विज्ञान से चूत चुदाई ज्ञान तक-34

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प्रिया कुतिया बन जाती है.. पैरों को ज़्यादा चौड़ा कर लेती है जिससे उसकी चूत का मुँह खुल जाता है।

दीपक लौड़े पर थूक लगा कर टोपी चूत पर टीका देता है और आराम से अन्दर डालने लगता है।

प्रिया- आहह.. उ भाई आहह.. हाँ ऐसे ही धीरे आहह.. धीरे.. पूरा आ आहह.. घुसा दो आहह.. मेरी चूत कब से तड़फ रही है आहह..

दीपक- डर मत मेरी बहना.. अबकी बार बड़ी शालीनता से लौड़ा घुसाऊँगा.. तुझे पता भी नहीं चलेगा.. आज तेरी चूत को चोद-चोद कर ढीला कर दूँगा। उसके बाद तो रोज तुझे चोदूँगा.. आहह.. क्या कसी हुई चूत है तेरी आहह.. बहना.. चुदवाओगी क्या रोज मुझसे.. आहह.. मज़ा आ गया।

प्रिया- भाई आप कैसी बात करते हो.. मैं आपकी ही हूँ जब चाहो चोद लेना.. आहह.. अब तो बस आपके लौड़े की दीवानी हो गई मैं आहह.. उई आराम से भाई आहह.. रोज चुदवाऊँगी आहह.. आपसे…

दीपक कुछ ही देर में पूरा लौड़ा जड़ तक चूत में घुसा देता है। प्रिया को दर्द तो हो रहा था मगर चूत-चटाई से वो बहुत उत्तेजित हो गई थी। उसकी वासना के आगे दर्द फीका पड़ गया था।

प्रिया- आहह.. भाई मज़ा आ रहा है आहह.. अब हिलो.. आहह.. झटके मारो मेरी चूत पानी-पानी हो रही है आहह.. चोदो भाई आहह.. चोदो..

दीपक अब झटके मारने लगा था और धीरे-धीरे उसकी रफ़्तार तेज़ होने लगी थी।

प्रिया भी अब गाण्ड पीछे धकेल कर चुदाई का पूरा मज़ा ले रही थी।

प्रिया- आह फक मी आहह.. माय सेक्सी ब्रदर आहह.. फक मी डीप.. आहह.. फक मी हार्ड.. आह यू आर सो सेक्सी आह एंड युअर डिक इज वेरी लोंग आहह.. आहह..

दीपक- उहह उहह क्या बात है.. आहह.. बहना आह.. बड़ी अँग्रेज़ी बोल रही है.. आहह.. ले संभल आहह.. तू बोलती रह आहह.. जैसा ब्लू-फिल्म में होता है.. आहह.. मज़ा आता है चोदने में गंदी बात बोल बहना.. आज तेरा भाई बहनचोद बन गया है तू भी आ भाई चोद बन गई आहह.. कुछ नया बोल जिसको आहह.. सुनकर मज़ा आए।

प्रिया- आहह.. भाई आप बड़े कुत्ते हो आहह.. स्कूल में सब लड़कियों के चूचे और गाण्ड आहह.. देखते हो.. कभी आहह.. उ आहह.. अपनी इस रंडी बहन पर भी आ नज़र मार लेते आहह.. तो अब तक अई आई.. ससस्स तो कई बार अई आपसे चुद चुकी होती।

दीपक- उह आहह.. साली मुझे क्या पता था आहह.. तू इतनी बड़ी रंडी निकलेगी.. अपने भाई के ही लौड़े को लेने की तमन्ना रखती है उह उह अब तक तो मैं कब का तेरी चूत और गाण्ड का मज़ा ले लेता आहह.. तेरी चूत का चूरमा और गाण्ड का गुलाबजामुन बना देता मैं.. आहह.. ले उहह उहह।

प्रिया- आहह आई.. फास्ट भाई आ मेरा पानी आने वाला है आई.. आहह.. ज़ोर से आह और फास्ट आहह..

दीपक उसकी बातों से बहुत ज़्यादा उत्तेजित हो गया था और अब चुदाई की रेलगाड़ी ने रफ़्तार पकड़ ली थी.. राजधानी भी उसके आगे हर मान जाए इतनी तेज़ी से लौड़ा चूत के अन्दर-बाहर हो रहा था।

इसका अंजाम तो आप जानते ही हो प्रिया की चूत ने पानी छोड़ दिया और उसके अहसास से दीपक के लौड़े ने भी बरसात शुरू कर दी। दोनों काफ़ी देर तक झड़ते रहे और उसी अवस्था में पड़े रहे।

प्रिया- आह भाई मज़ा आ गया आज तो.. अब उठो भी ऐसे ही पड़े रहोगे क्या.. मुझे घर भी जाना है वरना माँ को शक हो जाएगा।

दीपक- हाँ तूने सही कहा.. देख किसी को जरा सी भनक मत लगने देना.. वरना हम तो क्या हमारे घर वाले भी किसी को मुँह दिखाने के काबिल नहीं रहेंगे।

प्रिया ने ‘हाँ’ में अपना सर हिला दिया और जब वो उठने लगी उसको चूत और पैरों में बड़ा दर्द हुआ।

प्रिया- आईईइ उईईइ माँ मर गई रे.. आहह.. भाई मुझसे खड़ा नहीं हुआ जा रहा आहह.. आपने तो मेरी टाँगें ही थका दीं..

दीपक ने उसको सहारा दिया और खड़ी करके उसको हाथ पकड़ कर चलाया।

दीपक- आराम से चल.. कुछ नहीं होगा.. मैं तुझे दवा ला दूँगा.. दर्द नहीं होगा.. अभी थोड़ी देर यहीं चल.. नहीं तो घर पर जबाव देना मुश्किल हो जाएगा कि क्या हुआ है..

प्रिया- आहह.. उई पहली बार में आप जानवर बन गए थे.. कैसे ज़ोर से लौड़ा घुसाया था.. उई ये उसकी वजह से हुआ है।

दीपक- अरे पहली बार तो इंसान ही था.. कुत्ता तो दूसरी बार बना था हा हा हा हा।

प्रिया- बस भी करो.. आपको मजाक सूझ रहा है.. मेरी हालत खराब है।

दीपक- अब चुदने का शौक चढ़ा है तो दर्द भी सहना सीखो.. अभी तो

तेरी गाण्ड की गहराई में भी लौड़ा घुसना है.. आज वक्त कम है.. नहीं तो आज ही तेरी गाण्ड का मुहूरत कर देता।

प्रिया- आहह.. ना भाई.. आहह.. आप बस चूत ही मार लेना.. गाण्ड का नाम भी मत लो.. चूत का ये हाल कर दिया.. ना जाने गाण्ड को तो फाड़ ही दोगे।

दीपक हँसने लगा और बहुत देर तक वो प्रिया को वहीं घुमाता रहा.. जब प्रिया ठीक से चलने लगी, तब दीपक ने कमरे का हाल ठीक कर दिया और दोनों ने कपड़े पहन लिए।

जब दोनों बाहर निकले तो दीपक ने प्रिया से कहा- कल रविवार है दीपाली को यहाँ बुला लेना.. तीनों मिलकर मज़ा करेंगे.. चाभी तू अपने पास ही रखना।

प्रिया- हाँ भाई.. ये सही रहेगा.. अब आप जाओ.. हम साथ गए तो किसी को शक होगा.. मैं पीछे से आऊँगी।

दीपक- तू धीरे-धीरे आराम से जाना और घर में तो बड़े ध्यान से अन्दर जाना.. मैं थोड़ी देर में दवा लेकर आता हूँ.. वैसे भी मैंने सारा पानी तेरी चूत में भर दिया था.. कहीं कुछ हो गया तो लेने के देने पड़ जाएँगे.. दर्द की दवा के साथ कुछ गर्भनिरोधी दवा भी लेता आऊँगा ओके.. अब जा…

दोनों वहाँ से अलग-अलग हो गए और घर की तरफ़ जाने लगे।

चलो दोस्तों आपको पता चल गया ना कि दीपाली के जाने के बाद इन दोनों ने क्या किया था।

अब वापस कहानी को वहीं ले चलती हूँ.. जहाँ से हम पीछे आए थे।

दीपाली अपने कमरे में बैठी दीपक के लौड़े के बारे में सोच रही थी और बस बड़बड़ा रही थी।

दीपाली- हाय क्या मस्त लौड़ा था दीपक का.. मज़ा आ गया चूस कर.. उफ काश एक बार चूत में ले लेती.. आहह.. एक तो विकास सर भी नहीं मिले और ये दीपक भी हाथ नहीं आया.. अब क्या करूँ.. इस चूत की खुजली का.. कोई तो इलाज करना होगा.. आज तो कुछ ज़्यादा ही बहक रही है ये निगोड़ी चूत उफ…

दीपाली अपनी चूत को बड़े प्यार से सहला रही थी.. तभी बाहर से कोई आवाज़ उसके कानों में आई।

कुछ देर उस आवाज़ को सुनकर उसने कुछ सोचा और अचानक से खड़ी हो गई और वो झट से दरवाजे की तरफ भागी।

बाहर से लगातार आवाज़ आ रही थी।

‘कोई इस अंधे गरीब की मदद कर दो.. है कोई देने वाला.. अंधे को देगा.. दुआ मिलेगी..’

दोस्तों आप ठीक सोच रहे हो.. ये वही अँधा भिखारी है.. जो रास्ते में मिला था। अब आप देखो आगे क्या होता है।

दीपाली ने दरवाजा खोला तो वो भिखारी जा रहा था।

दीपाली- रूको बाबा.. यहाँ आओ आपको खाना देती हूँ।

भिखारी- अँधा हूँ बेटी.. कहाँ हो मालिक तेरा भला करेगा।

दीपाली ने बाहर इधर-उधर देखा.. कोई नहीं था.. वो झट से बाहर गई और उसका हाथ पकड़ कर घर के अन्दर ले आई।

दीपाली- यहाँ आओ बाबा मेरे साथ.. चलो खाना देती हूँ।

वो उसके साथ अन्दर आ गया।

दीपाली ने अन्दर लाकर वहीं बैठने को कहा और खुद खाना लेने अन्दर चली गई।

अन्दर जाकर दीपाली सोचने लगी कि इसका पूरा लौड़ा कैसे देखूँ इसकी टोपी तो मोटी है.. अब क्या करूँ जिससे पूरा लौड़ा दिख जाए। तभी उसे एक आइडिया आया.. वो वापस बाहर आई।

दीपाली- बाबा आप कौन हो.. जवान हो.. बदन भी ठीक-ठाक है.. आप बचपन से अंधे हो या कोई और वजह से हो गए और आपने ये क्या फटे-पुराने कपड़े पहन रखे हैं।

भिखारी- बेटी मैं पहले अच्छा था ट्रक में माल भरने का काम करता था.. मुझमें बहुत ताक़त थी.. दो आदमी का काम अकेले कर देता था। आठ महीने पहले एक दिन सड़क पर किसी गाड़ी ने टक्कर मार दी.. उसमें मेरी आँखें चली गईं.. अब पहले से ही मेरा कोई नहीं था तो मुझे कौन संभालता.. सरकारी अस्पताल में इलाज फ्री हो गया.. अब कोई काम तो होता नहीं है.. इसलिए भीख माँग कर गुजारा कर लेता हूँ.. कपड़े भी फट गए हैं.. अब मैं दूसरे कपड़े कहाँ से लाऊँ..

दीपाली- ओह्ह.. सुनकर बड़ा दुख हुआ.. अच्छा आपका कोई घर तो होगा ना…

भिखारी- पहले एक किराए के कमरे में रहता था.. अब वो भी नहीं रहा.. अब तो बस दिन भर घूम कर माँगता हूँ और रात को जहाँ जगह मिल जाए.. वहीं सो जाता हूँ।

दीपाली- रूको मेरे पास मेरे पापा के पुराने कपड़े हैं.. मैं आपको देती हूँ.. ये कपड़े निकाल दो पूरे फट गए हैं.. आपके बदन पर कितना मैल जमा है नहाते नहीं क्या कभी?

भिखारी- बेटी ना घर का ठिकाना है.. ना कुछ और.. सड़कों के किनारे सोने वाला कहाँ से नहाएगा..?

दीपाली- ओह आपकी बात भी सही है.. ऐसा करो यहाँ मेरे घर में नहा लो.. उसके बाद आपको कपड़े दूँगी.. चलो मैं आपको बाथरूम तक ले चलती हूँ।

भिखारी- नहीं.. नहीं.. बेटी रहने दो.. आज के जमाने में भिखारी को लोग घर के दरवाजे पर खड़ा करना पसन्द नहीं करते.. तुम तो घर के अन्दर तक ले आईं.. और अब अपने बाथरूम में नहाने को बोल रही हो।

दीपाली कुछ सोचने लगी.. उसके बाद उसने कहा- देखो बाबा मेरी नज़र में अमीर-गरीब सब एक जैसे हैं.. आप किसी बात का फिकर मत करो.. आओ नहा लो.. मैं साबुन तौलिया सब दे देती हूँ।

भिखारी- मालिक तुम्हारा भला करेगा बेटी.. तुम घर में अकेली रहती हो क्या.. यहाँ और किसी की आवाज़ नहीं सुनने को मिली।

दीपाली- इस वक़्त अकेली हूँ.. सब बाहर गए हैं.. अब चलो बातें बाद में कर लेना और ये फटे-पुराने कपड़े निकाल कर वहीं रख देना.. मैं कचरे में डाल दूँगी।

दीपाली उसका हाथ पकड़ कर बाथरूम में ले गई और उसको अन्दर खड़ा करके पानी चालू कर दिया, उसके हाथ में साबुन दे दिया।

दीपाली अच्छे पैसे वाले घर की थी। उसका बाथरूम काफ़ी बड़ा था। आम आदमी के कमरे से भी बड़ा था।

दीपाली- बाबा तौलिया ये आपके दाहिनी तरफ़ खूंटी पर टंगा है। मैं दरवाजा बाहर से बन्द कर देती हूँ.. जब आप नहा लो.. तो आवाज़ दे देना.. मैं खोल दूँगी।

आप अन्दर से बन्द करने की कोशिश मत करना.. ये चाभी वाला लॉक है.. कहीं आपसे बाद में नहीं खुला तो मुसीबत हो जाएगी।

भिखारी- ठीक है बेटी.. जैसा तुम कहो.. मगर कपड़े तो ला देतीं.. नहा कर में पहन कर बाहर आ जाता।

दीपाली- आप नहा लो.. मैं बाहर रख कर लॉक खोल दूँगी.. आप बाद में उठा लेना.. ठीक है.. अब मैं दरवाजा बन्द करके जाती हूँ आप आराम से रगड़-रगड़ कर नहा लो।

दीपाली ने दरवाजा ज़ोर से बन्द किया ताकि उसे पता चल जाए कि बन्द हो गया और फ़ौरन ही धीरे से वापस भी खोल दिया बेचारा भिखारी अँधा था.. उसको पता भी नहीं चला कि एक ही पल में दरवाजा वापस खुल गया है।

अब उसने फटी हुई बनियान निकाल कर साइड में रख दी और जैसे ही उसने कच्छा निकाला उसका लौड़ा दीपाली के सामने आ गया।

उसका मुँह भी इसी तरफ था.. दीपाली तो बस देखती रह गई।

लौड़े के इर्द-गिर्द झांटों का बड़ा सा जंगल था.. जैसे कई महीनों से उनकी कटाई ना हुई हो और उस जंगल के बीचों-बीच किसी पेड़ की तरह लंड महाराज लटके हुए थे.. हालाँकि लौड़ा सोया हुआ था मगर फिर भी कोई 5″ का होगा और मोटा भी काफ़ी था।

बस दोस्तो, आज के लिए इतना काफ़ी है। अब आप जल्दी से मेल करके बताओ कि मज़ा आ रहा है या नहीं.! क्या आप जानना नहीं चाहते कि आगे क्या हुआ ..? तो पढ़ते रहिए और आनन्द लेते रहिए.. मुझे आप अपने विचार मेल करें। [email protected]

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