ममता की गलती-1

प्रेषक : देविन

हैलो दोस्तो, मेरा नाम देविन है 25 साल का हूँ। दिल्ली का रहने वाला हूँ, हमेशा खुश रहता हूँ और सभी को खुश रखता भी हूँ। अच्छे परिवार में परवरिश के कारण कभी फालतू चीजों में ध्यान नहीं गया। हर चीज मे आगे रहा चाहे पढ़ाई हो या कुछ और।

लड़कियों के साथ दोस्ती तक ही सीमित रहा। मैं सोचता हूँ कि हम सब इस दुनिया में बस मजे करने के लिये आये हैं। इस लिये कभी प्यार के चक्कर में नहीं पड़ा।

सभी को पता ही है कि दिल्ली के लड़के और लड़कियाँ कैसे हैं। मुझे सैक्स के बारे में सब कुछ पता है, सैक्स किया भी है। मेरे दोस्त भी कहते ‘साले तुझे इतनी लड़कियाँ लाइन देती हैं, पर तू कभी किसी के साथ कुछ नहीं करता।’

मैं भी कह देता कि भाई प्यार का चक्कर ही खराब है। वैसे मन तो मेरा भी करता था, सैक्स करने का पर कोई सरदर्द ना हो जाए बस यही सोच कर दूर रहता था। स्कूल टाईम में कई बार सैक्स किया है, पर वो फिर कभी। बता दूँ क्लास 11 से ही हाथ से अपनी गर्मी शान्त करता रहता हूँ।

इस साइट पर मैंने काफ़ी कहानियाँ पढ़ी हैं, कुछ तो ऐसी हैं जिन्हें पढ़ कर मजा आया और कुछ तो बकवास होती हैं, जितनी भी कहानियाँ मैंने पढ़ी हैं उनमें मुझे बड़ा मजा आया, खैर अपनी कहानी पर आ जाता हूँ।

आपको बता दूँ मैं कुछ भी काम नहीं करता, बस पढ़ाई और घूमना-फ़िरना। मेरे घर में हम दो भाई हैं। वो अपना अलग काम करता है। और मैं घर से दूर अलग अपना रूम ले कर रहता हूँ। दोपहर में आने के बाद मैं सारा दिन खाली होता हूँ, मैंने सोचा की पार्ट टाईम कुछ काम किया जाये।

मैंने पास में ही एक कम्प्यूटर सेंटर में चार घन्टे के लिये पढ़ाना शुरु कर दिया। वहाँ पर बहुत सी लड़कियाँ आती थी। उन के बारे में कभी गलत ख्याल मन में नहीं आया, क्यों कि वो सब मुझ से पढ़ने के लिये आती थीं और मैं अपने काम को कभी भी खराब नहीं करता।

मेरे वहाँ पर आने के कुछ दिनों के बाद वहाँ पर दो लड़कियों ने एक साथ एडमिशन लिया दोनों ही मेरी हम-उम्र थीं, उनका नाम था ममता और नैना, दोनों ही अच्छे कद काठी की थीं। मैंने उन्हें कुछ ज्यादा भाव ना दे कर साधारण तौर पर ही लिया।

दोनों ने आकर मुझे अपनी स्लिप दिखा कर पूछा- सर क्या आप ही हमारी क्लास लेंगे?

मैंने कहा- हाँ, आप अन्दर आ जाओ।

और उन्हें बैठने के लिये कह कर वापस क्लास में आ गया। मैं फ़्री होकर उनके पास गया।

मैंने पूछा- नाम क्या है आप दोनों के?

“ममता और नैना !”

“ओके ! पर ममता कौन है और नैना कौन?”

“मैं ममता और यह नैना।”

मैंने एक बात पर गौर किया कि ममता नैना से अधिक तेज-तर्रार है। वो हर बात का जवाब देती रहती थी। पर नैना… वो बस पूछ्ने पर ही जवाब देती थी।

कुछ दिनों के बाद मैंने देखा कि नैना किसी से फ़ोन पर बात कर रही है। मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया, पर मैंने उसे कहा- तुम बाहर जा कर बात करो, क्लास में मोबाईल का प्रयोग करना मना है।

वो बाहर जाकर बात करने लगी, मैंने देखा कि वो कुछ परेशान है।

मैंने ममता से पूछा- इसे क्या हुआ है?

“अरे सर, बस वही ब्वायफ्रैन्ड का लफ़ड़ा और क्या !”

“ओह… पर यह इतनी दुखी और परेशान??”

“कल मिलने नहीं आया वो इससे, यह भी ना पागल हो गई सर, उस लड़के के चक्कर में !”

फिर ममता अपना काम करने लगी। कुछ देर बाद मैं बाहर आया तो देखा के नैना रो रही है। मैंने कुछ नहीं कहा और वापस क्लास में आ गया।

अगले दिन मैंने देखा की नैना उदास सी थी। मैंने उन दोनों से कहा- आप दोनों ‘थ्योरी-रूम’ में आ जाओ।

दोनों वहाँ जा कर बैठ गईं।

“कैसी हो आप दोनों?”

ममता- मैं तो सही हूँ सर, इसका पता नहीं।

मैंने कहा- क्यों? नैना को क्या हुआ है?

नैना- कुछ नहीं सर, बस ये तो पागल है।

“चलो कोई बात नहीं… और नैना कोई फालतू की टैन्शन मत पालो” मैंने कहा।

नैना- नहीं सर, कोई टैन्शन नहीं है।

“वैसे मुझे सब बता दिया है ममता ने !” और मैं हँसने लगा…

नैना- क्या सर…! क्या बताया सर इसने?

“यही कि तुम कल क्यों रो रही थी !”

यह सुन कर उसने ममता की तरफ देखा और उसे कोहनी मार कर कहा- ममता, तू सर के सामने ये सब बातें क्यों करती है?

मैंने कहा- मैंने ही इससे पूछा था।

ममता- तू परेशान ना हो ! सर किसी से कहेंगे थोड़ी ना… सर की भी कोई बन्दी-वन्दी होगी ! क्यों सर?” और वो यह कह कर हँसने लगी। मुझे भी सुन कर हँसी आ गई… और नैना भी मुसकुराने लगी…

मैंने कहा- चलो अब तो नैना भी हँस दी… अब क्लास शुरु करते हैं।

तभी ममता ने कहा- सर आज रहने दो ना…! मूड नहीं है आज पढ़ने का !

“क्यों? आज क्या है?” मैंने कहा।

ममता- नहीं सर, आज मत पढ़ाओ प्लीज… कल पक्का पूरा टाईम पढ़ेंगे।

“ओ के… लेकिन अब क्या करें?”

ममता- बस सर कुछ बातें करते रहते हैं।

“पर यह नैना तो कुछ बोलती ही नहीं है।”

ममता- अरे सर, आप ही समझा दो इसे, मेरा कहा तो यह मानती नहीं। वो साला इसे पागल बना रहा है और यह है कि खुद ही पागल बन रही है।

नैना ने सर झुका लिया…

“क्यों नैना? यह सच है क्या?”

” पता नहीं सर, यह कहती है कि वो कई लड़कियों के साथ दोस्ती रखता है।”

“तो क्या हुआ ! यह तो आम बात है, तुम्हें यह लगता है तो तुम भी किसी और से दोस्ती कर लो और एक बात, देखो प्यार-व्यार आजकल कोई नहीं करता, बस सभी को टाईम पास करना होता है।”

ममता- हाँ सर, मैं भी यही कहती हूँ। यह सब बकवास है, पर ये माने तब ना !

“हाँ यह तो सही बात है… जब वो सीरियस नहीं है तो तुम भी मत होना। नहीं तो और ज्यादा दुखी हो जाओगी।”

ममता- सुना तूने…! सर, मैं भी यही बोलती हूँ।”

नैना- सर मैंने पहली बार किसी से दोस्ती की है।

ममता- सर आपकी कोई दोस्त नहीं है क्या?

“अरे नहीं मैं तो कभी भी प्यार के लफड़े में नहीं फँसा… हाँ दोस्त तो बहुत सी हैं… सब बहुत अच्छी हैं, पर लवर किसी को नहीं बनाता।”

यह सब नैना बड़े गौर से सुन रही थी।

ममता- क्यों सर? क्या किसी ने दिल तोड़ दिया था आपका?

और वो नैना के साथ हँसने लगी, मेरी भी हँसी छूट गई।

“बस सीरियस रिलेशन से डर लगता है और कोई बात नहीं।”

ममता- सर, आप ना बिल्कुल मेरी तरह सोचते हो, आप से मेरी खूब पटेगी।

तब मैंने कहा- तुम नैना को भी अपने जैसा बना दो, तब यह भी खुश रहा करेगी।

ममता- नहीं सर, आप समझाना इसे, क्या पता आप की बात मान ले !

“कोई बात नहीं मैं कोशिश करूँगा, चलो अब आपका टाईम हो गया है, आप लोगों को घर भी जाना है।”

दोनों ने कहा- बाय सर।

“बाय !”

मुझे कुछ अजीब सा लगा कि इन दोनों की सोच अलग-अलग है, फिर भी कितनी पक्की दोस्ती है इन दोनों में।

अगले दिन…

“हैलो सर !” दोनों ने कहा।

मैंने भी सर हिला कर जवाब दिया- हैलो !

आज नैना कुछ खुश लग रही थी, तभी ममता बोली- सर आप ने तो कमाल कर दिया। आपकी बात मान गई यह लड़की।

मेरी कुछ समझ नहीं आया, बस मुस्कुरा दिया।

क्लास के बाद ममता ने कहा- सर जरा बाहर आना।

बाहर आकर मैंने पूछा- हाँ बोलो क्या हुआ?

ममता- अब बोल ना, तूने कहा मैंने बुला दिया।

मैं उन दोनों को देख रहा था- जल्दी बताओ क्या बात है?

नैना- सर आप सन्डे को फ्री हों, तो आप से मिलना है।

“मैं तो फ्री होता हूँ… पर क्या बात है? अभी बता दो ना!”

नैना- नहीं सर, वो कल वाली बात आपने पूरी नहीं की, बस वही सब बातें।”

“ओह… कोई बात नहीं मुझे बता देना। मैं तुम से मिल लूँगा। आप दोनों आ जाना।”

“ठीक है सर !”

दोनों ने ‘बाय’ किया और चली गई।

उन्होंने शनिवार को मुझे कहा कि वे रविवार को शाम पाँच बजे पार्क में मिलेंगी।

रविवार को मैं अपनी कैज़ुअल ड्रेस में उनसे मिलने गया। जिस पार्क में वो आने वाली थी मेरे रूम के पास ही था। मैं निक्कर और टी-शर्ट में ही चला गया। सही पाँच बजे वो दोनों आ गईं।

“हैलो सर !”

मैंने भी सर झुका कर जवाब दिया।

“कैसे हो आप?”

ममता- सर मैं तो, आपको पता है मजे में ही होती हूँ। आजकल यह भी मजे में है सर !

मैंने हँस कर कहा- क्यों, यह भी हमेशा मजे में ही होती है, पर लगता है तुम इसे मजे नहीं लेने देती हो।”

ममता- नहीं सर, जिस दिन से आपसे बात की है ना, उस दिन से यह कुछ ज्यादा ही मस्त हो गई है।”

नैना- नहीं सर, वो आपने कहा था ना कि ज्यादा सीरियस मत हो। मैंने घर जा कर सोचा तो लगा कि आप सही कह रहे हैं।

“मेरा तो यही सोचना है देखो… आगे तुम लोगों की मर्जी !”

नैना- हाँ सर, मैंने सोचा तो यही लगा कि मैं कुछ ज्यादा ही दुखी हो रही हूँ, कल मैं उससे मिलने भी नहीं गई।

मैंने पूछा- क्यों नहीं गई तुम?

“वो ना सर कुछ ज्यादा ही जिद कर रहा था और मुझे कुछ जरुरी काम था, तो मैंने मना कर दिया। वो गालियाँ देने लगा तो मैंने फोन काट दिया। उसके बाद से मैंने उस बात भी नहीं की।”

“यह तो गलत है, ‘गाली’ तो हद हो गई।”

ममता- हाँ सर, वो साला इसे गाली देकर बात करता है।

“उससे सब कुछ खत्म कर दो, वो सही नहीं है, देख लो !” मैंने कहा।

नैना- मैं भी यही सोच रही हूँ सर।

“कोई बात नहीं, जैसा सही लगे वो करना !”

“हाँ सर, ठीक है।”

ममता- और सर आप बताओ आपकी कोई नहीं है क्या?

“मैंने कहा था ना, कोई नहीं है।”

“मजाक मत करो सर, यह हो ही नहीं सकता कि कोई भी ना हो… कोई तो होगी ना !” और वो हँस दी।

फिर हम सब हँस दिये…!

मैंने कहा- अभी तक तो नहीं है, अगर कोई है तो बता दो। लेकिन मेरे टाईप की हो, यह ना हो कि मेरे पीछे ही पड़ जाये।

ममता- ओके सर, मिलने दो कोई भी होगी तो जरुर बताऊँगी।

“क्यों तुम भी तो मेरी तरह सोचती हो। तुम ही बन जाओ ना !” मैंने यह बात मजाक में कही थी।

“आपको कोई भला मना कैसे करेगा, लो मैंने भी हाँ कर दी…” और फिर सभी जोर से हँसने लगे।

मैंने कहा- मजाक कर रहा हूँ, बुरा मत मानना।

आँखें मटकाते हुए उसने कहा- पर सर मैं तो तैयार हूँ, आपका क्या विचार है?

फिर सब जोर से हँसने लगे।

हमने दो घन्टे बात की, फिर वो जाने लगे तो ममता ने कहा- सर मैं आपसे सच कह रही हूँ। जो मैंने कहा है, उसके बारे में सोचना।

मुझे लगा कि वो अब भी मजाक कर रही है- मैं कैसे यकीन करूँ कि तुम सच कह रही हो?

“आप कैसे यकीन करोगे सर?”

“वो तो तुम्हें पता होगा !”

फिर उसने कुछ सोचा और कहा- ठीक है, आप आँखें बन्द करो।

मैंने कहा- नहीं ऐसे ही बताओ।

“नहीं, आप करो तो सही…!”

‘ओके !’ मैंने आँखें बन्द कर लीं।

कुछ नहीं हुआ।

“अरे गई क्या तुम? मैं आँखें खोल रहा हूँ।”

“नहीं अभी नहीं खोलना !” और फिर वो हुआ जिसकी मुझे उम्मीद नहीं थी।

मुझे आप अपने विचार यहाँ मेल करें।

कहानी जारी रहेगी।