विजय हैलो दोस्तो, मैं विजय हूँ। अन्तर्वासना की कहानियाँ पढ़ते-पढ़ते मैंने जूजा की लिखी हुई कहानियां पढ़ीं और उनसे फेसबुक पर जुड़ गया. फिर मैंने जूजा जी से अपनी कहानी लिखने का निवेदन किया तो उन्होंने मेरी इस कहानी को शब्दों में बाँध कर मुझे आप सभी तक मेरी इस सच्ची घटना को पहुँचाने का काम किया है। आप सभी इस रसीली घटना का आनन्द लें। मैं पिछले साल मैं सीमांचल एक्सप्रेस से जोगबनी से मुगलसराय आ रहा था। ट्रेन के एसी-सेकण्ड में मेरी 36 नम्बर की बर्थ रिजर्व थी, रात को खाना आदि खा कर मैं अपनी बर्थ पर सो गया। रास्ते में पूर्णिया से एक पति-पत्नी चढ़े, जिनकी एक बर्थ मेरे बगल में थी और दूसरी 5 नंबर पर थी। वो चाहते थे कि दोनों साथ में रहें, पर कोई सीट बदलने को तैयार नहीं था। वो मुझसे पूछने के लिए आए, अब चूंकि मैं सो चुका था फिर भी उन्होंने मुझे जगाया और मुझसे क्षमा मांगते हुए अपनी समस्या बताते हुए मुझसे मदद की गुहार लगाई। मुझे उनकी समस्या वाजिब लगी और मैंने उनसे दूसरी बर्थ का नम्बर लिया और मैं वहाँ चला गया। वहाँ पर एक नेपालिन भाभी बैठी थीं उनको भी शायद नींद नहीं आ रही थी, वे बैठी थीं। मेरी नींद भी अब खुल चुकी थी, सो मैंने उनसे ‘हैलो’ बोला प्रत्युतर में उन्होंने जरा खुल कर मुस्कुरा कर मेरी ‘हैलो’ का जबाब दिया। मुझे थोड़ा अटपटा तो लगा, पर मस्त गदराया माल देख कर मेरा बाबूलाल भी उठ-उठ कर ‘हैलो-हैलो’ करने लगा। उसने बड़े गौर से मेरे बाबूलाल की उठती-गिरती हरकत देख भी ली। अब मुझे ये नहीं मालूम था कि ये भाभी जी अकेली हैं या कोई ‘बहादुर’ भी इनके साथ है। खैर .. साब.. मैंने अपना बैग रखा और वहाँ बैठ गया। फिर जेब से अपना मोबाइल निकाला और नेपाली गाने चलाने लगा, गाने की आवाज तेज थी तो मैंने ईयर-फोन निकाले और मोबाइल में लगा कर गाने सुनने लगा। दरअसल मुझे गाने के बोल कुछ भी समझ में नहीं आ रहे थे, पर ये सब कुछ सिर्फ उन भाभी जी को इम्प्रैस करने के लिए मैंने जानबूझ कर पहले अपने मोबाइल में ईयर-फोन नहीं लगा कर, गाने चालू कर दिए थे ताकि उनको ये समझ आ जाए कि नेपाली गाने सुन रहा हूँ और फिर बाद में ईयर-फोन लगा कर उनकी गाने सुनने की उत्सुकता को बढ़ा दिया था। मैं गाने सुनते-सुनते उनकी तरफ देखने लगा, वो मुझे बड़ी अधीरता से निहार रही थीं। उनकी शक्ल मुझे ठीक वैसी लग रही थी, जैसे किसी बच्चे के सामने टॉफ़ी दिखा कर और फिर उसका रैपर खोलने में समय लगाऊँ और बच्चा बड़ी बेचैनी से टॉफ़ी मिलने की आस में नजरें गड़ाए देखता रहे। मैंने मुस्कुरा कर उनकी तरफ देखा और उनसे इशारे में पूछा कि क्या वे भी गाना सुनना चाहती हैं। उन्होंने ‘हाँ’ में अपनी गर्दन हिलाई। मैं अपने मकसद में कामयाब होने लगा था। मैंने अपने कान से एक प्लग निकाला और उनकी तरफ बढ़ा दिया। ईयर-फोन की लीड छोटी थी तो वे खुद मेरे पास सरक आईं और मुझसे सट कर बैठ गईं। अब एक प्लग उनके कान में भी लग गया और वे भी गाना सुनने लगीं। मैं अपने अगले कदम की ओर बढ़ा। मैंने जानबूझ कर गाने की मस्त धुन का बहाना कर के हिलना शुरू कर दिया। अब मेरे हिलने से उनका प्लग बार-बार निकलने लगा। वो और पास आ गईं और मुझसे धीमी आवाज में बोलीं- जरा कम हिलो न.. मेरा निकल रहा है…! मेरा बाबूलाल गनगना गया, मैंने पूछा- क्या निकल रहा है? मेरे सवाल पर भाभी जी मुस्कुरा कर बोलीं- ‘वो’ नहीं… ये प्लग निकल रहा है..! मैंने भी अपनी खीसें निपोरीं और फिर पूछा- ‘वो’ मतलब..! जवाब में उन्होंने मेरी जाँघ पर एक धौल जमाई और बोलीं- तुम भी न…! मुझे उनकी ये हरकत ऐसी लगी कि जैसे हम दोनों एक-दूसरे से पुराने परिचित हों। मुझे अब कुछ लगने लगा था कि इसको भोगा जा सकता है। मैं उसकी तरफ ध्यान से देखने लगा। वास्तव में पहाड़ी दाना मस्त था, कमनीय काया, गोरा रंग, भरे हुए गाल, गालों में बार-बार पड़ते गड्डे, रसीले होंठ, सुतवां नाक, नागिन से लहराते खुले काले गेसू। मेरी नजर अब बेईमान होने लगी थी। मेरी और नीचे निगाह गई तो हल्के गुलाबी रंग की सिफोन की साड़ी में साफ़ दिखता गहरे गले का ब्लाउज, जिसमें उसकी दूधिया घाटी के कामुक नज़ारे हो रहे थे। मेरी नजर उससे टकराई तो उसने अपने होंठ दांतों से काटते हुए अपना आँचल सरका दिया। हय… उसके मस्त मम्मे मेरे बाबूलाल को आग लगाने लगे थे। मैंने उसकी आँखों में आँखें डाल कर अपने एक हाथ को उसके पीछे ले जाकर उसके कन्धों के ऊपर सीट की पुस्त पर रख दिया। उसने जो हाथ मेरी जाँघ पर रखा था, वो अभी भी वहीं पर था। मैं उसकी आँखों में आँखें डाले हुए थोड़ा और करीब को खिसका। अब उसके मस्त मम्मे मेरी छाती से छूने लगे थे। उसके मन में भी वासना भड़क रही थी वो मेरी छाती से सट गई। जैसे ही वो मुझसे सटी मैंने उसके कंधे पर हाथ रख दिया। अब बात बहुत कुछ साफ़ हो चली थी। मैंने उसके कान में फुसफुसाया, “क्या तुम अकेली हो..!” उसके जबाब ने मेरे बाबूलाल अकड़ा दिया, बोली, “हाँ….अकेली हूँ, लोगे मेरी..!” मैंने अपना हाथ झट से उसके मम्मों पर धर दिया, “लपक कर लूँगा…मेरी जान..!” तभी उसने मेरा हाथ हटाया और बोली- सामने की सीट पर वो बुढ़ऊ घूर रहा है उसको निपटाना होगा। मैंने कहा- उसको माँ चुदाने दो तुम तो बाथरूम जाओ, मैं वहीं आता हूँ। वो उठी और बाथरूम चली गई। एक मिनट बाद मैं भी उठा, बुढ़ऊ को एक आँख मारी, बुढ़ऊ ‘सकपका’ गया। मैं हंसता हुआ बाथरूम की तरफ चला गया। मैंने देखा एक बाथरूम में वो खड़ी थी, दरवाजा थोड़ा सा खुला था। मैं अन्दर घुस गया। अन्दर घुसते ही उसको अपनी बाँहों में भर लिया। उसने भी खुद को समर्पित कर दिया। हम दोनों गुत्थमगुत्था हो गए। मैंने उसकी साड़ी खोल दी और ब्लाउज के चटकनी बटनों को एक झटके में खोल कर, उसकी गुलाबी ब्रा को पीछे से हाथ डाल कर हुक खोल दिया। उसके दोनों कबूतर फुदक कर बाहर आ गए। मैंने बड़ी बेरहमी से उसे चूचुकों को अभी अपने होंठों से दबाया ही था कि एक मीठे दूध की धार मेरे मुँह में आई। आह…हह.. मेरी दूध पीने की आस आज पूरी हो चली थी। मैंने खूब दबा-दबा कर उसके थनों को निचोड़ा। उसकी लगातार मादक सीत्कारें निकल रही थीं। उसने बताया कि उसका बच्चा अब दूध नहीं पीता है इसलिए उसके स्तन भरे हुए हैं। अब मैंने उसको वाश-वेसिन पर उसको बैठा दिया और उसके पेटीकोट को ऊपर कर के उसकी पैन्टी को खींच कर उतार दिया। एकदम सफाचट गोरी बुर, जो कभी-कभी ही देखने मिलती है। मेरे बाबूलाल को अब सब्र नहीं हो रहा था। मैंने अपनी पैन्ट खोल कर घुटनों तक की और चड्डी को भी नीचे सरकाया। मेरा बाबूलाल ‘गोरी-फूलन’ के नशे में झूम रहा था। मैंने उसके दोनों पैर अपने हाथों से उठा कर लौड़े के निशाने पर उसकी चूत को लिया और जरा सा धक्का लगाया। मेरा सुपारा उसकी ‘फूलन’ की दरार में फंस गया। एक हल्की सी ‘आह’ निकली मैंने उसके एक बुब्बू को चूसा और दूसरा धक्का मारा तो वो भी मेरी ओर को आ गई। श्रीमान बाबूलाल जी आधे अन्दर प्रवेश कर चुके थे। मेरे अंतिम प्रहार ने उनको पूर्ण रूप से घुसेड़ दिया और अब धकापेल चालू हो गई। चूंकि एसी के टॉयलेट का वाश-वेसिन जरा कम ऊँचाई का होता है, सो मैंने उसको अपने लौड़े पर बैठा लिया था और उसके चूतड़ वास-वेसिन से टिका दिए थे। वो भी अपने हाथ मेरे गले में फँसा कर मुझसे लटकी थी। करीब 10-12 मिनट की चुदाई में उसका पानी निकलने लगा और उसके पानी की गर्मी से मेरा बाबूलाल भी पसीज गया और मैंने उसकी फूलन में ही अपना माल छोड़ दिया। वो निढाल हो कर मुझसे चिपक गई। एक-दो मिनट बाद हम दोनों अलग हुए और मैंने टॉयलेट में लगी नैपकिन के रोल से अपना और उसका ‘आइटम’ साफ़ किया। मैं अपनी चड्डी और पैन्ट पहन कर बाहर आ गया। थोड़ी देर बाद वो भी अपने कपड़े पहन कर बाहर आ गई। सीट पर आकर उसने मुझे अपने बारे में बताया। उसका नाम पुच्छी थापा था और अपने पति के पास वाराणसी जा रही थी। बाद में मेरा उससे कोई संपर्क नहीं हो पाया। दोस्तों ये मेरे साथ घटी एक सच्ची घटना थी जो मैं आप सब तक पहुंचाई है इसके बाद भी कई बार मेरे साथ और भी कई वाकिये हुए हैं वे सब आपको फिर कभी लिखूँगा। आप सभी के विचारों का स्वागत है। मुझे मेल करने के लिए लिखें। [email protected] मुझे ईमेल करके आप मुझसे फेसबुक पर भी जुड़ सकते हैं।
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