माँ के मजे में बाधा होने पर उसने अपनी अधखुली आँखे पूरी खोल दी और मेरी ओर देखते हुए बोली, ‘रुक क्यों गया चूतिये? जल्दी जल्दी चाट ना अपने मालपुए को। मैंने मुस्कुराते हुए माँ की ओर देखा और बोला- क्या माँ, तुम भी ना? तुम्हें ध्यान है तुमने अभी अभी मुझे कितनी गालियाँ दी हैं? मैं जब याद दिलाता हूँ तो तुम कहती हो कि दी ही नहीं। अभी पता नहीं कितनी गालियाँ दे दी।
इस पर मेरी माँ हंसने लगी और मुझे अपनी तरफ खींचा तो मैं उठ कर फिर से उसके बगल में जाकर लेट गया। माँ ने मेरे गाल पर अपने हाथों से एक प्यार भरी थपकी दे कर पूछा- चल मान लिया मैंने गाली दी, तुझे बुरा लगा क्या? मैंने मुँह बना लिया था।
माँ मुझे बाहों में भरते हुए बोली- अरे मेरे चोदू बेटे, माँ की गालियाँ क्या तुझे इतनी बुरी लगती है कि तू बुरा मान कर रुठ गया? ‘नहीं माँ, बुरी लगने की बात तो नहीं है, लेकिन तुम्हारे मुँह से गालियाँ सुन कर काफ़ी अजीब सा लगा।’ ‘क्यों अजीब लग रहा है, क्या मैं गालियाँ नहीं दे सकती?’ ‘दे सकती हो, उसका उदाहरण तो तुमने मुझे दिखा ही दिया है। मगर अजीब इसलिये लग रहा है क्योंकि आज से पहले तुमको कभी गाली देते हुए नहीं सुना है।’
‘आज से पहले तुमने कभी मुझे नंगी भी तो नहीं देखा था ना? ना ही आज से पहले कभी मेरी चूत और चूची चूस कर मेरा पानी निकाला था। सब कुछ तो आज पहली बार हो रहा है इसलिए गालियाँ भी आज पहली बार सुन रहा है।’ कह कर माँ हंसने लगी और मेरे लंड को अपने हाथों से मरोड़ने लगी। ‘ओह माँ, क्या कर रही हो दुखता है ना? फिर भी तुम मुझे एक बात बताओ कि तुमने गालियाँ क्यों दी?’
‘अरे उल्लू, जोश में ऐसा हो जाता है। जब औरत और मर्द ज्यादा उत्तेजित हो जाते है ना तो अनाप-शनाप बोलने लगते हैं। उसी दौरान मुँह से गालियाँ भी निकल जाती हैं, इसमे कोई नई बात नहीं है, फिर तू इतना घबरा क्यों रहा है? तू भी गाली निकाल के देख, तुझे कितना मजा आयेगा?’ ‘नहीं माँ, मेरे मुँह से तो गालियाँ नहीं निकलती।’ ‘क्यों, अपने दोस्तों के बीच गालियाँ नहीं बकता क्या, जो नखरे कर रहा है?’ ‘अरे माँ, दोस्तों के बीच और बात है पर तुम्हारे सामने मेरे मुँह से गालियाँ नहीं निकलती हैं।’
‘वाह रे मेरे शरीफ बेटे, माँ को घूर घूर कर देखेगा, माँ को नंगी कर देगा और उसकी चुदाई और चुसाई करेगा, मगर उसके सामने गाली नहीं देगा। बड़ी कमाल की शराफत है तेरी तो?’ ‘क्या माँ, इस बात को गालियों से क्यों जोड़ के देखती हो?’ ‘अरे क्यों ना देखूँ, जब हमारे बीच शर्म की सारी दीवारें टूट गई हैं और हम एक दूसरे के नंगे अंगों से खेल रहे हैं, तब यह शराफत का ढोंग करने का क्या फायदा, देख गालियाँ जब हम होश में हो तब देना या बोलना गुनाह है। मगर जब हम उत्तेजित होते हैं और बहुत जोश में होते हैं तो अपने आप ये सब मुँह से निकल जाता है, तू भी कर के देख।’
मैंने बात टालने की गरज से कहा- ठीक है, मैं कोशिश करूँगा पर अभी मैं इतने जोश में नहीं हूँ कि गालियाँ निकाल सकूँ।’ ‘हाँ, बीच में रोक कर तो तूने सारा मज़ा खराब कर दिया, देख मैं तुझे बताती हूँ, गालियाँ और गन्दी गन्दी बातें भी अपने आप में उत्तेजना बढ़ाने वाली चीज है, चुदाई के वक्त इसका एक अलग ही आनन्द है।’ ‘क्या सब लोग ऐसा करते हैं?’ ‘इसका मुझे नहीं पता कि सब लोग ऐसा करते हैं या नहीं, मगर इतना मुझे जरूर पता है कि ऐसा करने में मुझे बहुत मज़ा आता है और शायद मैं इससे भी ज्यादा गन्दी बातें करुँ और गालियाँ दूँ तो तू उदास मत होना और अपना काम जारी रखना, समझना कि मुझे मज़ा आ रहा है और एक बात यह भी कि अगर तू चाहे तो तू भी ऐसा कर सकता है।’
‘छोड़ो माँ, मेरे से ये सब नहीं होगा।’ ‘तो मत कर चूतिये, मगर मैं तो करुँगी मादरचोद।’ कह कर माँ ने मेरे लंड को जोर से मरोड़ा।
माँ के मुँह से इतनी बड़ी गाली सुन कर मैं थोड़ा हड़बड़ा गया था, मगर माँ ने मुझे इसका भी मौका नहीं दिया और मेरे होंठों को अपने होंठों में भर कर खूब जोर जोर से चूसने लगी। मैं भी माँ से पूरी तरह से लिपट गया और खूब जोर जोर से उसकी चूचियों को मसलने लगा और निप्पल खींचने लगा, माँ ने सिसकारियाँ लेते हुए मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा- चूचियाँ मसलने से भी ज्यादा जल्दी मैं गन्दी बातों से गर्म हो जाऊँगी, मेरे साथ गन्दी गन्दी बातें कर ना बेटा।’
मैं उसकी चूचियों से खेलता हुआ बोला- तुम्ही करो माँ, मुझसे नहीं हो रहा है। ‘साले माँ की चूत चोदेगा जरूर, मगर उसके साथ इसकी बात नहीं करेगा, चुदाई के काम के वक्त चुदाई की बातें करने में क्या बुराई है बे चूतिये?’
मित्रो, कहानी पूरी तरह काल्पनिक है। आप मुझे मेल जरूर करें। अब आपसे अलविदा लेता हूँ, यह कहानी इस भाग में समाप्त हो गई है। [email protected]