मेरा गुप्त जीवन -29

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मैं दो औरतों को चोद कर उनके बीच खड़े लंड को लेकर लेटा था और हैरान हो रहा था कि पारो कैसे मेरे मन मर्ज़िया हो गई। एक हाथ पारो के मोटे मम्मों के साथ खिलवाड़ कर रहा था और दूसरे से मैं गंगा की चूत को सहला रहा था। पारो के साथ चुदाई एक क्षण में हो गई, पारो इतनी जल्दी काबू में आ जायेगी, इसका मुझको यकीन नहीं था, इसमें शायद पारो को लंड की प्यास ही मुख्य कारण थी।

चुदाई कार्यक्रम के बाद वो दोनों चली गई और थोड़ी देर बाद गंगा मेरी सुबह की चाय लेकर आ गई। चाय पीते हुए मैंने उससे पूछा- गंगा, यह पारो कैसे इतने जल्दी मान गई चुदाई के लिए? वो बोली- छोटे मालिक मैं खुद हैरान हूँ कि यह कैसे हुआ? मैं बोला- तुमको मालूम है, मैंने तुमको और पारो को परसों रात को भी चोदा था? ‘नहीं मुझको तो नहीं मालूम… कब चोदा आपने हम दोनों को?’

फिर मैंने उसको परसों रात वाली सारी बात बताई कि कैसे जब मेरी नींद खुली तो देखा तो पारो तुम्हारी चूत में ऊँगली डाल रही थी और तुम उसकी चूत में! और तुम दोनों गहरी नींद में सोई हुई थी, फिर उठ कर पहले मैंने पारो को सोये सोये चोदा और फिर तुमको भी हल्के से चोदा था, दोनों का पानी छूट गया था। वो हैरान होकर बोली- यह कैसे हो सकता है? मेरी नींद तो झट खुल जाती है।

मैंने मुस्कराते हुए कहा- मेरी किस्मत अच्छी थी जो तुम दोनों को एक साथ चोदने का मौका मिल गया और तुम दोनों को पता भी नहीं चला। फिर मैं नहा धोकर कॉलेज चला गया।

हमारा कालेज लड़के लड़कियों का साझा कॉलेज था, मैंने कॉलेज की लड़कियों को गौर से देखना शुरू कर दिया। कुछ लड़कियाँ थोड़ा बहुत फैशन करती थीं जैसे लिपस्टिक लगाना और साड़ी के इलावा पंजाबी सलवार सूट भी पहनती दिखी। लेकिन उनमें से कोई खास सुन्दर या सेक्सी दिखने वाली लड़की नहीं दिखी।

एक ख़ास चीज़ जो मैंने नोट की, वो थी सभी लड़कियाँ अंगिया (ब्रा) पहनती थी ब्लाउज के नीचे जो पहले गाँव में मैंने कभी नहीं देखा था। वैसे भी मुझको शहरी लड़की को देख कर कोई ख़ास आनन्द नहीं आता था। मैं तो गाँव की सीधी साधी लड़कियाँ ही ज्यादा पसन्द करता था।

गाँव की कच्ची उम्र की लड़कियाँ भी मुझको नहीं भाती थीं, गाँव की शादीशुदा औरतें ही पसंद थी। एक तो वो यौनक्रिया में काफी मंझी होती थीं, दूसरे उनको पकड़े जाने का भय भी कम होता था।

रात को भोजन के बाद ही चोदन प्रोग्राम रखा जाता था क्यूंकि उस समय हमारे काम में कोई विघ्न नहीं डाल सकता था और फिर रात में हम तीनों कोठी के अंदर अकेले ही होते थे।

आज जब दोनों आई तो मैंने कहा- पारो आंटी जी, आपको सुबह की घटना बुरी तो नहीं लगी? वो झट शर्माते हुए बोली- नहीं छोटे मालिक, और आप भी मुझको आंटी मत कहो न! ‘ठीक है पारो, अब तुम दोनों सोच कर बताओ कि आज क्या करें?’

पारो तो चुप रही लेकिन गंगा ही बोली- छोटे मालिक, आज हम तीनों नंगे हो जाते हैं, फिर आप फैसला करो किसकी चुदाई पहले और किस की बाद में!

मैं बोला- गंगा, ऐसा करते हैं कि हम सब नंगे होकर मेरे पलंग पर लेट जाते है मैं बीच में और तुम दोनों मेरी बगल में, सबसे पहले पारो को चोद देंगे क्योंकि वो काफी अरसा नहीं चुदी और फिर गंगा की बारी… क्यों ठीक है?

गंगा जल्दी ही नंगी हो गई लेकिन मेरी निगाहें तो पारो पर लगी थी, वो धीरे धीरे कपड़े उतार रही थी, जैसे पहले ब्लाउज, फिर साड़ी और आखिर में उसने पेटीकोट उतारा। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! उसके चेहरे पर थोड़े से शर्म के भाव ज़रूर आये कि वो एक गैर मर्द के सामने नग्न हो रही है। ब्लाउज से निकल कर उसके मम्मे एकदम उछाल कर बाहर आ गए, गोल और काफी बड़े और पूरे सॉलिड दिख रहे थे। उसके मम्मों को देख मुझे कम्मो के मम्मों की याद आ गई, उसके बहुत बड़े और सॉलिड स्तन थे। हाथ में लिए तो उसके निप्पल एकदम अकड़ गए, गोल और सख्त, उसका पेट भी एकदम गोल और अंदर के तरफ था। उसके नितम्ब बहुत उभरे हुए और गोल थे.. हाथ लगते ही वो थिरक रहे थे।

गंगा को देखा तो वो एक छरहरे शरीर वाली लड़की लग रही थी, छोटे गोल मम्मे और सॉलिड गोल चूतड़, वो हर लिहाज़ से एक कुंवारी लड़की लग रही थी। मैं बोला- चलो शुरू हो जाओ, पहले पारो मेरे ऊपर चढ़ेगी और वो मुझको चोदेगी और जब तक वो चोद चोद कर थक नहीं जायेगी वो मेरे ऊपर से नहीं उतरेगी। और उसके बाद गंगा शुरू हो जायेगी। जब तक गंगा की बारी नहीं आती वो पारो को चूमे और चाटेगी ताकि वो गर्म बनी रहे।

पारो बोली- छोटे मालिक क्या यह संभव है? आपका यह लंड तब तक खड़ा रहेगा क्या? मैंने गंगा की तरफ देखा, वो मुस्करा रही थी। मैं बोला- पारो, तुम आजमा लो न, दखो कब तक यह तुम्हारी चूत की सेवा करता है।

गंगा ने पारो की चूत में हाथ डाल दिया और उसके दाने के साथ खेलने लगी और पारो अपनी चूतड़ उठा उठा कर उसके हाथ को तेज़ी से रगड़ने के लिए उकसाने लगी।

मैं उसके मम्मों को चूसने लगा, एकको चूसने के बाद दूसरे को मुंह में डाल लिया।

तब पारो उठी और मेरे ऊपर बैठ सी गयी और अपने हाथ से मेरे लोह समान लंड को अपनी चूत के ऊपर रगड़ कर उसके मुंह पर रख दिया। मैं चुपचाप लेटा रहा।

तब पारो ने अपनी चूत धीरे से मेरे लंड के ऊपर रख कर एक ज़ोर का धक्का दिया और घुप्प से लंड उसकी चूत के अंदर चला गया। और फिर वो पहले धीरे धीरे और बाद में तेज़ धक्के मारने लगी, उसके चेहरे पर यौन आनन्द के भाव आने लगे और थोड़े समय के बाद वो कांपती हुए झड़ गई लेकिन वो उतरी नहीं और थोड़ी देर बाद फिर धक्के मारने शुरू कर दिए। ऐसा उसने 3 बार किया और आखरी बार जब वो झड़ी तो मेरे ऊपर से उतर कर बिस्तर पर हांफ़ते हुए लेट गई।

मैंने शरारत के तौर से पूछा- बस पारो या अभी और इच्छा है? हांफ़ते हुए वो बोली- नहीं छोटे मालिक, मैं थक गई, अब गंगा की बारी है। मैं बोला- चलो गंगा, अब तुम चढ़ जाओ जल्दी से! जब वो भी 3-4 बार छूटा कर थक गई, वो भी उतर गई।

तब मैंने कहा- मेरा क्या होगा लड़कियों? मेरा तो छूटा नहीं अभी तक? पारो हैरानगी के साथ बोली- अभी आपका नहीं छूटा क्या? उफ़्फ़… अब क्या होगा? मैं बोला- कोई फ़िक्र नहीं, पारो तुम घोड़ी बनो!

वो घोड़ी बनी और मैंने उसको ज़ोर से चोदा और थोड़ी देर में वो खलास हो गई और मैंने भी एक ज़ोरदार पिचकारी उसकी चूत में मार दी और फिर मैं गंगा की तरफ मुड़ा और बोला- क्यों घोड़ी बनोगी क्या? वो बोली- नहीं छोटे मालिक, अब और नहीं!

तब हम सब एक दूसरे से चिपक कर सो गए.

यह सिलसिला रोज़ का हो गया और जिन दिनों एक की माहवारी होती तो दूसरी उसकी जगह लेने के लिए तैयार होती। मेरा यौनक्रिया का कार्यक्रम सही ढंग से चलता रहा और इस तरह हमको लखनऊ आये हुए दो महीने हो गए। फिर एक दिन गाँव से खबर आई कि गंगा की माँ बहुत बीमार है और मैंने उसकी पूरी तनख्वाह देकर उसको बस में चढ़ा दिया और साथ में उसको कुछ रूपए फ़ालतू भी दे दिए।

एक दिन में कॉलेज से वापस आ रहा था तो एक गली से ‘श शस्श… श… श… की आवाज़ आई, उस तरफ देखा तो एक औरत जिसका चेहरा ढका था और वो बहुत ही भड़कीली साड़ी पहने थी, वो मुझ को इशारे से अपने पास बुला रही थी। पहले तो मैं हिचकिचाया यह सोच कर कि ना जाने कौन औरत है, लेकिन फिर मन में सोचा कि देखो तो सही कौन है और क्या चाहती है वो मुझ से, मैं गली में चला गया।

वो मुझको अपने पीछे आने का इशारा कर तेज़ी से चलने लगी। थोड़ा सा चलने के बाद वो एक दो मंजिला मकान के अंदर जाने लगी और मुझको पीछे आने का इशारा करती रही। मैं भी उसके पीछे उस मकान में चला गया।

उसने कहा- आ जाओ साहिब। जब हम उसके कमरे में पहुंचे तो उसने मुझको अंदर करके दरवाज़ा बंद कर दिया और फिर उसने अपने मुंह को चादर से बाहर कर दिया। वो बोली- मुझ को पहचाना छोटे मालिक? मैंने गौर से देखा लेकिन बहुत कोशिश करने के बाद भी उस को नहीं पहचान सका। मैंने सर हिला दिया कि मैं नहीं पहचान सका उसको!

वो ज़ोर से हंसी और बोली- कैसे पहचानोगे छोटे मालिक? बहुत टाइम हो गया है। गौर से देखो मुझको? फिर कुछ कुछ याद आने लगा, 3-4 साल पहले की बात है कम्मो अचानक गाँव से गायब हो गई थी, काम क्रीड़ा की मेरी बहुत प्रिया गुरु थी वो!

मैंने मुस्करा कर कहा- कम्मो हो तुम? यह सुन कर वो ज़ोर से खिलखिला कर हंस दी और बोली- पहचान ही लिया छोटे मालिक। मैं तो सोच रही थी नहीं पहचानोगे आप?

मेरे चेहरे पर हैरानी थी और मैं बोला- अरे वाह कम्मो, गाँव से अचानक गायब हो गई थी तुम? क्या हुआ था? ‘वो बाद में बताऊँगी। अभी कुछ करने का इरादा है क्या?’ ‘सच्ची? कुछ कर सकते हैं हम दोनों?’ ‘अगर तुम्हारी इच्छा हो तो?’

मैं बिना कुछ बोले उसकी तरफ बढ़ गया और उसको बाँहों में भर लिया और ताबड़ तोड़ उसको चूमने लगा। उसको चूमते हुए महसूस किया कि वो मेरे लंड से खेल रही है मेरी पैंट के ऊपर से। ‘वैसा ही है क्या छोटे मालिक?’ ‘खुद देख लो न!’ और यह कह कर मैंने अपनी पैंट उतार दी और कमीज भी उतार दी। उधर वो भी अपनी साड़ी और ब्लाउज उतार कर तैयार हो गयी, पेटीकोट भी एकदम ज़मीन पर आ गिरा।

मेरा लंड पहले ही तैयार खड़ा था अपनी गुरु की चूत लेने के लिए!

फिर हम दोनों एक बहुत ही गर्म चुदाई में लग गए, मेरी चुदाई का स्टाइल देख कर कम्मो हंसने लगी और बोली- आपने गुरु की बात पूरी तरह से मान ली क्या? लेकिन चूत और लंड की जंग जारी रही और यह जंग थी कि कौन पहले छूटेगा गुरु या चेला?

और मैंने अपने तजुर्बे का पूरा फायदा उठाते हुए अपनी चुदाई को एक नए मुकाम पर पहुँचा दिया। और तभी कम्मो एक ज़ोर से झटके के साथ झड़ गई और मेरे शरीर से लिपट गई। मैंने अपने धक्के जारी रखे और फिर कम्मो को दोबारा यौन की ऊंची सीढ़ी पर ले जाकर उसका फिर से छुटवा दिया।

वो हैरान हो रही थी लेकिन मैंने अपना छुटाए बिना ही बाहर निकाल लिया और उसके पेटीकोट से अपने लंड का गीलापन साफ़ कर दिया। उसने बंद आँखें खोलीं और बोली- वाह छोटे मालिक, आप तो एक्सपर्ट हो गए हो कसम से! एक बार भी नहीं छूटा आपका?

‘कम्मो, जो तुमने सिखाया वही तो है यह सब… अच्छा यह बताओ कि अचानक तुम कहाँ गायब हो गई थी?’ ‘रहने दो छोटे मालिक बड़ी लम्बी कहानी है।’ ‘नहीं कम्मो, मैं सुनना चाहता हूँ कि ऐसा क्या हुआ कि तुम भाग गई किसी आदमी के साथ?’

‘भाग गई? यह किसने कहा कि मैं भाग गई थी किसी के साथ?’ ‘गाँव में तो यही चर्चा थी।’ ‘नहीं छोटे मालिक ऐसा नहीं है, सच तो यह है कि मैं गर्भवती हो गई थी।’ मैं हैरानी से बोला- गर्भवती हो गई थी? किसके साथ? कौन था वो हरामजादा जो तुमको मेरे अलावा भी चोदता था? वो बड़े ज़ोर से खिलखाला कर हंस दी और हँसते हुए बोली- वो आप ही थे जिसने मुझको गर्भवती किया था।

‘मैंने? यह कैसे संभव है? मैं तो अक्सर बाहर ही छूटा रहा था न!’ ‘हाँ बस एक बार मुझसे गिनती में गलती हो गई और उसका नतीजा मेरा गर्भ ठहर गया।’ ‘मुझको बोलती तो शहर में या फिर गाँव में ही गर्भपात करवा देती न, वो क्यों नहीं किया?’ ‘गाँव में यह किसी से छुपा नहीं रहता और शहर जाने के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे!’ ‘फिर अब बच्चा कहाँ है?’ ‘वो पैदा होते समय ही मर गया था।’ यह कहते समय उसकी आँखों में पानी भर आया और फिर उसने मुझ को अपने दर्द भरी कहानी सुनाई। लखनऊ शहर में वो इस लिए आ गई थी ताकि उसको यहाँ कोई पहचानने वाला न मिल जाए। कहानी जारी रहेगी। [email protected]

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