काम-देवियों की चूत चुदाई-4

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दूसरे दिन ऑफिस की छुट्टी के कारण लीना को तो आना नहीं था, मैं सीधा साईट पर चला गया। फिर फुर्सत के समय में आकर ऑफिस खोल लिया।

फिर लीना की चुदाई के लिए कोई युक्ति सोचने लगा। मुझे अब विश्वास हो गया की मेरा युक्ति कामयाब रही तो कल जरूर कुछ कर गुजरूँगा।

आज मैं अच्छे से तैयार होकर, खुशबू लगाकर ग्यारह बजे ऑफिस आ गया। अपनी युक्ति को सोचते हुए कंप्यूटर पर अपनी कहानी ‘कली से फूल’ का दूसरा भाग खोल लिया। उस कहानी को स्क्रीन पर खुला छोड़ दिया क्योंकि मेरे जाते ही वो कम्प्यूटर पर बैठ गेम वगैरह खेलती रहती है।

दस मिनट बाद लीना आ गई, गुलाबी साड़ी, उसके साथ बड़े गले का ब्लाउज़ में से उसके बूब्स तो मानो निकलकर बाहर आने के लिए उतावले हो रहे थे। उसी रंग का हल्का सा लिपस्टिक, आई-ब्रो तराशी हुई, उसका निखरा हुआ रूप बड़ा लुभावना लग रहा था।

उसके आते ही मैंने पूछा- कैसा रहा आपका सालगिरह का प्रोग्राम? क्या-क्या किया कल तुमने?

तो बोली- हम लोग घूमने गए थे। बाहर ही खाना खाया और मजे करते रहे।

फिर बोली- आपने क्या-क्या किया, कल भाभी जी के जन्मदिन पर?

मैंने कहा- कुछ मत पूछो लीना, वो जो ब्रा पैन्टी का सैट था। उसका तीन बार उतरना और पहनना ही होता रहा।

लीना- क्यों कोई नुक्स था क्या उस सैट में?

शायद वो मेरे आशय को समझ नहीं पा रही थी।

तो मैंने अर्थपूर्ण मुस्कुराहट के साथ कहा- नहीं नुक्स सैट में नहीं था। नुक्स तो मुझ में था, क्योंकि जब आपकी भाभी ने पहन कर दिखाई तो उसका सेक्सी रूप देखकर मैंने ही उस सैट को अपने हाथों से उतार दिया था और फिर… बात को अधूरी छोड़ दिया।

लीना का चेहरा लाज से लाल हो गया !

मैं बोला- इसी तरह उन्होंने उसे तीन बार पहना था और मैंने उस सैट को कल तीन बार उतारा था।

मुस्कुराते हुए वो अपनी कुर्सी पर जाकर बैठ गई।

मैंने कहा- आपका सैट कैसा रहा?

बोली- बहुत अच्छा एकदम फिट आया। बड़ा आरामदायक भी है। मेरे वो तो बहुत तारीफ कर रहे थे उस सैट की।

अपनी योजना के मुताबिक मैंने कंप्यूटर पर उस कहानी को खुला छोड़कर लीना से कहा- तुम आ गई हो, मुझे काम से जाना है। इतना कहकर बाइक उठाई और मैं चला गया।

ठीक बीस मिनट बाद मैं वापस आया और ऑफिस से कुछ कदम पहले अपनी बाइक को रोककर लीना को फोन लगाया और कहा- ऑफिस के पीछे वाले कमरे में प्लाट मापने वाला बड़ा टेप रखा है क्या? अभी जरा देखकर बताओ मैं फोन होल्ड करता हूँ।

तो वो बोली- ओ के !

यदि मैं ऐसा नहीं करता तो मुझे बाहर आया देखकर वो कंप्यूटर को स्विच ऑफ़ कर देती। मुझे यह पता ही नहीं चल पाता कि उसने कहानी पढ़ी या नहीं, तो मेरी सारी योजना चौपट हो जाता।

वो पीछे के कमरे से आगे ऑफिस में आती। उसके पहले ही मैं ऑफिस में पहुँच गया तभी लीना भी ऑफिस में आई। मुझे देख उसके चेहरे पर हवाइयाँ सी उड़ने लगीं, जैसे उसकी कोई चोरी पकड़ी गई हो।

मैं- टेप मिला क्या?

लीना- न ..नहीं।

वो कंप्यूटर तरफ जाती उसके पहले ही मैं वहाँ जाकर बैठ गया।

मैंने कहा- पता नहीं लीना, तुम क्या करती रहती हो? कोई सामान ठीक से नहीं रखती, अच्छे से खोजो।

वो फिर अन्दर चली गई उसकी आँखें अजब सी नशीली लग रही थीं। मैंने कंप्यूटर चेक किया तो जो कहानी को आरम्भ से मैंने लगाया था उसकी जगह कहानी की अंतिम पंक्तियाँ दिख रही थीं।

मैं समझ गया कि लीना कहानी पढ़ चुकी है और पढ़कर जरुर अन्तर्वासना से गर्म हो गई होगी।

अब उस टेप की खोज शुरू हो गई, जो मेरी बाइक की डिक्की में हमेशा से रखा था। हम दोनों ही मिलकर उसे ढूंढ रहे थे।स्टोर-रूम कम रेस्ट-रूम का सारा सामान हम दोनों ने उलट-पुलट कर दिया। सारा सामान साथ-साथ उठा कर देखते रहे।

मैंने कई बार अपने हाथ से उसके हाथों को छुआ। उसके स्तनों को भी कोहनी से रगड़ दिया। पलंग के नीचे जब वो ढूंढ रही थी तो मैं उसकी चिकनी पिंडलियों को बार-बार छू रहा था।

फिर मैंने कहा- ऊपर के सेल्फ पर देखो, शायद वहाँ हो?

वो बोली- यह तो ऊँचाई पर है।

तो मैंने उसे कमर से पकड़ कर उठा दिया और कहा- लो अब देखो।

वो सेल्फ पर सामान उलट-पुलट करके खोजती रही। मैं उसकी कमर और पीठ पर अपनी गरम साँसों का प्रवाह करता रहा। एक दो बार मैंने अपने होंठ भी उसके पीठ से लगाए मुझे लगा जैसे ‘स्स्स्स…’ की आवाज उसके मुँह से निकली थी।

फिर वो बोली- यहाँ नहीं है। मुझे नीचे उतारो।

तो मैंने कहा- लीना मेरी इच्छा है कि तुम्हें यूँ ही गोद में लिए रहूँ।

वो बोली- कोई आ जाएगा प्लीज़…

मैंने उसे नीचे उतार कर, ऑफिस का बाहरी कांच वाला दरवाजा अन्दर से लगा लिया। फिर ऑफिस के अन्दर वाले कमरे में आकर उसे बाहों में भर कर चूम लिया।

वो बोली- सर, यह क्या कर रहे हो? ये गलत है, मुझे आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी।

मैं तो जानता था कि इतनी सेक्सी कहानी पढ़ने के बाद इसकी बुर से पानी निकल आया होगा, चुदासी भी हो रही होगी और चुदेगी भी जरूर !

बस नारी सुलभ नखरे बता रही है, जो उसका हक़ है, अन्यथा अब तक आगबबूला हो रही होती। अपने शरीर पर इतनी रगड़ नहीं लगने देती।

मैंने पीछे से उसे बाहों के घेरे में लेते हुए कहा- तुमने जो कहानी पढ़ी है, वही मैंने तुम्हारे आने से पहले पढ़ रहा था। धोखे से खुला छोड़ गया था, जो शायद तुमने भी पढ़ ली है। मुझे बहुत बेचैनी हो रही है लीना ! प्लीज़, एक बार तुम्हें चूमना सहलाना चाहता हूँ।

बड़ी मुश्किल से वो सिर्फ चूमने सहलाने भर के लिए राजी हो गई। मैंने पीछे से उसके कमर पीठ उभरे नितम्बों को जिस तरह से सहलाया उससे वो सीत्कार कर उठी। अपने पिछवाड़े को मेरे लंड पर रगड़ने लगी।

अब तक मैंने उसका साड़ी का पल्लू गिराकर उसके स्तनों पर कब्ज़ा कर लिया था। उन्हें पीछे से पकड़कर मसलने में अनुपम सुख मिलने लगा।

मेरे लंड की हालत बिगड़ने लगी। वो खड़ा होकर लीना के नितम्बों को मेरी कमर से दूर धकेल रहा था।

उसकी सिसकारी छूटने लगी- अस्सस्स… सर… ये… क्या कर रहे हो… प्लीज़ छोड़ दीजिए न सर…

कहानी जारी रहेगी।

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