चोद सको तो चोद लो

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दोस्तो, मैं आपकी इकलौती लाड़ली प्यारी चुदक्कड़ जूही एक बार फिर अपनी प्यार की दास्तान लेकर प्रस्तुत हुई हूँ। आप लोगों ने जो मेरी सभी चुदाइयों की कहानियों को सराहा उसके लिए मैं झुक कर नमन करती हूँ। आशा है आप यों ही मेरी चूत और चुदाई की सराहना करते रहेंगे।

मैंने कुछ दिनों पहले ही जिम ज्वाइन किया था, मेरा ट्रेनर अनिल बहुत ही गठीला और तंदरुस्त है। शुरू में तो उसने मुझे सिर्फ कार्डिओ ही करवाया जिसमें बहुत मज़ा आ रहा था, पर धीरे धीरे अब वो मुझसे डम्बेल भी उठवाने लगा जिससे मैं बहुत थक जाती। अब चूंकि कसरत करते थे अंग से अंग मिलना तो लाज़मी था और एक दूसरे के प्रति थोड़ी बहुत भावनाओं का जागृत होना ही बनता ही है। अब चूंकि वो लड़का है, उसका खड़ा होता है और लड़के तो चूत चोदने का कोई मौका छोड़ना नहीं चाहते फ़िर लड़की से चिपकना तो कौन से खेत की मूली थी।

अब मुझे तो एक्सरसाइज करनी थी, चाहे जैसे करवाए, मैं कहाँ कुछ कर सकती थी और फिर इन चीज़ों में मुझे भी मज़ा आता है। एक दिन उसने मुझे थाईज़ लगवा दी। अब उसके बाद तो जैसे मेरे टांगो और गाण्ड की बैंड बज चुकी थी, अब तो न उठा जाये ना चला जाये… दर्द इतना हो रहा था कि ठीक से चला भी नहीं जा रहा था।

मैंने अनिल को कहा- तुम मुझे घर छोड़ दो।

अनिल मुझे जैसे तैसे बाइक पे बिठा के घर ले आया। घर पर कोई नहीं था इसलिए मैंने अनिल से रिक्वेस्ट की कि मेरी मालिश कर दे। शायद थोड़ा दर्द कम हो जाये और मैं ठीक से कम से कम चल तो पाऊँ।

अनिल ने मुझे औंधे लिटा दिया और मेरे पैरो की नसों को दबाने लगा। बीच बीच में उसके हाथ घुटनों के ऊपर मेरी कोमल जाँघों पर भी आते रहते थे, मुझे भी हल्का महसूस हो रहा था।

करीब पंद्रह मिनट तक टांगों की मालिश के पश्चात मुझे थोड़ी राहत मिली पर दर्द अभी भी बहुत था। मैंने अनिल से कहा- दर्द हल्का कम है पर अब भी इतना ज्यादा है कि मुझे चला नहीं जायेगा। अनिल बोला- अगर सरसों के तेल से मालिश हो तो दर्द बहुत हद तक कम हो। मैंने अनिल से कहा- गैस चूल्हे के पास सरसों के तेल की बोतल रखी है, ले आओ।

अनिल तेल ले आया, बोला- कपडे के ऊपर लगाऊँ?

मैंने कहा- ठीक है, लोअर निकाल दो।

अनिल ने धीरे अपने हाथ मेरे गाण्ड की तरफ बढ़ाये और फिर लोअर पकड़ कर मेरी जाँघों से होता हुआ मेरे पैरों से निकाल दिया। जब उसने मेरी लोअर निकलनी शुरू की थी तभी लोअर की आड़ लेकर मेरी पैंटी भी थोड़ी नीचे कर दी जिससे मेरी पैंटी मेरी कमर के बजाय मेरे गाण्ड की दरार पे आ गई थी।

अनिल ने तेल लिया और ज़ोर से मेरी जांघों से पैरों तक की मालिश करने लगा और साथ ही साथ बीच बीच में उनको दबाने का पूर्ण आनन्द ले रहा था, मुझे भी अच्छा लग रहा था इसलिए मैंने भी विरोध नहीं जताया। धीरे धीरे उसके हाथ मेरे चूतड़ों पर आ गए और चढ़ाई करने लगे। कभी उनको ज़ोर से दबा के मसलने लगता तो कभी सीधा ऊपर से नीचे छलांग लगाने लगता। मैंने भी इशारा समझने की देर किये बिना उसका हाथ पकड़ा और उसका हाथ मेरी पैंटी में घुसा दिया। संकेत साफ़ था कि ‘चोद सको तो चोद लो!’

मैंने जहाँ उसका एक हाथ घुसाया उसने दूसरा खुद घुसा लिया और दोनों हाथों से मेरे चूतड़ों को मसलने लगा, बड़ी राहत महसूस हो रही थी। ऐसा लग रहा था मानो दर्द धीरे धीरे शरीर से निकलता जा रहा हो। कुछ ही पलों में मेरी पैंटी को भी मेरा साथ छोड़ना पड़ा क्यूंकि अब अनिल का मूड बन रहा था और मैंने तो पहले ही हरी झंडी दे दी थी। अनिल ने जैसे ही मेरी पैंटी निकाली, मैंने अनिल से साफ़ साफ़ कह दिया- जो तुम्हारी इच्छा हो, कर लो क्यूंकि मुझसे तो तो कुछ नहीं किया जायेगा।

अनिल ने भी हाँ से कहकर आगे बढ़ा दी। अब प्यासे को कुआं मिल गया तो फिर कितना पानी मिलेगा इससे उसे क्या फर्क पड़ना था, यही हाल अनिल का था। अनिल अपनी ऊँगली में तेल लगाकर मेरी गाण्ड की दरार में रगड़ने लगा और कुछ ही पलों के भीतर ये उँगलियाँ मेरी गाण्ड के अन्दर थी। थोड़ी देर तक मेरी गाण्ड में ऊँगली करने के पश्चात अनिल ने मेरे बिस्तर से दो तीन तकिये मेरे कमर के नीचे रख दिए जिसे मेरे चूतड़ ऊपर उठ गए। अनिल ने फटाफट अपनी पैंट और चड्डी उतारी और फिर मेरी कमर को दोनों हाथों से पकड़ा और धीरे धीरे मेरी गाण्ड में अनिल का लंड घुस रहा था, मुझे थोड़ा सा भी दर्द नहीं हो रहा था क्यूंकि जो दर्द मुझे जिम के बाद हो रहा था, यह उसके मुकाबले सहनीय था।

धीरे धीरे अनिल अपने लण्ड के टोपे का बड़ा भाग़ जो टोपे के आखिरी सिरे होता है, मेरे अंदर जाने लगा। उसका आधा लंड लंड मेरी गाण्ड के अंदर जा चुका था और वो धीरे धीरे पीछे का अपना मोटा लम्बा लण्ड भी मेरी गाण्ड में घुसाता जा रहा था। और अब मुझे थोड़ा थोड़ा दर्द हुआ, अब मुझे दोनों दर्दों का एहसास अच्छे से हो था और धीरे धीरे मालिश का असर कम हो रहा था, मैं दर्द से चीखने लगी- आअह्ह… ह्ह्ह… अह… ऊऊह… ऊओह्ह्ह… ह्ह…

थोड़ी देर में उसने धीरे धीरे अपना लण्ड बाहर की तरफ खींचा और आधा बाहर आते ही फिर से अंदर घुसा दिया और फिर उसने मेरी गाण्ड में लण्ड को तेजी से घुसा लिया दिया और फिर धक्कमपेल-अन्दर बाहर गाण्ड चुदाई का खेल शुरू हो गया, कभी लंड अंदर तो कभी बाहर, कभी मेरी सांस अंदर और लंड बाहर तो कभी मेरी सांस बाहर और लंड अंदर, यह खेल यूँ ही चलता रहा और करीब 15 मिनट तक तो मुझे बहुत ज्यादा दर्द हुआ पर धीरे धीरे दर्द कम और मज़ा ज्यादा आने लगा और धीरे धीरे दर्द कम होने लगा, शिथिल शरीर में हरकत होने लगी, बदन में जान आने लगी।

थोड़ी देर तक लंड को विराम देने के पश्चात अनिल फिर हरकत में आ गया और इस बार मुझे भी हल्की सी गर्मी आ गई थी इसलिए मैंने अपने चूतड़ और ऊपर उठा लिए। अनिल तुरंत नीचे झुका और और मेरे कूल्हे को किसी सेब के भांति अपने मुँह में भर लिया और काटने लगा, कभी ऊपर तो कभी नीचे कभी दाएँ तो कभी बाएँ। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! यह बिलकुल ठीक वैसे ही प्रतीत हो रहा था जैसे जब आपको सर में बहुत दर्द हो और आपका कोई मसाज कर दे। मेरी बदन में दर्द और कम हो गया।

थोड़ी देर बाद अनिल फिर हरकत में आया। उसके छपाक से अपना लंड मेरी गाण्ड के गोल पोस्ट दे मारा और फिर लपालप मेरी गाण्ड बजाता रहा और मैं दर्द से राहत भरी आहें भरती रही। जब दोनों चुदाई से थक गए तो वहीं लेट गए। अनिल की इच्छा तो चूत बजाने की भी थी, पर मैंने किसी और दिन का बहाना मार टाल दिया। भला चूत इतनी आसानी से थोड़े ने दूंगी। इस भाग में इतना ही… अगले भाग में मैं आपको बताऊँगी कि कैसे अनिल को मेरी चूत चोदने का मौका मिला और उसके लिए क्या पापड़ बेलने पड़े। आपको मेरी कहानी कैसी लगी, जरूर बताना ! आपकी इकलौती प्यारी चुदक्कड़ जूही [email protected]

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