काम-देवियों की चूत चुदाई-1

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रोनी सलूजा का आप सभी को प्यार भरा नमस्कार! मैं आपसे पुनः मुखातिब हूँ, अपना परिचय फिर एक बार देता हूँ, मेरी उम्र 36 होने को है, कद 5’6′ फीट है कसरती बदन, साइंस विषय से स्नातक हूँ, मध्य प्रदेश का रहने वाला हूँ, मकान एवं भवन निर्माण काम का ठेकेदार हूँ!

मेरा दो कमरे का छोटा सा ऑफिस है जहाँ से मैं अपना काम संचालित करता हूँ, अन्दर के कमरे को रेस्टरूम कम स्टोररूम बना रखा है, सड़क से लगे बाहर के कमरे में रिसेप्शन बनाया हुआ है जहाँ एक कोने में मेरी कुर्सी टेबल काऊँटरनुमा, दूसरे कोने पर एक कुर्सी टेबल काऊँटर नुमा मेरे असिस्टेंट के लिए है जिसका काम है मेरी अनुपस्थिति में आने वाले कस्टमर को जानकारी देना-लेना, उनका नाम पता फोन नंबर रजिस्टर पर लिखना, फिर आवश्यक जानकारी मुझे देना एवं कस्टमर से मेरी फोन पर बात कराना, ऑफिस का रखरखाव देखना!

असिस्टेंट महिला या पुरुष जो भी योग्य मिलते, लगा लेता था, टाइम 11 से 6 बजे तक, पगार 2500 से ज्यादा नहीं देता मैं, इसलिए अक्सर असिस्टेंट ज्यादा समय तक नहीं टिकते!

हाँ छोटू जरूर चार साल से मेरे यहाँ टिका है, उसके माँ बाप मजदूरी करते हैं, वो पढ़ना चाहता है इसलिए सुबह झाड़ू पोंछा करके पीने का पानी की व्यवस्था करके 11 बजे स्कूल चला जाता है, वर्तमान में दसवीं कक्षा का छात्र है, एक चाबी उसको दे रखी है जिसके बदले में उसकी पढ़ाई का सारा खर्च शुरू से अंत तक मैं ही उठाता हूँ, छुट्टी के दिन जरूर ऑफिस में बैठता है, कभी कभी जेब खर्च मांग लेता है!

यहीं ऑफिस में फुर्सत के क्षणों में अन्तर्वासना के लिए कहानी लिखता हूँ, मेरी कहानी पढ़ने वालों के मेल पढ़ता हूँ। मेल अधिकांश मध्य प्रदेश के सभी शहरों के महिला पुरुष के होते हैं, बिहार, यूपी, दिल्ली, उत्तराखंड, राजस्थान, महारास्ट्र, गुजरात और अन्य राज्यों से भी बहुत से मेल आते हैं, कुछ मेल हिंदुस्तान से बाहर के भी आते हैं, मैं सभी का शुक्रगुजार हूँ!

अब मुद्दे पर आते हैं। कुछ महीनों पहले की घटना है यह!

मेरे पास कोई असिस्टेंट ऑफिस के लिए नहीं था जिसके कारण मैं अपनी साइट से ऑफिस समय पर नहीं पहुँच पाता था, ऐसे में ऑफिस बंद रहने लगा, मुझे अपने काम चिंता होने लगी तो मैंने छोटू से कहा- कोई लड़का या लड़की जो काम का इच्छुक हो और यहीं आसपास रहता हो, जो बारिश में भी ऑफिस आ सके, का इंतजाम करो ऑफिस के लिए, नहीं तो बहुत नुकसान हो रहा है!

दूसरे दिन सुबह छोटू ने बताया कि लीना आंटी ऑफिस में बैठने को तैयार हैं, बारहवीं तक पढ़ी लिखी हैं, ऑफिस के पास ही रहती हैं। अंकल नौकरी करते हैं तो वो दिन में फ्री रहती हैं।

मैंने आंटी सुनकर तुरन्त ही कह दिया- दोपहर बारह बजे भेज देना!

सोचा छोटू ने आंटी बोला है तो पैंतीस चालीस साल की तो होगी, फिर ऑफिस में फुर्सत का टाइम पास भी हो जायेगा, पहले भी कई महिलायें काम कर चुकी हैं और अपना काम करवा भी चुकी हैं।

मस्त बिंदास निश्चिंत होकर बिना किसी व्यवधान के मेरे रेस्ट रूम में से मैंने उनके मजे लिए है और उन्हें संतुष्ट करके मजे दिए हैं! समय की कमी नहीं होती, 3 से 6 बजे मैं ऑफिस में ही रहता हूँ, कुछ महिलायें तो बड़ी जल्दी सेट हो जाती हैं, कई को सेट करने की जुगत लगाना पड़ती है, कुछ महिलायें इन कामों से दूर ही रहती है तो रोनी भी उनसे दूर ही रहता है, उन पर अपना समय व्यर्थ नहीं करता!

कुछ मकान बनवाने वाली नौकरीपेशा या घरेलू महिलायें भी बड़े आसानी से इन सबके लिए तैयार हो जाती हैं क्योंकि उनसे मेरा मिलना बार बार होता है।

वैसे भी ज्यादातर मकान महिलाओं की पसंद से बनता है और वो जिस उम्र में ज्यादा सेक्स पसंद करती है, उसी समय उनके पतियों को रुपया पैसा कमाने से फुर्सत नहीं मिलती तो मकान की देखरेख उसका निर्माण देखना भुगतान का लेनदेन तक वही देखतीं हैं।

ऐसे में कई बार मेरे साथ वो साइट पर भी जाती हैं कभी मेरी बाइक पर या कभी मेरी क्लासिक जीप में, तो बहुत मौका मिलता है बात करने का! फिर हंसी मजाक में उनके मुखारविंद पर आई भाव भंगिमायें उनके दिल के राज खोलकर रख देती हैं, उस पर यह कि कामदेव के तीर मुझे कुछ ज्यादा ही भेदते हैं, कामवासना से परिपूर्ण होने के कारण मैं इन तीरों से जल्द घायल हो जाता हूँ जब नर और नारी राजी तो क्या करेगा काजी, फिर जो हो सके कर गुजरो!

मैं कुछ हसीनाओं के साथ गुजारे हसीन पलों को मैं इसी कहानी में एक के बाद एक जरूर लिखूँगा जिसको पढ़ते हुए आप सभी अपने यौनांगों को सहलाते हुए मजे लोगे! कहानी थोड़ी लम्बी होगी, उम्मीद है आपका भरपूर मनोरंजन होगा!

लीना आंटी का ध्यान आते ही मैं सोचने लगा कि इस उमर में अंकल लोग ज्यादा टाइम नहीं देते तो आंटी प्यासी भी होती हैं, आंटी अनुभवी भी होती हैं, मजा भी बहुत देती हैं, चुसाई में तो इन्हें महारथ हासिल होती है, बड़े बड़े मोम्मे, गुदाज नितम्ब, एकदम गदराया बदन!

कल्पनाओं में खोया अच्छे से तैयार होकर 11 बजे ऑफिस आ गया!

थोड़ी देर बाद एक जोड़ा ऑफिस में आया, आते ही पुरुष ने हाथ मिलाया, बोले- मैं नारायण ओर यह मेरी पत्नी माधुरी है, मुझे रोनी सलूजा से मिलना है!

मैंने कहा- स्वागत है, बैठिये क्या सेवा कर सकता हूँ मैं आपकी? मैं ही रोनी हूँ!

नारायण बोले- हम अपने प्लाट पर मकान बनवाना चाहते हैं, उसका अनुमानित खर्च पूछना है, और आपको बनाने का कोंट्रेक्ट देंगे, उसका खर्च मेरे को बताइए!

मैंने उनके प्लाट और मकान में होने वाले निर्माण को समझा कि उसमें क्या क्या बनना है, वो अपने साथ लाये कागज पर अपने प्लान को समझा रहे थे, मैं प्लान के साथ साथ मुस्कुराती माधुरी के माधुर्य का भी रसपान करता जा रहा था, क्या कसा हुआ जिस्म था उसका, लेकिन मुझे तो आंटी की लगन लगी थी तो माधुरी की मिठास भी फीकी सी लग रही थी!

तभी एक और हसीन महिला मेरे ऑफिस में आई वो तो माधुरी से भी ज्यादा दिलकश लग रही थी बोली- रोनी जी हैं क्या?

मैंने कहा- आप बैठिये, मैं ही रोनी हूँ!

वो एक कुर्सी पर बैठ गई! मैंने अपने काम करने का तरीका उसमें होने वाले एक अनुमानित खर्च नारायण जी को बता दिया। इन सब बातों को आगंतुक महिला बड़े गौर से देख सुन रही थी!

फिर नारायण जी बोले- मैं आपको ही अपना मकान बनवाने का काम दूँगा, मेरा फाइनेंस होते ही काम शुरू करूँगा!

फिर वो प्रस्थान कर गए!

फिर आगंतुक महिला की ओर मुखातिब हुआ!

आंटी का इंतजार न होता तो इस हसीना को जरूर बिठाये रखने का विचार मन में था!

‘मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ? उसकी आँखों में झांकते हुए पूछा मैंने!’

तो वो बोली- जी मैं यहाँ जॉब के लिए बात करने आई हूँ!

मैं एकदम से उछल पड़ा, लीना आंटी भी आने ही वाली थी, मैंने सोचा कि इसे कल के लिए बोलकर आज पहले लीना से तो मिल लूँ क्योंकि इससे ज्यादा भरोसा मेरे को आंटी पर था, पर देखना जरूरी था कहीं लीना देखने में ही अच्छी न हुई तो?

मैंने कहा- देखिये मैडम, आप कल इसी समय आ जाइये! हाँ, आपका फोन नंबर और नाम मैं लिख लेता हूँ!

तो उसने अपना नंबर बोला मैंने लिख लिया, फिर पूछा- आपका नाम?

तो उसने कहा- लीना!

उसके मुँह से लीना सुनते ही मेरे हाथ वहीं रुक गया मैं जड़वत सा हो गया!

वो बोले जा रही थी- लेकिन छोटू ने तो आज 12 बजे आपसे मिलने को बोला था!

उसके इस वाक्य से मेरी तन्द्रा भंग हुई, मुझे लगा कि मेरे से कितना बड़ा अनर्थ होने वाला था, मैंने बात को संभाला- आपके काम के लिए छोटू ने बात की थी? ये छोटू भी न कुछ ठीक से नहीं बताता, आप बैठिये, आप अपना परिचय दीजिये!

‘मेरा नाम लीना है, 24 वर्ष की हूँ, बारहवीं कामर्स से पास हूँ, यह मेरी मार्कशीट है, आपके ऑफिस के पीछे गली नंबर तीन में रहती हूँ, मेरे पति संतोष कुमार एक दवाई कम्पनी में ऍम आर हैं, वो सुबह से अपने काम पर चले जाते हैं तो सात आठ बजे तक लौटते हैं, दोपहर को मैं अपने काम से फ्री हो जाती हूँ तो घर पर बोर होने से अच्छा है आपके ऑफिस में ही काम करूँ!’

मैंने कहा- आपके पति संतोष को आपके काम करने में कोई आपत्ति तो नहीं है? आपकी शादी कब हुई? आपके कितने बच्चे हैं?

तो वो बोली- मेरी शादी को दो साल होने वाले हैं, अभी कोई बच्चा नहीं है, मेरे पति से मैंने आज्ञा ले ली है!

मैंने सोचा ‘अंधे के हाथ बटेर लगना!’ यह कहावत भी सच हो जाती है। मेरे से तो जैसे बोलते ही नहीं बन रहा था, फिर भी सारी बातें जैसे पगार, समय, क्या क्या काम करना है, सब तय करके मैंने कह दिया- ठीक है, तुम काम कर सकती हो यहाँ!

तो बोली- में कल से आ जाऊँगी!

मैंने कहा- कल से क्यों? ‘काल करे सो आज कर!’ वाली कहावत सुनी आपने! आज से ही आप काम पर हो!

बोली- ठीक है!

उसने साड़ी के साथ जो ब्लाउज़ पहना था, वो बिना आस्तीन वाला गहरे गले वाला था जिससे उसके उन्नत उभार बाहर निकलने को बेताब हो रहे थे और रोनी उनको देखने के लिए बेताब हो रहा था!

उसका फिगर 32-28-34 के लगभग होगा कटीले नैन नक्श, रंग गोरा, मंझोला कद, बालों को जूड़े के रूप में बांधा हुआ था, बड़ी ही मस्त लग रही थी, जैसी रोनी को पसंद है बिल्कुल वैसी ही थी वो!

मैं उसे सारा काम समझाने लगा, उसको उसकी कुर्सी बता दी, उसके काऊँटर जैसे टेबल में बहुत से रजिस्टर, मकान के डिजाइन वाले ब्रोसर, पम्पलेट और भी बहुत सा सामान था!

मैं ठीक उसके सामने खड़े हो गया फिर मैं उससे एक एक सामान उठाने को कह रहा था जब वो झुककर उठाती तो उसकी बड़ी बड़ी गोल मटोल छातियों को गहराई तक देख देख कर मेरी छाती पर सांप लोट रहे थे।

जब कोई सामान वो उठाती तो उसके बारे में समझा कर फिर दूसरा सामान उठाने को कहता! पूरे बीस मिनट तक उसे सभी कुछ समझाता रहा, जब उसे लगा कि मेरी नजर उसके गोलों पर केन्द्रित है तो उसने साड़ी का पल्लू का आवरण उन पर डाल लिया!

यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

मैंने सोचा कि आज के लिए इतना काफी है, मैंने कहा- अभी मुझे कुछ काम है, कोई कस्टमर आये तो फोन करके मुझे बुला लेना!

मैं बाइक लेकर चला गया, लीना के फोन का इंतजार करता रहा कि उसकी खनकती आवाज सुनने को मिल जाये पर नहीं मिली सुनने को!

फिर 3 बजे ऑफिस वापस आ गया, अपने कम्पयूटर पर कुछ नक़्शे बनाने थे! लीना ने सारी काऊँटर टेबल में जमी हुई महीने भर की धूल को झाड़कर अच्छे से साफ कर दिया फिर एक अख़बार निकाल उसे पढ़ने लगी। जाने कितना पुराना होगा वो अख़बार!

शाम छह बजे लीना बोली- मैं जा सकती हूँ?

तो मैंने कहा- हाँ ठीक है, कल 11 बजे आ जाना!

दूसरे दिन मैंने ऑफिस खोला ही था कि लीना आ पहुँची। वो सलवार सूट पहनकर आई थे, हरे रंग का सूट, उस पर लाल पीले फूल बने हुए थे, बिल्कुल सिम्पल सादे लिबास में उसकी असली खूबसूरती और भी निखरी हुई लग रही थी।

मैंने उसे सारे काम एक बार फिर से समझा कर अपनी साइट पर चल रहे ज्योति मैडम के मकान का काम देखने चला गया!

इस मकान का काम लगभग पूरा हो चुका था, कारीगर अभी टायल्स लगा रहे थे जिन्हें ज्योति मैडम ने चार दिन तक मेरे साथ घूम घूमकर मुश्किल से पसंद किये थे, इस समय वो वहीं मौजूद थी, मेरे को देखते ही चहक उठी- रोनी जी, टायल्स अच्छे लग रहे हैं न? मेरी पसंद सही है या नहीं?

कहानी जारी रहेगी। [email protected] [email protected]

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