सेक्स के प्रति सोच में आमूल परिवर्तन की जरूरत

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परिवर्तन ही सृष्टि का दस्तूर है। मगर हममें से अधिकांश लोगों का बचपन से ऐसी धारणा होती है कि दुनिया स्थिर और स्थाई है, जिसमें परिवर्तन एक दुखदायी अनुभव है। सब रोजमर्रा के काम हम अपनी आदतों के वशीभूत बिना सोचे समझे आसानी से कर लेते हैं। हमें अपनी पुरानी आदतों को छोड़ना और उनमे परिवर्तन करना जोखिम भरा लगता है। बदलना हमें बहुत कठिन और असहज भी लगता है इसलिए हम नयी राह पर चलने में हिचकते हैं।

आज दुनिया सब दिशाओं में तेज गति से बदल रही है। आज हम जिस राह पर खड़े हैं यह उन दूरदर्शी विद्वानों की वजह से है जिन्होंने अपने ज़माने से आगे सोचा और बदलाव को समाज में क्रियान्वित किया।

अभी भी सेक्स के प्रति हमारी धारणाएँ पुराने सामाजिक एवम् धार्मिक सिद्धान्तों पर आधारित है जो समाज में पाखण्ड को जन्म देती हैं। हमें अब सेक्स के प्रति सोच में आमूल परिवर्तन करना जरूरी है। इस बात को ध्यान में रखते हुए मैं किशोरों और युवाओं के लिए कुछ व्यावहारिक सुझावों को प्रश्नोत्तर के माध्यम से प्रस्तुत कर रहा हूँ।

प्रेम और सेक्स के प्रति किशोर मन में कई प्रश्न उठते हैं। फिल्म, मीडिया और गलत पुस्तकों ने नौजवानों के दिमाग को और उलझा दिया है। नतीजन प्रेम और सेक्स के प्रति उनका रुख ईश्वरीय सुख से भटक कर विकृति एवं अश्लीलता की ओर चला गया। इस वजह से समाज में अपराध और यौन उत्पीड़न बढ़ गए हैं।

आज की जीवन शैली को देखते हुए किशोरों को सेक्स के प्रति स्वस्थ और विवेकशील मार्ग दर्शन करने के लिए प्यार और सेक्स के बारे में हमारी सामाजिक मान्यताओं से परे परिवर्तन लाना आवश्यक है।

सेक्स प्रकृति द्वारा प्रदत्त सभी जीवित प्राणियों के लिए संतानोत्पत्ति और अपनी पीढ़ी को आगे बढ़ाने का एक जरिया है। सेक्स प्रकृति द्वारा प्रदत्त आनन्द और मनोरंजन का साधन भी है। प्रकृति एक विशेष उम्र के बाद हर प्राणी के नर और मादा को मिलन के लिए प्रेरित करती है।

सेक्स का आवेग इतना तीव्र होता है कि नर का जननांग मादा के जननांग के मिलन के लिए और मादा नर के जननांग के लिए आतुर हो जाती है, यह क्रिया पूर्णतया नैसर्गिक होती है।

सब प्राणियों में सेक्स के लिए सन्देश दिमाग से जननांगों तक जाता है, और जननांग सम्भोग के लिए उत्तेजित हो जाते हैं। फिर नर अपना लिंग नारी की योनि में प्रवेश करा के वीर्य को नारी की योनि में संचित होने के लिए छोड़ देता है।

सेक्स के विचार से या किसी स्त्री के साथ सम्भोग की इच्छा होने से लिंग में खून के प्रवाह से तनाव आता है, लिंग से बिना रंग का चिकना पदार्थ रिसने लगता है। इसी तरह स्त्री के मन में सम्भोग की इच्छा या विचार आने से योनि में संकुचन और फैलाव होने लगता है। योनि से भी एक रंगहीन चिकना तरल पदार्थ निकलने लगता है। इस पदार्थ से लिंग और योनि को सम्भोग के समय घर्षण के दौरान चिकनाई मिलती है।

अनजाने में लिंग का खड़ा होना बचपन से अधेड़ उम्र तक होता रहता है। किशोर उम्र और शुरुआती जवानी में लिंग बार बार खड़ा होना आम बात है। रोज रात में नींद में भी लिंग कई बार तन जाता है।

यह इसलिए भी होता है कि आस पास कई तरह के सेक्स उत्तेजक मौजूद होते हैं। जैसे की सड़क पर जानवरों का सेक्स देखना, कोई उत्तेजक कहानी पढ़ना या उत्तेजक विचार आना, उत्तेजक फिल्म या चित्र देखना आदि, इसके बारे में चिन्ता की कोई बात नहीं। यह होना एकदम नैसर्गिक है।

पहली बात यह है कि स्वप्नदोष कोई दोष या बीमारी नहीं है, सही शब्द है वीर्य स्खलन।

वीर्य स्खलन प्रकृति का दिया सेफ्टी वाल्व है, यह कोई अप्राकृतिक क्रिया नहीं है। विवाह से पहले वीर्य को स्खलित होने के लिए योनि नहीं मिलने से नींद में जब लिंग तन जाता है तो उत्तेजनावश वीर्य स्खलित हो जाता है। अगर आपको सम्भोग का मौका मिले या आप हस्तमैथुन कर वीर्य स्खलित करें तो स्वप्नदोष बहुत कम हो जायेंगे।

यह भ्रम नीम-हकीमों द्वारा फैलाया गया है, सत्य कुछ और ही है। जैसा कि मैंने ऊपर कहा है ये दोनों सेफ्टी वाल्व हैं। हस्त मैथुन से आपके मन को शांति और स्फूर्ति मिलेगी। आप अपनी पढ़ाई या दूसरे काम में अच्छे से मन लगा सकेंगे।

प्रकृति में देखो जो जानवर स्वतंत्रता से सेक्स करते हैं वो काफी बलवान और उर्जावान होते हैं। दूसरी ओर बैलों को देखो उन्हें बधिया कर सेक्स नहीं करने देने से वे कमजोर दिखते हैं। यानि की वीर्य स्खलन से कोई कमजोरी नहीं आती।

हर व्यक्ति की हस्तमैथुन करने की क्षमता अलग अलग होती है। कोई हफ्ते में दो या चार बार तो कोई दिन में दो तीन बार हस्तमैथुन करना चाहता है। इसमें कोई ज्यादती की बात नहीं है। कोई व्यक्ति अपने आप से ज्यादती नहीं कर सकता इसलिए कोई डर की बात नहीं है।

याद रखो वीर्य स्खलन, हस्तमैथुन या सम्भोग सब प्राकृतिक हैं, इनसे कोई कमजोरी नहीं आती। अगर किसी को कमजोरी महसूस हो तो कारण मन में डर और हीन भावना का होना है।

काम वासना और काम आवेग एक नैसर्गिक सत्य है। किसी आवेग को दबाना या उसके विरोध में खड़े होना असम्भव है। एक अलग दिशा देना सम्भव है। क्या आप भूख और प्यास को दबा कर शांत कर सकते हैं? दबाने का मतलब ही हुआ कि आप उस बात पर ज्यादा ध्यान दे रहे हो।

उत्तम उपाय है, अपना ध्यान किसी और विषय पर केन्द्रित करो, जैसे पढ़ाई, खेल या अपना काम… तब आवेग कम हो जायेगा मगर पूर्ण रूप से ख़त्म नहीं होगा, उसकी जरूरत भी नहीं है।

युवकों में यह धारणा और चिन्ता आम है। ज्यादातर नौजवान इस चिन्ता से ग्रस्त होते हैं कि उनका लिंग छोटा है, और सम्भोग संतुष्टि के काबिल नहीं है।

पोर्न चित्रों और फिल्मों को देख कर यह धारणा और मजबूत हो जाती है।

यहाँ यह समझ लें कि जैसे आम फिल्मों के लिए दिखने औए एक्टिंग में अच्छे लोगों को चुन कर लिया जाता है वैसे ही पोर्न फिल्मों के लिए औसत से अधिक बड़े लिंग वालों को लिया जाता है, चित्र भी इस तरह खींचे जाते हैं कि लिंग बड़ा दिखे।

अगर आप अपने चारों ओर लोगों को देखें तो पाएँगे कि उनके डील डौल हाथ, पैर, आँख, कान, नाक, आदि अलग अलग आकार और विस्तार के होते हैं। तब यह सोचना कि मेरा लिंग बड़ा ही हो गलत है। सबके लिंग का आकार भी अलग अलग होता है। यह अनुवांशिक होता है।

स्त्री की योनि का बाहर से 2-3 इंच तक का भाग ही संवेदनशील होता है। इस लिए 3 इंच का छोटा लिंग भी सम्भोग में स्त्री को आनन्द प्रदान कर सकता है।

एक सर्वेक्षण के अनुसार ज्यादातर स्त्रियों को बहुत लम्बे लिंग से गोलाई में मोटे लिंग पसन्द होते हैं। स्त्री को सिर्फ लिंग के योनि प्रवेश से ही नहीं अपितु कई अन्य उपायों से जैसे कि उसके सिर से पैर तक के विभिन्न अंगों को सहलाना, चूमना आदि से उत्तेजना और तृप्ति मिलती है।

स्त्री सम्भोग में प्रेम और समर्पण चाहती है। स्त्री सम्भोग में पूर्ण भावात्मक रूप से जुड़ने के बाद ही पूर्ण सहयोग करती है।

सिर्फ लिंग के आकार को सेक्स में महत्त्व देना सर्वोपरि नहीं है।

अलग अलग नस्ल के स्त्री पुरुषों के योनि और लिंग अलग आकार प्रकार के होते हैं। उनका रंग और झांट के बालों (pubic hair) का फैलाव भी अलग होता है।

महर्षि वात्स्यायन ने स्त्री और पुरुषों को उनके योनि / लिंग के साइज़ (माप) के हिसाब से तीन भागों में बाँटा है। वे इस प्रकार हैं:

इस वर्गीकरण के हिसाब से स्त्री पुरुष के सम्भोग के लिए 9 प्रकार के जोड़े बन सकते हैं। मगर अगर खरगोश लिंग वाला पुरुष हथिनी स्त्री से सम्भोग करता है तो स्त्री असंतुष्ट रहेगी, इसके उलट अगर घोड़ा पुरुष हिरनी स्त्री से सम्भोग करे तो स्त्री के लिए कष्टदायी होगा। वात्स्यायन के अनुसार समरत सम्भोग ही सब में सुखदायी होता है। यह बात कुछ हद तक सिद्ध करती है कि कुछ पति पत्नी सम्भोग में असंतुष्ट क्यों रहते हैं।

आपके लिंग की लम्बाई और मोटाई नस्ल और अनुवांशिकी पर निर्भर करती है। आपका लिंग उपर दिए वर्गीकरण में से एक होगा और आप इसी वर्ग में रहेंगे, नीमहकीम पर भरोसा न कीजिये, लिंग की लम्बाई और मोटाई बढ़ाने के लिए कोई दवा नहीं है। शल्य चिकित्सा भी बहुत कारगर नहीं है, और बहुत महँगी भी है।

यहाँ पर यह याद रखना चहिये की लिंग में कोई मांसपेशी (muscle) नहीं होती, इसलिए व्यायाम से जैसे आप अपनी भुजाओं को तगड़ा कर सकते हैं वैसे लिंग को नहीं कर सकते। हालांकि कुछ व्यायाम से या सम्भोग की प्रबल इच्छा से लिंग थोडा अधिक कड़ा होगा और बड़ा लगेगा। वियाग्रा की गोली लिंग के अन्दर दोनों थैलियों (Corpus) को फैला (relax) देती है। जब इन थैलियों में खून भरता है तो लिंग ज्यादा कड़ा होकर थोड़ा बड़ा हो जाता है।

है भी और नहीं भी। मगर किशोर अवस्था में यह एक मोह (Infatuation) होता है। प्रथम दृश्या प्रेम प्रकृति का इन्सान को वयस्कता में पदार्पण होने का संकेत है।

इस उम्र में विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण अपने आप पैदा होता है। प्रेम की सत्यता तभी पता चलती है जब प्रेमी एक दूसरे को अच्छी तरह जान लें। इसके लिए जरूरी है कि आपस में मैत्री रखें और एक दूसरे की आदतें, स्वभाव और हो सके तो सेक्सुअल पसन्द नापसन्द और जरूरतें समझ लें।

अगर आप दोनों की काम वासना बिल्कुल अलग अलग है तो शादी के बाद आप दोनों एक दूसरे को संतुष्ट नहीं कर पाएँगे इसलिए (love at first sight) को प्रेम तक सीमित रखें तो ठीक, विवाह के लिए बहुत कुछ देखना जरूरी है।

आज की पीढ़ी को पढ़ाई और करियर के लिए बहुत कठिन परिश्रम करना पड़ता है इसलिए पुराने ज़माने जैसे अब जल्दी शादी करना असम्भव हो जाता है, लड़के लड़की 30 साल तक अविवाहित रहते हैं, उन्हें घर से दूर बाहर भी रहना पड़ता है।

प्रकृति तो अपना काम 16 साल की उम्र से शुरू कर देती है।

आजकल प्रिंट और विजुअल मीडिया में सेक्स भरपूर परोसा जाता है, ये सब नौजवानों की सेक्सुअल चाह को और उत्तेजित करते हैं। अगर उत्तेजित लालसा को सही राह न मिले तो कुण्ठा जन्म लेती है और समाज में अश्लीलता, और अपराध बढ़ जाते हैं। इन परिस्थितियों में शादी के पहले सेक्स लाजिमी हो गया है।

शादी के पहले बालिग स्त्री पुरुष का आपसी सहमति से सम्भोग करना कोई पाप या अपराध नहीं है।

प्रथम सम्भोग के लिए कानूनन लड़के और लड़की की उम्र 18 साल के ऊपर होनी चाहिए। मेरा अनुभव यह है कि किसी लड़के को प्रथम सम्भोग अपने से बड़ी शादीशुदा या कुआंरी स्त्री से करना चाहिए। इसी प्रकार किसी लड़की को भी प्रथम सम्भोग अपने से बड़े पुरुष के साथ करना चाहिए। ऐसा करने से नौजवानों को बड़ों के अनुभव का फायदा मिल जाता है।

धार्मिक उपदेशों ने समाज में बहुत पाखण्ड पैदा किया है, जूठी नैतिकता ने मनुष्य के दिमाग को भ्रमित कर दिया है। धर्म डर और अज्ञान की उपज है। धर्म के नाम पर समाज पर बहुत सी वर्जनाएँ लादी गई हैं। समय के साथ कोई उनमें बदलाव नहीं करना चाहता। सेक्स भगवान (प्रकृति) की दी हुई नेमत है। प्रकृति हमें बुरी या पापयुक्त चीजें नहीं देती इसलिए प्यार और सेक्स पूर्णतया प्राकृतिक और ईश्वरीय है, इनमें कोई पाप नहीं है।

जो धर्म गुरु लोगों के सामने तो बड़ी बड़ी बातें करते हैं और एकांत में सेक्स के बारे में ही सोचते हैं और कुकृत्य करने से भी नहीं कतराते, वे पाखण्डी हैं।

पाखण्ड मनुष्य के दिमाग की उपज है काम वासना ईश्वर प्रदत्त है। काम वासना सही तरीके से तृप्त करना पाखण्ड से बेहतर है। अगर आप आपसी सहमति से बालिग उम्र में सम्भोग करते हो तो आपको जो परम सुख प्राप्त होगा वह कहीं और नहीं मिलेगा।

जैसे हमें भोजन और नींद की जरूरत होती है, वैसे ही सम्भोग की इच्छा शरीर की एक नैसर्गिक जरूरत है। चूँकि यह ईश्वर प्रदत्त जरूरत है इसलिए इस इच्छा का समाधान भी जरूरत के अनुसार भोजन और नींद के समान करना होगा। इस इच्छा के विरुद्ध आप लड़ नहीं सकते। आप स्त्री हो या पुरुष इस तरह की इच्छा उत्पन्न होने में न तो कोई पाप है न ही यह कोई गलत काम है।

हर समाज में क्या गलत क्या सही, यह निश्चित करने के अलग अलग मापदंड हैं। आचरण सही है या गलत इस के बारे में कोई निरपेक्ष सत्य नहीं है।

जानवरों की दुनिया में सेक्स वयस्क होते ही शुरू हो जाता है। मगर इस युग में इंसानों की दुनिया में वयस्क होते से ही सेक्स करना असम्भव है।

इसका बड़ा कारण करियर बनाने के लिए शादी की उम्र बढ़ना है। इस हालत में इस समस्या का उचित हल है अपना ध्यान दूसरी गतिविधियों जैसे पढ़ाई, संगीत, खेल, आदि कलाओं में लगाना।

इससे सेक्स की तरफ ध्यान कम बंटेगा मगर इच्छा पूर्णतया ख़त्म नहीं होगी। वैसे यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि उसकी सेक्स उत्तेजना कितनी बलवती है।

एक उपाय हस्तमैथुन करना है। अगर आपकी काम वासना हस्तमैथुन से भी तृप्त न हो और अगर आप कानूनन वयस्क है तो किसी के साथ कैजुअल सेक्स कर सकते हैं।

मगर याद रहे सेक्स पूर्ण सहमति से होना चाहिए। असहमति से किया गया सेक्स अपराध है।

आपको यौन बिमारियों (STD) से बचने के लिए और स्त्री को गर्भाधान से बचने के लिए कंडोम का इस्तेमाल करना चाहिए।

दूसरी बात, कभी भी सेक्स के बाद अपने मन में पाप या अपराध की भावना न आने दें, इसमें कुछ बुरा नहीं है।

यह तो वैसे ही है जैसे कभी कभार आप बाहर खाना खाते हैं।

यदि आप जबरन इस इच्छा को दबायेंगे तो वह और बलवती होगी। आप दूसरे जरूरी काम में ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाएँगे, आप कुंठित और विचलित रहेंगे।

मानव जाति में शादी की प्रथा जरूरत और मजबूरियों की उपज है। पाषाण युग में मनुष्य अन्य जानवरों की तरह रहते थे और सेक्स भी वैसे ही करते थे। बहुदा इसमें नर नारी के साथ सम्भोग के लिए लड़ते थे, इस लड़ाई में प्रकृति बलवान का ही साथ देती थी।

धीरे धीरे मनुष्य समूह में रहने लगे, और परिवारों का जन्म हुआ।

परिवार में मुखिया और उसके बच्चे मिलकर खेती और शिकार करने लगे और शादी की प्रथा की शुरुआत होने से हर नर को शांति पूर्वक सम्भोग करने का मौका मिला।

इस तरह जीवन थोड़ा अनुशासित हुआ और परिवार बने।

इसके बाद धर्मों का प्रादुर्भाव हुआ। धर्म शादी की प्रथा में और भी रस्में लेकर आये, समाज में अनुशासन और बढ़ गया।इन सब तरीकों से समाज के कमजोर और बलवान सभी को सम्भोग का आनन्द और अपनी पीढ़ी को आगे बढ़ाने में सहायता मिली।

यही शादी प्रथा का सबसे बड़ा मार्गदर्शक नियम बना।

दूसरे शब्दों में शादी सेक्स और वंश वृद्धि करने का सामाजिक लाइसेंस है।

आज के समय भी शादी के बिना सेक्स आजादी से नहीं कर सकते। बिना शादी के एक पुरुष और स्त्री एक साथ रहने पर सामाजिक मान्यता नहीं मिलती। ऐसे सम्बन्धों के नतीजन अगर बच्चा हो जाये तो उस स्त्री और बच्चे का जीवन दूभर हो जाता है। ऐसी हालत में शादी एक बहुत मजबूत विकल्प है।

शादीशुदा जोड़े जब चाहें तब सम्भोग कर सकते हैं जबकि बिन शादी के सम्भोग के मौके बहुत कम मिलते हैं। शादीशुदा लोग बिना शादीशुदा लोगों से अधिक बार सम्भोग करते हैं।

इस हालत में जिन स्त्री पुरुषों की काम वासना बहुत तीव्र होती है, उन्हें शादी करना बहुत जरूरी है।

दुनिया में 90 प्रतिशत स्त्री पुरुषों को सेक्स में रूचि होती है, दस प्रतिशत ही होंगे जिन्हें सेक्स में रूचि नहीं होती।

प्रकृति में जितनी विभिन्न प्रजातियाँ हैं उनमे सिर्फ मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जोकि अपनी वंश वृद्धि के बजाय ज्यादा से ज्यादा संभोग आनन्द प्राप्ति के लिए करता है।

मनुष्य 7×24 घंटे कामुक रहता है इसके विपरीत जानवर अपने नैसर्गिक आवेग में सिर्फ अनुकूल परिस्थितियों में वंश वृद्धि के लिए कामुक होकर सम्भोग करते हैं।

मनुष्य में काम इच्छा परिस्थिति जन्य नहीं है, हमेशा मौजूद रहती है। शादी मनुष्य को कभी भी सेक्स करने की आजादी और सहूलियत देती है।

मनुष्यों को प्रकृति ने एक और क्षमता दी है। मनुष्य दूसरे को सेक्स करते देख कर, बातों से, फोटो या फिल्म देख कर उत्तेजित हो जाता है, जानवरों को यह क्षमता नहीं होती।

सम्भोग से सुख प्राप्ति के अलावा शादी का एक बहुत महत्व पूर्ण उद्देश्य परिवार का उत्तरदायित्व पूर्ण पालन और वंश वृद्धि है।

शादी से स्त्री पुरुष और उनके बच्चों को संयुक्त रूप से संरक्षण और पालन करने की सहूलियत मिलती है।

इसके अलावा बच्चों का पालन पोषण एवं शिक्षा आदि का उत्तरदायित्व माता पिता ठीक से निभा पाते हैं, पति पत्नी साथ रह कर सुख दुःख के साथी बनते हैं, बिमारी एवं बुढ़ापे में एक दूसरे का सहारा मिलता है, मनुष्य की भावनात्मक एवं मानसिक शांति के लिए यह सब आवश्यक है।

इसलिए कुछ अपवादों को छोड़ कर, शादी की अपनी एक अहमियत है जिसे नकारा नहीं जा सकता।

जैसा मैंने पहले कहा है सेक्स भी शरीर की भूख होती है। आप अपनी जरूरत के हिसाब से खाना खाते हैं, पानी पीते हैं, उसी तरह अपनी काम इच्छा के अनुसार सेक्स भी कर सकते हैं।

सेक्स की भूख नैसर्गिक रूप से नियंत्रित होती है और हर व्यक्ति में इसका वेग अलग अलग होता है, इसमें आप ज्यादती नहीं कर सकते।

हर व्यक्ति की काम वासना और काम उर्जा अनुवांशिक और आसपास के वातावरण पर निर्भर करती है। इसी वजह से उन दम्पतियों को, जिनकी कामेच्छा विरोधी होती है, बहुत समस्या होती है और यह मनमुटाव का एक बड़ा कारण होता है।

हमारे देश में 45 के ऊपर के ऊम्र के दम्पति अपने को बूढ़ा मान कर सम्भोग की आवृति कम कर देते हैं, यह गलत धारणा है।

संभोग की क्रिया को ताऊम्र जारी रखना चाहिए जिससे दोनों संगी चुस्त तंदुरुस्त रहते हैं, उनके जनांग भी सक्रिय रहते हैं।

एक स्टडी के अनुसार नियमित सम्भोग करने वाले लोगों की आयु ब्रम्हचर्य का पालन करने वालों से ज्यादा होती है।

इस अनुसार देखें तो शादी के पहले दशक में विभिन्न जोड़े हफ़्ते में पांच छह बार से लेकर दिन में तीन चार बार सम्भोग करते हैं। इसके बाद कम से कम हफ़्ते में दो से तीन बार तो सम्भोग करते रहना चाहिए।

असल में शादी के दस साल बाद पति पत्नी की जवाबदेहियाँ बढ़ने लगती हैं, जैसे आफिस में काम, बच्चों का पालन, शिक्षा आदि। इस वजह से कामेच्छा कम हो जाती है।

दूसरा कारण चिन्ता और ख़राब तंदुरुस्ती है।

अंत में यही कहा जा सकता है कि इस प्रश्न का उत्तर पति पत्नी के आपसी सामंजस्य और पारिवारिक जवाबदेही पर निर्भर है।

एक बात याद रखें सम्भोग किसी भी रोज किसी भी समय किया जा सकता है। जब आप उत्तेजित हों तब संभोग करें। कोई समय निश्चित न करें। प्रातःकाल लिंग में स्वाभाविक रूप से तनाव रहता है, यही समय सबसे उपयुक्त है। दोपहर का समय भी अनुकूल होता है। रात में किये जाने वाला सेक्स एक तरह से नित्यचर्या समान होता है क्योंकि दोनों दिनभर के परिश्रम से थके होते हैं।

इसके आलावा संयुक्त परिवार में सेक्स के लिए बहुत कम मौका मिलता है। जो मौका मिलता है उसमे फोरप्ले के लिए कोई समय नहीं मिलता, सम्भोग जल्दी ख़त्म करना पड़ता है, सम्भोग जानवरों की तरह वंश वृद्धि का एक साधन मात्र रह जाता है। सेक्स भी एक तरह का रोजमर्रा का एक काम हो जाता है, इस वजह से सेक्स का आनन्द ख़त्म हो जाता है और धीरे धीरे इच्छा भी मर जाती है।

सेक्स के लिये पुरुष और स्त्री को एकांत और समय आवश्यक है।

इसके अलावा अपने आप को चिन्ता और तनाव से मुक्त रखें।

संभोग के पहले ज्यादा Foreplay करें।

जब आप सम्भोग कर रहे हों तो दूसरी बातें न तो करें और न ही सोचें।

हाँ अगर आप सेक्स के बारे में ही बातें करें या सोचे तो और बेहतर है।

सम्भोग करने की जगह, समय और आसन बदलते रहें। जरूरी नहीं है कि सेक्स बेडरूम में ही किया जाये।

Oral सेक्स (मुख मैथुन) करें।

हमेशा सम्भोग कुछ नए तरीके से करने का सोचें, जैसे दोनों एक साथ कोई उत्तेजक चित्र या फिल्म देखें।

सेक्स टॉयज आजमायें।

इसके अलावा साथ साथ नहायें, बाहर जा कर या कार में सेक्स करें आदि।

बदलाव के बिना सेक्स में रूचि बरकरार नहीं रखी जा सकती।

दोनों साथी स्वस्थ हों तो मुख मैथुन बिल्कुल गलत नहीं है। इस सवाल का कोई सुनिश्चित उत्तर भी नहीं हो सकता क्योंकि यह बात पूर्ण रूप से दोनों साथियों पर निर्भर करती है कि वे क्या पसन्द करते हैं।

अगर दोनों साथियों को कोई संक्रमण नहीं है और वे अपने यौन अंगों को साफ रखते हैं तो मुख मैथुन करने में कोई बुराई नहीं है। मुख मैथुन से सम्भोग का आनन्द दुगुना हो जाता है और नारी को उत्तेजित करने में बहुत सहायता मिलती है।

नारी की भगनासा (Clitoris) बहुत संवेदन शील होती है, जैसा कि नर का लिंग मुंड, इसे चूमने और चूसने से नारी बहुत जल्दी उत्तेजित हो जाती है।

मुख मैथुन Foreplay का एक बहुत महत्त्व पूर्ण हिस्सा है। जिन्हें पसन्द हो उन्हें जरूर करना चाहिए।

माहवारी में सम्भोग करने में कोई हर्ज नहीं है, दो चार बातें ध्यान में रखना है, कुछ स्त्रियों को माहवारी में बहुत परेशानी होती है, जैसे की कमर या पीठ में दर्द, सर दर्द पेट दर्द आदि।

कुछ पुरुषों या स्त्रियों को अच्छा नहीं लगता, किन्ही को डर भी लगता है, धार्मिक मान्यताएँ भी आड़े आती हैं।

ऐसे में सम्भोग आपसी सहमति से करें।

इसके विपरीत कुछ लोगों को कोई परेशानी नहीं होती। जो स्त्रियाँ तंदुरुस्त होती हैं उन्हें इस अवस्था में सम्भोग से कोई एतराज नहीं होता।

एक स्टडी में यह बात सामने आई है की कुछ स्त्रियों को माहवारी के समय योनि में एक अजीब सी मीठी खुजली महसूस होती है। इस समय उनकी योनि अधिक सन्वेदनशील होती है। इस समय सम्भोग करने पर लिंग के योनि के अन्दर घर्षण से उन्हें बहुत सुकून मिलता है और आनन्द प्राप्त होता है।

लिंग से योनि की सफाई भी हो जाती है। माहवारी के समय झांट के बाल शेव कर लें तो बहुत अच्छा है।

माहवारी में सम्भोग करने से स्त्री पुरुष दोनों को कोई नुकसान नहीं है, अपनी अपनी पसन्द है।

जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि सेक्स ईश्वर प्रदत्त एक नैसर्गिक देन है। इसके लिए हमें प्रकृति ने लिंग और योनि जैसे अति सुन्दर अंग दिए हैं। अगर आप प्रकृति की ओर देखें तो पाएँगे कोई भी जानवर गुदा मैथुन नहीं करता।

गुदा मैथुन अप्राकृतिक है और विकृति भी है, फिर चाहे यह दो पुरुष या एक पुरुष और एक स्त्री के बीच हो।

गुदा मैथुन अस्वास्थ्यकर भी है। एक पुरुष को दूसरे पुरुष के लिंग के प्रति और एक स्त्री को दूसरी स्त्री की योनि के प्रति उत्सुकता हो सकती है, मगर यह उत्सुकता सिर्फ एक दूसरे के अंग को दुलारने या चूमने तक ही सीमित होनी चाहिए।

बरट्रांड रसेल ने कहा है ‘अगर आपकी शादी बहुत मजबूत प्रेम और विश्वास पर टिकी हो तो उसे खोने के लिए कुछ भी नहीं है अगर आप शादी के बाहर भी सेक्स करते हैं।’

हमारे संस्कार और मान्यताएँ हमें शादी के बाहर सेक्स करने से रोकती हैं, सामाजिक बंधन भी आड़े आते हैं।

इस बाबत एक प्रकार का डर सदियों से हमारे खून में है। अक्सर देखा गया है कि शादी के कुछ साल बाद पति पत्नी में सेक्स का आकर्षण कम हो जाता है और सेक्स भी रोजमर्रा का काम लगने लगता है।

शादी के बाहर सेक्स इस परिस्थिति को तोड़ कर वैवाहिक जीवन में नये उत्साह का संचार कर सकता है।

शादी के पहले या बाद आपसी सहमति से आप कोई भी दो वयस्क सेक्स कर सकते हैं। जब तक आप अपने जीवन साथी की भावना को नुकसान नहीं पहुँचाते, शादी के बाहर भी सेक्स जायज है। इसके लिए पति और पत्नी के बीच पूर्ण आपसी विश्वास और अच्छा संवाद होना चाहिए।

अगर पति और पत्नी इसे सही परिपेक्ष्य में लें तो बाहरी सेक्स उनके वैवाहिक जीवन में बहुत प्रेरक और उत्तेजक स्रोत साबित हो सकता है और उन्हें सम्भोग में नई स्फूर्ति प्रदान कर सकता है।

उदाहरणार्थ आप कभी होटल में खाना खाते हैं और उसे पसन्द भी करते हैं तो क्या घर का खाना छोड़ देते हैं? नहीं ना, आप बाहर खाना सिर्फ बदलाव के लिए खाते हैं, इसी तरह सेक्स भी कभी कभी बदलाव के लिए किया जा सकता है।

ज्यादातर लोग सदियों की धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं और नैतिकता के वशीभूत इन स्वछंद विचारों से सहमत नहीं होंगे।

उनकी सोच में शादी के बाहर सेक्स पाप है और इससे शादी टूट जाएगी। जो भी हो अगर दोनों में से एक भी साथी को मंजूर नहीं है तो शादी के बाहर सेक्स की जोखिम ना लें।

दोस्तों उपरोक्त सुझावों पर अगर आप को कोई शक या मन में कोई प्रश्न हो तो मुझसे [email protected] पर पूछें। अभद्र भाषा का प्रयोग न करें।

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