कॉरपोरेट कल्चर की चुदाईयाँ -2

मित्रो, अब तक आपने पढ़ा..

अगले दिन व्हाट्सएप्प पर अमन ने मुझे मैसेज किया- हैलो मैडम.. अमन दिस साइड.. मैंने भी रिप्लाई में ‘हैलो’ कर दिया।

फिर उसने कहा- मैडम मैं तो आपके घर आ नहीं सकता.. क्योंकि बॉस ऑफिस से कभी भी आ जाते हैं.. तो क्या आप मेरे घर आ सकती हो?

मैंने पूछा- क्यों? तो उसने जवाब दिया- जो बात मैं आप को बताना चाहता हूँ.. वो मिल कर ही हो सकती है। मैंने पूछा- तुम मेरी मदद क्यों करना चाहते हो? तो उसने कहा- क्योंकि इसमें मेरा भी कुछ फायदा है।

मैंने उससे उसका पता लेकर टाइम ले लिया.. और तय टाइम पर उसके घर पहुँच गई। उसका दो कमरे का घर उसने अच्छे से रख रखा था। उसने अपने और मेरे लिए चाय बनाई। मैंने कहा- बताओ तुम क्या बताना चाह रहे थे?

अब आगे अमन और मेरी बातचीत-

अमन- मैडम मैं कंपनी में असिस्टेंट मैनेजर था.. मेरा मैनेजर का प्रमोशन होना था.. जिसके टारगेट भी मैंने पूरे कर लिए थे.. कि अचानक एक दिन श्रुति इंटरव्यू देने आई और मैंने उसको अपना एजेंट बना लिया। फिर वो अक्सर ऑफिस आने लगी.. हमारे बीच बातचीत बढ़ी.. और प्यार हो गया। उसके और मेरे बीच में सेक्स भी हुआ। फिर एक दिन उसने एक अच्छी डील कराई.. जिस पर वरुण सर ने कहा श्रुति को बुलाओ.. हम उसको खुद मिलकर इंसेंटिव देंगे। मैडम, मैंने सबसे बड़ी गलती यह कर दी कि श्रुति और वरुण सर को मिलवा दिया। उस दिन से वरुण सर ने श्रुति पर डोरे डालने शुरू कर दिए। उधर श्रुति भी बेवफा निकली और वरुण सर से उसका अफेयर हो गया। जो प्रमोशन मेरा होना था.. उस कुर्सी पर वो डायरेक्ट आकर बैठ गई।

इतना कह कर अमन रोने लगा.. वो बेचारा करियर और प्यार दोनों गवाँ बैठा था। मैंने उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया और प्यार से सहला कर उसको समझाने की कोशिश की.. पर वो रोता ही जा रहा था। बंद कमरा.. हम दोनों अकेले.. तन्हा.. दोनों ही धोखा खाए हुए.. मुझे अमन पर प्यार आ गया। मैंने कुछ नहीं सोचा.. बस उसका चेहरा ऊपर उठाया और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए।

कुछ देर में अमन ने भी मेरा साथ देना शुरू कर दिया। अब हम दोनों तसल्ली से एक-दूसरे के होंठों का रस चूस रहे थे। तभी अमन ने अपने होंठ अलग करते हुए कहा- क्या हम दोनों एक होकर उन दोनों के एक होने का बदला लेंगे?

मैंने उसके सवाल के जवाब में अपनी शर्ट के ऊपर के दोनों बटन खोल दिए.. जिससे मेरी ब्रा में से चूचियाँ दिखने लगीं। अमन के काँपते हुए हाथ मेरे दायें उरोज पर आ गए और आहिस्ता-आहिस्ता उसने मेरी शर्ट के बाक़ी बटन भी खोल दिए।

अब मुझे कुछ शर्म सी आई.. मुझे शर्माता देखकर उसने दोबारा अपने होंठ मेरे होंठ पर रख दिए। होंठ चूसते हुए उसने मेरी शर्ट मेरे जिस्म से अलग कर दी।

फिर उसके हाथ पीछे मेरी ब्रा के हुक पर गए और उसने ब्रा का हुक भी खोल दिया। मेरी नंगी चूचियाँ उसके सामने थीं जिनके निप्पल्स पराए मर्द के स्पर्श से बहुत टाइट हो रहे थे। उसने मेरी चूचियाँ निहारते हुए कहा- पता नहीं.. इस हुस्नपरी के होते हुए वरुण सर क्यों बाहर मुँह मारते हैं?

फिर उसने मेरे कानों पर चुम्बन किया। मेरे पूरे गले पर अपनी जीभ फेरता हुआ वो नीचे आया और मेरे दायें निप्पल को अपनी जीभ से हिलाने लगा। मेरा जिस्म बुरी तरह से गरम हो चुका था.. अमन ने मेरे अन्दर की वासना को जगा दिया था। अचानक उसने मेरे निप्पल को अपने दाँतों से हल्का सा काट दिया।

हाय..!

मेरा हाथ अपने आप उसके बालों में पहुँच गया। फिर अमन ने मेरे दोनों दूध से जी भर कर खेल खेला.. कभी दोनों निप्पल्स को अपनी उँगलियों से भींचता.. तो कभी जीभ से हिलाता.. कभी जोर-जोर से चूसता.. तो कभी पूरी चूची मुँह में लेने की कोशिश करता। फिर अमन ने नीचे का रास्ता देखा.. मेरे पूरे शरीर को चाटते हुए.. वो नाभि पर पहुँचा और नाभि में अपनी जीभ डाल दी।

अब तक मैं लेट चुकी थी.. अमन की जीभ मेरी नाभि में.. और हाथ मेरी जीन्स की ज़िप खोल रहे थे। ज़िप खुलते ही अमन ने एक ऊँगली से मेरी चूत सहलानी शुरू कर दी। मैं अपना आपा खो रही थी.. अचानक मेरे मुँह से निकला- यस अमन.. रब इट..!

इतना सुनकर अमन ने मेरी जीन्स खोलनी शुरू कर दी और जीन्स उतार कर पैंटी के ऊपर अपनी जीभ रख दी और चाटना शुरू कर दिया। मेरे पैर मुड़ कर अमन की कमर से लिपट गए.. मेरे हाथ उसके बालों में पहुँच गए।

अचानक उसने पैंटी सरका कर अपनी लपलपाती जीभ मेरी चूत के ऊपरी हिस्से पर रख दी, मेरी तो जैसे जान ही निकल गई।

अमन ने एक साथ मेरी पैंटी फाड़ कर अलग कर दी और अपनी एक उंगली चूत में अन्दर डालकर ऊपरी हिस्से को जीभ से चाटने लगा। फिर उसने ऊँगली बाहर निकाल कर अपनी जीभ अन्दर डाल दी।

अमन बहुत मस्त तरह से चूत चाट रहा था। मेरा मन था कि वो हटे ही ना.. मेरी चूत को चाटता ही रहे.. पर वो अचानक खड़ा हो गया। मैंने मचलते हुए पूछा- क्या हुआ? तो वो बोला- यहाँ भी मैडम बनी रहोगी कि मैं ही करता रहूँ.. आप कुछ न करो..

इतना कह कर अमन ने अपनी टी-शर्ट उतार दी। उस का गठीला बदन मुझे उसकी तरफ खींच कर ले गया। मैंने उसके होंठों को चूस कर उसकी छाती पर खूब चुम्बन किए। फिर हाथ नीचे ले जा कर उसके लंड को सहलाना शुरू किया.. वो मस्त हो गया।

मैंने फिर उसकी जीन्स खोल कर अलग कर दी और अंडरवियर के ऊपर से उसके लंड को चाटने लगी और हल्के-हल्के काटने लगी। वो मस्त हो गया.. उसने जल्दी से अपना अंडरवियर उतारा। अब अमन का लंड मेरे सामने था.. जो कि लगभग वरुण के लंड के बराबर ही था.. पर हाँ.. उससे मोटा जरूर था।

लंड के आगे ‘प्रीकम’ की कुछ बूंदें थीं.. जिन्हें मैं चाट ना सकी और उसका अंडरवियर उठा कर उससे लंड साफ़ किया। फिर उसके लंड के आगे के लाल हिस्से को और उसके छेद को मैंने अपनी जीभ से चाटा। फिर खाली लाल हिस्सा मुँह में ले लिया। कुछ देर इसी तरह करके मैंने पूरा लंड मुँह में ले लिया।

कुछ देर में ही अमन ने कहा- मेरा निकलने वाला है। मैंने कहा- मैं ये पी नहीं सकती.. न ही मैंने आज तक पिया है.. प्लीज़ इसे बाहर ही झाड़ो। फिर अमन ने मुझे लिटाकर मेरे पेट पर अपना माल निकाल दिया।

अब मैं और अमन लेट गए.. और चुम्बन करने लगे। वो मेरे होंठ चूसते हुए चूचियाँ भींच रहा था और मैं उसका लंड सहला रही थी। थोड़ी ही देर में उस का लंड फिर से खड़ा हो गया। अब अमन ने कहा- आई डोंट हैव कॉण्डोम (मेरे पास कंडोम नहीं है)

मैंने कहा- नो प्रॉब्लम.. आई विल टेक पिल (कोई बात नहीं.. मैं दवाई ले लूँगी) अब अमन मेरे ऊपर आ गया। मेरे होंठों में अपने होंठ लिए। मैंने नीचे हाथ करके उसका लंड अपनी चूत पर सैट किया। अमन ने धीरे से धक्का लगाया और मेरी गीली चूत में उसका लंड घुस गया।

मेरे मुँह से सिसकारी निकलने लगी.. अमन ने कहा- आपकी चूत में बहुत गर्मी है.. मैंने कहा- आह्ह.. तो इसमें ठंडक कर दो न..

धीरे-धीरे अमन ने पूरा लंड अन्दर कर दिया और फिर उसके धक्कों में भी तेजी आ गई। करीब 5-7 मिनट चुदाई करके अमन सीधा लेट गया। अब मैं उसके ऊपर आ गई और लंड को चूत पर सैट करके बैठ गई।

अमन ने भी नीचे से शॉट लगाने शुरू किए.. उसके दोनों हाथ बड़ी बेरहमी से मेरी चूचियों का मर्दन कर रहे थे। मैंने भी झुक कर उसकी छाती पर अपने दांतों के निशान छोड़ दिए, मैं तृप्त हो चली थी।

अचानक अमन ने मुझे पलटा और मेरे ऊपर आ गया। उसने 8-10 ज़ोरदार धक्कों के साथ उसने अपना सारा वीर्य मेरी चूत में ही छोड़ दिया। अब वो मेरे ऊपर लेट गया।

मेरी भी वासना अब शांत हो गई थी.. मैं सीधी लेटी हुई ऊपर पंखे की तरफ देखते हुए ये सोचने लगी कि जो मैंने आज किया वो सही है या गलत है?

तो दोस्तो.. यह थी मेरी पहली कहानी ‘कॉरपोरेट कल्चर’ कि कैसे मैं कॉरपोरेट जगत का हिस्सा बनने लगी।

अगर आपको मेरी कहानी अच्छी लगे.. तो मुझे मेल जरूर करें.. तभी मैं इसकी आगे की कहानी लिख पाऊँगी। आपके मेल्स की प्रतीक्षा में.. आपकी वंशिका [email protected]