एक दिल चार राहें -5

इस इरोटिक लव मेकिंग स्टोरी में मैंने बताया है कि मैंने अपनी देसी कामवाली को साड़ी पहनाने के चक्कर में नंगी किया फिर उसके बदन को छू छू कर मजा लिया.

मैंने उसके गले और उरोजों की घाटी में भी स्प्रे कर दिया. फिर उसकी सु-सु के चीरे वाली जगह भी 2-3 बार स्प्रे करते हुए उसकी जाँघों पर भी फुहार छोड़कर अपना हाथ 2-3 बार उसकी मखमली जाँघों पर हाथ फिराया।

सानिया बोली तो कुछ नहीं … पर उसका सारा शरीर रोमांच और लाज के मारे के लरजने लगा था। मैंने ध्यान दिया उसकी पेंटी सु-सु वाली जगह पर कुछ गीली सी हो गई थी। मेरा मन तो उस पर चुम्बन लेने को करने लगा था और लंड तो झटके पर झटके खाने लगा था।

सानिया भी कनखियों से मेरे ठुमकते लंड को देखे जा रही थी और मेरी इन हरकतों पर वह मंद-मंद मुस्कुराते हुए ठुमकने सी लगी थी।

मैंने पेटीकोट उठाया और उसे चौड़ा करके नीचे फर्श रखा और मैं भी वहीं पर बैठ गया। अब मैंने सानिया को अपने पैर पेटीकोट के घेरे में रखने को कहा। सानिया ने झिझकते हुए से अपना एक पैर उस घेरे में रख दिया। ऐसा करते समय उसका हाथ उसकी सु-सु से हट गया।

हे भगवान्! मोटे पपोटों और गहरे चीरे वाली सु-सु की पूरा जोग्राफिया (रूप रेखा) उस 2 इंच चौड़ी पट्टी वाली पेंटी में साफ़ दिखने लगा था। उसकी कुंवारी चूत की खुशबू से तो जैसे पूरा बेड रूम ही महकने लगा था।

याल्लाह … उस दो इंच पट्टी के दोनों ओर हल्के-हल्के रेशमी घुंघराले बाल भी नज़र आ रहे थे। इन मखमली, रेशमी, मुलायम रेशों को झांट कहना तो सरासर बेमानी होगा। मुझे लगा मैं गश खाकर गिर ही पडूंगा।

गहरी नाभि के नीचे थोड़ा उभरा हुआ सा पेडू और नाभि के नीचे हल्के रोयों की हल्की सी लकीर तो ऐसे लग रही थी जैसे कोई जहर बुझी कटार हो और मेरे कलेजे को चीर ही देगी। मैं तो फटी आँखों से अपने होंठों पर जीभ फिराता ही रह गया।

सानिया का दूसरा पैर अभी पेटीकोट के घेरे के बाहर ही था। मैंने उसकी जाँघों को स्पर्श करते हुए थोड़ा सा अपनी ओर खींचा। एक मखमली सा अहसास मेरे पूरे शरीर को रोमांच से भरने लगा।

सानिया का शरीर भी लरजने सा लगा था। वह बोली तो कुछ नहीं पर उसके मन में चल रही हलचल को उसकी कांपती हुई नाजुक जाँघों और पिंडलियों के खड़े रोयें सब कुछ बयाँ कर रहे थे।

मैंने बहाने से उसके नितम्बों और जाँघों पर कई बार हाथों का स्पर्श किया। मैं चाह रहा था काश वक़्त रुक जाए और मैं इन संगमरमरी पुष्ट जाँघों और नितम्बों को बस छूता और मसलता रहूँ। हे भगवान्! इन दो-तीन महीनों में उसके नितम्ब कितने सुडौल लगने लगे हैं, मैं तो क्या पूरी कायनात ही इसकी दीवानी हो जाए।

अब धीरे-धीरे मैंने पेटीकोट को ऊपर करना चालू किया। मेरे पास इस समय उसकी जाँघों और नितम्बों को छूने का पूरा मौक़ा था भला मैं उसे गंवाना कैसे मंजूर करता। जैसे ही मेरे हाथ उसके नितम्बों की खाई से टकराए तो सानिया उईईई ईईई … करती हुई थोड़ा आगे की ओर झुक गई।

“क … क्या हुआ?” “गुदगुदी हो लही है.” “हा … हा.. हा … तुम तो बोल रही थी तुम्हें गुदगुदी नहीं होती?” “इस्स्स्स स्स्स्स …” ये अदा से शर्माना तो मेरी जान ही ले लेगा।

मेरा मन तो बार-बार उसके कसे हुए नितम्बों को छूने और सहलाने को कर रहा था पर अब तो पेटीकोट का नाड़ा बांधने की मजबूरी थी। फिर भी मैंने एक बार उसके नितम्बों पर थपकी लगाते हुए कहा- लाओ अब ब्लाउज भी पहना देता हूँ।

मैंने ब्लाउज अपने हाथों में लेकर उसकी बाहें सानिया की ओर कर दी। सानिया ने दोनों हाथों को ब्लाउज की बांहों में डालने के बाद घुमकर अपनी पीठ मेरी ओर कर दी ताकि मैं उसके बटन आराम से बंद कर सकूं। आह … मात्र एक डोरी में बंधी ब्रा के नीचे लगभग नंगी पीठ मेरी आँखों के सामने थी। उसकी चिकनी पीठ और कन्धों की चौड़ाई देखकर तो बरबस मेरे होठ उसे चूमने के लिए फड़फड़ाने लगे थे। मैंने उसके ब्लाउज को दोनों ओर से पकड़कर इस तरह खींचा कि सानिया को लगे कि शायद यह ब्लाउज थोड़ा तंग है।

अब आप इतने भोले भी नहीं हैं कि मेरा ऐसा करने के पीछे की मनसा ना जानते हों। आपने सही सोचा मैं उसके उरोजों की नाजुकी एकबार फिर से महसूस कर लेना चाहता था।

“अरे यह ब्लाउज तो थोड़ा तंग लगता है इसे थोड़ा एडजस्ट करना पड़ेगा.” कहते हुए मैंने ब्लाउज के अन्दर से हाथ डालकर ब्रा के ऊपर से ही सानिया के एक उरोज को पकड़ लिया और होले-होले उसे दबाते हुए एडजस्ट करने लगा।

सानिया तो शर्म और गुदगुदी के कारण उछलने ही लगी थी। हे भगवान् अब तो उसके गोल-गोल उरोज संतरे जैसे हो चले थे। उसकी छाती की धड़कन तो साफ़ सुनाई देने लगी थी।

मैंने दोनों उरोजों को बारी-बारी सेट किया और इस बहाने उसके उरोजों को मसलता भी रहा। सानिया रोमांच और गुद्गुदी के मारे हंसने लगी थी। मुझे लगता है उसे मेरी मनसा का अहसास तो हो गया है।

हे लिंग देव! तेरी जय हो!

अब तो ब्लाउज के हुक लगा देने की मजबूरी थी। मैंने उसके ब्लाउज के हुक बंद कर दिए और फिर पीठ पर हाथ फिराते हुए कहा- लो मैडम, अब आपको साड़ी पहनाते हैं. पेटीकोट और ब्लाउज पहनने के बाद सानिया थोड़ा कम्फर्ट (सुविधाजनक) महसूस करने लगी थी।

मैंने पास में रखी साड़ी उठाई और उसके एक किनारे को पेटीकोट के आगे दबा कर अपने हाथों से साड़ी की चुन्नट बनाने लगा। साड़ी पहनाना कोई मुश्किल काम नहीं था। इस बहाने मैंने उसके नितम्बों और पेट को अच्छे से छुआ और मसला। सानू जान को मेरे इस अतिक्रमण पर कोई ऐतराज़ भला कैसे हो सकता था।

साड़ी पहनाने के बाद मैंने गौर से सानिया के बदन को देखा। “यार सानू जान?” “हम्म?” सानिया ने मेरी ओर आश्चर्य से देखा “एक कमी रह गई?” “क … क्या?” “काजल का एक टीका लगा देता हूँ कहीं नज़र ना लग जाए।“

पहले तो सानिया के कुछ समझ ही नहीं आया पर बाद में वह मुस्कुराने लगी। अब मैंने ड्रेसिंग टेबल से काजल वाली पेंसिल उठाई और उसकी ठोड़ी पर एक छोटा सा तिल बना दिया। अब तो सानू जान रूपगर्विता ही बन गई थी। आपको याद होगा गौरी की ठोड़ी पर भी ऐसा ही प्राकृतिक रूप से तिल बना हुआ था।

“लो भई सानूजान! अब तुम शीशे के सामने खड़ी होकर अपने हुस्न की खूबसूरती को तसल्ली से देखो और अगर मेरी कारीगरी पसंद आए तो इस नाचीज का भी कम से कम शुक्रिया तो जरूर अदा कर देना।” मैंने हंसते हुए कहा।

सानिया अब रूपगर्विता बनी शीशे के साने खड़ी होकर अपने आप को देखने लगी। उसके घूम कर अपने नितम्बों और कमर को भी देखा और फिर से अपने चहरे को देखने लगी। उसकी आँखों से छलकती ख़ुशी और रोमांच तो इस समय सातवें आसमान पर था।

मेरा लंड तो बेकाबू घोड़ा ही बना हिनहिनाने लगा था। मैंने उसे पायजामें एडजस्ट करते हुए कहा- सानू तुम कहो तो इन लम्हों को हम यादगार बना सकते हैं? “क … क्या मतलब? कैसे?” सानिया ने हैरानी से मेरी ओर देखा। उसके चहरे पर कुछ उलझन के से भाव आ जा रहे थे।

“अरे तुम इन कपड़ों में कितनी खूबसूरत लग रही ही जैसे कोई दुल्हन हो? क्यों ना इन कपड़ों में तुम्हारी कुछ फोटो मोबाइल में उतार लूं फिर हम लोग बाद में भी तुम्हारी इन फोटोज को देखते रहेंगे.” “ओह …” “ठीक है ना?” “हओ” सानिया ने मुस्कुराते हुए कहा।

मुझे नहीं लगता कि वह इतनी भोली होगी कि उसे मेरे प्रणय निवेदन का अंदाजा ना हो रहा हो।

अब मैंने अपना मोबाइल उठाया और सानिया को पोज बनाने को कहा। उसके बाद अलग-अलग पोज में उसकी बहुत सी फोटो उतारी। उसकी एक फोटो तो होठों को गोल करके सीटी बजाने अंदाज़ में जब उतारी तो सानिया खिलखिलाकर हंसने लगी थी।

और उसके बाद तो जैसे वह बहुत ही चुलबुली सी हो गई और बाद में तो उसने चुम्बन देने के अंदाज़ में और आँख मारने के अंदाज़ में बहुत सी फोटो उतारवा लेने दी थी। और फिर उसके बालों को जुड़े को खोल कर उसके चहरे पर बाल चहरे और कन्धों पर फैलाकर भी बहुत सी पिक्स ले ली।

अब सेल्फी लेने की बारी थी। पहले तो मैंने उसे साथ में खड़ा करके सेल्फी ली और बाद में उसकी कमर में हाथ डालकर थोड़ा सा झुकाते हुए, उसे सीने से लगाकर, अपने गले में उसकी बाहें डलवाकर और अपनी गोद में बैठाकर बहुत सी फोटो उतार ली।

दोस्तो! आपको यह सब बातें फजूल सी लग रही होंगी। पर यह सब करने का मतलब बस एक ही था कि मैं सानिया को अपने साथ सहज बना लेना चाहता था। मेरा अंदाज़ा है उसे मेरी इन सब बातों से मेरी मनसा का अंदाज़ा भली भांति हो गया था। अब तो बस थोड़ा सा प्रयास और पहल करने की बारी थी सानूजान तो दिलबर जान बनने को उतारू हो जाएगी।

“लो भाई सानू मैडम आपको साड़ी भी पहनना सिखा दिया और पिक्स भी उतार ली। पर तुम तो बड़ी ही कंजूस और मतलबी निकली?” मैंने बेड पर बैठते हुए कहा। “मैंने क्या किया?” सानिया ने घबराते हुए पूछा। सानिया के तो कुछ भी समझ नहीं आया वह तो गूंगी गुड़िया की तरह मेरी ओर देखती ही रह गई।

“अरे यार … इतनी मेहनत करने के बाद कम से कम एक थैंक यू तो बनता ही है?” मैंने हंसते हुए कहा तो सानिया भी खिलखिलाकर हंस पड़ी। “थैंक यू सर?” उसने जिस प्रकार अपने पलकों को स्लोमोशन में झपकाते हुए थैंक यू बोला था ऐसा लग रहा अता जैसे बारजे से सुबह की धूप उतर रही हो।

“बस … कोरी थैंक यू?” “तो? आप बोलो?” “यार इन कपड़ों में तुम इतनी खूबसूरत लग रही हो. मेरी आँखें तो तुम्हारे इस रूप को देखकर चुंधिया ही गई हैं।” मैंने गला खंखारते हुए कहा।

इस्स्स्सस … हाय ये अदा से शर्माना तो मेरी जान ही ले लेगा। मुझे लगता है अब सानिया मिर्जा को सानू जान बनाने का सही वक़्त आ गया है।

“सानू … मेरी एक इच्छा पूरी कर सकती हो क्या?” मैंने कह तो दिया था पर मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था। पता नहीं सानिया क्या प्रतिक्रया करेगी।

मैंने महसूस किया सानिया अचानक गंभीर सी हो गई है। उसके चहरे पर असमंजस के कई भाव आ जा रहे थे।

“क … क्या?” मुझे लगता है उसे मेरी मनसा का भान पूरी तरह हो चुका है और वह अपने आप को इस इरोटिक लव मेकिंग के लिए तैयार करने की कोशिश कर रही है। पर प्रत्यक्ष रूप से वह अपने आप को अनजान दिखाने का अभिनय (नाटक) कर रही है। “यार तुम बुरा तो नहीं मान जाओगी?” “किच्च …” “वो … वो … सानू … यार … तुम्हारे होंठ बहुत खूबसूरत हैं …” कहते हुए मेरी आवाज काँप सी रही थी। पता नहीं सानिया क्या प्रतिक्रिया करेगी।

वह कुछ सोचती जा रही थी और मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था।

इतने में मोबाइल की घंटी गनगना उठी। लग गए लौड़े!!!

भेनचोद ये किस्मत भी हर समय लौड़े जैसे हाथ में ही लिए फिरती है। ऐन टाइम पर ऐसा धोखा देती है कि झांट सुलग जाते हैं। पता नहीं इस समय किसका फोन है?

मैं मोबाइल की ओर लपका। ओह … यह तो मधुर का फोन था। पता नहीं क्या बात है। साली यह मधुर भी खलनायक की तरह ऐसे ही मौके पर एंट्री मारने की फिराक में रहती है।

“हेलो … हाँ मधुर!” “क्या कर रहे थे? इतनी देर से मोबाइल की घंटी बज रही थी उठाया क्यों नहीं?” “ओह … सॉरी … वो … मैं रसोई में चाय बना रहा था.”

“वो सानिया नहीं आई क्या?” “अरे यार वो सफाई आदि करके चली गई।” “नाश्ता नहीं बनाकर गई क्या?” “हाँ … हाँ वह नाश्ता बनाकर गई है। मैं सोच रहा था नाश्ते के साथ चाय भी बना लूं। ओह … तुम बोलो सब ठीक है ना?”

“हाँ वो.. गौरी की … मेरा मतलब है मुझे सोनोग्राफी करवानी थी और कुछ पैसों की जरूरत है.” “हम्म …”

“तुम मेरे बैंक अकाउंट में बीस हजार रुपये डलवा दो प्लीज!” “ओह हाँ ठीक है मैं व्यवस्था कर दूंगा।” “थोड़ा अर्जेंट है।” “ओह …”

“क्या हुआ?” “ना … कुछ नहीं मैं अभी व्यवस्था करता हूँ.” “वो गुलाबो को भी कुछ पैसे देने थे.”

“भेन चुद गई साली की …” मैंने बड़बड़ाते हुए कहा। “क्या बोल रहे हो?” “ओह … कुछ नहीं … हाँ ठीक है कितने पैसे देने हैं?” “एक बार उसे पाँच हज़ार दे देना।“ “ठीक है आज तो सानिया चली गई है कल आएगी तब उसके हाथ भिजवा दूंगा.”

“नहीं जान, उसे थोड़ी जल्दी है मैंने उसे फोन पर बोल दिया है वह यहीं आ रही है उसे पैसे दे देना प्लीज!” “ओह … हाँ … ठीक है.” “ओके लव अपना ख्याल रखना और हाँ … खाना पीना ठीक से करते रहना तुम बहुत आलसी हो.” “ठ … ठीक है तुम भी अपना ख्याल रखना. और मौसाजी की तबियत अब कैसी है?”

“हाँ ताऊजी की तबियत अब ठीक है पर डॉक्टर आराम का बोल रहे हैं। ताईजी तो बोलती रहती हैं प्रेम को भी यही बुला लो नौकरी की क्या जरूरत है। यहाँ का काम संभाल ले।” “हाँ वो सब बाद में देखते हैं। तुम चिंता मत करो. मैं अभी तुम्हारे बैंक खाते में पैसे डलवा देता हूँ।” “थैंक यू माय लव। बाय।” कहते हुए मधुर ने फोन काट दिया। सारे मूड की भेन चुद गई।

“दीदी क्या बोल लहे थे? सब ठीक है ना?” सानिया ने पूछा. “लौड़े लग गए …” “क … क्या मतलब? कुछ गड़बड़ हो गई क्या?” सानिया ने घबराकर पूछा। “अरे नहीं … मेरा मतलब … मुझे … ओह … सानिया वो … अभी तुम्हारी मम्मी आने वाली है और मैंने मधुर से बोल दिया कि तुम तो काम करके चली गई हो.” “ओह … पर मम्मी यहाँ क्यों आ रही है? मैंने तो कुछ नहीं किया है?” “अरे ऐसा कुछ नहीं है … उसे कुछ पैसों की जरूरत है तो लेने आ रही है.” “अब?” “तुम अभी तो घर जाओ और … हाँ … वो बाइक सिखाने वाला काम आज नहीं हो पायेगा।” “ओह …” सानिया ने बुझे मन से कहा।

“अरे मेरी जान, तुम उदास मत होओ 2-3 दिन बाद दशहरा वाले दिन छुट्टी है. उस दिन हम दोनों पूरे दिन मज़ा करेंगे. और तुम्हें बाइक भी चलना सिखा दूंगा।” “हओ … ठीक है.” सानिया ने मुस्कुराते हुए कहा। “लो ये 100 रुपये ले जाओ तुम्हें जो पसंद हो खा पी लेना.” मैंने उसे रुपये पकड़ाते हुए कहा और बेड रूम से बाहर आ गया।

थोड़ी देर में सानिया कपड़े बदलकर अपने घर चली गई।

साली इस मधुर ने तो पूरे प्रोग्राम की ही वाट लगा दी। आज कितना बढ़िया मौक़ा था। सानिया जान बस सानू जान बनने के लिए तैयार होने ही वाली थी कि मधुर ने भांजी मार दी। अब क्या हो सकता है!

थोड़ी देर बाद गुलाबो आ गई और पैसे लेकर चली गई। उसने ना तो गौरी के बारे में कुछ पूछा और ना ही सानिया के बारे में।

मैंने मधुर के बैंक खाते में रकम ट्रान्सफर कर दी।

सानिया के बिना पूरा घर ही जैसे बेनूर सा लगाने लगा था। पूरे मूड की ऐसी तैसी हो गई थी। इस आपा-धापी में 1 बज गया था।

मैं बेड रूम में चला आया। सानिया ने साड़ी, ब्लाउज, पेटीकोट वगेरह समेट कर रख दिए थे। मेरा अंदाजा था सानिया ब्रा पेंटी पहनकर गई होगी. पर ब्रा पेंटी भी तह लगाकर कपड़ों के ऊपर रखी दिखाई दे रही थी।

मैंने पहले उसकी पेंटी को उठाकर देखा। अनायास मेरा हाथ उस जगह पर चला गया जहां उसकी सु-सु लगी होगी। याल्ला … उस जगह पर तो कुछ गीलापन सा लग रहा था. शायद उत्तेजना के मारे उसकी उसकी सु-सु से निकला का रस उस पर लग गया था।

मैंने उसे सूंघ कर देखा एक भीनी सी मादक खुशबू मेरे नथूनों में समा गई। काश! आज 10-15 मिनट का समय और मिल जाता तो सानिया के कुंवारे बदन की खुशबू और नाजुकी दोनों का भरपूर आनंद मिल जाता।

मेरा लंड झटके पर झटके खाने लगा था। मैंने अपना पायजामा निकाल दिया और उस पेंटी को अपने लंड के ऊपर लपेट कर मसलने लगा।

दूसरे हाथ में मैंने पास में रखा ब्लाउज उठाया और उसकी बगलों वाले भाग को सूंघ कर देखा। आह उसकी बगलों से आती सानिया के कमसिन बदन की कुंवारी, मादक और तीखी गंध ने तो मुझे बेहाल ही कर दिया था।

मेरे दिल-ओ-दिमाग में तो इस समय बस सानिया का कमसिन बदन ही छाया हुआ था। आज बहुत दिनों के बाद मुट्ठ लगाई थी।

कई बार तो मन में ख्याल आता है साली उस नताशा नामक विस्फोटक पदार्थ को ही किसी दिन यहाँ बुला लूं। जिस प्रकार वह मेरे साथ घुल मिलकर बातें करती है और मेरा ख़याल रखती है मुझे पूरा यकीन है वो तो बस मेरी एक पहल का इंतज़ार कर रही है झट से मेरी बांहों में आ जाएगी। मुट्ठ लगाते समय मेरे जेहन में तो बस उसके गोल मटोल नितम्ब ही घूम रहे थे।

अब मैंने भी सोच लिया है अगर मौक़ा मिला तो एक बार नताशा नामक मुजसम्मे के उस जन्नत के दूसरे दरवाजे (गांड) का मज़ा जरूर लूंगा। उसकी गांड तो एकदम झकास कुंवारी होगी। उसकी गांड का छेद तो कमाल का होगा। अगर कोरे कागज़ के बीच में एक छोटा सा छेद करके अपना लंड उसमें डालते हुए आगे सरकाओ तो जिस प्रकार चर … रररर्र की आवाज आती है अगर उसकी गांड में लंड डाला जाए तो ठीक वैसी ही आवाज उसकी गांड से भी जरूर आएगी।

ये साली नताशा भी नताशा नहीं पूरी बोतल का नशा लगती है।

दोस्तो! अब मैं मुट्ठ लगाने का विस्तार से वर्णन करके आप लोगों का समय बर्बाद नहीं करना चाहता। मैंने अपना कुलबुलाता लावा उस पेंटी में निकाल दिया और उसे बाथरुम में फेंक दिया। आज कल हल्की गुलाबी ठण्ड शुरू हो चुकी है मैं फिर चादर ओढ़ कर लेट गया।

अब तो बस कल की सुबह का इंतज़ार है जो सानिया रूपी सुरमई उजाले के रूप में मेरी आँखों को तृप्त करने वाली है।

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इरोटिक लव मेकिंग स्टोरी जारी रहेगी.