कमाल की हसीना हूँ मैं-19

मैंने शर्म के मारे अपनी आँखें बंद कर लीं। मेरा चेहरा शर्म से लाल हो रहा था। लेकिन मैं इस हालत में अपने पेशाब को रोकने में नाकाम थी और नशे में मुझसे खड़ा भी नहीं रहा जा रहा था। इसलिये मैं कमोड की सीट पर इसी हालत में बैठ गई।

जब मैं फ्री हुई तो वो वापस मुझे सहारा देकर बिस्तर तक लाये। मैं वापस उनकी बाँहों में दुबक कर गहरी नींद में सो गई।

अगले दिन सुबह मुझे नसरीन भाभी ने उठाया तो सुबह के दस बज रहे थे। मैं उस पर भी उठने के मूड में नहीं थी और ‘ऊँ-ऊँ’ कर रही थी।

अचानक मुझे रात की सारी घटना याद आई। मैंने चौंक कर आँखें खोलीं तो मैंने देखा कि मेरा नंगा जिस्म गले तक चादर से ढका हुआ है और मेरे पैरों में अभी भी सैंडल बंधे थे।

मुझ पर किसने चादर ढक दी थी, पता नहीं चल पाया। वैसे यह तो लग गया था कि ये फिरोज़ के अलावा कोई नहीं हो सकता है।

“क्यों मोहतरमा? रात भर ठुकाई-कुटाई हुई क्या?” नसरीन भाभी ने मुझे छेड़ते हुए पूछा।

“भाभीजान ! आप भी ना बस…” मैंने उठते हुए कहा।

“कितनी बार डाला तेरे अंदर अपना रस? रात भर में तूने तो उसकी गेंदों का सारा माल खाली कर दिया होगा।”

मैं अपने सैंडल उतार कर बाथरूम की ओर भागने लगी तो उन्होंने मेरी बाँह पकड़ कर रोक लिया, “बताया नहीं तूने?”

मैं अपना हाथ छुड़ा कर बाथरूम में भाग गई। नसरीन भाभी दरवाजा खटखटाती रह गईं लेकिन मैंने दरवाजा नहीं खोला। काफी देर तक मैं शॉवर के नीचे नहाती रही और अपने जिस्म पर बने अनगिनत दाँतों के दागों को सहलाती हुई रात के मिलन की एक-एक बात को याद करने लगी।

फिरोज़ भाईजान की हरकतें याद करके मैं पागलों की तरह खुद ही मुस्कुरा रही थी। उनका मुहब्बत करना, उनकी हरकतें, उनका गठा हुआ जिस्म, उनकी बाजुओं से उठती पसीने की खुशबू, उनकी हर चीज़ मुझे एक ऐसे नशे में डूबोती जा रही थी जो शराब के नशे से कहीं ज्यादा मादक था।

मेरे जिस्म का रोयाँ-रोयाँ किसी बिन ब्याही लड़की की तरह अपने आशिक को पुकार रहा था। शॉवर से गिरती ठंडे पानी की फ़ुहार भी मेरे जिस्म की गर्मी को ठंडा नहीं कर पा रही थी बल्कि खुद गरम भाप बन कर उड़ जा रही थी।

काफी देर तक नहाने के बाद मैं बाहर निकली। कपड़े पहन कर मैं बेड रूम से निकली तो मैंने पाया कि जेठ-जेठानी दोनों निकलने की तैयारी में लगे हुए हैं।

यह देख कर मेरा वजूद जो रात के मिलन के बाद से बादलों में उड़ रहा था, एकदम से कठोर जमीन पर आ गिरा, मेरा चहकता हुआ चेहरा एकदम से कुम्हला गया।

मुझे देखते ही जावेद ने कहा- शहनाज़, खाना तैयार कर लो। भाभीजान ने काफी कुछ तैयारी कर ली है… अब फिनिशिंग टच तुम दे दो। भाईजान और भाभी जल्दी ही निकल जायेंगे।

मैं कुछ देर तक चुपचाप खड़ी रही और तीनों को सामान पैक करते देखती रही। फिरोज़ भाईजान कनखियों से मुझे देख रहे थे। मेरी आँखें भारी हो गई थीं और मैं तुरंत वापस मुड़ कर रसोई में चली गई, रसोई में जाकर रोने लगी, अभी तो एक प्यारे से रिश्ते की शुरुआत ही हुई थी और वो पत्थर दिल बस अभी छोड़ कर जा रहा है। मैं अपने होंठों पर अपने हाथ को रख कर सुबकने लगी।

तभी पीछे से कोई मेरे जिस्म से लिपट गया। मैं उनको पहचानते ही घूम कर उनके सीने से लग कर फ़फ़क कर रो पड़ी। मेरे आँसुओं का बाँध टूट गया था।

“प्लीईऽऽज़ कुछ दिन और रुक जाओ !” मैंने सुबकते हुए कहा।

“नहीं ! मेरा ऑफिस में पहुँचना बहुत जरूरी है वरना एक जरूरी मीटिंग कैंसल करनी पड़ेगी।”

“कितने ज़ालिम हो… आपको मीटिंग की पड़ी है और मेरा क्या होगा?”

“क्यों जावेद है ना और हम हमेशा के लिये थोड़ी जा रहे हैं… कुछ दिन बाद मिलते रहेंगे। ज्यादा साथ रहने से रिश्तों में बासीपन आ जाता है।” वो मुझे सांत्वना देते हुए मेरे बालों को सहला रहे थे।

मेरे आँसू रुक चुके थे लेकिन अभी भी उनके सीने से लग कर सुबक रही थी। मैंने आँसुओं से भरा चेहरा ऊपर किया। फिरोज़ भाईजान ने अपनी उँगलियों से मेरी पलकों पर टिके आँसुओं को साफ़ किया और फिर मेरे गीले गालों पर अपने होंठ फ़िराते हुए मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये।

मैं तड़प कर उनसे किसी बेल की तरह लिपट गई, हमारा वजूद एक हो गया था, मैंने अपने जिस्म का सारा बोझ उन पर डाल दिया और उनके मुँह में अपनी जीभ डाल कर उनके रस को चूसने लगी। मैंने अपने हाथों से उनके लंड को टटोला।

“तेरी बहुत याद आयेगी !” मैंने ऐसे कहा मानो मैं उनके लंड से बातें कर रही हूँ, “तुझे नहीं आयेगी मेरी याद?”

“इसे भी हमेशा तेरी याद आती रहेगी !” उन्होंने मुझसे कहा।

“आप चल कर तैयारी कीजिये मैं अभी आती हूँ।” मैंने उनसे कहा।

वो मुझे एक बार और चूम कर वापस चले गये।

उनके निकलने की तैयारी हो चुकी थी। उनके निकलने से पहले मैंने सबकी आँख बचा कर उनको एक गुलाब भेंट किया जिसे उन्होंने तुरंत अपने होंठों से छुआ कर अपनी जेब में रख लिया।

काफ़ी दिनों तक मैं उदास रही। जावेद मुझे बहुत छेड़ा करता था उनका नाम ले-लेकर। मैं भी उनकी बातों के जवाब में नसरीन भाभीजान को ले आती थी। धीरे-धीरे हमारा रिश्ता वापस नॉर्मल हो गया।

फिरोज़ भाईजान का अक्सर मेरे पास फोन आता था। हम नेट पर कैमकॉर्डर की मदद से एक दूसरे को देखते हुए बातें करते थे।

उसके बाद काफी दिनों तक सब कुछ अच्छा चलता रहा। लेकिन जो सबसे बुरा हुआ वो यह कि मेरा हमल यानि प्रेगनेंसी नहीं ठहरी।

फिरोज़ भाईजान को एक यादगार गिफ्ट देने की तमन्ना दिल में ही रह गई। फिरोज़ भाईजान से उस मुलाकात के बाद उस महीने मेरे पीरियड आ गये। उनके वीर्य से मैं गर्भवती नहीं हुई, यह उनको और ज्यादा उदास कर गया लेकिन मैंने उन्हें दिलासा दिलाई, उनको मैंने कहा- मैंने जब ठान लिया है तो मैं तुम्हें यह तोहफ़ा तो देकर ही रहूँगी।

वहाँ सब ठीक-ठाक चलता रहा लेकिन कुछ महीने बाद जावेद काम से देर रात तक घर आने लगे। मैंने उनके ऑफिस में भी पता किया तो पता लगा कि वो बिज़नेस में घाटे के दौर से गुजर रहे हैं और जो फर्म उनका सारा प्रोडक्शन खरीद कर विदेश भेजता था, उस फर्म ने उनसे रिश्ता तोड़ देने का ऐलान किया है।

एक दिन जब उदास हो कर जावेद घर आये तो मैंने उनसे इस बारे में डिसकस करने का सोचा, मैंने उनसे पूछा कि वो परेशान क्यों रहने लगे हैं।

तो उन्होंने कहा- इलाईट एक्सपोर्टिंग फर्म हमारी कंपनी से नाता तोड़ रहा है। जहाँ तक मैंने सुना है, उनका मुंबई की किसी फर्म के साथ पैक्ट हुआ है।

“लेकिन वो लोग हमारी कंपनी से इतना पुराना रिश्ता कैसे तोड़ सकते हैं?”

“क्या बताऊँ ! उस फर्म का मालिक रस्तोगी और चिन्नास्वामी… पैसे के अलावा भी कुछ फेवर माँगते हैं जो कि मैं पूरा नहीं कर सकता।” जावेद ने कहा।

“ऐसी क्या डिमाँड करते हैं?” मैंने उनसे पूछा।

“दोनों एक नंबर के राँडबाज हैं। उन्हें लड़की चाहिये।”

“तो इसमें क्या परेशान होने की बात हुई। इस तरह की फरमाईश तो कई लोग करते हैं और करते रहेंगे !” मैंने उनके सर पर हाथ फ़ेर कर सांत्वना दी, “आप तो कुछ इस तरह की लड़कियाँ रख लो अपनी कंपनी में या फिर किसी प्रोफेशनल को एक-दो दिन का पेमेंट देकर मंगवा लो उनके लिये।”

“अरे बात इतनी सी होती तो परेशानी क्या थी। वो बाज़ारू औरतों को नहीं पसंद करते। उन्हें तो कोई साफ़-सुथरी औरत चाहिये… कोई घरेलू औरत !” जावेद ने कहा, “दोनों अगले हफ़्ते यहाँ आ रहे हैं और अपना ऑर्डर कैंसल करके इनवेस्टमेंट वापस ले जायेंगे। हमारी कंपनी बंद हो जायेगी।”

“तो अब्बू से बात कर लो… वो आपको पैसे दे देंगे।” मैंने कहा।

“नहीं ! मैं उनसे कुछ नहीं माँगूँगा। मुझे अपनी परेशानी को खुद ही हल करना पड़ेगा। अगर पैसे दे भी दिये तो भी जब खरीदने वाला कोई नहीं रहेगा तो कंपनी को तो बंद करना ही पड़ेगा।” जावेद ने कहा, “अमेरिका में जो फर्म हमारा माल खरीदती है, वो उसका पता देने को तैयार नहीं हैं। नहीं तो मैं डायरेक्ट डीलिंग ही कर लेता।”

“फिर?” मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी कि इसका क्या उपाय सोचा जाय।

“फिर क्या…? जो होना है होकर रहेगा।” उन्होंने एक गहरी साँस ली।

मैंने उन्हें इतना परेशान कभी नहीं देखा था।

“कल आप उनको कह दो कि लड़कियों का इंतज़ाम हो जायेगा।” मैंने कहा, “देखते हैं उनके यहाँ पहुँचने से पहले क्या किया जा सकता है।”

कहानी जारी रहेगी।