गेटपास का रहस्य-4

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अब तक मैंने उसकी हाफ पेंट के बटन खोल दिये थे, जैसे ही हाफ पेंट के बटन खुले तो वो नीचे सरक कर उसके पैरों में आ गई।

इससे आगे मैं कुछ और करता पर, तभी दरवाजे पर दस्तक हुई और साथ ही दीपशिखा की आवाज भी आई- भाई, मैं हूँ दीपशिखा, जरा बाहर आओ !

मैंने दीप से बोला- एक मिनट रुको, मैं अभी आया !

मैंने मयूरी को बोला- तुम बाथरूम का दरवाजा बन्द कर लो, मैं अभी आता हूँ।

फिर मयूरी को उसी हालत में छोड़ कर मैं बाहर आ गया। बाथरूम से मेरे निकलते ही मयूरी ने बाथरूम का दरवाजा बंद कर लिया।

मैंने दरवाजा खोला तो दीप सामने खड़ी थी और कुछ घबराई हुई सी लग रही थी, मैंने दीप से पूछा- क्या हुआ? तुम इतनी घबराई हुई क्यों हो?

तो दीप ने कहा- भाई, पता नहीं मम्मी जल्दी कैसे वापस आ गई हैं, आप दोनों जल्दी से नीचे आ जाओ, मम्मी अभी जिस आंटी के साथ गई थी, उनके घर गई हैं सानान छुड़वाने के लिए, इससे पहले मम्मी वापस आयें, आप दोनों नीचे आ जाओ !

और इतना कह कर वो नीचे चली गई।

मैं वापस मयूरी के पास आया और मयूरी को बोला- जान तुम बाहर आ जाओ, दीपशिखा नीचे गई।

इतना सुनकर उसने बाथरूम का दरवाजा खोला और जिस हालत में उसको छोड़ कर गया था वो अब भी उसी हालत में ही थी और उसी हालत में ही मेरे सामने आ गई, उसकी हाफ पेन्ट अब भी उसके दोनों पैरो में फंसी हुई थी, मैं उसके नजदीक गया और नीचे झुक कर उसकी बिना बालों की चूत पर एक चुम्बन किया। मयूरी की चूत देख कर ही मुझे पता चल गया था कि वो अभी वो कुँवारी है। फिर मैंने उसके पैरों में फंसी हुई हाफ पेंट को पकड़ कर ऊपर किया और उसके बटन लगाने लगा।

मयूरी मेरी इन हरकतों को बड़े गौर से देख रही थी, उसके हाफ पेन्ट के बटन लगाने के बाद मैं ऊपर उठा और उसके होंठों को चूमते हुए बोला- सॉरी जान, चाची जी आ गई हैं, हमको अभी तुरंत नीचे जाना होगा।

मेरी बात सुनकर कर उसका खिला हुआ चेहरा मुरझा गया पर उसने मुझसे कुछ भी नहीं कहा और ना ही कोई शिकायत की, फिर उसने भी जल्दी से अपनी टीशर्ट पहनी और हम दोनों नीचे वाले कमरे में आकर बैठ गये।

अभी तक चाची जी वापस नहीं आई थी, हम आपस में बात करने लगे, मैंने उसके बारे में सब कुछ जान लिया जैसे वो कहाँ पढ़ती है, उसके पिता का क्या नाम है, वो क्या काम करते हैं, उसके घर में कितने सदस्य हैं, उनके नाम क्या हैं, मुझे जो कुछ भी पता करना था, मैंने वो सब मयूरी से पूछ लिया।

अभी हम बात कर ही रहे थे कि चाची जी आ गई और मुझे देखकर बोली- अरे तुम कब आये?

मैंने चाची जी को सफ़ेद झूठ बोला- बस चाची जी अभी अभी आया हूँ आपके आने से कुछ देर पहले !

चाची की मेरी बातों पर पूरा विश्वास था इसलिए उन्होंने और कुछ मुझसे नहीं पूछा, चाची जी ने दीपशिखा को चाय बनाने के लिए बोला तो दीपशिखा रसोई में जाने लगी तो मयूरी ने कहा- मैं भी आती हूँ ! वो दोनों रसोई में चली गई चाय बनाने के लिए। मैं और चाची जी बात करने लगे। कुछ देर बाद ही मयूरी और दीप चाय लेकर आ गई, हम सबने चाय पी और उसके बाद मैं अपने घर आ गया।

घर आकर देखा तो शाम के चार बज चुके थे, मैंने अपने जो जरूरी काम थे, वो निपटाये और फिर कुछ देर आराम करने के लिए बेड पर लेट गया।

मैं बहुत खुश था क्योंकि जो मैंने प्रेम से दावा किया था वो तो काम मैंने कर ही दिया था।

शाम के सात बजते ही मैं फिर से घर से बाहर निकल गया, बाहर आकर देखा तो मेरे सारे दोस्त मयूरी के बारे में ही बातें कर रहे थे, ठीक उसके घर से कुछ ही दूरी पर, मैं उनके पास पहुँचा, मेरा चेहरा ख़ुशी के कारण खिला हुआ था तो सभी दोस्तों को पता चल गया कि आज मैं बहुत ही खुश हूँ।

प्रेम ने मुझसे पूछा- क्या बात है, आज बहुत खुश दिखाई दे रहा है?

मैंने प्रेम से कहा- मैंने तुमको जो बोला था, वो मैंने कर दिखाया इसलिए मैं बहुत ही खुश हूँ।

प्रेम- क्या मतलब?

मैं- मेरी उससे बात हो गई है?

प्रेम- किससे? गेटपास से?

मैं- हाँ, उसी से ! और वो भी मुझ पर पूरी तरह फ़िदा है।

प्रेम- मैं नहीं मानता, अच्छा उसका नाम क्या है?

मैं- उसका नाम मयूरी है और मुझे जो भी कुछ उसके बारे में जो पता था मैंने वो सब बता दिया, मेरी बात सुनकर सबको आश्चर्य हो रहा था, सभी दोस्त मेरी बात को बहुत ही ध्यान से सुन रहे थे पर मेरी बात को किसी को भी विश्वास नहीं हो रहा था।

प्रेम- हम नहीं मानते, यह जो तुम बता रहे हो, यह तुम अपनी तरफ से ही बना कर कह रहे हो।

मैं- मैं सच कह रहा हूँ।

प्रेम- अच्छा सच कह रहा है तो देख वो ऊपर ही खड़ी है जरा उसको नीचे बुला और उससे बात कर, तब हम तेरी बात पर विश्वास करेंगे।

मैं- ठीक है पर मेरी एक शर्त है, जब तक मैं उससे बात करूँ तो कोई भी बीच में नहीं आयेगा और न ही कुछ बोलेगा।

प्रेम- ठीक है, हम में से कोई बीच में नहीं आयेगा।

मैं- ठीक है, मैं तुम सबको उससे बात करके दिखता हूँ।

और इतना कह कर मैं मयूरी के घर के सामने जा पहुँचा, जैसे ही मैं उसके घर के सामने पहुँचा, मयूरी ने मुझे देख लिया मैंने उसको इशारा करके उसको नीचे आने के लिए कहा, मयूरी ने अपने सर को हिलाकर मुझे अपने नीचे आने का संकेत दिया, कुछ देर पश्चात् वो मेरे सामने खड़ी थी, उसने आते ही मुझे कहा- आप भी ना ! जल्दी बोलो, कहीं मम्मी ने देख लिया तो मुसीबत हो जाएगी।

मयूरी की आवाज में पकड़े जाने का डर साफ़ महसूस हो रहा था।

मैं- मेरा मन नहीं लग रहा था, मुझे तुम्हारी बहुत याद आ रही थी इसलिए तुमको बुलाया, क्या तुम मेरे साथ कुछ देर के लिए मार्किट चल सकती हो?

मयूरी- इस वक़्त किसी ने देख लिया तो?

फिर कुछ सोचती हुई बोली- ठीक है, पर हम जल्दी वापस आ जायेंगे।

मैं- ठीक है।

मयूरी- दो मिनट रुको, मैं चप्पल पहन कर आती हूँ, आप इतने थोड़ आगे चलो।

और इतना कह कर वो ऊपर चप्पल पहने चली गई, उधर सभी दोस्तों की निगाह मेरे पर टिकी हुई थी, वो सब मुझे बहुत ही ध्यान से देख रहे थे, मैं उसके घर के आगे से हट कर कुछ आगे की तरफ खड़ा हो गया कुछ देर बाद मयूरी भी आ गई, फिर हम दोनों मार्किट की तरफ चल दिये, मेरे सभी दोस्त हमारे पीछे पीछे आ रहे थे हमसे कुछ दूरी बना कर !

मैंने उसका हाथ अपने हाथ में लिया और उसको बोला- अब कब मिलोगी जैसे हम आज मिले थे?

मयूरी ने कहा- पता नहीं, जब कोई मौक़ा मिलेगा तभी तो हम मिल पायेंगे !

इसी तरह बात करते हुये हम मार्किट में घूमने लगे और फिर हम कुछ ही देर में वापस आ गए, मैंने उसको उसके घर छोड़ा और फिर मैं अपने दोस्तों के पास आ गया।

उन्होंने मुझे चारों तरफ़ से घेर लिया, सभी का एक ही सवाल था- भाई, तुमने ये सब कैसे किया, हम तो इसका दो महीने में नाम भी पता नहीं कर पाये और तुमने तो कुछ ही घंटों में इसको सेट भी कर भी लिया, ऐसा क्या जादू किया तुमने जो यह तुम्हारी दीवानी हो गई, जब तुमने उसको बुलाया था वो नंगे पैर ही तुमसे मिलने भागी चली आई।

मैंने उन सबको कहा- यह राज की बात है, राज ही रहने दो, अगर मैंने तुम को यह बता दिया तो मुझे कौन पूछेगा।

इस पर प्रेम ने कहा- मान गए साजन तुमको, तुमने जो कहा वो पूरा कर दिखाया, वो भी कुछ ही घंटों में और इतने लोगों के बीच से ले उड़ना बहुत बड़ी बात है, तुमने उसको सेट कर के बहुत बड़ा काम किया है, वास्तव में तुम्हारा साजन नाम बिलकुल सही है।

इस घटना के बाद मैं सभी दोस्तों का चहेता बन गया।

कहानी जारी रहेगी।

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