मेरी चालू बीवी-84

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सम्पादक – इमरान गुड्डू के चेहरे पर एक कातिलाना मुस्कुराहट थी, उसको मेरी सारी स्थिति का पता था और वो इसका पूरा मजा ले रही थी।

मेरे लिए इतना ही काफी था कि यह खूबसूरत मछली अब मेरे जाल में थी, इसकी छोटी मछली को मैं कभी भी मसल-कुचल सकता हूँ।

पर आज मैं गुड्डू की मछली को देखने के लिए पागल था।

अब उसने अपनी मिनी स्कर्ट को ठीक किया और अपनी जींस की कमर में लगा बटन खोलने लगी।

मैं सांस रोके उसको देख रहा था… मुझे एक और चूत के दर्शन होने वाले थे।

मैं पक्के तौर पर तो नहीं कह सकता… पर पक्का ही था कि जब सलोनी कच्छी नहीं पहनती तो गुड्डू ने भी नहीं पहनी होगी… आखिर यह तो सलोनी से भी ज्यादा मॉडर्न है।

मैं जीन्स से एक खूबसूरत चूत के बाहर आने का इन्तजार कर ही रहा था।

गुड्डू ने बैठे बैठे ही अपने चूतड़ों को उठाकर अपनी जीन्स को नीचे किया…

दर्पण से मुझे नीचे का हिस्सा कुछ साफ़ नहीं दिख रहा था, मैंने शीशे को थोड़ा सा और नीचे को किया।

अब गुड्डू ने अपने पैर को उठाकर अपनी जीन्स को दोनों पाँव से निकाला, उसकी जाँघों के जोड़ को देखने के लिए एक बार फिर मुझे पीछे को गर्दन घुमानी पड़ी पर इस बार मेरी उम्मीदों को झटका लगा, गुड्डू ने एक डोरी वाली गुलाबी पैंटी पहन रखी थी जो बहुत ही सुंदर लग रही थी पर गुड्डू के बेशकीमती खजाने को छुपाये हुए थी।

मैंने बड़ी नाउम्मीदी से अपनी गर्दन आगे कर ली।

मेरे बिगड़े हुए मुहं को देख गुड्डू जोर से हंस पड़ी पर उसने मुझ पर कोई रहम नहीं किया, उसने अपनी स्कर्ट की ज़िप खोल उसको कमर से बांध अपनी स्कर्ट को ठीक कर लिया।

गुड्डू- क्या हुआ जीजू??? बड़ा ख़राब मुँह बनाया… क्या मैं इतनी बुरी लगी.. हा हा…

मैं- अरे यार जब इंसान को भूख लगी हो और कोई खाने पर कवर लगा हो तो ऐसा ही होता है।

गुड्डू- हा हा हा जीजू… आप भी न बहुत मजाक करते हो… यह किसी और का खाना है… आप अपना खाना घर जाकर खा सकते हो ना !

मैं- वो तो सही है यार… बाहर का खाना चखने को तो मिल ही जाता है… पर यहाँ तो देखने को भी नहीं मिला।

गुड्डू- हा हा हा.. क्या बात करते हो जीजू… इतना तो देख लिया !

और गुड्डू अपने कपड़े वहीं पिछले सीट पर छोड़ जब फिर से आगे आने के लिए उसने पैर आगे रखा…

वाओ…

उसकी पीठ मेरी ओर थी… उसकी स्कर्ट ऊपर तक हो गई और उसके नंगे चूतड़… कयामत चूतड़… क्या मजेदार गोल गोल चूतड़ थे… पूरे नंगे ही दिख रहे थे… क्योंकि उसकी पैंटी की डोरी बहुत पतली थी जो चूतड़ों की दरार से चिपकी थी।

मैंने उसके सीधे होने से पहले ही उसके चूतड़ों के एक गोले पर अपने बायां हाथ रख दिया…

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गुड्डू- क्या कर रहे हो जीजू?? उसने सीधा होने की कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई…

मैं- मेरी प्यारी साली साहिबा जी, देख रहा हूँ कि खाना गर्म है या ठण्डा… तुम बहुत खूबसूरत हो यार !

और मैंने अपने अंगूठे से गुड्डू की चूत को भी हल्का सा कुरेद दिया तो अब बस वो जल्दी से सीधी हो बैठ गई, उसने अपनी स्कर्ट सही की और बोली- जीजू, यह खाना हमेशा गर्म ही रहता है।

मैं- अब मुझे क्या पता ..? तुम ना तो कभी खिलाती हो और ना ही कभी चखाती हो…

गुड्डू- ठीक है कभी आपके साथ भी हम मीटिंग कर लेंगे… फिलहाल तो अपना काम कर लें… बस यहीं रोक दीजिये… मुझे इसी कम्पनी में जाना है।

और वो वहीं उतर गई मगर एक उम्मीद फिर से दे गई…

गुड्डू- अपने कपड़े यहीं छोड़ कर जा रही हूँ… अगर आप खाली होंगे तो लौटते समय मैं फोन कर लूँगी वरना फिर बाद में ले लूँगी।

मैं- अरर्र नहीं… ये तो तुमको आज ही देने आ जाऊँगा… अगर सलोनी ने देख लिए तो… हा हा हा…

वो भी हंसी और हम दोनों अपनी मंजिल की ओर निकल गए।

सलोनी, नलिनी भाभी, नीलू, रोजी… अभी कुछ देर पहले मैं सभी को खूब याद कर रहा था…

नलिनी भाभी को जमकर चोदकर आया था और नीलू को ऑफिस जाकर चोदने की सोच रहा था, सलोनी कैसे अपने आशिकों के साथ मजे कर रही होगी… वो सोच रहा था और रोजी की चूत के बारे में सोच सोच कर लार टपका रहा था।

इतना सब पास होने के बावजूद एक ही पल में इस गुड्डू की सेक्सी और मस्त जवानी ने सब कछ भुला दिया था… जब तक गुड्डू पास रही, कुछ याद ही नहीं रहा… केवल गुड्डू गुड्डू और गुड्डू…

पर अब उसके जाते ही मैं फिर से धरातल पर आ गया था… अब मुझे फिर से सब कुछ याद आ गया था।

मैं तेजी से गाड़ी चलाकर ऑफिस पहुँचा, वहाँ पहुँच कर एक झटका लगा…

अरे आज नीलू आई ही नहीं थी…

पर उसने मुझे बताया क्यों नहीं???

तभी रोजी केबिन में आई… हल्के हरे, प्रिंटेड शिफॉन की साड़ी में वो क़यामत लग रही थी… स्लीवलेस ब्लाउज और नाभि के नीचे बाँधी हुई साड़ी उसको और दिनों के मुकाबले बहुत ज्यादा सेक्सी दिखा रही थी।

शायद पिछले दिन की घटना ने उसको काफी बोल्ड बना दिया था और वो मुझे रिझाना चाह रही थी…

यह नहीं भी हो सकता थाम यह तो केवल मेरी सोच थी।

हो सकता है वो सामान्य रूप से ऐसे ही कपड़े पहन कर आई हो पर मुझे पहले से ज्यादा सेक्सी लग रही थी।

मैं रोजी की ख़ूबसूरती को निहार ही रहा था… कि वो मेरी नजरों को देखते हुए मुस्कुराते हुए बोली- आज कहाँ रह गए थे सर? बड़ी देर कर दी?

मैं उसकी बातों को सुनकर मुस्कुराया… वाकयी कल की घटना ने उसको बहुत ज्यादा खोल दिया था… पहले वो कभी मुझसे ऐसे नहीं बोली थी, बल्कि बहुत डर कर बोलती थी…

उसको ऑफिस में आये हुए समय ही कितना हुआ था केवल एक महीना… इस एक महीने में वो केवल ‘हाँ… जी…’ में ही जवाब देती थी पर कल हुई घटना ने उसको बिंदास बना दिया, अब उसको मुझसे डर नहीं लग रहा था बल्कि प्यार ही आ रहा था।

मैं उसकी चूची और चूतड़ों को सहला चुका था और उसकी नजर में मैं उसको पूरी नंगी देख चुका था, उसने भी मेरे लण्ड को पकड़ लिया था।

मेरे ख्याल में जब नारी को यह लगने लगता है कि इस आदमी ने तो मुझे पूरी नंगी देख ही लिया है और वो उसको पसंद भी करती हो तो शायद वो उससे पूरी खुल जाती है, फिर उसके सामने उसको नंगी होने में शर्म नहीं आती।

यही ख्याल मेरे दिल में आ रहे थे कि शायद रोजी अब दोबारा मेरे सामने नंगा होने में ज्यादा नखरे नहीं करेगी पर वो एक शादीशुदा नारी है और उसने अभी तक बाहर किसी से सम्बन्ध नहीं बनाये थे इसलिए मुझे बहुत ध्यान से उस पर कार्य करना था, मेरी एक गलती से वो बिदक भी सकती है।

मेरा लण्ड मुझे संयम नहीं करने दे रहा था वो पैन्ट से अंदर बहुत परेसान कर रहा था…

मैंने सोचा था कि ऑफिस जाते ही नीलू को पेलूँगा .पर उसने तो मुझे धोखा दे दिया था, पता नहीं उसको क्या काम पड़ गया था।

मैंने रोजी को ही अपने शीशे में उतारने की सोची।

मैं- अरे रोजी, नीलू कहाँ है आज?

रोजी- क्यों उसने बताया नहीं आपको? बोल तो रही थी कि वो फोन कर लेगी आपको।

मैं- अरे तो क्या वो आई थी? फिर कहाँ चली गई, उसको तबियत तो सही है ना?

रोजी- अर्र हाँ सर… वो बिलकुल ठीक है… .उसके किसी दोस्त का एक्सीडेंट हुआ है शायद… मुझे बताकर गई थी कोई 2 घंटे पहले !

मैं- ओह…

मैंने सोचा उसको फोन करके पूछ लूँ कि किसी चीज की जरूरत तो नहीं पर उसका फोन ही नहीं लगा।

‘लगता है नीलू के फोन की बैटरी डाउन हो गई इसीलिए मुझे भी कॉल नहीं कर पाई।’

रोजी- हाँ सर, यही लगता है… मैं भी कोशिश कर रही थी पर नहीं लग रहा… कोई काम हो तो बता दीजिये सर, मैं कर देती हूँ।

मैं- अरे नीलू वाला काम तुम नहीं कर पाओगी।

कहानी जारी रहेगी !

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