भाई बहन और पड़ोसन भाभी की ग्रुप सेक्स स्टोरी

ग्रुप सेक्स स्टोरी में पढ़ें कि कैसे हम भाई बहन और एक पड़ोसन भाभी ने रातभर सेक्स पार्टी की. उसके बाद मेरी फुफेरी बहन हमारे घर आयी तो हमने क्या क्या किया.

ग्रुप सेक्स स्टोरी के पिछले भाग फुफेरी बहनों के साथ पड़ोसन को चोदा में आपने पढ़ा कि कैसे मेरी बुआ के घर में मेरी फुफेरी बहनों ने अपने पड़ोस की एक भाभी को दिन में अपने सगे भाई से चुदवाया. उसके बाद शाम को मैंने अपनी बहनों की मदद से भाभी को चोदा.

उसके बाद रात भर इस चुदाई के खेल में क्या चला. ग्रुप सेक्स स्टोरी के इस भाग में पढ़ें कि हमने कैसे रात भर सेक्स पार्टी की.

सभी ने दीपक के कमरे में इकट्ठे की चुस्कियां लेते हुए आएशा भाभी के साथ खाना खाया। सेक्स पार्टी के लिए हमने रात के खाने के साथ दारू का इंतजाम भी कर रखा था.

आएशा को कुछ ज्यादा चढ़ गई तो उसने रीना को अपने बांहों में जकड़ा और रीना की चूत चुसाई करके उसे धन्यवाद दिया. बिना किसी प्रतिरोध के रीना चुदासी के मजे ले रही थी और चुदाई के बिना शाम से दो बार झड़ चुकी थी। रीना खुशी से झूम उठी.

फिर वह सारे बर्तन समेटकर बुआ के साथ बिस्तर पर सोने चली गई।

आएशा पर नशा पहले से बुरी तरह हावी रहा. उसने सबको खींच कर नंगा कर दिया और सेक्स पार्टी की शुरुआत की।

आज रंजुमुनी की पेलने की बारी आई तो रीना ने उसे कुछ ज्यादा ही पिला दी थी।

उन्नीस साल की कमसिन बहन की गोल गोल कठोर चूचियों के नीचे गहरी नाभि और संगमरमर की तरह तराशी हई लचकती कमर और चौड़े चूतड़. जो उसकी 32-28-32 की अद्भुत देसी काया रचने में बड़ी मस्ती से उठे हए थे.

उस पर कजरारी आँख किसी कहानी की परी की तरह लगती थी। आएशा रंजु की चूत गोद में लेकर चूसने लगी. मैं रंजु को दीपक से पहले पेलना चाहता था इसलिए मैंने रंजु की चूत को अपने लंड के ऊपर रख लिया. और आएशा कभी मेरे लौड़े को चूस रही थी तो कभी रंजु की चूत को!

उधर दीपक का लंड रंजु तैयार कर रही थी जो आएशा को पीछे से पेलने को तैयार था।

रंजु की कमसिन चूत आएशा के होंठों की गर्माहट झेल न पाई और भलभला कर झड़ने वाली थी. मैंने अपने लंड उसकी चूत में ठेल दिया जिससे उसका मज़ा दुगना हो गया. और वो चिहुंक चिहुंक कर मेरे हर धक्के पर झड़ गई।

मैं पीठ के बल लेटी रंजु की कसी हुई चूत में बहुत रगड़ कर पेलता रहा और घोड़ी बनीं आएशा की चूचियों को मसलता रहा.

उधर दीपक आज तीसरी बार आएशा को पीछे से पेलते हुए रंजु की कठोर चूचियों को मसलने लगा था। एक दो बूँद वीर्य के आएशा के चूत से टपक कर रंजु की चेहरे पर गिर पड़ा तो वह घिन से बिलबिलाती रही।

मेरी नज़र सामने आएशा के दोनों उठे हुए गोल नितम्बों पर थी. जो दीपक की हर एक चोट पर थर्रा उठते थे. हर चोट का माकूल ज़वाब दे रही थी भाभी।

इतने में रंजु दूसरी बार ऐंठकर झड़ चुकी थी।

मैंने पोजिशन बदली. दीपक को पीठ के बल लेटा कर आएशा को दीपक के लंड पर सवार करके मैंने भाभी की अनछुई गांड में लंड डालने की असफल कोशिश की. लेकिन लंड फिसल गया।

मैं समझ गया कि भाभीजान पहली बार गांड में डलवा रही हैं. इसलिए मैंने रंजु की कमसिन चूत से टपकता वीर्य लेकर भाभी की गांड के छेद पर लगा एक ज़ोर का धक्का लगा दिया.

और बहुत जोर से चीखी भाभी. कुछ खून की बूँदें भी निकल आई। धीरे धीरे मैंने भाभी की गांड को चोद कर खोल दिया. और आएशा भाभी को डबल इंजन के मजे देने लगा।

मैं जब पीछे से गांड में पेलता, नीचे से दीपक का लंड भाभी की चूत की गहराई में बच्चेदानी को ठोकरें मारकर जन्नत की सैर करा रहा था।

चुदाई से महरूम भाभी आज पूरी रंडी बनकर तैयार थी। मैं छुटने वाला था तो मैंने गति बढ़ा दी. उधर दीपक भी छुटने ही वाला था. लेकिन अभी नहीं छुटने वाली थी तो आएशा।

क्या गज़ब की गांड थी भाभी की. गणित के हिसाब से अर्द्धगोलाकार दो मांसल नितंबों को गहरी दरार अलग करती थी।

करीब बीस मिनट के जबरदस्त चुदाई के बाद हम दोनों खलास हो कर अपनी सांसों को नार्मल करने में लगे हुए थे। तो आएशा ने रंजु की चूचियों को मसाज करने लगी।

उंगलियों की हरकत से एक पारंगत मसाज करने वाली लग रही थी भाभी।

अभी रात्रि के दस बजने वाले थे, पूरी रात चुदाई करने के लिए बाक़ी थी। बाकी नहीं रह गया था तो हम दोनों की चोदने की शक्ति. इसलिए भाभी को रंजु को मसाज करते देखते रहे. उनके चेहरे पर आत्मा की संतुष्टि के भाव नज़र आ रहे थे।

मैं भी रंजु को गहरी नाभि चूसने चाटने लगा. आएशा के साथ बिस्तर पर जो मेरा लन्ड चुसाई कर रही थी. मेरी रुचि रंजु की चूत और आएशा के गांड पर रही. क्योंकि दीपक ने भाभी की चूत का सत्यानाश कर रखा था।

हम लोग चारों थोड़ी देर सोने की तैयारी कर रहे थे. तो आएशा ने कहा- सुबह जो सबसे पहले जगे, वो सबको जगा दे।

चार घंटे बाद तकरीबन दो बजे रंजु नंगी बाथरूम जाने के लिए उठी. तो आएशा को भी उठा कर साथ ले गई। दोनों अपनी चूत और गांड पानी से साफ कर आईं और हमें जगाने लगीं।

हम थके हुए थे इसलिए हिम्मत नहीं हुई।

चुदाई के लिए व्याकुल होकर रंजु ने दीपक के और भाभी ने मेरे लौड़े को मुंह में ले चूसना शुरू कर दिया जिससे लंड ने धीरे धीरे आकार ले लिया। भाभी मेरा लिंग मुँह में लेकर चूसने लगी तो थोड़ी रोशनी में मेरा लौड़ा गुलाबी सा चमक रहता था।

आएशा भाभी लगातार अंदर बाहर लिंग मुँह से करने लगी. मैं झड़ने वाला था. तुरंत भाभी को दूर किया मैंने और गोद में उठा कर सीधा पलंग पर ले गया और ऊपर चढ़कर उनके बूब्स पीने लगा. निप्पल चूसने लगा. जीभ से पूरे दोनों बूब्स को चाटने लगा. सच में अलग स्वाद था।

अब भाभी ने खींच कर मुझे बाँहों में भर लिया. उन्होंने अपनी टांगें चौड़ी कर दी. मैंने भाभी को कमर से पकड़कर अपना कड़क तना हुआ लौड़ा चूत पर रखा और अंदर डालने लगा.

पानी से धो लेने पर भाभी की छुट कुछ टाईट हो गई थी। भाभी चीखी- उउइइइइ अम्मी … मर गयीईइ … माह इइइ उं उं!

मैंने अंतिम झटका देकर पूरा लिंग उनकी चूत में घुसा दिया. वो छटपटा उठी.

भाभी को थोड़ी देर बाद मज़ा आने लगा. अब मैंने स्पीड बढ़ा दी. ‘फस … घप हप.’ की आवाज आने लगी चुदाई से! वो झड़ चुकी थी और चूत अंदर से बिलकुल गीली हो गई थी।

अब मुझे भाभी में कोई मज़ा नहीं आ रहा था. इसलिए मैं रंजु की ओर सरक हो गया जो दीपक के नीचे मुंह के बल लेटी कराह रही थी.

दीपक रंजु की पहली बार गांड खोल कर मज़ा ले रहा था।

मैं पीठ के बल लेट गया और रंजु उठकर मेरे लौड़े को चूत में गटक गई. मेरे लिंग में भाभी की चूत के पानी ने क्रीम का काम किया। दीपक ने अपनी सगी बहन रंजु की गांड में अब ज़ोर ज़ोर से झटके देने शरू किये.

करीब दस मिनट तक हम दोनों के बीच कमसिन रंजु अपनी चूत और गांड बचाने की गुहार करती रही. लेकिन पानी निकलने तक दीपक नहीं रुका. मैंने पूरा अपना गर्म लावा चूत में छोड़ दिया. रंजु की भी चूत का पानी और मेरा पानी मिलकर एक सुखद अहसास दे रहे थे।

हम तीनों थक कर चूर आएशा के साथ बिस्तर पर दुबक गए। सुबह होने का अनुमान कर भाभी नंगे बदन बाथरूम में जाकर फ्रेश होकर आ गई थी। सुबह नाश्ते वगैरह कर आएशा भाभी आत्मतृप्ति हो दुबारा चुदाई का वादा कर अपने मायके चली गई।

इस तरह से हमारी ग्रुप सेक्स पार्टी खत्म हुई.

रीना रंजु दोनों बहनों से बारी बारी रोज रात दीपक के साथ मुझे चूत चुदाई करते पंद्रह दिन निकल गए थे।

अचानक एक दोपहर में पापा ने फोन किया- तुम्हारी मम्मी की तबियत ठीक नहीं है. तुम जल्दी घर वापस लौट आओ।

बुआ से मैंने तुरंत जाने की आज्ञा मांगी तो रीना दीदी भी ‘मां की तबीयत बिगड़ी है’ सुनकर साथ चलने को तैयार हो गई।

शाम तक बड़ी मुश्किल से मैं अपने घर रीना के साथ पहुंच गया और मित्र कीबाईक लेकर दोनों मम्मी से मिलने अस्पताल गए।

अस्पताल में मम्मी को बीमार देख दीदी बहुत दुखी हो गई और खूब देखभाल करती रही।

सदर अस्पताल में रात्रि आठ बजे के बाद किसी अभिभावक को रुकने की इजाजत नहीं होती. इसलिए ‘सुबह फिर आएंगे.’ सांत्वना देकर वापस दीदी को लेकर मैं घर आ गया।

घर में थोड़ा भारी माहौल रहा और हम दोनों सफ़र में थके हुए थे इसलिए जिसके जो मन आया कुछ स्नैक्स वगैरह खाकर अपने बच्चों के कमरे में इकट्ठे आकर लेट गए।

हमारी कालोनियों के मकान में दो कमरे ही हैं किचन और बाथरूम एवं गैलरी के अलावा! जिसमें एक पापा रहते हैं और दूसरा हम बच्चों के लिए।

थोड़ी देर में हम चारों भाई बहन को सोते देख रीना कमरे का खुला दरवाजा बंद करके बगल में लेट गई।

रीना के दु:खी मनोदशा को भांपते हुए मैंने उसे गोद में खींच कर अपनी बांहों में भर लिया। कटे पेड़ की तरह उसने खुद को हमारे हवाले कर दिया। बगल में भाई-बहन गहरी नींद में सो चुके थे।

मैंने एक एक कर उसके दोनों 34 साइज के चूचों को पकड़ा और उन्हें मसलता और होंठों को चबाता रहा‌। रीना का जिस्म दूधिया रोशनी में किसी संगमरमर की तरह चमक रहा और कमरे का तापमान बढ़ा रहा था।

रीना तीखे नैन-नक्श वाली … उसकी झील जैसी गहरी आंखें, सुराहीदार गर्दन और दो रसीले नर्म चूचों पर पतली कमर के नीचे थिरकते गोल गोल गद्देदार चूतड़ के साथ उसकी 34 – 28 – 32 की काया किसी भी लड़के को अपनी तरफ आकर्षित कर लेती।

दीदी को मेरे दिमाग की बात पता चल गया। दीदी उचक कर के अपना चूतड़ को उठा दिया और मैंने उनका टीशर्ट धीरे से उठा दिया और अपने हाथ ऊपर नीचे घूमाना शुरू कर दिया. स्पंज की तरह गर्म चूचियों की निप्पल इस समय तनी तनी थी और मुझे उन्हें अपनी उँगलियों से दबाने में मजा आ रहा था।

मैं तब आराम से दीदी की दोनों चूचियों को अपने हाथों से दबाने लगा और कभी कभी निप्पल खींचने लगा। धीरे धीरे चूमते हुए मैंने रीना के नाभि के नीचे कटि प्रदेश पर आक्रमण कर दिया। अब रीना के मुँह से रह रह कर मादक सीत्कारें फूटने लगीं.

मैं अपनी बहन की चूत के भीतर तक जीभ डाल रहा था जिससे वो ‘आह्ह सी सी’ करते हुए ऐंठ रही थी. वो कहती- भंडुए आह … जोर जोर से चूसो बहनचोद. आह … आह्ह अन्दर तक मुँह लगा भाई. उई मैं मर गई रे. ये कैसी आग लगा दी है तूने … आह … ठीक से लगातार चूसो! नहीं तो साले मुँह में मूत दूँगी. अपनी रंडी की चूत को नोंचकर खा जा!

मैंने उसकी मालपुआ जैसे चूत से लेकर नाभि, निप्पल, कानों को चाट चाट कर गीला कर दिया.

करीब बीस मिनट के फोरप्ले में रीना के सब्र का बांध टूटने लगा. परन्तु मैं जल्दबाजी नहीं करना चाह रहा था. क्योंकि कल रात मैंने देखा था कि 21 साल की इस जवान ठण्डी लड़की के लिए दो मर्द कोई मायने नहीं रखते थे. आज तो मैं अकेला ही था।

दोनों टांगों को चौड़ा कर रीना दीदी की चूत में जीभ घुसा कर अंदर से बाहर तक चूसने लगा।

मेरी बुआ की बेटी मेरे सिर को अपने बांहों से पकड़ कर चूत पर दबाव बना कर जल बिन मछली की तरह छटपटाती हुई झमाझम बरस गई। बहुत सारा पानी चूत से बाहर निकल गया।

मैं अब दीदी की चूत को चौड़ा कर लंड धीरे धीरे पेलने लगा. मेरी बहन की सिसकारियां निकल रहीं थीं. अथाह आनंद के सागर में गोते लगाते हुए उसने कहा- अब शुरू हो जा भाई!

मैं अपनी दोनों टांगों को चौड़ा कर अति सधे हुए झटके लगाने लगा और उसकी दोनों चूचियों को मसलने लगा।

करीब पांच मिनट के अंदर मुझे पटक कर दीदी मेरे लौड़े पर सवार हो गई और लगी उछलने! बिना किसी संकोच लिए कि कमरे में दो भाई बहन और साथ बिस्तर पर सो रहे हैं।

उसके गुदाज़ नितंबों की थाप और चूत की हच फच फच की मधुर संगीत कमरे में गुंजायमान हो उठा।

मेरी हालत ख़राब हो रही थी क्योंकि जिस गति से लंड पर सवारी कर रही थी कि थोड़ी सी लापरवाही से मेरी आंड की गोलियां फूट जाती।

कमर नचा नचा कर दीदी चूत के भीतर हर कोने में चोट करती. वो शायद बच्चेदानी में लगते हर झटके में चरम सीमा तक पहुंचने की कोशिश कर रही थी।

करीब बीस मिनट की संगीन चुदाई के बाद दीदी दोनों टांगों को भींच चिहुंक चिहुंक कर झड़ने लगी और निढाल हो कर मेरे सीने पर गिर कर हांफने लगी।

जब वो थोड़ी सामान्य हुई तो मैं उसे बकरी बना पीछे से पेलने लगा. चुदाई से उसकी चूत किसी मछली की मुंह की तरह खुली रहती थी। अब मेरे लौड़े ने भी गर्जते हुए चूत के भीतर तुनक तुनक कर पिचकारियां मार दी।

हम दोनों ने एक दूसरे को अपनी अपनी बांहों में भर कर चूम लिया और नंगा ही सोया।

रीनामुनि तकरीबन दो महीने मां के देखभाल करते हुए हमारे यहां रही। रात, दिन दोपहर कभी भी कहीं भी मौका मिलता, हम दोनों की चुदाई चालू हो जाती।

दो महीने में दीदी की शरीर की बनावट में भी अंतर साफ झलक दिखाई दे रहा था। उठे हुए सुर्ख लाल कपोल, उन्नत उरोज के बीच गहरी रेखा बरबस ही अपनी ओर आकर्षित किया करती. सपाट पेट के बीच गहरी नाभि और मांसल चौड़े नितम्ब किसी भी लंड का मदनरस निचोड़ लेने में सक्षम थे. कदलीतने जैसी दो जांघों के बीच फूली हुई चिकनी चूत हर मर्द की एक सेक्सुअल फैंटेसी होती है.

एक दिन बुआ फ़ोन पर बातें करते हुए कहा- मां स्वस्थ होंगी तो रीना को पहुंचा देना। पराई बेटी को आखिर कितने दिन … एक दिन भारी मन से वापस अपने घर जाने के लिए तैयार दीदी एक नवेली दुल्हन की तरह मेरे लौड़े में आग लगा रही थी. और दुबारा चुदाई का वादा कर अपने घर चली गई।

अगली चुदाई फिर कभी! नमस्कार.

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