यौन-संसर्ग का सीधा प्रसारण

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000

टी पी एल प्रिय अन्तर्वासना के पाठको, मेरा आप सबको सादर प्रणाम ! मैं पिछले तीन वर्षों से अन्तर्वासना की पाठिका हूँ और इन तीन वर्षों में मैंने इसमें प्रकाशित काफी कहानियाँ पढ़ी हैं ! मुझे कुछ रचनाएँ तो बहुत ही पसंद आई क्योंकि वे बहुत ही उच्चतम शैली में लिखी गई थी ! उन रचनाओं में कहानी का विवरण इतना रोचक था कि मैं कई बार उनको पढ़ते पढ़ते उन्ही में खो जाती थी और ऐसा महसूस करती थी कि मैं भी उसी रचना का एक अंग ही हूँ ! ऐसी रचनाओं के लेखक एवं लेखिकाओं को मैं बाधाई देती हूँ और उनसे आग्रह करती हूँ कि आगे भी आने वाली रचनाओं का सृजन वे केवल अपनी ही शैली में करें ! अन्तर्वासना के अपार रचना भण्डार में से जो भी रचनाएँ मैंने पढ़ी है उन सभी में से मेरे आंकलन के अनुसार कुछ ही रचनाएँ ऐसी थी जिन्होंने मुझे बहुत प्रभावित किया ! उन कुछ में से तीन रचनाएं ‘दीप के स्वप्नदोष का उपचार’, ‘कीकर और नागफणी’ और ‘तृष्णा की तृष्णा पूर्ति’ है जिन्होंने मुझे भी अपनी जीवन में घटित एक घटना पर आधारित यह रचना लिखने के लिए प्रेरित किया ! अन्तर्वासना पर पढ़ी बाकी रचनायें कुछ अच्छी और कुछ सामान्य थी लेकिन अधिकतर रचनाएँ ऐसी थी जिनमें रचना को रोचक बनाने में कम और सिर्फ वासना की ओर अधिक ध्यान दिया गया था। मेरे साथ मेरे जीवन की घटित यह पहली घटना लगभग आठ वर्ष पहले की है जब मैंने दिल्ली से जुड़े राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के एक छोटे से शहर में एक प्रसिद्ध इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ने के लिए प्रवेश लिया था। छात्रावास में उपयुक्त स्थान न होने के कारण मेरे लिए उसमे प्रवेश की व्यवस्था नहीं हो सकी इसलिए मैंने कॉलेज के सामने की कॉलोनी में ही अपनी एक कक्षा सखी मोनिका के साथ मिल कर एक शयनकक्ष वाला फ्लैट किराये पर ले लिया और उसमें रहने लगी थी। उस फ्लैट में दो कमरे थे, हमने आगे वाले बड़े कमरे को बैठक बना दिया था और दूसरे कमरे को हम दोनों सखियों ने अपना शयनकक्ष बना लिया था। पहले माह के शुरू में तो हम दोनों को वहाँ के माहौल में समायोजित होने में काफी असुविधाओं का सामना करना पड़ा, लेकिन माह के अंत होते होते हमने सभी कठिनाइयों का समाधान ढूंढ कर और उन सब पर विजय भी पा ली ! इसके बाद अगले दो माह में पढ़ाई का बहुत ही जोर रहा तथा हम दोनों अधिकतर उसी में उलझी रहती थी ! प्रवेश के बाद के पहले तीन माह की पढ़ाई समाप्त होते ही बीस दिन तक परीक्षाओं होती रही और उसके बाद ही जब हमें दस दिन की दशहरा की छुट्टियाँ हुई तभी हम अपने अपने घर जा सकी। मैं तो छुट्टियों समाप्त होने से एक दिन पहले ही दोपहर के समय अपने फ्लैट में पहुँच गई थी और मोनिका के आने की प्रतीक्षा करने लगी, लेकिन मोनिका उस दिन रात्रि को लगभग नौ बजे पहुँची। मैं तो अपने घर से अकेले ही आई थी लेकिन मोनिका को घर से चलने में देर हो गई थी इसलिए उससे एक वर्ष छोटा उसका भाई रोहित उसे शहर छोड़ने के लिए उसके साथ ही आया था। क्योंकि रात बहुत देर हो गई थी और रोहित को घर वापिस जाने के लिए कोई भी साधन नहीं था इसलिए वह रात के लिए बाहर बैठक में रखे तख्त पर बिस्तर लगा कर उसी पर सोने चला गया। रात के दो बजे जब मेरी नींद खुली और मैं लघुशंका के लिए उठी तो मोनिका को अपने साथ वाले बिस्तर पर सोये हुए नहीं पाया तब मुझे कुछ अचम्भा हुआ लेकिन यह सोच कर कि शायद वह भी लघुशंका के लिए गई होगी इसलिए मैं अपने बिस्तर पर ही बैठी उसके गुसलखाने से बाहर आने की प्रतीक्षा करती रही। पाँच मिनट तक बैठे रहने के बाद भी जब मुझे गुसलखाने से कोई आहट नहीं आई तब मैंने उठ कर गुसलखाने के दरवाज़े को खटखटाने के लिए हाथ लगाया ही था कि दरवाज़ा खुल गया। गुसलखाने के अन्दर मोनिका को नहीं पाकर मुझे कुछ विस्मय तो हुआ लेकिन लघुशंका के दबाव के कारण मैं पहले उससे निपटने के लिए फ्लश पॉट पर बैठ गई और अपने मूत्राशय को खाली कर दिया। लघुशंका के दबाव से राहत पाकर जब मैं गुसलखाने से बाहर आई तो मुझे मोनिका की याद आई और मैं उसे ढूँढने के लिए बैठक की ओर गई। जैसे ही मैं दरवाज़े तक पहुँच कर बैठक के अन्दर झाँका तो वहाँ का दृश्य देख कर अवाक रह गई। मैंने देखा कि मोनिका और रोहित दोनों निर्वस्त्र लेटे हुए थे और रोहित का सिर मोनिका की दोनों जाँघों के बीच में था और वह अपने मुँह से मोनिका की योनि को चाट रहा था, उधर मोनिका का सिर भी रोहित की टांगों की ओर था और वह रोहित के लिंग को अपने मुँह ले कर चूस रही थी तथा अपना सिर हिला कर उसके साथ मुखमैथुन कर रही थी। मैंने अपने आगे बढ़ते कदम वहीं दरवाज़े पर रोक दिए और वापिस अपने बिस्तर की ओर जाने के लिए मुड़ी ही थी कि मुझे मोनिका के बोलने की आवाज़ सुनाई दी। मैं तुरंत पलट कर वापिस दरवाज़े की ओट में खड़ी होकर बैठक में झाँका और उनकी बातें सुनने लगी। मोनिका रोहित से कर रही थी कि उसका तो दो बार पानी निकल चुका था और वह अब पुनः यौन संसर्ग के लिए बिल्कुल तैयार थी। तब मैंने देखा कि रोहित उठ कर सीधा होकर मोनिका के ऊपर झुक गया और मोनिका ने उसके लिंग को पकड़ कर अपनी योनि के छिद्र पर लगा कर रोहित को अपने लिंग को उसके अन्दर डालने के लिए कहा। मोनिका के मुख से यह निर्देश सुनते ही रोहित ने एक धक्का लगा दिया जिससे उसका आधा लिंग मोनिका की योनि के अन्दर चला गया। रोहित के लिंग के मोनिका की योनि में झटके से प्रवेश होते ही मोनिका की एक हल्की सी चीत्कार सुनाई दी और मैंने मोनिका को गुस्से से भरी आवाज़ में रोहित को डांटते हुए सुना- रोहित, मैंने तुझे कई बार समझाया है कि आराम से डाला कर ! तुझे जल्दी किस बात की होती है जो इतनी जोर से अन्दर धकेल देता है, अपनी टोंटी को? मैं कहीं भाग कर तो जा नहीं रही हूँ और यहाँ तो मम्मी और पापा भी नहीं है जिनका तुझे डर लग रहा हो ! मोनिका की बात सुन कर रोहित ने कहा- मोनी, तेरी सखी तो यहाँ है, अगर वह जाग गई और हमें इस हालत में देख लिया तो हमारा सारा भेद खुल जाएगा और मम्मी पापा को भी पता चल जाएगा ! तब मोनिका बोली- रोहित, मैंने तुम्हें कई बार बताया है कि जोर से करने और जल्दी जल्दी करने से मुझे आनन्द नहीं मिलता, इसलिए अगर आराम से कर सकता है तो कर नहीं तो अपना बाहर निकाल ले मैं उंगली कर के संतुष्टि पा लूंगी ! हाँ, अगर मेरी सखी ने हमें इस हालात में देख लिया तो मैं उसे भी तेरे साथ यह सब करने के लिए तैयार करा दूंगी ! तब रोहित ने मोनिका के होंटों पर अपने होंट रख कर उसका प्यार भरा चुम्बन लेने लगा और शरीर के नीचे के भाग में दबाव बढ़ा कर अपने लिंग को मोनिका की योनि के अन्दर धीरे धीरे धकेलने लगा ! देखते ही देखते रोहित का वह खंज़र मोनिका की योनि के रास्ते उसके जिस्म में गायब हो गया। चूंकि मैं ऐसा दृश्य पहली बार देख रही थी इसलिए अचंभित सी आँखें फाड़ कर उस क्रीड़ा को देखने में मग्न हो कर सोच रही थी कि क्या लड़की के जिस्म में किसी लड़के का सात इंच लम्बा लिंग समा सकता है? मेरी इस विचारधारा में अवरोध तब आया जब मैंने रोहित को मोनिका के होंटों से अपने होंट चिपका कर और नीचे से कुछ ऊँचा होकर अपने लिंग को मोनिका की योनि से थोड़ा बाहर निकाल कर फिर से अन्दर धकेल दिया ! इसके बाद रोहित यही क्रिया बार बार दोहराने लगा, पहले धीमी गति से और फिर मध्यम गति से! जब भी रोहित अपने लिंग को अन्दर की ओर धकेलता तभी मोनिका रोहित के लिंग का स्वागत करने के लिए अपने कूल्हे ऊपर को उठाती और उसे अपने में लुप्त कर लेती। लगभग दस मिनट तक रोहित अपने लिंग को मोनिका की योनि के अन्दर बाहर करता रहा, कभी मध्यम गति से तथा कभी तीव्र गति से ! उन दस मिनट में मोनिका ने दो बार अपनी टाँगें भींची थी और उसका पूरा बदन भी अकड़ गया था ! उस समय मोनिका ने अह्ह… अह्ह्ह… उन्ह्ह्ह… उन्ह्ह्ह… की सिसकारियाँ भी निकाली थी और रोहित को गति तीव्र करने का आग्रह भी किया। रोहित ने मोनिका के आग्रह को स्वीकार करते हुए अपने लिंग को मोनिका की योनि के अन्दर बाहर करने की गति को अत्यंत तीव्र कर दिया। फिर क्या था पूरे कमरे में मोनिका की सिसकारियों के साथ साथ उसकी योनि से निकल रही फच्च… फच्च… की आवाज़ का मधुर संगीत गूंजने लगा ! अब तो मोहित भी उस संगीत में अपनी हुंह… हुंहह… हुंहह… की सिसकारियों से जुगलबंदी करने लगा।कमरे का वातावरण बहुत ही संगीतमयी हो गया था और मैं भी उन मधुर क्षणों का आनन्द उठा रही थी जब मुझे अपने जीवन का एक सत्य पहली बार कुछ महसूस हुआ। वह सत्य मेरी योनि में से निकल कर मेरी जाँघों को गीला करने लगा था, मैंने जब अपना हाथ अपनी जाँघों और योनि पर लगाया तो वहाँ के गीलेपन ने मुझे मेरी उत्तेजना का बोध कराया ! मैं मन ही मन अपने आप को मोनिका के स्थान पर देखना चाहती थी और मेरे वहाँ न होने के कारण मुझे मोनिका के सौभाग्य पर जलन की अनुभूति भी होने लगी थी ! तभी मोनिका और रोहित की आह्ह… आह्ह्ह… आह्ह्ह… आह्ह्हह… आह्ह्हह्… की सिस्कार ने मेरी तन्द्रा को तोड़ दिया, मैंने उन दोनों की ओर देखा तो पाया कि उन दोनों के बदन अकड़े हुए थे और वे दोनों पसीने में लथपथ हांफ रहे थे। कुछ ही क्षणों में मैंने देखा की रोहित का सारा बदन ढीला पड़ गया और वह निढाल हो कर मोनिका के ऊपर लेट गया था ! मोनिका भी उस समय शांत लेटी हुई थी और शायद उस असीम संतुष्टि का पूर्ण आनन्द उठा रही थी ! तब मुझे एहसास होने लगा कि मुझे वहाँ से चली जाना चाहिए इसलिए मैं तुरंत मुड़ कर अपने बिस्तर पर जा कर लेट गई ! अपनी उत्तेजित वासना की तृप्ति को शांत करने के लिए आँखें बंद कर अपने पर नियंत्रण किया और निंद्रा के आगोश में खो गई ! जब बाहर के दरवाज़े की घंटी बजी तब मेरी निद्रा टूटी और मैंने घड़ी की ओर देखा तो छह बज चुके थे, मैंने उठ कर इधर उधर देखा लेकिन मुझे मोनिका कहीं दिखाई नहीं दी तो मैंने जा कर बाहर का दरवाज़ा खोला! बाहर मध्यम रोशनी में मोनिका को अपना सामान लिए खड़े पाया और वह मुझे देखते ही झल्ला कर बोली- दस मिनट से घंटी बजा रही हूँ क्या कर रही थी? मैंने उत्तर में उसे कह दिया- मैं सो रही थी और तुम इतनी सुबह कहाँ गई थी? मोनिका घर के अन्दर आती हुई बोली- पगली अभी सुबह कहाँ से हो गई? अभी तो रात होने वाली है और मैं तो अभी घर से आ रही हूँ ! कल से कॉलेज की कक्षा जो शुरू होने वाली हैं ! मोनिका की बात सुन कर मुझे बोध हुआ कि मैं दोपहर को अपने फ्लैट में पहुँच कर यात्रा की थकावट के कारण सो गई थी और मैंने जो भी देखा या एहसास किया था वह मेरी कल्पना का एक सुन्दर एवं मीठा सपना था !

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000