मेरी चालू बीवी-81

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सम्पादक – इमरान

मुझे ऑफिस भी जाना था इसलिए मैंने भाभी को आने का इशारा कर दिया। उन्होंने भी मेरे पीछे से बाहर झांक कर देखा, जब वो संतुष्ट हो गई तो तन कर बाहर निकली जैसे उन्होंने कोई किला जीत लिया हो…

नलिनी भाभी- देखा… मैं कितनी बहादुर हूँ ! वो नंगी ऐसे चल रही थी कि अगर कोई देख ले तो बेहोश हो जाए !

मैं बहुत उम्मीद से किसी के आने और देख लेने का इन्तजार कर रहा था… मगर नाउम्मीदी ही हाथ लगी… कोई नहीं आया…

एक अनोखे रोमांच से मैं गुजर रहा था और यह भी पक्का था कि नलिनी भाभी को भी बहुत ज्यादा मजा आ रहा था… उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा कि इस तरह बिना कपड़ों के बिल्कुल नंगी होकर वो फ्लैट के बाहर गैलरी में घूमेगी !

जब नंगे बदन पर बाहर की हवा लगती है तो ऐसा महसूस होता है जैसे कोई अजनबी पुरुष नंगे बदन को सहला रहा हो !

नलिनी भाभी उसी का आनन्द ले रही थी।

जब वो अपने फ्लैट तक अपने मस्ताने नंगे बदन को लहराती हुई लेकर पहुँचीं..

तभी उनको याद आया कि अरे उनके फ्लैट की चाबी तो वहीं रह गई है…

मैं उनको एक प्लानिंग के तहत ही वहीं छोड़ चाबी खुद लेने अपने फ्लैट तक आया, चाबी तो मुझे तुरंत ही मिल गई मगर फिर भी मैं कुछ समय लगाया कि कोई न कोई भूला भटका ही सही, वहाँ आ जाये और नलिनी भाभी का मस्ताना बदन देख उसको मजा आ जाये…

पता नहीं मेरी यह इच्छा पूरी होती या नहीं… पर आज किस्मत कुछ ज्यादा ही साथ थी, मुझे बाहर आहट सी हुई, मैंने चाबी लेकर बाहर को देखने का प्रयास किया तो मुझे सीढ़ी से किसी के उतरने का अहसास सा हुआ।

मतलब कोई नीचे से तो नहीं पर हाँ ऊपर से जरूर कोई आ रहा था।

फ़िर मैंने सोचा कि वैसे भी नीचे से तो वही वहाँ आता जिसे हमारे फ्लोर पर ही रुकना होता…क्योंकि 16 मंजिल पर कोई भी लिफ्ट से ही आता था… अब इससे ऊपर भी कोई गया होगा तो लिफ्ट से ही गया होगा…

हाँ ऊपर से जरूर कोई सीढ़ी से आ सकता था.. जो उस समय आ रहा था।

अब यह देखना था कि उसको देखकर नलिनी भाभी या उस पर क्या फर्क पड़ता है !

तभी मैंने देखा कि वो टॉप फ्लोर पर रहने वाले एक बुजुर्ग थे… वो 80 साल से भी ज्यादा उम्र के थे… मगर बहुत ज्यादा हेल्थ कॉन्शियस थे, मैंने ज्यादातर उनको सीढ़ी से ही आते जाते देखा था।

आज भी वो अपनी फोल्डिंग छड़ी लेकर बहुत ही धीमी गति से एक एक सीढ़ी उतर कर नीचे आ रहे थ।

उनके आँखों का ऑपरेशन भी हो चुका था, उनकी आँखों पर हमेशा एक मोटा काला चश्मा चढ़ा रहता था, जहाँ तक मुझे याद है उनको बहुत ही कम दिखाई देता था।

मतलब यह अहसास तो रहेगा कि कोई दूसरा वहाँ खड़ा है मगर उसको कितना दिख रहा है… इसका पता नहीं चलेगा।

मैंने अब थोड़ा आगे आकर नलिनी भाभी को देखा तो वो भी सांस रोके एक साइड को होकर खड़ी थी, उनको भी लग रहा था कि वो अंकल बिना कुछ देखे चुपचाप निकल जायेंगे।

और शायद होता भी ऐसा ही अगर कोई भी आवाज उनको नहीं आती तो वो कुछ भी देखने की कोशिश नहीं करते, उनको शायद किसी एक ही आँख से जरा सा ही दिखता होगा जिससे वो जांच परख कर एक एक कदम आगे बढ़ाते हैं।

मगर या तो उनको किसी का अहसास हुआ या फिर उन्होंने कोई आवाज सुनी कि आखिर की एक सीढ़ी पहले ही उन्होंने एक ओर को देखा… फिर वो लड़खड़ाए और… ‘आअह…’ की आवाज के साथ गिर पड़े।

आदत अनुसार मैं एकदम आगे को बड़ा पर तुरंत ही मैंने अपने कदम पीछे खींच लिए, कारण नलिनी भाभी भी उनको पकड़ने आगे को बढ़ी।

उनको आगे बढ़ते देख मैं पीछे को हो गया था।

स्वाभिविक है कि वो यह भूल गई कि उन्होंने कुछ नहीं पहना है, वो पूरी नंगी ही उनके पास पहुँच गई और उन्होंने बिना कुछ सोचे अंकल को लपक कर उठा लिया।

मैं नलिनी भाभी की बाहों में अंकल को देख रोमांच से भर गया।

पूरी नंगी भाभी ने झुककर अंकल को पकड़ लिया पर अंकल ने भी तुरंत उनको पकड़ा।

मैं गौर से उनकी हर हरकत को देख रहा था… अंकल का हाथ भाभी की कमर पकड़ने के लिए आगे बढ़ा और काँपता हुआ हाथ उनके नंगे चूतड़ों पर चला गया।

भाभी ने उनको दोनों हाथों से संभाला हुआ था, वो कुछ कर भी नहीं सकती थी।

अंकल ने दोनों हाथ से भाभी की टांग को जांघ के पास पकड़ लिया।

भाभी भी काँप रही थी मगर उन्होंने अंकल को नहीं छोड़ा।

अंकल तो कुछ थोड़ा बहुत बोल भी रहे थे, जो मुझे समझ नहीं आ रहा था, मगर भाभी कुछ नहीं बोल रही थी, शायद उनको अपनी आवाज पहचाने जाने का डर था।

मगर तभी अंकल ऊपर को उठते हुए ही उनकी जांघ से हाथ सरकाते हुए उनकी कमर तक ले गए और पूरी तरह ऊपर उठकर खड़े हो गए।

अब उन्होंने भाभी के कंधे पकड़े हुए थे उनको कोहनी भाभी के नंगी चूची से छू रही थी।

तभी मैंने अंकल की आवाज सुनी- अरे नलिनी, तू यहाँ नंगी क्या कर रही है??? अरविन्द कहाँ है…??

मैं चौंक गया कि ‘अरे इनको तो सब दिखता है और इन्होंने भाभी को पहचान भी लिया.. अब क्या होगा?’

नलिनी भाभी- कहाँ अंकल… व्वव्वो…

अंकल: क्या वव्वो लगा रखी है… कुछ पहना क्यों नहीं तूने… नंगी क्यों है?

और बोलते हुए बुड्ढे ने अपने एक हाथ से भाभी को कंधे से पकड़े हुए ही दूसरे हाथ से उनकी चूची को सहलाते हुए चिकने पेट तक लाये, फिर अपने हाथ को उनकी फूली हुई चूत के ऊपर रख दिया।

‘बिना कच्छी या कुछ पहने क्या कर रही है तू यहाँ?’

नलिनी भाभी- अरे दादा जी… वो आप… क्या आपको दिखने लगा?

अंकल- तो क्या तूने मुझे अँधा समझा था? सब कुछ दिखता है.. वो तो शरीर थोड़ा सा साथ नहीं देता बस…

अंकल ने अपना हाथ अभी भी भाभी की चूत पर रखा हुआ था और भाभी भी कुछ नहीं कह रही थी।

तभी भाभी ने उनको सही करते हुए सीधा खड़ा किया और उनकी छड़ी पकड़ाते हुए बोली- अरे अंकल वो मैं सलोनी के यहाँ थी… काम ख़त्म करके नहाने जा रही थी, तभी आपकी आवाज सुनी और बिना कुछ सोचे आपको उठाने आ गई, जल्दी में कुछ भी नहीं पहन पाई…

अंकल भाभी के कंधे और चूतड़ों पर हाथ रखे आगे बढ़ने लगे, बोले- हा हा हा… इसका मतलब आज पहले बार मेरा गिरने से फायदा हुआ…

नलिनी भाभी- कैसा फ़ायदा अंकल …

अंकल- चल छोड़… मुझे अपने यहाँ ले चल.. लगता है घुटने में चोट आई है।

अब भाभी के पास कोई चारा नहीं था, वो उनको पकड़े मेरे फ्लैट की ओर ही आने लगी क्योंकि उनका फ्लैट तो बंद था।

अब मैं अगर खुद को उनकी नजर में आने देता तो मामला बिगड़ जाता, बुड्ढा एकदम समझ जाता कि मेरे और भाभी के बीच जरूर कोई चोदमचुदाई हुई है।

मैंने दोनों को आते देख तुरंत चाबी को वहीं रखा और अपने फ्लैट से बाहर आ रसोई वाली खिड़की की ओर चला गया।

वहाँ से एकदम से किसी की नजर मुझ पर आसानी से नहीं पड़ सकती थी।

जब दोनों मेरे फ्लैट के अंदर चले गए… मैंने देखा अंकल का हाथ पूरा फैला हुआ भाभी के चूतड़ों पर था।

मतलब यह बुड्ढा भी साला पूरा चालू था।

तभी भाभी ने पीछे मुड़कर देखा, मैंने हंसते हुए खुद तो ऑफिस जाने का इशारा किया और अपने एक हाथ से गोल बनाकर दूसरी हाथ की उंगली उसमें डालते हुए चुदाई का इशारा किया… ‘मजे करो…’

उन्होने मुझे गुस्से से देखा पर मैं दोनों को वहीं छोड़कर अपने ऑफिस के लिए निकल गया।

कहानी जारी रहेगी।

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