देवर भाभी की चुदाई-5

प्रेषक : नामालूम सम्पादक : जूजा जी ‘तुम्हारी कसम मेरी जान… इतनी फूली हुई चूत को छोड़ कर तो मैं धन्य हो गया हूँ और फिर इसकी मालकिन चुदवाती भी तो कितने प्यार से है।’ ‘जब चोदने वाले का लंड इतना मोटा तगड़ा हो तो चुदवाने वाली तो प्यार से चुदवाएगी ही.. मैं तो आपके लंड के लिए उई…ह.. ऊ.. बहुत तड़फूंगी.. आख़िर मेरी प्यास तो…आआ… यही बुझाता है।’

भैया ने सारी रात जम कर भाभी की चुदाई की… सवेरे भाभी की आँखें सारी रात ना सोने के कारण लाल थीं।

भैया सुबह 6 महीने के लिए मुंबई चले गए। मैं बहुत खुश था, मुझे पूरा विश्वास था कि इन 6 महीनों में तो मैं भाभी को अवश्य ही चोद पाऊँगा।

हालाँकि अब भाभी मुझसे खुल कर बातें करती थीं लेकिन फिर भी मेरी भाभी के साथ कुछ कर पाने की हिम्मत नहीं हो पा रही थी। मैं मौके की तलाश में था।

भैया को गए हुए एक महीना बीत चुका था। जो औरत रोज चुदवाने को तरसती हो उसके लिए एक महीना बिना चुदाई गुजारना मुश्किल था।

भाभी को वीडियो पर पिक्चर देखने का बहुत शौक था। एक दिन मैं इंग्लिश की बहुत सेक्सी सी ब्लू-फिल्म ले आया और ऐसी जगह रख दी, जहाँ भाभी को नजर आ जाए।

उस पिक्चर में 7 इन्च लम्बे लौड़े वाला तगड़ा काला आदमी एक किशोरी गोरी लड़की को कई मुद्राओं में चोदता है और उसकी गाण्ड भी मारता है। जब तक मैं कॉलेज से वापस आया तब तक भाभी वो पिक्चर देख चुकी थीं।

मेरे आते ही बोलीं- यह तू कैसी गंदी-गंदी फ़िल्में देखता है?

‘अरे भाभी आपने वो पिक्चर देख ली? वो आपके देखने की नहीं थी।’

‘तू उल्टा बोल रहा है.. वो मेरे ही देखने की थी.. शादीशुदा लोगों को तो ऐसी पिक्चर देखनी चाहिए.. हे राम… क्या-क्या कर रहा था वो लम्बा-तगड़ा कालू.. उस छोटी सी लड़की के साथ.. बाप रे…!’

‘क्यों भाभी, भैया आपके साथ ये सब नहीं करते हैं?’

‘तुझे क्या मतलब…? और तुझे शादी से पहले ऐसी फ़िल्में नहीं देखनी चाहिए।’

‘लेकिन भाभी अगर शादी से पहले नहीं देखूँगा तो अनाड़ी न रह जाऊँगा। पता कैसे लगेगा कि शादी के बाद क्या किया जाता है।’

‘तेरी बात तो सही है.. बिल्कुल अनाड़ी होना भी ठीक नहीं.. वरना सुहागरात को लड़की को बहुत तकलीफ़ होती है। तेरे भैया तो बिल्कुल अनाड़ी थे।’

‘भाभी, भैया अनाड़ी थे क्योंकि उन्हें बताने वाला कोई नहीं था। मुझे तो आप समझा सकती हैं लेकिन आपके रहते हुए भी मैं अब तक अनाड़ी हूँ। तभी तो ऐसी फिल्म देखनी पड़ती हैं और उसके बाद भी बहुत सी बातें समझ नहीं आती। खैर.. आपको मेरी फिकर कहाँ होती है?’

‘राजू, मैं जितनी तेरी फिकर करती हूँ उतनी शायद ही कोई करता हो। आगे से तुझे शिकायत का मौका नहीं दूँगी। तुझे कुछ भी पूछना हो, बे-झिझक पूछ लिया कर। मैं बुरा नहीं मानूँगी। चल अब खाना खा ले।’

‘तुम कितनी अच्छी हो भाभी।’ मैंने खुश हो कर कहा।

अब तो भाभी ने खुली छूट दे दी थी, मैं किसी तरह की भी बात भाभी से कर सकता था लेकिन कुछ कर पाने की अब भी हिम्मत नहीं थी।

मैं भाभी के दिल में अपने लिए चुदाई की भावना जागृत करना चाहता था।

भैया को गए अब करीब दो महीने हो चले थे, भाभी के चेहरे पर लंड की प्यास साफ ज़ाहिर होती थी।

एक बार रविवार को मैं घर पर था, भाभी कपड़े धो रही थीं, मुझे पता था कि भाभी छत पर कपड़े सूखने डालने जाएगीं। मैंने सोचा क्यों ना आज फिर भाभी को अपने लंड के दर्शन कराए जाएँ, पिछले दर्शन तीन महीने पहले हुए थे। मैं छत पर कुर्सी डाल कर उसी प्रकार लुंगी घुटनों तक उठा कर बैठ गया।

जैसे ही भाभी के छत पर आने की आहट सुनाई दी, मैंने अपनी टाँगें फैला दीं और अख़बार चेहरे के सामने कर लिया।

अख़बार के छेद में से मैंने देखा की छत पर आते ही भाभी की नजर मेरे मोटे, लम्बे साँप के माफिक लटकते हुए लंड पर गई। भाभी की सांस तो गले में ही अटक गई, उनको तो जैसे साँप सूंघ गया, एक मिनट तक तो वो अपनी जगह से हिल नहीं सकीं, फिर जल्दी कपड़े सूखने डाल कर नीचे चल दीं।

‘भाभी कहाँ जा रही हो, आओ थोड़ी देर बैठो।’ मैंने कुर्सी से उठते हुए कहा।

भाभी बोली- अच्छा आती हूँ… तुम बैठो मैं तो नीचे चटाई डाल कर बैठ जाऊँगी।

अब तो मैं समझ गया कि भाभी मेरे लंड के दर्शन जी भर के करना चाहती हैं, मैं फिर कुर्सी पर उसी मुद्रा में बैठ गया।

थोड़ी देर में भाभी छत पर आईं और ऐसी जगह चटाई बिछाई जहाँ से लुंगी के अन्दर से पूरा लंड साफ दिखाई दे।

उनके हाथ में एक उपन्यास था जिसे पढ़ने का बहाना करने लगीं लेकिन नज़रें मेरे लंड पर ही टिकी हुई थीं।

मेरा 8′ लम्बा और 4′ मोटा लंड और उसके पीछे अमरूद के आकार के अंडकोष लटकते देख उनका तो पसीना ही छूट गया।

अनायास ही उनका हाथ अपनी चूत पर गया और वो उसे अपनी सलवार के ऊपर से रगड़ने लगीं। जी भर के मैंने भाभी को अपने लंड के दर्शन कराए।

जब मैं कुर्सी से उठा तो भाभी ने जल्दी से उपन्यास अपने चेहरे के आगे कर लिया, जैसे वो उपन्यास पढ़ने में बड़ी मग्न हों।

मैंने कई दिन से भाभी की गुलाबी कच्छी नहीं देखी थी। आज भी वो नहीं सूख रही थी।

मैंने भाभी से पूछा- भाभी बहुत दिनों से आपने गुलाबी कच्छी नहीं पहनी?

‘तुझे क्या?’

‘मुझे वो बहुत अच्छी लगती है। उसे पहना करिए ना।’

‘मैं कौन सा तेरे सामने पहनती हूँ?’

‘बताईए ना भाभी कहाँ गई, कभी सूखती हुई भी नहीं नजर आती।’

‘तेरे भैया ले गए हैं.. कहते थे कि वो उन्हें मेरी याद दिलाएगी।’ भाभी ने शरमाते हुए कहा।

‘आपकी याद दिलाएगी या आपके टांगों के बीच में जो चीज़ है उसकी?’

‘हट मक्कार.. तूने भी तो मेरी एक कच्छी मार रखी है, उसे पहनता है क्या? पहनना नहीं, कहीं फट ना जाए।’ भाभी मुझे चिढ़ाते हुए बोलीं।

‘फटेगी क्यों? मेरे कूल्हे आपके जितने भारी और चौड़े तो नहीं हैं।’

‘अरे बुद्धू, कूल्हे तो बड़े नहीं हैं लेकिन सामने से तो फट सकती है। तुझे तो वो सामने से फिट भी नहीं होगी।’

‘फिट क्यों नहीं होगी भाभी?’ मैंने अंजान बनते हुए कहा।

‘अरे बाबा, मर्दों की टांगों के बीच में जो ‘वो’ होता है ना, वो उस छोटी सी कच्छी में कैसे समा सकता है और वो तगड़ा भी तो होता है, कच्छी के महीन कपड़े को फाड़ सकता है।’

‘वो’.. क्या भाभी?’ मैंने शरारत भरे अंदाज में पूछा।

भाभी जान गईं कि मैं उनके मुँह से क्या कहलवाना चाहता हूँ।

‘मेरे मुँह से कहलवाने में मज़ा आता है?’

‘एक तरफ तो आप कहती हैं कि आप मुझे सब कुछ बताएँगी और फिर साफ-साफ बात भी नहीं करती। आप मुझसे और मैं आपसे शरमाता रहूँगा तो मुझे कभी कुछ नहीं पता लगेगा और मैं भी भैया की तरह अनाड़ी रह जाऊँगा। बताइए ना..!’

‘तू और तेरे भैया दोनों एक से हैं। मेरे मुँह से सब कुछ सुन कर तुझे ख़ुशी मिलेगी?’

‘हाँ.. भाभी बहुत ख़ुशी मिलेगी और फिर मैं कोई पराया हूँ।’

‘ऐसा मत बोल राजू… तेरी ख़ुशी के लिए मैं वही करूँगी जो तू कहेगा।’

‘तो फिर साफ-साफ बताईए आपका क्या मतलब था।’

‘मेरे बुद्धू देवर जी, मेरा मतलब यह था कि मर्द का वो बहुत तगड़ा होता है औरत की नाज़ुक कच्छी उसे कैसे झेल पाएगी? और अगर वो खड़ा हो गया तब तो फट ही जाएगी ना।’

‘भाभी आपने ‘वो… वो’ क्या लगा रखी है, मुझे तो कुछ नहीं समझ आ रहा।’

‘अच्छा अगर तू बता दे उसे क्या कहते है तो मैं भी बोल दूँगी।’ भाभी ने लजाते हुए कहा।

‘भाभी मर्द के उसको लंड कहते हैं।’

‘हाँ… मेरा भी मतलब यही था।’

‘क्या मतलब था आपका?’

‘कि तेरा लंड मेरी कच्छी को फाड़ देगा। अब तो तू खुश है ना?’ यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! ‘हाँ भाभी बहुत खुश हूँ। अब ये भी बता दीजिए कि आपकी टांगों के बीच में जो है, उसे क्या कहते हैं।’

‘उसे..! मुझे तो नहीं पता.. ऐसी चीज़ें तो तुझे ही पता होती हैं, तू ही बता दे।’

‘भाभी उसे चूत कहते हैं।’

‘हाय.. तुझे तो शर्म भी नहीं आती… वही कहते होंगे।’

‘वही क्या भाभी?’

‘ओह हो.. बाबा, चूत और क्या।’ भाभी के मुँह से लंड और चूत जैसे शब्द सुन कर मेरा लंड फनफनाने लगा। अब तो मेरी हिम्मत और बढ़ गई।

मैंने भाभी से कहा- भाभी, इसी चूत की तो दुनिया इतनी दीवानी है।

‘अच्छा जी तो देवर जी भी इसके दीवाने हैं।’

‘हाँ मेरी प्यारी भाभी किसी की भी चूत का नहीं सिर्फ़ आपकी चूत का दीवाना हूँ।’

‘तुझे तो बिल्कुल भी शर्म नहीं है। मैं तेरी भाभी हूँ।’ भाभी झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोलीं।

कहानी जारी रहेगी। मुझे आप अपने विचार यहाँ मेल करें।

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