लाजो का उद्धार-4

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मैं जब पहुँचा लाजो वैसे ही खड़ी थी। नंगी पीठ पर लम्बे बाल फैले थे और…

हाथ सामने छातियों पर थे।

मुझे आया देखकर रेशमा लाजो से बोली, “लो आ गया तुम्हारा ‘कपड़ा’ पहन लो।”

लाजो के दोनों हाथ छातियों और पेड़ू पर दबे थे। कपड़ा लेने के लिए एक हाथ तो उठाना ही पड़ता। वह सिर झुकाए मूर्तिवत खड़ी रही।

इतना उत्तेजित होने और उसे नंगी देखने के लिए अधीर होने के बावजूद मुझे असहजता महसूस हुई। वह असहाय खड़ी थी। मुझे दया सी आई ‘छोड़ दो अगर नहीं चाहती है।’

मगर औरत ही समझती है कि कब, कैसी और कितनी शर्म उल्लंघन के लायक है। मैंने जब रेशमा को कपड़ा देकर जाना चाहा तो उसने मुझे रोक दिया, “ठहरो, साया लेकर जाना।”

वह उठ खड़ी हुई। लाजो के एक बार हारने के बाद उस पर उसका नियंत्रण और बढ़ गया था। आत्मशविश्वास से भरी उसके पास बढ़कर पहुंची और उसका दायाँ हाथ पकड़कर झटककर खींच लिया !

मेरे लिए तो जैसे सृष्टि ही उलट गई ! लाजो की दोनों छातियाँ भरी, गोल, गोरी, शिखर पर गाढ़े गुलाबी गोल धब्बे, मानों भगवान द्वारा लगाया गया quality checked की मुहर ! बीच में उठे किंचित लंबे, तने, रसीले चूचुक, चूसने के लिए पुकारते हुए से ! निर्णय करना मुश्किल था कि लाजो के चेहरे और चूचुकों में कौन ज्यादा लाल थे !!!

लाजो के दिमाग में जैसे अंधेरा छा गया था। दीदी उसका दायाँ हाथ मजबूती से पकड़े थी। उसका बायाँ हाथ पेड़ू पर से हटकर स्तनों पर आ गया।

पर अब साया असुरक्षित था ! दीदी यही तो उतारने के लिए उद्यत है, उसने आँखें मूंद लीं।

रेशमा अपनी बहन पर इतने अधिकार और नियंत्रण से उन्मत्त हो रही थी, उसकी योजना आशातीत रूप से सही काम कर रही थी। उसने उसका दायाँ हाथ पकड़े ही झुककर उसकी कमर में साये की डोरी का बंधन टटोला। लाजो दुविधा में पड़ गई कि स्तन ढके या वस्तिस्थल।

जब तक वह कुछ सोचती, रेशमा ने डोर का खुला सिरा खोजकर खींच दिया।

लाजो ने एक बार अंतिम सहायता के लिए सिर उठाकर मेरी ओर देखा– दुश्मन से ही दुश्मन के खिलाफ सहायता की भीख। मगर मेरी ओर घुमाते ही उसकी नजर मेरे पजामे की ओर झुक गई जहाँ एक विशाल क्रुद्ध सर्प खड़ा फुँफकार रहा था। पता नहीं क्यों, तभी उसी क्षण उसे लगा कि वह सर्प उसे काटे बिना छोड़ेगा नहीं, अब वह नहीं बचेगी ! उसे एहसास हुआ कि उस सर्प को देखकर खुद उसके अंदर भी कोई सर्प जाग गया है जो उससे मिलने के लिए अपनी स्वतंत्र मर्जी से चलेगा।

अपनी निरंतन धुक धुक कर रही भगनासा पर उसे क्रोध आया।

रेशमा कमर में उंगली घुसाकर खींच खींचकर डोर को ढीला कर रही थी। डोर कमर में धँसने का निशान छोड़ती अलग हो रही थी। लाजो ने नंगी होने से बचने के लिए छाती पर से हाथ हटाकर साया पकड़ लिया।

एक हाथ हवा में दीदी के हाथ में, दूसरी से साया पकड़ी, नंगी गोरी बाँहें, कंधे, सीना, दोनों चमकते चूचुकों के काले वृत्त लिए गोरे स्तन जो लाजो के शर्म बचाने की कोशिश में आगे झुकने से और अच्छे से झूल रहे थे ! लाजो अजब मादक, उत्तेजक, दयनीय और हास्यास्पद लग रही थी। मेरी इच्छा हुई उसे बाँहों में भरकर पुचकारकर प्यार करूँ।

लाजो के सामने साया पकड़ लेने पर रेशमा मुस्कुराई, वह अपना हाथ उसकी कमर के पीछे ले गई। रीढ़ के गड्ढे में हाथ घुसकार उसने साए को ढीला किया। लाजो कुछ नहीं कर सकती थी। पीछे सूखी होने के कारण डोर आसानी से खिंच गई और साया ढीला होकर नितम्बों पर सरक गया। काली पैंटी आधे से ज्यादा प्रकट हो गई। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

लाजो साये को पकड़कर रोकने की कोशिश करती गिड़गिड़ाई, “दीऽऽ दीऽऽ… जीजाजी देख रहे हैं।”

“सही कहती है।” वह मेरी ओर मुड़ी, “तुम इसको देख रहे हो और यह तुमको नहीं देख पा रही है। अपना पजामा उतार दो।” वह कठोरता से बोली।

लाजो ने ये शब्द़ सुने, वह अवाक मेरी ओर देखने लगी, उसके मुँह से बोल नहीं फूटे। मैं पसोपेश में पड़ गया। उसे बुरा तो नहीं लगेगा? पर अब हम वहाँ पहुँच गए थे जहाँ किसी के लिए भी दुविधा में पड़ना अच्छा नहीं था। लाजो के लिए भी नहीं।

जिस बिन्दु पर वह पहुँच चुकी थी वहाँ से उसे अनचुदे छोड़ देना उसके लिए सिर्फ अपमानजक होकर रह जाता। मेरी बीवी दृढ़ निश्चय के साथ आगे बढ़ रही थी। मुझे उसका साथ देना था।

मैंने अपनी कमर की इलास्टिक में अंगूठे फँसाए और नीचे खिसका दिया। मेरा लिंग उसकी तंग परिधि से स्प्रिंग की तरह छूटकर बाहर निकला और हिलकर सीधा लाजो की ओर इशारा करने लगा।

कोई कुछ नहीं बोला। समय जैसे ठहर गया। कुछ सेकंड ऐसे ही बीते। लाजो मेरी और मेरे लिंग की लाल क्रुद्ध आँखों की तपिश में झुलसती रही।

रेशमा शांत थी। उसने लाजो का हाथ छोड़ दिया, घुटनों के बल बैठ गई।

अब लाजो एक ही दिशा में जा सकती थी– संभोग।

फिर भी उसने डूबने से पहले हाथों से छिपाकर लाज बचाने की एक बेहद कमजोर कोशिश की।

लाजो ने हाथ ऊपर बढ़ाए। दोनों तरफ से साए का कपड़ा बटोरकर मुट्ठी में लिया। मुट्ठी कसी और…

लाजो की धड़कन रुक गई, अब गया… गया..

रेशमा एक क्षण ठहरी, उसकी तड़पन और यातना का मजा लिया, फिर उसके हाथों में हरकत हुई और…

साया एक झटके से दीवार की तरह नीचे आ गिरा। संगमरमरी जांघें, गोल पिंडलियाँ, नीचे गिरे साये के घेरे में छिपी एड़ियाँ… छोटी सी पैंटी, बेहद संक्षिप्त, अपर्याप्त ! वाक्य के बीच ‘कॉमा’ (अर्द्धविराम) सी…

लाजो ने गिरने से बचने के लिए बहन के ही कंधे का सहारा ले लिया। मेरी इच्छा हुई अब रेशमा को रोकूँ। पूर्ण नग्न करना शय्या पर उत्तप्त कामक्रिया के समय ही अच्छा लगेगा।

किंतु रेशमा बंदूक से छूटी गोली की तरह पूरे वेग में थी। उसने लाजो की पैंटी में उंगलियाँ फँसाई और नीचे खींची। पैंटी जरा सा नितम्बों पर अटकी, पर खिंचाव की ताकत से फिसलकर नीचे आ गई। घुटनों में आकर रुकी।

मैंने देखा– पैरों के बीच से गुजरती उसकी पतली पट्टी! पानी से और उसके प्रेमरसों से भीगी ! उसे एक बार मुँह से छूने का खयाल मन में तैर गया। रेशमा ने पैंटी नीचे खिसकाकर उसकी एक एड़ी उठाई। लाजो ने विरोध नहीं किया। बहन का सहारा लिए लाजो का दूसरा पाँव भी उठाकर रेशमा ने पैंटी को निकालकर अलग फेंक दिया।

मैंने देखा– उसके तने चूचुक, गर्व से भरे उभरे स्तनों के माथे पर मुकुट की तरह सजे। पेड़ू से नीचे काली घनी फसल… मानों स्वर्ग के द्वार पर काले बादलों का झुण्ड ! साफ, केले के तने जैसी जांघें… किसी अकल्पनीय लोक से उतरी रति की साक्षात् मूर्ति…!

रेशमा ने मेरी ओर देखा, मैं आगे बढ़ा, रति की देवी के समक्ष… और समीप… और निकट… जबतक कि मेरे लिंग का कठोर मुँह उसके कोमल पेट में कोंचने न लगा… मेरी छाती ने उसके साँवले गुलाबी चूचुकों का स्पर्श किया और…

उस देवी ने आँखें मूंद लीं।

मुलायम गोलाइयाँ मेरी छाती पर दबकर चपटी हो गईं। मैंने उसके झुके माथे पर देखा– सिंदूर का दाग… उसके चुदे, भोगे, पुरुष के नीचे मर्दित होने का प्रमाण… मुझे गुस्सा सा आया… रति की देवी के समक्ष वह नकारा नपुंसक इंजीनियर… स्साला…

मेरे होंठ नीचे झुके- उसकी कान को हल्के दाँतों से काटने के लिए, उसकी धड़कती गर्दन पर छोटे छोटे चुम्बन अंकित करने के लिए… उसके नमकीन पसीने को चखने के लिए ! मेरे हाथ उसके बदन को घेरते हुए उसके पीछे की ओर बढ़े और उसके गोल नितम्बों को ढकते हुए उनपर टिक गए। मैंने उसे कसकर अपने में दबा लिया और उसके होंठों को ढूँढने लगा। उसकी बेहद गोपनीय उर्वर फसल, जिसे अबतक सिर्फ उसके पति ने देखा था, मेरी जाँघों पर फिरती हुई गुदगुदी पैदा करने लगी…

लाजो की पलकें उठीं। एक क्षण के अंश भर के लिए मुझसे आँखें मिलीं और अपनी लाल झलक देकर रेशमा की ओर मुड़ गईं। रेशमा उसकी ओर देखकर मुस्कुरा रही थी। लाजो निश्चित नहीं थी कि क्या हो रहा है लेकिन उसका शरीर अब उसकी कुछ सुनने को तैयार नहीं था। उसकी एक ही इच्छा थी- वह जवान मर्द शरीर जिसने उसे बाँहों में पकड़ रखा था उसे प्यार करे, नहीं, उसे चोदे, उसकी ज्वाला शांत करे।

“इसको बिस्तर पर ले जाओ !” रेशमा ने आदेश दिया। वह अपने आपको गजब ताकतवर महसूस कर रही थी।

मैंने लाजो को तनिक घुमाया, अपना बायाँ हाथ उसकी पीठ के पीछे डाला और झुककर दायाँ हाथ पैरों के पीछे डाल उसको उठा लिया। घुटनों के मुड़ते ही उसने गिरने से बचने के लिए अपनी गोरी बाँहें मेरी गर्दन में डाल दी।

फूल सी हल्की नहीं थी वो ! थी तो रेशमा की बहन ही। मुझे खुशी हुई कि वह संभोग के धक्कों को सह लेगी।

रेशमा दो नंगों के पीछे चलती बेडरूम तक आई।

“डू फुल जस्‍टिस टु हर (उसके साथ पूरा इंसाफ करो)।” कहकर उसने हमारे पीछे दरवाजा बंद कर दिया।

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आगे बंद कमरे में लाजो के संग क्या हुआ उसे जानने के लिए कहानी के अगले भाग की प्रतीक्षा करें !

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