सौतेली दीदी की चूत चुदाई -1

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अनाम मैं शहर से दूर फॉर्म हाउस में रहता हूँ। मेरे परिवार में छह लोग हैं। मैं सबसे छोटा हूँ.. मेरी दो बहनें और एक भाई है.. मेरी दोनों बहनें मुझसे बड़ी और मेरी सौतेली बहनें हैं। मेरे पिता ने दो शादियाँ की थीं।

मैं जब छोटा था.. तब से मैं अपनी बड़ी दीदी को देखता रहता था। मैं जब स्कूल में पढ़ता था.. तब एक बार मैंने अपनी दीदी को कपड़े बदलते हुए देखा था.. उस वक्त वो टॉपलैस थीं और उस वक्त उनके बड़े-बड़े मम्मे हवा में तने हुए थे.. 32 इन्च नाप के रहे होंगे.. उस समय वो फर्स्ट इयर में पढ़ती थीं और बस तब से मैं उसको देखता रहता था। उनके चूतड़ इतने मस्त उठे हुए थे कि क्या बताऊँ..

मैं दीदी को याद करके मुठ मारता था और मैंने सोच रखा था कि उनको एक दिन मैं ज़रूर चोदूँगा.. पर कभी मौका नहीं मिला.. उसे मैं हमेशा खा जाने वाली नजर से घूरता रहता था और उनके मस्त उठे हुए मम्मों को देखता रहता था।

वक्त गुजरता गया और एक दिन उनकी शादी हो गई.. दीदी की शादी के 4 महीने बाद मेरे घर वाले किसी के शादी के लिए एक हफ्ते के लिए बाहर जाना था। इस कारण से मुझे घर में अकेला हो जाना था.. इसलिए दीदी घर आ गई थीं।

उनके आते ही घर वाले चले गए.. मैंने सोच लिया कि अब एक हफ्ते में मैं दीदी को किसी भी हालत में चोद कर रहूँगा और मैंने प्लान बना लिया। सवेरे जब मैं नहाने गया.. तो मैं जानबूझ कर अपने कपड़े नहीं ले गया और नहाने के बाद सिर्फ़ गमछा पहन कर बाहर आया और दीदी को कहा- मेरे कपड़े कहाँ हैं?

तब दीदी मेरे कपड़े देखने लगीं.. तो मैंने लण्ड को गमछे के छेद से बाहर निकाला.. मैंने पहले ही गमछे में छेद कर रखा था। जब दीदी ने मेरी अंडरवियर मुझे दी.. तो मैंने कहा- इसमें तो चींटी लगी हैं।

मैं चींटी निकालने लगा.. तब मेरा 7″ का तना हुआ लण्ड दीदी को सलाम कर रहा था। दीदी ने उसको थोड़ी नजर भर कर देखा और शरमा के भाग गईं।

बाद में दीदी जब नहाने जा रही थीं.. तो मैंने मेरे मोबाइल से अपने ही घर के लैंड लाइन वाले फोन पर घंटी की.. और दीदी को आवाज लगा दी- प्लीज़ फोन उठा लो.. दीदी जब फोन सुनने गईं.. तब मैं बाथरूम में जाकर उनके सारे कपड़े ले आया।

जब दीदी नहा रही थीं.. तब मैंने बाथरूम के दरवाजे की दरार से उन्हें नहाते हुए देख रहा था।

अपने सारे कपड़े दीदी ने उतार दिए.. सिर्फ़ अंडरवियर बाकी था। दीदी के सख्त मम्मे.. बड़े ही मस्त.. बड़े-बड़े तने हुए थे और अंगूर जैसे निप्पल थे।

दीदी नहाने लगीं.. जब दीदी ने सब जगह साबुने लगा लिया.. तो अंडरवियर में हाथ डाल कर चूत में साबुन लगाया। शायद कभी दीदी ने चूत की शेविंग नहीं की थी.. उनकी झांटें साफ नज़र आ रही थीं।

फिर वे पानी डालकर नहाने लगीं और थोड़ी देर बाद दीदी ने अंडरवियर में हाथ डाल लिया और चूत को सहलाने लगींस। मैं समझ गया कि दीदी अब गर्म हो गई हैं।

वे चूत को सहलाते-सहलाते हाँफने लगीं तब उनके मम्मे भी अपने रंग में आ गए और निप्पल तन कर दूध देने को तैयार हो उठे। उनके मम्मे भी पूरे 37-38 इन्च के हो गए थे और थोड़ी देर बाद दीदी ने अपनी उंगली निकालीं और उस पर लगा हुआ चूत का रस चाट गईं।

इतना सब होने पर भी दीदी ने चड्डी नहीं निकाली। नहाने के बाद गमछे से अपना तन पोंछने लगीं.. तब मैं वहाँ से चला गया।

बाद में दीदी ने मुझे आवाज़ दी.. मैं गया.. तो दीदी बोलीं- मेरे कपड़े दे दो.. शायद मैं बाहर भूल आई हूँ.. मैं कपड़े देखने का नाटक करने लगा.. और मैंने कहा- मुझे नहीं मिल रहे हैं..

तो दीदी बोलीं- मेरे पास कपड़े नहीं है.. पहले सारे कपड़े भिगो दिए.. अब क्या करूँ? मैंने कहा- गमछा लपेट कर आ जाओ न..

तो दीदी बाहर निकलीं.. दीदी का पूरा बदन गमछे से साफ नज़र आ रहा था। मैं दीदी को ही देख रहा था। गमछा भीग जाने के कारण पूरा पारदर्शी हो गया था था।

दीदी बोलीं- मेरे कपड़े कहाँ हैं। मैं दीदी के मम्मे देख रहा था।

वो अभी भी अपने पूरे रंग में थे.. फिर दीदी कमरे में गईं.. मैं भी दीदी के पीछे-पीछे चला गया।

दीदी बोलीं- तुम यहाँ क्या कर रहे हो? मैंने कहा- आप को देख रहा हूँ। तो दीदी ने मुझे गुस्से से कहा- मैं तेरी बहन हूँ। उन्होंने मुझे एक ज़ोर का तमाचा मेरे गाल पर मार दिया और कमरे के बाहर निकाल दिया।

बाद में मैं दीदी से नज़र नहीं मिला पा रहा था। उनके साथ बात भी नहीं कर रहा था।

दो दिन बाद दीदी ने कहा- मुझे कार चलानी सीखनी है। मैंने कहा- मैं नहीं सिखाऊँगा।

तब दीदी मेरे पास आईं और मुझे समझाने लगीं- ये बात ग़लत है.. मैं तेरी बहन हूँ। मेरे दिमाग में नया ही ख्याल आया और मैंने कहा- ठीक है।

मैं दीदी को गाड़ी सिखाने को तैयार हो गया और हम लोग खाली रोड पर गाड़ी ले गए। वो रोड अच्छा था और दोपहर होने कारण वहाँ कोई ट्रैफिक भी नहीं था।

मैंने उनके साथ जाने से पहले ही मेरी अंडरवियर बाथरूम में निकाल दी थी। अब मैंने दीदी को ड्राइविंग सीट पर बैठाया और मैं दीदी के बगल वाली सीट पर बैठ गया।

मैंने दीदी को गाड़ी चलाने को कहा.. तो दीदी ने एकदम से तेज भगा दी।

एकदम से दीदी डर गईं और मैंने हैण्ड ब्रेक लगा दिया।

दीदी ने कहा- ये मेरे से नहीं होगा। तो मैंने दीदी से कहा- फिर से ट्राई करो न.. फिर से दीदी ने वैसे ही किया.. तो दीदी बोलीं- रहने दो.. मेरे से नहीं होगा।

फिर मैंने दीदी को मेरी सीट पर बैठाया और ड्राइविंग सीट पर मैं आ गया। दीदी से कहा- मैं कैसे चलाता हूँ.. वो देखो..

मैं गाड़ी चलाने लगा और साथ उनको समझाने लगा। कुछ दूर जाने के बाद मैंने दीदी से कहा- अब आप चलाइए।

दीदी नहीं मानी.. तो मैंने कहा- एक काम करते हैं मैं यहीं पर ही बैठा हूँ.. और आप मेरे आगे बैठ जाओ.. मैंने पीछे से आपको बताता रहूँगा। तो दीदी ने कहा- हाँ, यह ठीक है।

जब दीदी ने मेरी तरफ आने के लिए गेट खोला.. तो मैंने मेरे पैन्ट की चैन खोल दी.. और लण्ड को बाहर निकाल कर शर्ट से छुपा दिया। आज दीदी ने सलवार-कुरता पहना था। दीदी जब आईं तो मैंने उनको अपनी गोद में बैठा लिया और उनके पीछे होते-होते मैंने दीदी का कुरता ऊपर कर दिया और अपनी शर्ट को भी ऊपर कर दिया।

अब जैसे ही दीदी मेरी गोद में बैठीं.. तो मेरा लण्ड उनकी गाण्ड को टच होने लगा। तो दीदी ने पीछे मुड़कर देखा.. पर कुछ कहा नहीं। उनको लगा कि मेरा लण्ड पैन्ट में होगा।

मैंने मेरे पैर उनके पैर के नीचे से ऊपर ले लिए ताकि वो हिल ना सकें। मुझे उनके चूतड़ों से रगड़ने का सुख मिलने लगा जिससे मेरे लौड़े में और तनाव आ गया।

मैंने गाड़ी स्टार्ट की और चलाने लगा। मेरा लण्ड खड़ा होते-होते उनकी गाण्ड के छेद को टच होने लगा था। मेरा लवड़ा पैन्ट से बाहर होने के कारण आराम से उनकी गाण्ड को सहला रहा था।

दीदी कुछ नहीं बोलीं.. बोलतीं.. तो भी क्या बोलतीं.. बाद में मैंने गाड़ी का स्टेयरिंग दीदी के हाथ में दे दिया और कहा- अब आप चलाइए। मैंने अपने दोनों हाथ उनकी जाँघों पर रख लिए और धीरे-धीरे सहलाने लगा।

फिर धीरे से रफ़्तार बढ़ाना शुरू किया। अब दीदी से गाड़ी कंट्रोल नहीं हुई.. तो मैंने एकदम से ब्रेक मारा और दोनों हाथ जानबूझ कर दीदी के मम्मों पर रख दिए और मम्मों को दबा दिया। ब्रेक लगने से दीदी एकदम से उठ सी गई थीं.. जिससे मेरा लण्ड अब तक दीदी की चूत को टच करने लगता।

तब दीदी ने कहा- अगर तुम ब्रेक नहीं मारते तो हम रोड के नीचे चले जाते। मैंने कहा- हाँ..

दीदी के बोलने के पहले ही ब्रा के ऊपर से ही निप्पलों को ज़ोर से दबा दिया और छोड़ दिया। तब दीदी ने सिसकारी भरी थी.. पर दीदी ने कुछ नहीं कहा। मेरा लण्ड अभी भी उनके चूतड़ों से चिपका हुआ था। फिर दीदी ने कहा- चलो.. अब घर चलते हैं।

तो मैंने दीदी से कहा- आप गाड़ी चलाते रहो और हम वापिस चलते हैं। दीदी नहीं मान रही थीं.. फिर भी जब मैंने बहुत कहा- डरती रहोगी तो सीखोगी कैसे? तो वे मान गईं.. अब दीदी वैसे ही बैठी रहीं.. मैंने गाड़ी टर्न की.. और दीदी को चलाने दी।

मैंने अपना हाथ दीदी के पैरों पर रख लिया और सहलाने लग गया। मैं धीरे-धीरे कमर को भी आगे-पीछे करने लगा.. पैर सहलाते हुए मैं उनकी जाँघ के ऊपरी हिस्से तक आ गया था.. बिल्कुल चूत के पास.. पर मेरी चूत को हाथ लगाने की हिम्मत नहीं हुई। अब तक दीदी गर्म होना चालू हो गई थीं।

जब हम घर पहुँचने वाले थे.. तब मैंने कपड़े के ऊपर से ही मैंने चूत को ज़ोर-ज़ोर से हाथ को सहलाया।

तभी हम घर पहुँच गए.. तो दीदी कुछ भी ना बोलते सीधे भागते हुए बाथरूम चली गईं और खड़े-खड़े चूत में उंगली डाल कर पानी निकालने लगीं और चूत का सफेद पानी निकाल कर चाटने लगीं। उसके बाद मैंने सोच लिया कि दीदी अब मुझे खुद चोदने के लिए बोलेगीं.. तभी मैं इनको चोदूँगा।

रात को दीदी ने खाना बनाया और हम खाना ख़ाकर सो गए। उस रात को कुछ नहीं हुआ.. सबेरे जब दीदी सोकर उठीं और झाड़ू लगाने मेरे कमरे में आने लगीं।

यह मेरी दीदी के साथ मेरी सच्ची कहानी है। हो सकता है कि आपको बुरा लगे.. पर यही सच है.. आप अपने विचारों को मुझ तक अन्तर्वासना के माध्यम से कहानी के नीचे अपनी टिप्पणी लिख कर अवश्य भेजिएगा। कहानी अगले भाग में समाप्य।

सौतेली दीदी की चूत चुदाई -2

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