चूची से जीजाजी की गाण्ड मारी-8

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चूची से जीजाजी की गाण्ड मारी-8 अलीशा सुधा मैंने उन्हें छेड़ते हुए कहा- जीजाजी को आज तीन गाड़ी चलानी हैं इसी लिए इस गाड़ी को नहीं चलाना चाहते। और मैं ड्राइवर सीट पर बैठ गई, मेरे बगल में जीजू और चमेली को जीजाजी ने आगे ही बुला कर अपने बगल में बैठा लिया हम लोग कामिनी के घर के लिए चल पड़े, जो थोड़ी ही दूर था। रास्ते में जीजाजी कभी मेरी चूची दबाते तो कभी चमेली की। मैं ड्राइव कर रही थी इस लिए उन्हें रोक भी नहीं पा रही थी। मैंने कहा- जीजाजी क्यों बेताब हो रहे हैं? वहाँ चल कर यही सब तो करना है, मुझे गाड़ी चलाने दीजिए, नहीं तो कुछ हो जाएगा..! जीजाजी अब चमेली की तरफ़ हो गए और उसकी चूची से खेलने लगे और चमेली जीजाजी की जिप खोलकर लण्ड सहलाने लगी। फिर झुककर लण्ड मुँह में ले लिया यह देख कर मैं चमेली को डांटते हुए बोली- अरे बुर-चोदी छिनाल, यह सब क्या कर रही है..! कामिनी का घर आने वाला है। चमेली जो अब तक जीजाजी के नशे में खो गई थी, जागी और ये देख कर कि कामिनी का घर आने वाला है। जीजाजी के खड़े लण्ड को किसी तरह ठेल कर पैन्ट के अन्दर किया और जिप लगा दी। जीजाजी ने भी उसकी बुर पर से अपना हाथ हटा लिया। जब हम लोग कामिनी के घर पहुँचे तो चमेली ने उतर कर मेन-गेट खोला मैंने पोर्टिको में गाड़ी पार्क की, तब तक कामिनी और उसकी माँ दरवाजा खोल कर बाहर आ गईं। जीजाजी कामिनी की माँ के पैर छूने के लिए झुके, कामिनी की माँ बोली- नहीं बेटा..! हम लोग दामाद से पैर नहीं छुवाते, आओ अन्दर आओ..! हम लोग अन्दर ड्राइंगरूम में आ गए, कामिनी की माँ रेखा और घर वालों का हाल-चाल लेने के बाद आज के लिए अपनी मजबूरी बताते हुए कहा- बबुआ जी आज यहीं रुक जाना, कामिनी काफ़ी समझदार है, वो आपका ध्यान रखेगी, कल दोपहर दो बजे तक मैं आ जाऊँगी। फिर कल तो रविवार है, ऑफिस तो जाना नहीं है, मैं आ जाऊँगी, तभी आप जाईएगा..! मुझे ये सब अच्छा तो नहीं लग रहा है, पर मजबूरी है जाना तो पड़ेगा ही।” जीजाजी बोले- मम्मी जी किसके साथ जाएँगी, कहिए तो मैं आपको मामाजी के यहाँ छोड़ दूँ..! कामिनी की माँ बोलीं- नहीं बेटा, चंदर (मामा जी) लेने आते ही होंगे। तभी मामा जी की कार का हॉर्न बाहर बजा, कामिनी बोली- लो मामा जी आ भी गए। वह बाहर गई और आकर अपनी माँ से बोली- मामा जी बहुत जल्दी में है, अन्दर नहीं आ रहे हैं, कहते हैं मम्मी को लेकर जल्दी आ जाओ। उसकी माँ बोलीं- बेटा तुम लोग बैठो मैं चलती हूँ कल मिलूँगी। कामिनी मम्मी को मामा की गाड़ी पर बिठा कर और मैं गेट पर ताला और घर का मुख्य-दरवाजा बंद करके जब अन्दर आई तो मुझसे लिपट गई और बोली- हुर्रे..! आज की रात सुधा के नाम..! फिर जीजाजी का हाथ पकड़ कर बोली- आपका ‘दरबार’ ऊपर हॉल में लगेगा और आपका आरामगाह भी ऊपर ही है जहांपनाह..! ऊपर हॉल में पूरी व्यवस्था है डिनर भी वहीं करेंगे, मम्मी कल दोपहर लंच के बाद आएँगी, इसलिए जल्दी उठने का झंझट नहीं है, हॉल में टीवी, सीडी प्लेयर लगा है और टॅन्स (प्लेयिंग-कार्ड) खेलने के लिए कालीन पर गद्दा बिछा है।” जीजाजी बोले- टॅन्स…! “मम्मी ने तो टॅन्स के लिए ही बिछवाया था, लेकिन आप जो ही खेलना चाहें खेलिएगा, वैसे आपका बेड भी बहुत बड़ा है…!” कामिनी मुझे आँख मारती हुई बोली। चमेली से ना रहा गया बोली- जीजाजी को तो बस एक खेल ही पसंद है… ‘खाट-कबड्डी’..! चमेली आगे कुछ कहती मैंने उसे रोका- चुप शैतान की बच्ची ! बस आगे और नहीं..! जीजाजी बोले- अब ऊपर चला जाए..! कामिनी सब को रोकती हुई बोली- नहीं अभी नहीं, नाश्ता करने के बाद, लेकिन दरबार में चलने का एक कायदा है शहज़ादे..! “वो क्या? हुश्न की मल्लिका..!” जीजाजी उसी के सुर में बोले। कामिनी बोली- दरबार में ज़्यादा से ज़्यादा एक कपड़ा पहना जा सकता है..! “और कम से कम..! चलो हम सब कम से कम कपड़े ही पहन लेते हैं।” जीजाजी चुहल करते हुए बोले- चलो पहले कपड़े ही बदल लेते हैं। सब लोग ड्रेसिंग रूम में आ गए। कामिनी बोली- सब लोग अपने-अपने ड्रेस उतार कर ठीक से हैंगर करेंगे, फिर मैं शाही कपड़े पहनूँगी..!” चमेली बोली- मुझे भी उतारने है क्या? “क्यों ?.. क्या तू दरबार के कायदे से अलग है क्या?” और हम दोनों ने सबसे पहले उसी के कपड़े उतार कर उसे नंगी कर दिया, फिर उसने हम दोनों के कपड़े एक-एक कर उतरे और हैंगर कर दिए और जीजाजी की तरफ देख कर कहा- अब हम लोग कम से कम कपड़े में हैं। जीजाजी की नज़र कामिनी पर थी। कामिनी मुस्करा कर जीजाजी के पास आई और बोली- शहजादे अब आप भी मादरजात कपड़े में आ जाइए न..! और उसने उनके कपड़े उतारने शुरू किए। चमेली मेरे पास ही खड़ी थी, मुझसे धीरे से बोली- सुधा दीदी, कामिनी दीदी कैसी हैं आते ही मुँह से गाली निकालने लगीं मादरचोद कपड़े…! यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! मैंने उसे समझाया- अरे पगली..! मादरचोद नहीं मादरजात कपड़ा कहा, जिसका मतलब है कि जब माँ के पेट से निकले थे उस समय जो कपड़े पहने थे। उस कपड़े में आ जाइए ! “पेट का बच्चा और कपड़ा?” “अरे बात वही है बच्चा नंगा पैदा होता है और उसी तरह आप भी नंगे हो जाओ, जैसे की तू खड़ी है मादरजात नंगी..!” “ओह दीदी, पढ़े-लिखों की बातें…!” चमेली की बात पर सब लोग खूब हँसे। चमेली अपनी बात पर सकुचा गई। कामिनी ने जीजाजी को नंगा करके उनके कपड़े हैंगर करने के लिए चमेली को दे दिए और खुद घुटनों के बल बैठ कर जीजाजी के लण्ड को चूम लिया। मैंने पूछा- अरी यह क्या कर रही है क्या यहीं…! “अरे नहीं, यह नंगे दरबार के अभिवादन करने का तरीका है; चलो तुम दोनों भी अभिवादन करो..!” चमेली फिर बोली- कामिनी बड़ा मस्त खेल खेल रही है..! मैंने उसे फिर टोका- गुस्ताख..! तू फिर बोली, अब चल जीजू का लण्ड चूम..! “दीदी आप चूमने को कहती हैं, कहिए तो मुँह में लेकर झड़ा दूँ?” हम सब फिर हँस पड़े। चमेली और मैंने दरबार के नियम के अनुसार कामिनी की तरह लण्ड को चूम कर अभिवादन किया, फिर जीजाजी ने कामिनी की चूचियों को चूमा। मैंने कहा- फाउल..! शरीर के बीच के भाग को चूम कर अभिवादन करना है। जीजाजी घुटनों के बल बैठ कर कामिनी की बुर को चूमा और उसकी टीट को जीभ से सहला दिया। उसकी बुर पाव-रोटी की तरह उभारदार थी और उसने अपनी बुर को बड़ी सफाई से शेव किया था। बुर के ऊपरी भाग में बाल की एक हल्की खड़ी लाइन छोड़ दिया था, जिससे उसकी बुर बहुत ही आकर्षक और मादक लग रही थी। फिर मेरी बारी आई, जीजाजी घुटनों के बल बैठ कर बड़े सलीके से बुर को चूम कर अभिवादन किया, पर नज़रें बुर पर जमी थीं। अब चमेली की बारी थी। जीजाजी ने उसके हल्के रोएँ वाली बुर को ऊँगलियों से थोड़ा फैलाया, फिर टीट को होंठों से पकड़ कर थोड़ा चूसा और उसके चूतड़ को सहला कर बोले- झाड़ दूँ..! चमेली शरमा गई और सब लोग ज़ोर से हँस पड़े। इसके बाद कामिनी ने एक-एक पारदर्शक गाउन (नाईटी) हम लोगों को पहना दिया, जो आगे की तरफ से खुला था। इस कपड़े से नग्नता और उभर आई। कामिनी बोली- अब हम सब नाश्ता करने के बाद ऊपर के लिए प्रस्थान करेंगे। जीजाजी बादशाह की अंदाज में बोले- नाश्ता, दरबार लगाने के बाद ऊपर किया जाएगा। “जो हुक्म बादशाह सलामत, कनीज ऊपर ले चलने के लिए हाजिर है।” हम तीनों सीधी पर खड़ी हो गईं और जीजाजी वाजिदअली शाह की तरह चूचियाँ पकड़-पकड़ कर सीढ़ियाँ चढ़ने लगे। ऊपर पहुँच कर जीजाजी का लण्ड तन कर हुश्न को सलामी देने लगा। जीजाजी बोले- आज इस हुस्न के दरबार में शैम्पेन खोला जाए। कामिनी बोली- शैम्पेन हाजिर किया जाए..! चमेली को पता था कि जीजाजी के बैग में दारू की बोतलें हैं, वो नीचे गई और उनका पूरा बैग ही उठा लाई। जीजाजी उसमें से शैम्पेन की बोतल निकली और हिला कर खोली तो हम तीनों शैम्पेन की बौछार से भीग गए। जीजाजी ने चार प्याली में शैम्पेन डाली और हम लोगों ने अपनी-अपनी प्याली उठा कर चियर्स कर शैम्पेन की चुस्की ली और फिर उसे टेबल पर रख दी। शैम्पेन से भीग गए एक मात्र कपड़े को भी उतार दिया, अब हम लोग पूरी तरह नंगे हो गए। चमेली बोली- लो जीजाजी, हम लोग मादरचोद नंगे हो गए..! अब की बार उसने यह बात हँसने के लिए ही कही थी और हम सब ठहाका मार कर हँसने लगे। मैंने हँसी पर ब्रेक लगाते हुए कहा- अरे… गुस्ताख लड़की..! तू दरबार में गाली बकती है, जहांपनाह..! इसे सज़ा दी जाए। जीजाजी सज़ा सुनते हुए बोले- आज इसकी चुदाई नहीं होगी; यह केवल चुदाई देखेगी।” “जहाँपनाह..! मौत की सज़ा दे दीजिए पर इस सज़ा को ना दीजिए; मैं तो जीते ज़ी मर जाऊँगी..!” चमेली ने अपनी भूमिका में जान डालते हुए बड़े नाटकीय ढंग से इस बात को कहा। कामिनी ने दरबार से फरियाद की, “रहम… रहम हो सरकार … कनीज अब यह ग़लती नहीं करेगी” “ठीक है, इसकी सज़ा माफ़ की जाती है पर अब यह ग़लती बार-बार कर हमारा मनोरंजन करती रहेगी, मैं इसकी अदाओं से खुश हुआ..!” इसके बाद जीजाजी थोड़ी शैम्पेन कामिनी के मम्मे पर छलका कर उसे चाटने लगे। मैंने अपने शैम्पेन की प्याली में जीजाजी के लौड़े को पकड़ कर डुबो दिया, फिर उसे अपने मुँह में ले लिया। कामिनी की चूचियों को चाटने के बाद चमेली की चूचियों को जीजाजी ने उसी तरह चूसा। फिर मुझे टेबल पर लिटा कर मेरी बुर पर बोतल से शैम्पेन डाल कर मेरी चूत को चाटने लगे। कामिनी मेरी चूचियों को गीला कर चाट रही थी और चमेली के मुँह में उसका मनपसंद लौड़ा था। हम सब इन क्रिया-कलापों से काफ़ी गरम हो गए। अपनी-अपनी तरह से शैम्पेन पीकर हम चारों ने मिलकर उसे खत्म कर दिया, जिसका हल्का सुरूर आने लगा था। जीजाजी बोले- चलो अब एक बाजी हो जाए…! प्रिय पाठको, आपकी मदमस्त सुधा की रसभरी कहानी जारी है। आपके ईमेल की प्रतीक्षा में आपकी सुधा बैठी है। [email protected]

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