अकेली ट्यूशन टीचर की चुदास की रंगीनियाँ

मैं सुदर्शन एक बार फिर से आपके लौड़े खड़े करने के और चूतों में पानी लाने के लिए हाजिर हूँ।

भले ही मेरी कहानियों में ‘आह.. ऊह.. ऊई.. फच्च’ जैसे शब्द ना हों.. पर अगर आप मेरी कहानियों के पात्रों के स्थान पर खुद को रख कर पढेंगे.. तो मेरा दावा है कि भूतपूर्व नौजवान और आज के बुड्डों..बुढ़ियों के काम-अंगों में हुड़दंग मच जाएगा।

इस बार की कहानी मेरे एक दोस्त और उसकी मैडम तबस्सुम की है और आगे इस कहानी को आप खुद तबस्सुम मैडम की जुबानी सुनिएगा।

हैलो साथियो.. मेरा नाम तबस्सुम है.. मैं कश्मीर की रहने वाली हूँ, मेरी उम्र 24 वर्ष है और वर्तमान समय में मैं दिल्ली में किराए पर रहती हूँ।

मेरी शादी असफल रही और मैं परित्यक्ता का जीवन बिता रही हूँ।

चूंकि मैं MA पास हूँ.. सो दिल्ली आकर टीचर की नौकरी करने लगी.. पर टीचर की नौकरी से ज्यादा पैसे कोचिंग से कमा लेती थी। अतः मैंने एक फुल टाईम कोचिंग खोल ली।

एक दिन एक आंटी मेरे पास एक 19 वर्ष के लड़के को ट्यूशन के लिए लाईं। मैंने उस मस्त लौंडे को देखकर अपनी वर्षों से शांत पड़ी ‘अन्तर्वासना’ को उफान लेते हुए महसूस किया।

अब मैं उसको शाम को अकेले में पढ़ाती थी। मैं उसे कभी-कभी शाबासी देने के बहाने चूम लेती.. अपने गले से भी लगा लेती थी। उसे मेरे जिस्म से आती हुई सेंट की सुगंध बहुत पसंद थी।

एक दिन मैंने अपनी सलवार की मियानी (बुर के ठीक ऊपर लगने वाला तिकोना कपड़ा) की सिलाई इस तरह फाड़ दी.. कि टाँगें फैला कर बैठने से बुर साफ़ साफ़ दिखाई दे।

यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

अब मैं उसको पढ़ाने के लिए कुर्सी पर एक पाँव से उकड़ू हो कर बैठ गई। थोड़ी देर बाद मेरी चाल कामयाब होते दिखाई दी, वो चोर निगाहों से मेरी टाँगों के बीच में झांकने लगा।

थोड़ी देर बाद मैंने उससे पूछा- क्या देख रहे हो?

वो कुछ नहीं बोला.. मैंने कहा- अगर नहीं बताओगे.. तो मैं तुमसे बात नहीं करूँगी।

वो बोला- आपकी सलवार फट गई है।

मैंने नाटक करते हुए हाथ नीचे लगाया तो अनायास ही मेरी ऊँगली बुर की फाँकों से टकरा गई।

मैंने कहा- किसी से मत बताना।

वो बोला- अगर आप मुझे अपनी खुशबू सूँघने देगी.. तभी मैं किसी को नहीं बताऊँगा।

मैंने उन्मुक्त होते हुए कहा- सूँघ लो.. किसने रोका है।

वो मुझे सूँघने लगा.. उसकी गर्म साँसें मेरे बदन से टकराने लगीं और मेरी वर्षों की सोई हुई ‘अन्तर्वासना’ फूट पड़ी, मैं उसके होंठों को चूसने लगी और उसके हाथ को पकड़कर अपनी चूचियों पर रख कर दबा दिया।

वो ऊपर से उनको दबाते हुए मसलने लगा, फिर उसने मेरे कुर्ते के गले में हाथ डाल कर चूची को पकड़ने की कोशिश की.. पर वो असफल रहा।

मैंने पीठ की तरफ से कुरते के हुक खोल दिए, अब उसके हाथ और मेरी चूची का मिलन हो चुका था।

वो बोला- मैडम.. आपके संतरे बहुत अच्छे हैं.. इन्हें खोल कर दिखाईए न…

मैं बोली- तुमने तो मेरी बुर पहले ही देख ली.. पर चूची तभी दिखाऊँगी.. जब तुम अपना लंड दिखाओगे।

वो शर्माने लगा.. मैंने उसके पेट पर हाथ रखकर सरकाते हुए उसके पैंट में घुसेड़ कर उसके कड़क होते हुए लंड को पकड़ लिया।

वो पूरी तरह उत्तेजित अवस्था में था, उसका लंड मेरी जैसी शादीशुदा औरत के हिसाब से छोटा और पतला था.. पर कड़क बहुत था।

मैंने उसके पैंट के बटन खोलकर उतार दिया। उसका लंड 120 डिग्री के अंश का कोण बनाते हुए छत की ओर था।

उसका लंड अभी पूरी तरह विकसित नहीं हुआ था, लंड के शिश्नमुंड से चमड़ा पूरी तरह हटा नहीं था।

मैंने चमड़े को पीछे किया, उसके लंड की गर्दन के गढ्ढे पर सफेद पदार्थ लगा था.. जो बहुत बदबू कर रहा था।

मैंने उसको बाथरूम में ले जाकर अच्छे से साबुन लगाकर साफ किया, अब मैं उसके लंड को चूसने लगी।

उसने उंगली दिखाकर कर बोला- मैडम मैं आपका छेद चखूँगा। मैंने कहा- अभी रुक.. बाद में!

मैं उसके लंड को बुरी तरह चूसने लगी लेकिन क्षण भर में ही उसने ऐंठते हुए लंड से पिचकारी छोड़ दी।

मैंने उसके वीर्य को अपने गले के अन्दर उतार लिया। उसने कहा- यह क्या हुआ.. मैडम?

स्पष्ट था कि यह उसका पहला स्खलन था।

मैं बोली- इस खेल में ऐसा ही होता है। वो बोला- बहुत मजा आया.. क्या ये खेल इसी तरह खेला जाता है?

मैंने कहा- नहीं.. असली मजा लेने का तरीका कल समझाऊँगी।

वो बोला- अब अपना स्वाद चखाइए।

मैं बिस्तर पर अपनी सलवार खोल कर चित्त लेट गई और अपने घुटने पेट की ओर मोड़ लिए।

उसने मेरी बाल रहित बुर के होंठ से अपने होंठ भिड़ा दिए और चूत की पुत्तीयों को अपने मुँह में भरकर बुरी तरह चूसने लगा।

उसके चूसने के ढंग से उसके अनाड़ीपन झलक रहा था.. पर उसकी हरकत ने मुझे पूरी तरह उत्तेजित कर दिया।

मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगीं।

वो मुँह हटाकर बोला- दर्द हो रहा है क्या मैडम? मैंने कहा- नहीं.. दर्द नहीं हो रहा.. मजा रहा है।

मेरी बात सुनकर वो फिर से बुर पर गर्म जीभ फिराने लगा। थोड़ी देर बाद उसने अपना मुँह बुर से हटा लिया।

शायद उसके होंठ थक चुके थे। मैं उसे परेशान नहीं करना चाहती थी। मैं तो उसके लंड-रस को पीकर संतुष्ट हो गई थी।

अगर उसे मैं अपनी बुर का स्वाद लेने से रोकती.. तो उसका ‘किशोर-मन’ आहत होता। मैंने उसको अपने ऊपर खींच कर कसकर चिपका लिया।

फिर मैं बोली- अब तुम्हें देर हो रही है.. घर जाओ.. नहीं तो तुम्हारी मम्मी चिंता करेंगी.. कल आना.. आगे का खेल कल बताऊँगी।

मैं अगले दिन बड़े बेताबी से उसका इंतजार करने लगी। आज उसकी हिचक दूर हो चुकी थी.. वो पूरी तरहा नंगा हो गया।

काफी देर तक काम-क्रीड़ा करने के बाद मैंने चोदने का पूरा तरीका उसे समझा दिया।

उसने लंड को मेरी बुर में डाल दिया और आगे-पीछे करने लगा। मेरी जैसी शादी-शुदा के लिए उसका लंड अपर्याप्त था.. पर ऊँगली से और मोमबत्ती से तो बहुत ज्यादा आनन्द आ रहा था।

वो पूरी ताकत लगाकर घर्षण कर रहा था, मैं भी उसे जोश दिलाने के लिए कभी-कभी ‘आह.. ऊह..’ की आवाज निकाल देती।

वो पूरे मन लगाकर मुझे ऐसे चोद रहा था.. जैसे उसे नई बुर मिली हो। वो बेचारा क्या जाने कि नई पुरानी बुर में और पुरानी बुर में क्या अंतर होता है.. उसे पहली बार तो बुर मिली थी।

कुछ देर बाद उसका वीर्य छरछरा कर बाहर निकलने लगा।

वो बोला- मैडम इस खेल में पहले वाले खेल से ज्यादा मजा आया।

अब हम रोज चुदाई करते.. मैं MC (माहवारी) के दौरान उसके लंड को चूसकर वीर्य पान करती।

दो साल तक हम चुदाई का खेल खेलते रहे। अब वो बड़ा हो चुका था, एक दिन अपने मित्र को लेकर आया।

बोला- मैडम, मेरा यह दोस्त भी आपके साथ वही खेल खेलना चाहता है।

मैंने गुस्से में उसको जोर से थप्पड़ मारा और बोला- चल निकल.. रंडी समझ रखा है.. मैं तो तुमसे प्यार करती थी और तुम मुझे बाजार में चुदवाने की सोच रहे हो।

वो और उसके दोस्त चले गए.. पर मैं वहाँ से हरियाणा चली गई और वहीं सैट हो गई हूँ। बस यही मेरी सच्ची कहानी है।

तो मित्रो, यह कहानी तबस्सुम की थी।

अपने विचार मुझको ईमेल कीजिएगा.. पर फालतू में बुर दिलाने की बात ना करें।

कल्लो रानी की काली चूत की लाली