुल रहे वो क्यों हमेशा लंड लेने को कई।

मांसल नितम्बों ने बनाया काम की देवी तुझे। बन जाउँ तेरा मैं पुजारी आज ये वर दे मुझे। घंटा बजाकर लिंग का मैं आरती तेरी करूँ। नित वीर्य का परशाद तुझको मैं चढ़ाता ही रहूँ।

ऋतु आ गई बरसात की नभ छा गई काली घटा। साड़ी हटा चोली हटा इस योनि से चड्ढी हटा। बौछार कितनी भी गिरे तन की अगन जाती नहीं। बरसात में बेशर्म जो भी नारि हो पाती नहीं।

बाजार में इस बार महँगा बिक रहा हर आम है। मुझको नहीं इन कीमती अब आम से कुछ काम है। धन है नहीं निर्धन समझ मुझ पर दया अब कीजिए। चोली हटाकर चूसने को चूचियाँ ही दीजिए।

सावन सखी तब हो मधुर जब पास में साजन रहे। कोरी कवाँरी बालिका जब सखी से अपने कहे। तो समझिए वो ब्याह करने के लिए अकुला रही। बुर में अँगुलियाँ डाल करके घुंडियाँ सहली रही।


कॉलेज की ये छोकरी अब पा रहीं ढेरों मनी। पैसे कमाने के लिए ही मस्त ये रंडी बनी। लगता पढ़ाई में नहीं मन इसलिए बहला रही। ये तन लुटाकर धन कमाने कोठियों पर जा रहीं।

गोरंग वाली है मगर दिल से बहुत काली लगे। मुखड़े से देखो भाइ कितनी भोलि औ भाली लगे। मन की कुटिल कामातुरी ये जाल सबपर फेंकती। पीछे पड़े पॉकिट गरम जिस पुरुष की ये देखती।

इक चूत में इक गाँड़ में दो लंड दे दो मूँह में। तब ही परम आनन्द उतरे रंडियों की रूह में। असह्य पीड़ा का दिखावा करत रंडी नारियाँ। ये चीखती हैं इस तरह ज्यों चीखती हैं क्वाँरियाँ।

ये शौक से रंडी बनीकर मत रहम ले ले मजा। आगे बजा पीछे बजा हर ओर से इसको बजा। पैसा लगाकर चोदने आ गया मत तूँ भूलना। अब पाइ पाई चूत इसकी चोद कर हि वसूलना।


दुपट्टे के झरोखे से छुप-छुपकर दीदार करते हैं। ऐ दिलरूबा! हम तुम्हारी चूचियों से बहुत प्यार करते हैं।।

अभी दो साल पहले ही ये टेनिस के बाल के बराबर थे, अब तो वालीबाल को भी मात ये आकार करते हैं।

अपना आम मुझे खिलाओं ये खाने का मौसम भी है, मेरे जीभ और दाँत बेसब्री से इंतज़ार करते हैं।

तुम भी रगड़वाने के लिए अक्सर बेताब रहती हो, तुम्हारी आँखों से ये बात मालूम ऐ यार करते हैं।

कभी न कभी तुम अपना दुद्धु जरूर पिलाओगी मुझे, इस बात का एक-सौ-एक फीसदी एतबार करते हैं।

तुम्हारे गेंदो की याद में हम अपना बल्ला सहलाते हैं, और छत पर इकसठ-बासठ बार-बार करते हैं।

मेरा ‘वो’ अपनी घाटियों के बीच दबा लो जी, हम कई महीनों से तुमसे यही गुहार करते है।

कोई और होता तो जबरदस्ती चोद देता अब-तक, लेकिन हम कभी जबरदस्ती नहीं सरकार करते हैं।

एक साल में बेहद बदतमीज़ हो गया यह ‘बदतमीज़’, इंटरनेट को इस बात के लिए जिम्मेदार करते हैं।