जिस्म की जरूरत-17

एक तो पहले ही उसकी चूचियाँ चिकनी थीं, ऊपर से मेरे मुँह से निकले रस से सराबोर होकर और भी चिकनी हो गई थीं… मेरी हथेली में भरते ही उसकी चूचियों की चिकनाहट ने वो आनन्द दिया कि मैंने एक बार अपनी हथेली को जोर से भींच कर चूचियों को लगभग कुचल सा दिया।

‘आआह्हह… ..सीईईई ईईस्सस्स…’ बस इतना ही निकल सका उसकी जबान से.. मैंने मज़े से उसकी चूचियों का रसपान जारी रखा और साथ ही साथ मर्दन भी करता रहा।

हम दोनों दीन-दुनिया से बेखबर उस बारिश के शोर में एक दूसरे से लिपटे एक दूसरे के अन्दर समां जाने को बेकरार थे… मेरे हाथों ने अब अपना स्थान बदलना शुरू किया… चूचियों को होठों के हवाले करके अब मेरे हाथ उसके पेट पर चलते-चलते उसकी नाभि को एक बार फिर से छेड़ने लगे… उँगलियों ने जैसे ही नाभि को छुआ तो मेरा ध्यान उसकी तरफ खिंच गया… मैंने वंदना की चूचियों को अपने मुँह से निकला और अपनी जीभ को बाहर निकल कर चूचियों के घाटी के बिल्कुल बीच से होते हुए अपनी छाप छोड़ते-छोड़ते सीधा उसकी नाभि में समां कर रुक गए…

अब यह एक और ऐसी जगह है स्त्रियों के शरीर में जहाँ हलकी सी सरसराहट भी उत्तेजित कर देती है और अगर उस जगह जीभ रख दी जाए तो फिर तो सिहरन से शरीर उन्मादित हो उठता है। मैंने वंदना को वही उन्माद दिया था… अपनी जीभ की नोक को उसकी सुन्दर गहरी नाभि में यूँ चलाने लगा मानो एक छोटी सी कटोरी जिसके अन्दर सिर्फ कोई नुकीली चीज़ ही जा सकती है, वहाँ से कोई शहद चाट कर पी लेना चाहता हूँ… नाभि को चूम-चूम कर मैं फिर से उसकी चूचियों को मसलने लगा। वंदना के हाथ पहले की तरह ही मेरे बालों से खेल रहे थे…

मेरे हाथों ने एक बार फिर से अपने स्थान परिवर्तन का फैसला किया और अब धीरे-धीरे चूचियों को सहलाते हुए पेट की तरफ बढ़े और फिर मेरी उँगलियाँ वंदना की पटियाला सलवार से टकरा गई… मैं अपनी उँगलियों को आहिस्ते-आहिस्ते कमर की तरफ से उसकी सलवार के अन्दर डाल दिया और लगभग दो उँगलियों से जितना संभव हो सके उतना नीचे की तरफ सरका दिया…

अब मेरी उंगलियों को खेलने के लिए उसकी नाभि और उसकी मुनिया के बीच की सपाट चिकनी सतह मिल गई और उँगलियों ने उस सतह को हौले-हौले सहलाना शुरू किया…

स्त्रियों का यह भाग बहुत ही संवेदनशील होता है… मेरी उँगलियाँ मानो मेरे होठों का मार्गदर्शन कर रही थीं। नाभि को अपने मन मुताबिक़ चूमने के बाद सहसा ही मेरे होंठ नाभि के ठीक नीचे उसी भाग को चूमने लगे… अब मेरे नाक में एक चिर-परिचित महक आने लगी…

जी हाँ… आपका अनुमान बिल्कुल सही है, यह महक वहाँ से आ रही थी जहाँ पहुँचने की लालसा हर एक मर्द में होती है… ‘चूत’ !!

एक मदहोश कर देने वाली महक जिसने हमेशा मुझे मदहोश किया है… आज भी और आज से पहले भी।

वंदना के सपाट पेट और चूत तथा नाभि के बीच के चिकने भाग पर मेरी जीभ खुद बा खुद फिसलने लगी… साथ ही साथ मेरी उँगलियाँ अब बड़े ही मुस्तैदी से वो डोर ढूंढ रहे थे जिसे खींचे बिना स्वर्ग के उस दरवाज़े के दर्शन नहीं हो सकते। ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी मुझे और वंदना के शलवार की डोरी मेरे हाथों में आ गई… मैंने उसके पेडू को चूमते हुए ही डोरी को हल्के से खींचा!

इस बार भी नारी सुलभ लज्जा का प्रदर्शन हुआ और एकदम से वंदना ने अपने हाथों से मेरे हाथों को रोकने का प्रयास किया लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी.. मेरे प्रेम भरे मनुहार ने वंदना के अन्दर अब विरोध करने की शक्ति को क्षीण कर दिया था… थोड़ी सी ना नुकुर के बाद मैंने डोरी को पूरी तरह खोल दिया और एक बार वंदना की तरफ देखा…

वंदना ने अपने हाथों से अपना मुँह ढक लिया… उसकी इस हालत पे मैं वासना भरी मुस्कान के साथ अपने काम में वापस लग गया… हमें काफी देर हो चुकी थी… उस जगह रुके हुए और अपने प्रेम लीला शुरू किये हुए लगभग डेढ़ घंटे बीत चुके थे… वासना अपनी जगह है और जिम्मेदारियाँ अपनी जगह.. यह एक बात है मेरे अन्दर और यह मैं खुद नहीं कहता, बल्कि मेरे साथ सम्बन्ध बना चुकी हर उस लड़की या स्त्री ने कहा है जिसके हर बात का ध्यान रखा था मैंने।

इस प्रेम लीला को बीच में रोक तो नहीं सकता था मैं क्यूंकि मैं खुद उन्माद से मरा जा रहा था.. अब देर करना उचित नहीं था.. वैसे भी हम एक छोटे से शहर में सुनसान सड़क पर थे।

अब मैंने झुक कर फिर से वंदना की नाभि से होते हुए अपनी जीभ की नोक को नीचे की तरफ सरकाना शुरू किया और साथ-साथ अपनी उँगलियों को उसकी सलवार और उसकी सिल्की पैंटी में फंसा कर हौले-हौले सरकाना शुरू किया… जैसे-जैसे उसकी शलवार पैंटी के साथ सरकती जा रही थी वैसे-वैसे मेरे होठ खाली हो रहे भाग पर अपनी छाप छोड़ रहे थे… और जितना मेरे होंठ चूत रानी के करीब पहुँच रहे थे उतना ही वंदना का शरीर काँप रहा था… उसका बदन आग की तरह तप रहा था, अगर उस वक़्त थर्मामीटर होता तो उसके बदन से सटाते ही उसका पारा उसे तोड़ कर बाहर आ जाता!

और अब अंततः मेरे होटों ने कुछ नरम रेशमी सा महसूस किया… यह रेशमी चीज़ और कुछ नहीं, वंदना के चूत पे उगे हुए रोयें थे… मैं एक बार को थोड़ा चौंका जरूर था।

वंदना की उम्र लगभग 18 साल से ज्यादा हो चली थी और इस उम्र में चूत के ऊपर रोयें नहीं होते बल्कि वो सख्त होकर झांट का रूप ले लेते हैं… लेकिन वंदना की चूत पर अब भी वो बाल बिल्कुल रोयें की तरह ही थे जो मेरे होठों और मेरे नाक पे गुदगुदी कर रहे थे।

अब लगभग मैंने उसकी चूत को पूरी तरह से नंगी कर दिया था… एक बार फिर वंदना ने आखिरी बार अपने सर्वस्व को छुपाने की नाकाम कोशिश की। उसने अपने दोनों हाथों को अपनी कोमल चूत पर रख लिया और उसे पूरी तरह से ढक लिया। यह स्वाभाविक था…

मैंने उसके दोनों हाथों पे बारी-बारी से चुम्बन लिया और फिर अपने हाथों से पकड़ कर उसके हाथों को अलग किया। थोड़ी सी जद्दोजेहद के बाद मैंने उसकी मुनिया को पुर्णतः आज़ाद कर लिया और अपने होटों को उसकी संतरे के फांकों के सामान बंद चूत के ऊपर रख दिया… उसके दोनों हाथ मेरे दोनों हाथों में थे… जैसे ही मैंने उसकी चूत पर अपने होंठ रखे उसने अपने हाथों को खींचना शुरू किया, लेकिन मैंने अपनी पकड़ बनाये रखी और उसकी चूत पे चुम्बनों की बरसात कर दी… वंदना तो एक बार पहले ही झड़ चुकी थी और उसकी चूत से निकले हुए काम रस का साक्षात्कार मेरे होठों से भी हुआ था… उसकी चिपचिपाहट मेरे होठों पे लग चुकी थी लेकिन मेरे चुम्बनों की बरसात ने उसकी चूत को एक बार फिर से इतना उत्तेजित कर दिया कि चुदाई से पहले निकलने वाली रस से अब उसकी चूत सराबोर हो चुकी थी।

अब मैंने धीरे से उसके हाथों को छोड़ दिया क्यूंकि मैं जानता था की अब वो कोई विरोध नहीं करेगी… ऐसा ही हुआ और उसके हाथ अब मेरे सर को अपनी चूत पे दबाने लगे… मैंने अपनी उँगलियों से उसकी चूत के बंद दरवाज़े को थोड़ा सा फैला दिया और इस बार अपनी जीभ पूरी तरह से बाहर निकाल कर सीधा उसकी चूत के मुहाने तक घुसा दिया।

‘आऐईईईइ…’ एक किलकारी गूंजी उस शोर में और काम रस की दो तीन बूँदें सीधे मेरे जीभ पे गिरी… अब अगर मैं थोड़ी देर और ऐसे ही उसकी चूत को चाटता तो वो फिर से झड़ जाती और मैं ऐसा नहीं चाहता था… अबकी बार मैं उसे अपने लंड की चोट के साथ झाड़ना चाहता था।

पहली बार में लड़की अपने चूत को ज्यादा देर तक नहीं चटवा पाती है, यह मेरा अनुभव है लेकिन एक दो बार के बाद अगर चूत को सही तरीके से चाटा और चूसा गया हो तो फिर चूत को इसमें असीम आनन्द मिलता है और फिर तो चूत की मालकिनों को ऐसा चस्का लगता है कि बस पूछो ही मत… उनका बस चले तो सारी रात अपनी चूत को अपने प्रेमी से चुसवाती रहें और जीभ से उसकी चुदाई करवाती रहें!

समय की नजाकत को देखते हुए अब देर करना उचित नहीं था… लेकिन यह क्या… वंदना के हुस्न में मैं ऐसा खोया कि उसे तो पूरी तरह से नंगी कर दिया लेकिन खुद अब भी पूरे कपड़ों में था मैं…

मैं अपने आप पर हंस पड़ा… मैंने अब भी उसकी चूत को नहीं छोड़ा था और अपने जीभ से हौले-हौले उसकी चूत को छेड़ रहा था… मेरी हर हरकत वंदना को और भी पागल बना रही थी और वो जल बिन मछली की तरह तड़प रही थी।

मैं अब उससे थोड़ा अलग हुआ और जल्दी से अपने शर्ट के बटन खोलने लगा।

मेरे यूँ अचानक हटने से वंदना की आँखें बरबस ही खुल गईं और उसने अपना एक हाथ अपनी चूत पर रख कर अपने चूत के दाने को सहलाना शुरू किया… हालाँकि मुझे उससे इस बात की उम्मीद नहीं थी, मैं सोच रहा था की वो अब भी शायद थोड़ी झिझक समेटे यूँ ही अपने बदन को हिलाकर अपनी बेचैनी ज़ाहिर करेगी लेकिन शायद इस उत्तेजना को संभालना उसके लिए कठिन था।

मैं अब अपनी शर्ट उतर चुका था और मेरे हाथ अपनी पैंट को निकलने में व्यस्त थे… एक तो वो छोटी सी कार… जिसमें आप सीट को पीछे करके लेट तो सकते हो लेकिन अपनी टांगों को अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ फैला नहीं सकते… मुझे अपनी पैंट उतरने में खासी मेहनत करनी पड़ी… लेकिन चुदाई के जोश के आगे कुछ भी मुश्किल नहीं होता.. जैसे तैसे मैंने अपने आप को कपड़ों से मुक्त किया और वापस वंदना की तरफ मुड़ा… मेरे मुड़ते ही वंदना अचानक से उठ बैठी और मुझसे लिपट कर मेरे नंगे सीने पे चारों तरफ चूमने लगी… मैंने भी उसे फिर से अपनी बाहों में जकड़ लिया और हम दोनों के बदन बिल्कुल चिपक से गए… हवा भी नहीं गुजर पाती हमारे बीच से!

इस चिपकने का फायदा यह हुआ कि मेरे ‘नवाब साब’ (जी हाँ मैं उन्हें ‘नवाब साब’ ही कहता हूँ) वंदना के पेट से टकरा गए… उनका तो यह हाल था कि लोहार की भट्ठी में तपे हुए लोहे की मोटी छड़ के समान धधक रहे थे..

जैसे ही मेरे लंड ने उसके पेट पे दस्तक दी वैसे ही वंदना ने अपनी आँखें मेरी आँखों में डाल दिन और आश्चर्य से मेरी तरफ देखने लगी। मैंने मुस्कुराकर आँखों ही आँखों में उसे बता दिया कि वो कौन है जो उनसे मिलने को बेताब हुआ जा रहा था..

मेरी आँखों की भाषा समझते ही उसने शर्म से अपनी आँखें झुका लीं और और मेरे सीने में अपना सर छुपा कर अपनी उँगलियों से मेरी पीठ को सहलाना शुरू किया।

मैंने अब उसकी आखिरी झिझक को दूर करना ही उचित समझा और उसका एक हाथ पकड़ कर उसे सीधे अपने ‘नवाब साब’ पर रख दिया।

मेरे लिए किसी लड़की या स्त्री का मेरे लंड को छूना कोई पहली बार नहीं था लेकिन फिर भी लंड तो लंड ही होता है… जब भी कोई नया हाथ उसे दुलार करे तो वो ठुनक कर उसका स्वागत जरूर करता है… मेरे लंड ने भी वंदना के हाथ पड़ते ही ठुनक कर उसका स्वागत किया..

लेकिन इस ठनक ने वंदना को थोड़ा सा चौंका दिया और उसने लंड के ऊपर से हाथ हटा लिया लेकिन उसके हाथ अब भी लंड के आस पास ही थे…

‘क्या हुआ… कमरे में तो बहुत तड़प रही थीं आप इन्हें पकड़ने के लिए… अब जब ये खुद आपसे मिलना चाहते हैं तो आप शर्मा रही हैं…!?!’ मैंने धीरे से उसके कानो के पास अपने होठ ले जा कर फुसफुसा कर कहा।

‘धत… बदमाश कहीं के…’ वहाँ अँधेरा था लेकिन मैं इतना जरूर कह सकता हूँ कि यह कहते हुए उसके चेहरे पे लाली जरूर छा गई होगी।

‘मुझे डर लग रहा है… .कुछ होगा तो नहीं??’ वंदना ने दबे हुए गले से कांपते होठों से कहा। कहानी जारी रहेगी।