जीना इसी का नाम है-9

Jeena Isi Ka Naam Hai-9

जीना इसी का नाम है-8

अनीता से मिले पैसे और जेवर दहेज मिली नगद रकम और मकान बेचने से आया पैसा, सब करके मेरे पास 70 लाख रुपये हो गए थे, मैंने इस कसबे में आकर शहर की अपेक्षा कम कीमत में एक काफी बड़ा प्लाट खरीद कर उस पर एक बंगला बना लिया और यहाँ खर्चे कम थे, सेलेरी अच्छी मिल रही थी, यहाँ शहर की भीड़ भाड़ और टेंशन नहीं थी, सबसे अच्छी बात यह थी कि यहाँ के लोग सीधे सादे थे और मुझे सम्मान देते थे। अनीता के साथ बिताई जिंदगी मैं एक बुरे सपने की तरह भूल गया।

हमारे घर के सामने एक और परिवार रहने आया इस परिवार में तीन सदस्य थे एक तो स्वयं पटेल साहेब जो सरकारी हाई स्कूल में टीचर थे, उनकी पत्नी और एक उनकी करीब 21 साल की लड़की! ये लोग बहुत सीधे सादे थे।

एक बार पटेल साहेब बीमार पड़े तो उनकी पत्नी ने मुझे कहा- बेटा, तुम जाकर इन्हें डॉक्टर को दिखा लाओ।

मैं पटेल साहेब को लेकर गया और और दवाई वगैरह करवा कर लाया, जब मैं वापस जाने लगा तो उनकी पत्नी ने कहा- बेटा, चाय पी कर जाना!

उन्होंने अपनी बेटी को आवाज दी- कनु, एक कप चाय बना कर ला!

थोड़ी देर बाद कनु मेरे लिए चाय लेकर आ गई, मैंने पहली बार उसे करीब से देखा, वह सांवले रंग की दुबली पतली और लम्बी लड़की थी, उसकी आँखें बड़ी बड़ी और काली थी, बाल काले और थोड़े घुंघराले थे बाकी वह एक सामान्य सी लड़की थी।

इसके बाद मैं उस घर में अक्सर आने जाने लगा, कनु से जब भी नजर मिलती, वो नजरें झुका कर चली जाती, मुझे उसकी आँखों में कभी कोई भाव नहीं दिखा, मुझे पता चला कि कनु अपने माँ और पिताजी का पूरा ख्याल रखती है, उसने अपने घर को बहुत ही साफ सुथरे ढंग से सजा कर रखा था, वह खाना भी बहुत अच्छा बनाती है।

मैं एक बार उनके घर खाना खा चुका था, उसके पिता उसकी शादी करने के लिए लड़का देख रहे थे पर उसके सांवले रंग और पटेल साहब की साधारण आर्थिक स्थिति को देख कर अच्छा रिश्ता नहीं मिल रहा था, मैं गोरी स्मार्ट लड़की के जलवे देख चुका था, मैंने सोचा कि यह लड़की मेरे जैसे सीधे सादे लड़के के लिए ठीक रहेगी।

एक दिन मैंने मौका देख कर पटेल साहेब से कहा- अगर आप को पसंद हो तो मैं कनु से शादी करने को तैयार हूँ।

पटेल साहब ने आश्चर्य से मेरी ओर देखा और सोच में पड़ गए, उन्होंने कहा- तुम एक अच्छे लड़के हो, मुझे इंकार तो नहीं है, फिर भी मुझे सोचने के लिए कुछ दिन की मोहलत चाहिए।

इसके बाद उधर से कोई खबर नहीं आई मैं सोच में पड़ गया कि मैंने रिश्ते की बात करके कोई गलती तो नहीं कर दी?

इसके करीब चार दिन बाद मुझे पटेल साहब ने उनके घर बुलाया, वहाँ पहले से ही कुछ बड़ी उम्र के लोग और उन लोगों के रिश्तेदार उपस्थित थे, वे लोग मुझे पारखी नजरों से देख रहे थे।

फिर उन लोगों ने मुझे कनु के लिए पसंद कर लिया पटेल साहब खुश थे, मेरी उसी दिन सगाई हो गई, एक बुजुर्ग के कहने पर कनु ने मुझे पानी पीने को दिया, फिर उसी बुजुर्ग के कहने पर मैंने 101 रूपये मैंने कनु के हाथ पर रखे, इसके बाद कनु ने मुझे बड़े सम्मान के साथ अंगूठी पहनाई।

इसके बाद कनु का नजरिया मेरे लिए बदल गया, वो चोरी छिपे मेरी ओर देखती थी और चोरी पकड़े जाने पर घबरा कर भाग जाती, घर के लोगों के सामने वो मेरे सामने नहीं आती थी।

उसमें एक परिवर्तन और आ गया था, अब वो बनठन कर रहने लगी थी, नए कपड़े पहनने लगी थी और सज संवर कर मेरे सामने आ जाती, फिर नजरें नीची करके चली जाती, उसका रूप खिलने लगा था, बनाव शृंगार के आगे उसका सांवला रंग कहीं दब गया था, वो पहले से खूबसूरत और गोरी लगने लगी थी।

इस बीच पटेल साहब और उनकी पत्नी को दो दिन के लिए कहीं जाना पड़ा, घर पर कनु अकेली थी, मैं शाम को ऑफिस से घर आया हाथ-मुँह धोकर खाना बनाने का सोच रहा था कि कॉल बेल बजी।

दरवाजा खोलते ही एक भीनी भीनी खुशबू आई, देखा तो सामने सजी संवरी कनु खड़ी थी, उसके हाथ में एक ढकी हुई थाली थी, वो इतना घबरा रही थी कि उसके दिल की धड़कन मैं सुन पा रहा था।

मैंने पूछा- क्या हुआ?

वो बड़ी मुश्किल से अटकते हुए बोली- खान्नन्न्ना… और मुझे थाली पकड़ा कर भाग गई। मुझे उसकी हालत पर हंसी आ गई।

मैं खाना खाकर सो गया। सुबह 7 बजे एक पड़ोस का एक 6 साल का लड़का मेरे पास आकर बोला- कनु दीदी थाली मंगा रही हैं।

मैंने थाली पर एक कागज रखा, जिस पर लिखा था- खाना बहुत अच्छा बना था, और हाँ इतना डरने की जरूरत नहीं है। फिर थाली ढक कर वापस कर दी।

मैं कम्पनी जाने के लिए निकल रहा था कि दो स्कूटी मेरे घर पर आ गई, जिस पर चार लड़कियाँ थी, आकर बोली- जीजा जी, हम कुसुम की सहेलियाँ हैं।

मैंने कहा- कौन कुसुम?

एक इतराती हुई बोली- अरे वो ही कुसुम पटेल… खाना बहुत अच्छा बना था, इतना डरने की जरूरत नहीं है, वो ही! फिर सब जोर से हंसने लगी।

मैंने कहा- अच्छा कनु?

एक बोली- हाँ जीजाजी, आपकी कनु वो ही..

इसके बाद चारो लड़कियाँ मेरे घर के अंदर आ गई, कहने लगी- जीजाजी, कुछ चाय वगैरह पिलाओ।

मैं बोला- ठीक है।

परिचय होने पर पता चला कि ये चारों इसी टाउन की हैं और कुसुम के साथ कालेज में पढ़ती हैं, इनके नाम मेघा, भावना, पूनम और शिल्पा है।

मेघा बोली- जीजाजी, आज भी कुसुम के माता पिता नहीं आने वाले हैं, आप ऑफिस से छुट्टी ले लो, आज आप हमें घुमाने कोशमी डेम ले जायेंगे।

मैं बोला- कनु भी चलेगी?

उसने कहा- क्यों नहीं चलेगी? हम लोगों ने ही तो सारा प्रोग्राम बनाया है। जा भावना, कुसुम को बुलाकर ला।

मैंने कहा- ठीक है।

मैं चाय बनाने लगा, तभी कुसुम आ गई, बोली- आप रहने दो, मैं चाय बना दूँगी। कि शिल्पा बोली- अरे कुसुम, शादी के बाद पति की खूब सेवा कर लेना… अभी इन्हें ही चाय बनाने दे, तो तू बस जल्दी से तैयार हो जा! वो बोली- मैं तैयार हूँ।

तभी मेघा बोली- ये कुसुम की बच्ची, तुझे कहा था ना कि साड़ी पहनना, यह सलवार सूट नहीं चलेगा, पता तो चलना चाहिए कि दुल्हन कौन है। पूनम जा, इसे साड़ी पहना कर ला!

कुसुम ना ना करती रही।

मैंने कहा- ठीक है, सलवार सूट ही सही!

तो पूनम बोली- जीजाजी, आप इसे नहीं जानते, इसके मन में तो लड्डू फ़ूट रहे हैं, यह ऐसे ही ना नुकुर कर रही है।

उन लड़कियों ने कुसुम को साड़ी पहनने पर मजबूर कर दिया, इसके बाद कुसुम सफ़ेद क्रीम रंग की साड़ी में आई जिस पर फूलों के प्रिंट थे, उसने लाल रंग का ब्लाउज़ पहन रखा था, उसकी बड़ी बड़ी आँखें, काले घने बाल, वो मुझे परी की भांति सुन्दर लग रही थी, मैं सोच रहा था जिस लड़की को मैं साधारण समझ कर शादी कर रहा था, वो वास्तव में अद्वीतीय सुंदरी है।

साड़ी पहन कर कुछ शरमाते हुए आई, बोली- जल्दी चलो, किसी ने देख लिया और अगर पापा को बता दिया तो मेरी खैर नहीं!

इसके बाद हम लोग अपनी अपनी गाड़ी निकालने लगे, कुसुम जाकर मेघा की स्कूटी पर बैठने लगी और बोली- पूनम, तू तेरे जीजाजी के साथ बाइक पर बैठ जा यार, मुझे शर्म आती है।

तो शिल्पा बोली- यार कुसुम, तू ज्यादा नखरे मत कर, ज्यादा शर्म आ रही तो शादी के मंडप में भी पूनम को बिठा देना, चल चुपचाप बाइक पर बैठ जा…

कुसुम शर्माती हुई मेरे साथ आ गई, वो लड़कियों की तरह दोनों पैर एक तरफ करके बैठी थी, थोड़ी देर के बाद जब हम टाउन के बाहर हुए तो कुसुम ने अपना एक हाथ धीरे से मेरे कंधे पर रख दिया, मुझे उसके नर्म हाथ का स्पर्श एसा लगा मानो उसके हाथों से अमृत बह कर मेरे पूरे शरीर में फ़ैल रहा है।मुझे जिंदगी में पहली बार सच्चे सुख की अनुभूति हुई।

सफ़र 30 k.m. का था, मुझे लगा कि काश जिंदगी भर कुसुम ऐसे ही बैठे रहती।

डैम पर पहुँच कर देखा वो एक बहुत सुन्दर जगह थी, ठण्ड का मौसम था, पानी खूब भरा था, डैम से लगा हुआ एक बड़ा बगीचा था और किनारे पर एक छोटा मगर खूबसूरत रेस्टारेंट कम भोजनालय था।

हम लोगो ने वहाँ चाय नाश्ता किया और घूमने निकलने लगे। तभी होटल वाला बोला- सर आप खाने का आर्डर दे देते, तो जब तक आप घूम कर आते खाना रेडी हो जाता!

मैं उसकी चतुराई पर मुस्कुराया और लड़कियों से बोला- आर्डर दो, आप क्या खाना पसंद करेंगी?

इस दौरान कुसुम सिर्फ सर नीचे कर के खड़ी थी। आर्डर देकर हम लोग बगीचे में घूमने लगे, तभी एक नाव वाला आ गया, बोला- सर बोटिंग करेंगे?

मैंने प्रश्नवाचक नजर से सबकी ओर देखा, मेघा बोली- क्यों नहीं!

पूनम बोली- न बाबा, मुझे तो डर लगता है।

बोट वाला बोला- दीदी, डरने की बात नहीं है, नाव बड़ी है, आज मौसम भी अच्छा है।

कुसुम बोली- रहने दो।

कि भावना बोली- तुम तो चुप ही रहो बन्नो, हम तो जायेंगे… ऐ पूनम चल मर नहीं जाएगी…

हम लोग नाव में बैठ गए, कुसुम मेरे बाजू में बैठी थी, वो अब कुछ सहज लग रही थी।

डैम काफी बड़ा था, नाव चल रही थी, हमारे अलावा कोई दूसरी नाव डैम में नहीं थी, डैम के दूसरी तरफ छोटा सा पहाड़ था, हमारी नाव उस तरफ से गुजर रही थी, मुझे ऐसा लग रहा था कि परियों की रानी अपनी सहेलियों के साथ मुझे लेकर परीलोक जा रही हो। कुसुम का शरीर कभी कभी टच हो जाता, मैं पहली बार ऐसा सुखद स्पर्श महसूस कर रहा था, लग रहा था नारी का सुख, प्यार और साथ क्या होता है, शायद जीना इसी का नाम है। कहानी जारी रहेगी।