ऑपरेशन टेबल पर चुदाई-1

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प्रेषक : अजय शास्त्री

मेरा नाम अजय शास्त्री है। यह मेरी पहली कहानी है।

राँची में मेरे घर के सामने एक नर्सिंग होम हुआ करता था- *** नर्सिंग होम। उस नर्सिंग होम में मेरा अक्सर छोटे मोटे कारणों से आना-जाना होता रहता था।

उस नर्सिंग होम में एक लेडी अटेंडेंट काम करती थी जो मुझे बेहद अच्छी लगती थी। उसका नाम था किरण।

किरण का कद 5 फुट 3 इंच था। वो साँवले रंग की, तीखे नैन नक्श और गुंदाज शरीर वाली औरत थी। वो हर नजरिये से दक्षिण भारतीय हीरोइन सिल्क स्मिता दिखती थी।

उसके बदन का सबसे खूबसूरत हिस्सा उसकी पुष्ट बड़ी-बड़ी गोलाईदार चूचियाँ थीं। मैं जब कभी उसे देखता तो मेरा लंड अंडरवीयर के अंदर ही उछ्लने कूदने लगता था।

उसकी उम्र 30 साल थी और उसकी शादी हो चुकी थी। पर अभी तक वो माँ नहीं बनी थी। उसका पति भी उसी नर्सिंग होम में अकाउंट्स डिपार्टमेंट में काम करता था।

उन दिनों मैं अपनी स्नातक की पढ़ाई के आखिरी साल में था। मेरी उम्र 23 साल की थी, पर मैं अपनी उम्र से बड़ा दिखता था। इसका कारण मेरा 6 फुट 2 इंच का कसरती बदन था।

उन दिनों में मैं दौड़ते हुए मोराबादी मैदान के चार चक्कर लगाता था, 2 किलो दूध पी जाता था और एक बार में चार-चार अंडे कच्चे पी जाया करता था।

शरीर में ऐसी आग जलती थी कि किसी भी खूबसूरत और गदराई औरत या लड़की को देख कर लगता था कि बस… क्या कहूँ कि कैसी हैवानियत भरे ख्याल आते थे।

ऐसे में जब कभी किरण के मस्त उरोज देखता तो उस रात मुट्ठ मारे बिना ना रह पाता था। मेरा मन होता था कि मैं किसी भी बहाने से उससे बातें करूँ, मेलजोल करूँ, कहीं बाहर ले जाऊँ और पलंगतोड़ चुदाई करूँ, पर हिम्मत नहीं होती थी।

मैं अक्सर अपने ख्यालों में सोचता कि काश मुझे यह एक बार मिल जाए तो मज़ा आ जाए। तब मुझे यह मालूम नहीं था कि यह मौका मुझे बहुत ही जल्द मिलने वाला था। मौका तो मिला पर वैसे नहीं जैसा मैंने सोचा था।

एक दिन मैं मोराबादी मैदान में चक्कर लगा रहा था कि अचानक मेरे कमर से ऊपर के दायें हिस्से में ज़ोर का दर्द उठा। दर्द इतनी ज़ोर का था कि मैं अपनी कमर पकड़ कर वहीं बैठ गया। काफ़ी देर तक वहीं बैठा रहा, चलने की कोशिश करता पर दर्द के कारण चल भी ना पाता था।

दोस्तों ने बाइक से मुझे घर छोड़ा। जब माँ-पापा को मेरे दर्द का पता मेरे दोस्तों से चला तो वो फ़ौरन ही मुझे सामने के नर्सिंग होम ले गये। जाँच करवाने पर पता चला कि मुझे ये दर्द एपेंडिक्स के कारण हुआ है और मुझे ऑपरेशन करवाना होगा, अगर नहीं करवाया तो वो फट सकता था और मैं मर भी सकता था।

मेरी माँ तो यह सुनकर रोने लगी और पापा भी घबरा गए, मैं भी सोचने लगा कि अभी तो ज़िंदगी की शुरुआत भी नहीं हुई है और यह सब क्या हो गया?

खैर, ऑपरेशन तो करवाना ही था सो मुझे फ़ौरन ही उसी नर्सिंग होम में भर्ती कर दिया गया गया।

मुझे शुक्रवार को भर्ती किया गया था और मेरा ऑपरेशन रविवार को होना तय हुआ था। मैं अपने प्राइवेट वार्ड के पलंग पर लेटा-लेटा बस यही सोचता रहता था कि कहीं ऑपरेशन टेबल पर ही मेरी मौत हो गई तो… और निराश हो जाता था।

सबने मुझसे कहा कि छोटा सा ऑपरेशन है, डरने की कोई बात नहीं है। फिर भी ऑपरेशन का डर मुझ पर हावी होता जाता था।

इन सब में एक बात अच्छी हुई थी कि किरण हर 3 से 4 घंटे में एक बार मेरे वॉर्ड में आ जाती थी और मैं उसे देख कर अपना ध्यान बदल देता था और थोड़ी देर के लिए ही सही पर उसकी चूचियों को मसलने का ख्याल मुझे बड़ी राहत देता था।

जब कभी मेरे आस-पास कोई नहीं होता और किरण किसी काम से मेरे वॉर्ड में आती तो मैं बस उसकी चूचियाँ ही देखता रहता। एक बार तो उसने मुझे उसकी गोलाईयों को घूरते देख भी लिया और साड़ी से उसे छुपाने लगी। उसी पल मैंने भी दूसरी तरफ देखना शुरू किया जिससे उसे कुछ ग़लत ना लगे।

वो भी शातिर खिलाड़ी थी और आँखों की भाषा पढ़ना खूब अच्छे से जानती थी। उसने पहले भी मुझे नर्सिंग होम में उसे घूरते देखा था और नज़रअंदाज़ कर गई थी।

शायद अब वो मेरे मन की बात समझ रही थी। वो जब मेरी नब्ज़ छूती तो मेरे बदन को बड़ा सुकून सा मिलता।

दो दिनों तक हर 3 से 4 घंटे में कई बार यह देखने, दिखाने, छुपाने और छूने का सिलसिला चलता रहा और बिना बात किए ही हम दोनों बातें करते रहे और आँखों ही आँखों में हम एक-दूसरे से वो भी कह गए थे जो होंठ ना तो कह पाए थे और ना शायद कह पाते।

अंततः वो सुबह आई, जब मुझे ऑपरेशन थियेटर ले जाया गया। दिल बड़ा बेचैन था, और होता भी क्यूँ नहीं आज तक मैंने ओ. टी. की शक्ल भी नहीं देखी थी।

मुझे बताया गया था कि मेरा ऑपरेशन सीनियर डॉक्टर करेंगे और ऑपरेशन 11 बजे होगा, पर ऑपरेशन से दो घंटे पहले ही मुझे मेरे वॉर्ड से ओ. टी. के बगल के एक वॉर्ड में शिफ्ट कर दिया गया।

वजह पूछने पर पता चला कि ऑपरेशन से पहले कई तरह की तैयारी करनी पड़ती है जैसे बालों को शेव करना, बेहोशी के अलग डॉक्टर होते हैं जो सुन्न करने की सुई देंगे और ना जाने क्या-क्या जिनमें वक़्त इतना तो लगता ही है।

मैं भी अब दो घंटे के लिए निश्चिंत था और अपने पलंग पर लेटा एक बार फिर किरण के बारे में सोचने लगा। मुझे एक बस उसका ही ख्याल ऑपरेशन के डर को भगाने में मददगार लगता था।

10 मिनट बाद एक वॉर्ड-बॉय आया तो मैंने उससे पूछा- एक बात बताओ, अभी तक कोई मेरी शेविंग के लिए नहीं आया?

उसने बोला- वो क्या है ना साब, आज रविवार है और बहुत से लोग छुट्टी पर हैं, मेट्रन साब देख रहे हैं कोई मिलता है तो भेजते हैं।

वो यह कह कर चला गया और मैं भी अपनी आँखें मूंद कर लेट गया। थोड़ी ही देर में मेरी आँख खुली जब मैंने अपने कमरे का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ सुनी। मैंने जो देखा उससे मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा।

मैंने किरण को कमरे में आते देखा और अंदर आते ही उसने दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया। मैं सोचने लगा यह इस वक़्त यहाँ क्या करने आई है?

वो मेरे पास आई और हल्की सी मुस्कान अपने होंठों पर लिए कहा- चलिए, उठिए जनाब, आपकी शेविंग करनी है। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

मैंने खुश होते पर चौंकते हुए पूछा- आप करेंगी?

“जी हाँ, आपको कोई ऐतराज़ है?”

“नहीं, नहीं मेरा वो मतलब नहीं था। मैं तो बस इसलिए पूछ रहा था कि आप तो सीनियर हैं, यह काम तो जूनियर अटेंडेंट्स का होता है ना?”

“आपने बिल्कुल सही कहा, पर जब स्टाफ की कमी होती है, तो सीनियर को भी जूनियर बनना पड़ता है।”

आज हम पहली बार बात कर रहे थे और मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। वो सुबह-सुबह और भी सेक्सी लग रही थी। उसने एक गाउन पहना था, जो पूरी तरह उसे फिट आ गया था। इस गाउन में उसकी चूचियाँ ही नहीं बल्कि उनकी घुंडियाँ भी साफ उभरी हुई थीं। उसका यह रूप मेरे होश उड़ा रहा था।

“तो क्या करना होगा मुझे?” मैंने पूछा।

“कुछ नहीं, करूँगी तो मैं ! बस आप अपने कपड़े निकालिए !” उसने शरारती अंदाज़ में कहा।

“जी?” मैंने चौंकते हुए पूछा।

“जी हाँ, चलिए जल्दी करिए वक़्त नहीं है हमारे पास !” उसने हँसते हुए कहा।

“सारे कपड़े?”

“जी हाँ, सारे !” उसने ऑर्डर देते हुए कहा।

“पर शेविंग के लिए सारे कपड़े क्यूँ? ऊपर का गाउन बस काफ़ी नहीं?” मैंने बनते हुए कहा हालाँकि मैं तो चाहता था कि बस अभी सामने के पलंग पर ही पटक कर उसे चोद डालूं।

“नहीं ऊपर का गाउन भर नहीं चलेगा, असली काम तो नीचे ही होता है ना !” उसने मेरे करीब आ कर मेरी आँखों में आँखें डाल कर कहा।

वो जानबूझ कर मुझसे ऐसी बातें कर रही थी और मैं समझ नहीं पा रहा था कि आख़िर वो ऐसे क्यूँ कह रही है?

खैर जो भी हो मुझे तो इसी घड़ी का इंतज़ार ना जाने कितनों दिनों से था। सो मैंने भी फ़ौरन ही उसकी बात मान ली और एक-एक कर के अपने कपड़े उतारने लगा।

मेरे एक-एक कपड़े के निकालने से मेरा कसरती बदन धीरे-धीरे उसकी आँखों के सामने आने लगा और उसकी साँसें तेज़ होने लगी।

मैंने अब अपनी पैन्ट भी निकाल दी थी और सिर्फ़ चड्डी में उसके सामने खड़ा था। चड्डी के अंदर मेरा हथियार अब उसके मम्मे देख कर हरकत में आने लगा था, और वो इसे देख सकती थी।

मैं अब अपना आपा खोने लगा था। बड़ी मुश्किल से खुद को संभालते हुए सामने की कुर्सी जो आईने के आगे लगी थी, उस पर बैठ गया। अब मैंने आईने से उसकी ओर देखा।

“कुर्सी पर नहीं, इस स्ट्रेचर पर लेट जाइए !” उसने एक और हथौड़ा मारा।

अब तो उसने हद ही कर दी और मेरा दिमाग़ खराब हो गया।

“वो क्यों? शेविंग कुर्सी पर होती है या स्ट्रेचर पर??”

“यह शेविंग कुर्सी पर नहीं बल्कि स्ट्रेचर पर ही होती है।” उसने शेविंग किट को सामने की मेज पर खोलते हुए कहा।

फिर अचानक ही मेरी तरफ मुड़ी और कहा- ऑपरेशन आपके गालों का नहीं बल्कि पेट के निचले हिस्से का होना है और मुझे आपके उस हिस्से की शेविंग करने को कहा गया है।

अब जाकर मेरी समझ में आया कि वो क्या कहना चाहती थी और मैं क्या समझ रहा था।

इतना तो साफ था कि जिस तरह से वो मुझसे वो सब कह रही थी और मेरे शरीर को ललचाती आँखों से देख रही थी। कुछ तो था उसके दिल में, पर औरत होने के कारण वो पहल कैसे कर सकती थी?

मैं सब कुछ समझ गया और अब मैं जान चुका था कि जो करना है वो अब मुझे ही करना है।

मैं फ़ौरन ही चड्डी में उस स्ट्रेचर पर लेट गया और किरण का पिछवाड़ा जो मेरी तरफ था उसे निहारने लगा। मस्त उसके गोल-गोल पिछाड़ी बड़ी प्यारी लग रही थी। मेरा मन होता था कि पीछे से ही जा कर उसे अपनी बाहों में भर लूँ।

मैं सही मौके का इंतज़ार करने लगा जो ज़्यादा दूर नहीं लग रहा था। मैं स्ट्रेचर पर लेटा-लेटा उसके चूतड़ों की हरकतों को देख रहा था, जो वो शेविंग के सामान निकालते हुए कर रही थी। मेरा लण्ड अब उसकी ताल पर नाचने लगा।

कहानी जारी रहेगी !

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