अब तो मेरी रोज़ गांड बजती है-2

आपका प्यारा सा सनी गांडू

पिछले भाग से आगे- अंकल मुझे चोद कर अभी निकले ही थे, मैंने वाशरूम में अपनी गांड की सफाई की, लेकिन बैडशीट अस्त-व्यस्त थी, बदन पर सिर्फ नाम की एक फ्रेंची थी, वो भी काले रंग की जिसमें मेरा गोरा जिस्म और आकर्षक दिख रहा था।

चूतड़ों पर भी फ्रेंची आधी चिपकी थी और बाक़ी गांड के चीर में फँसी थी। सोचा कुछ देर लेटकर अंकल से हुई चुदाई को याद करके आनन्द लिया जाए फिर उठ कर खाना खाने चलूँ। मुझे उल्टा लेटने की आदत है, नींद भी इसी तरह से आती है। दूसरा घोड़ी बन-बन कर मुझे अब उल्टा होना पसंद था.. हा हा ह..! सोचते-सोचते थकान से मुझे नींद आ गई और कुछ देर बाद प्रसाद मेरे कमरे में आ गया।

हुआ यह कि मैं भूल गया था कि ऑफिस में उसने कहा था कि खाना खाने एक साथ चला करेंगे। क्यूंकि मेरा घर रास्ते में था इस लिए प्रसाद मेरे यहाँ ही आ गया। मैंने रात के सिवाए कभी भी दरवाज़ा अन्दर से लॉक नहीं किया था। उसने एक-दो बार खटखटकाया होगा, पर नींद की वजह से मुझे नहीं सुनाई दिया।

उसने शायद हल्का सा धकेला होगा खुलने से वो अन्दर भी आ गया। अब मुझे यह नहीं मालूम था कि वो कितनी देर पहले वहाँ आया होगा, क्यूंकि जिस तरीके से मैं लेटा हुआ था उसे देख कर तो औरत तक की चूत में खुजली होने लगेगी, प्रसाद तो फिर भी एक धाकड़ मर्द था। मुझे वो बेइंतहा पसंद था।

उसके रूम में एक दिन मैं उसका लंड देख चुका था, उसका चौड़ा सीना देख चुका था। उसने बैड के करीब आकर आवाज़ लगाई एक-दो बार उसने आवाज़ दी तो मेरी नींद खुली। मैं एकदम सीधा हो गया। मेरे लड़की जैसे गोरे चिकने मम्मों पर मानो उसकी नज़र गड़ गई थी।

बोला- लगता है आराम कर रहे थे..! खाना खाने जा रहा था, सोचा तुझे भी लेता जाऊँ। “ओह.. तुमने कहा तो था.. लेकिन मेरे दिमाग से निकल गई।” अब मैंने भी शर्म त्याग दी, उसकी तरफ गांड कर के आराम से खड़ा हुआ।

मैंने अलमारी से टी-शर्ट निकाली और पीछे हाथ ले जाकर फ्रेंची को चूतड़ों की दरार से निकाला और बरमूडा पहना, चप्पल पहनी और बोला- यहाँ तो काफी खुले-डुले बिना टेंशन रहते होगे किसी का आना-जाना नहीं.. जैसे मर्ज़ी कपड़ों में लेटो.. ख़ास करके गर्मी के दिनों में..!

मैंने उसके दिल में चिंगारी लगा दी थी, उसने मुझे लगभग नंगा देख लिया था, नाज़ुक बदन देख लिया था, शायद वो भी रात को मुठ मारता ही मारता। ढाबे पर गए, खाना खाया था कि वहाँ मेरा पहला आशिक मिल गया।

जालंधर जाने के बाद सबसे पहला आशिक। बोला- सनी, तुझसे बहुत ज़रूरी बात करनी थी, यहाँ ही मिल गया वैसे मैं थोड़ी देर तक तेरे पास आता, एक मिनट सुनना। मैंने प्रसाद से कहा- अभी आया यार..। ढाबे के पीछे अँधेरे में लेजा कर वो मुझे चूमने लगा।

“क्या बात करनी है..!” “साले मादरचोद तेरे बिना यह लंड मरे जा रहा था..!” “तुमने खुद ही मुझे छोड़ा था।” “सॉरी जान.. और क्या काम होगा अभी तो मेरी मुठ ही मार दे हाय.. चिकने..!”

उसने अपना लंड निकाला और मुझसे चुसवाया, लेकिन मैंने कहा- देख कमरे में आ जाना। वापिसी में प्रसाद मुझे रूम तक छोड़ कर आगे निकल गया और थोड़ी देर बाद मेरा आशिक आ गया और मुझे ठोक डाला।

“हाय.. राजा आज डबल धमाका हो गया। पहले अंकल ने चोदा वो भी आज पागलपन वाले मूड में थे और अब तुम भी वैसे मूड में मिल गए।” “वो जिसके साथ ढाबे में बैठा था, लगता है नया आशिक मिल गया..?” “नहीं..यार .. वो मेरे सहकर्मी हैं, एक साथ काम करते हैं।” “तो साले अलग-अलग रहते हो..! एक साथ रहा करो एक पैसे की बचत दूसरा तुझे पति भी मिल जाएगा.. तेरे सर का साया तेरी गांड का साया..!” “तुम भी न.. अब जाओ..!”

उस रात मुझे खुलकर नींद आई, हल्का जो होकर सोया था। उसकी प्रसाद के साथ रहने वाली बात मेरे दिमाग में बैठ गई। सोचा कल ही उसके सामने प्रस्ताव रखूँगा। अभी मुझे उसके साथ ये बात करनी ही थी कि वो मुझसे पहले ही यही बात सोच चुका था। बोला- सनी यार अलग-अलग किराया देते हैं.. एक साथ ही रहते हैं ना..! एक साथ रहेंगे चूल्हा और सिलेंडर का इंतजाम कर लेंगे। मिल कर खाना बना कर खाया करेंगे।

“बात तो आपकी सही है.. वैसे मैंने भी सोचा था, लेकिन आपने पहले ही कह दिया। अकेले बोर भी होता रहता हूँ, मजे से रहेंगे। मुझे अब यकीन हो गया था कि प्रसाद ने उस दिन मुझे जिस अवस्था में देखा था उस दिन से शायद वो मेरा दीवाना हो चुका था। मैं चाहता था कि पहल उसकी तरफ से हो।

मैं जानता था कि मैं कुछ न कह कर भी ऐसी परिस्थिति पैदा किया करूँगा कि उसको मुझे एक दिन मसलना ही मसलना पड़े। कहानी जारी रहेगी। मुझे आप अपने विचार यहाँ मेल करें। [email protected]