एक भाई की वासना -7

हजरात आपने अभी तक पढ़ा.. पानी पीते हुए फैजान की नजरें अपनी बहन के मटकते चूतड़ों और जाँघों पर ही थीं। मैं हौले-हौले मुस्करा रही थी। जैसे ही जाहिरा रसोई में जाने लगी.. तो मैंने उसे आवाज़ दे कर रोका और कहा- जाहिरा मुझे याद आया.. मैंने तो कपड़े धो कर बाहर डाले हुए हैं.. जल्दी से जाओ और इनको उतार लाओ.. वर्ना सारे कि सारे भीग जाएंगे।

‘जी भाभीजान..’ कह कर जाहिरा बाहर सहन की तरफ चली गई और अब मैं अपनी स्कीम के मुताबिक़ हो रहे ड्रामे के अगले हिस्से की मुंतजिर थी।

बाहर तेज बारिश हो रही थी.. गर्मी कि इस मौसम में मेरी ननद जाहिरा अपनी पतली सी कुरती और लेग्गी पहने हुई बाहर से कपड़े उतार रही थी और उसका भाई अन्दर बैठा हुआ था और शायद वो भी मुंतजिर था कि अब उसके सामने क्या नजारा आने वाला है। अब आगे लुत्फ़ लें..

क़रीब 5 मिनट बाद जाहिरा कमरे के अन्दर आई तो उफ्फ़.. क्या हॉट मंज़र था.. कपड़े तो वो उतार लाई थी.. लेकिन उसके अपने कपड़े पूरी तरह से भीग चुके थे, सफ़ेद रंग की पतली सी कुरती बिल्कुल भीग कर उसके गोरे-गोरे जिस्म से चिपक चुकी थी, उसका गोरा गोरा बदन कुरती के नीचे से बिल्कुल साफ़ नंगा नज़र आ रहा था, उसकी चूचियों पर पहनी हुई काली रंग की ब्रेजियर भी बिल्कुल साफ़ दिखने लगी थी। वो ब्रेजियर उसकी चूचियों से चिपक कर ऐसे दिख रही थी.. मानो उसने वो काली ब्रेजियर अपनी शर्ट के ऊपर से ही पहनी हुई हो। उसकी लेग्गी भी थी तो मोटी जर्सी कपड़े की.. मगर वो भी भीग कर और भी उसकी मोटी जाँघों और टाँगों से चिपक चुकी हुई थी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! मेरी नजरें तो उसके जिस्म पर ही चिपक गई थीं।

वो मुड़ कर एक टेबल पर कपड़े रखने लगी.. उसकी कमर हमारी तरफ थी। उसकी कमर पर उसकी ब्रेजियर की स्ट्रेप और हुक बिल्कुल साफ़ नज़र आ रहा था और उसकी कमर भी कमीज़ में से भीगी हुई साफ़ दिख रही थी।

साफ़ पता चल रहा था कि उसका जिस्म किस क़दर गोरा-चिट्टा है। जाहिरा को इस हालत में देख कर मेरी हालत ऐसी हो रही थी.. तो उसके अपने सगे भाई का हाल तो और भी पतला हो रहा था। उसकी नज़रें अपनी बहन के जिस्म पर से नहीं हट रही थीं और मैंने भी बिना उसको डिस्टर्ब किए.. उसे अपनी बहन के इस तरह नंगे हो रहे जिस्म का नज़ारा करने दिया।

जैसे ही जाहिरा कपड़े रख कर मुड़ी तो फैजान मेरी तरफ देखने लगा और बोला- यार मुझे कोई कपड़े दो पहनने के लिए.. मैंने महसूस किया कि उसकी आवाज़ काँप रही थी।

जाहिरा अपने कमरे की तरफ बढ़ी तो मैंने उससे पूछा- कहाँ जा रही हो? वो बोली- भाभी मैं जाहिरा चेंज करके आती हूँ.. पूरे कपड़े भीग गए हैं..

लेकिन मैं उसको इतनी आसानी से जाने दे कर उसके भाई का मज़ा खराब नहीं करना चाहती थी, मुझे उसे इसी हालत में रोके रखना था और उसे रुकने पर मजबूर करना था।

मैंने एक शर्ट पकड़ी और उससे कहा- जाहिरा, तुम जल्दी से अपने भैया की यह शर्ट प्रेस कर दो.. मैं सालन देख लेती हूँ.. चूल्हे पर पड़ा है.. कब से नहीं देखा.. कहीं जल न जाए। जाहिरा इन्कार करना चाहती थी.. लेकिन फिर अपनी आदत की चलते चुप ही रही। उसने एक नज़र अपने भैया पर डाली.. जो कि वहीं चेयर पर बैठा.. अब एक मैगजीन देख रहा था.. और फिर जाहिरा टीवी लाउंज के एक कोने में पड़े हुए इस्तती स्टैंड की तरफ बढ़ गई।

मैं रसोई में आ गई ताकि फैजान भी खुल कर अपनी बहन के जिस्म का दीदार कर सके।

जहाँ जाहिरा खड़ी होकर शर्ट प्रेस कर रही थी.. वहाँ पर उसकी पीठ फैजान की तरफ थी। मैं छुप कर दोनों को देख सकती थी.. मैंने बाहर झाँका तो देखा कि फैजान की नज़रें अपनी बहन के जिस्म पर ही थीं और उसका एक हाथ अपने लंड को जीन्स के ऊपर से दबा रहा था।

मैं समझ गई कि अपनी बहन के जिस्म को इस हालत में देख कर वो अपने लंड को खड़ा होने से नहीं रोक पा रहा है। मैं दिल ही दिल में मुस्करा दी..

इतने में फैजान उठा और एक पजामा उठा कर जाहिरा की तरफ बढ़ा। मैं समझ गई कि अब वो और क़रीब से अपनी बहन के जिस्म को देखना चाहता है। पास जाकर उसने वो पजामा भी इस्तरी स्टैंड पर रखा और बोला- जाहिरा इसे भी प्रेस कर दो.. यह कहते हुए उसकी नजरें अपनी बहन की चूचियों पर थीं.. जो कि गीली सफ़ेद कुरती में काली ब्रेजियर में साफ़ नज़र आ रही थीं।

एक भरपूर नज़र डाल कर फैजान वापिस अपनी जगह पर आकर बैठ गया और जब तक जाहिरा कपड़े प्रेस करती रही.. वो उसके जिस्म को ही देखता रहा।

जैसे ही जाहिरा ने कपड़े प्रेस कर लिए तो अपने भाई से बोली- भाईजान, ले लें.. कपड़े प्रेस हो गए हैं..

अब मुझे पता था कि वो वापिस अपने कमरे में अपनी कपड़े बदलने के लिए जाएगी.. लेकिन मैं उसे रोकना चाहती थी इसलिए जैसे ही उसने अपने कमरे की तरफ क़दम बढ़ाए.. तो मैंने उसे आवाज़ दे दी- जाहिरा.. जरा इधर तो आओ रसोई में थोड़ी देर के लिए..

जैसा कि मुझे पता था कि वो मेरी बात को नहीं टालेगी.. वो ही हुआ.. जाहिरा सीधी उसी हालत में मेरे पास रसोई में आ गई। मैंने उसे थोड़ा सा काम बताया तो वो बोली- भाभी मुझे चेंज कर आने दें..

मैंने उसके जिस्म की तरफ एक नज़र डाली और बहुत ही बेपरवाही से बोली- अरे अब क्या चेंज करना है.. कपड़े तो सूख ही चुके हैं.. अभी कुछ ही देर में पंखे के नीचे बिल्कुल ही खुश्क हो जाने हैं.. छोड़ो कपड़ों की फिकर.. तुम जल्दी से सलाद बना लो.. तो फिर हम लोग खाना खाते हैं.. पहले ही बहुत देर हो गई है..

जाहिरा भी थोड़ी सी बेफिकर होकर रसोई के काम में लग गई और मैं दिल ही दिल में अपनी कामयाबी पर मुस्करा दी कि मैं आज एक भाई को उसकी बहन का नंगा जिस्म थोड़ा सा छुपी हुई हालत में दिखाने में कामयाब हो गई हूँ।

मुझे हँसी तो फैजान पर आ रही थी कि कैसे अपनी बहन के नंगी हो रहे जिस्म को देख रहा था। अब मुझे इस पर हैरत नहीं होती थी.. बल्कि खुशी होती थी और मज़ा भी आता था। मेरा तो बस नहीं चल रहा था कि मैं कब जाहिरा को उसके भाई के सामने बिल्कुल नंगी कर दूँ।

कुछ ही देर मैं हम सब लोग बैठे खाना खा रहे थे। जाहिरा के कपड़े सूख चुके थे.. लेकिन उसकी काली ब्रेजियर अभी भी गीली थी.. जिसकी वजह से वो अब भी साफ़ नज़र आ रही थी। अब जाहिरा को कोई फिकर नहीं थी.. उसे महसूस ही नहीं हो रहा था कि उसका अपना सगा भाई.. अपनी बीवी की मौजूदगी में भी.. उसकी नज़र बचा कर.. उसके जिस्म और उसकी ब्रेजियर और उसकी चूचियों को देख रहा है।

मेरी नज़रें तो फैजान की हर हरकत पर थीं कि कैसे खाना खाते हुए.. वो अपनी बहन की चूचियों को देख रहा है।

खाना खाने के बाद मुझे गरम लोहे पर एक और वार करने का ख्याल आया और मैंने अपने इस नए आइडिया पर फ़ौरन अमल करने का इरादा कर लिया।

आप सब इस कहानी के बारे में अपने ख्यालात इस कहानी के सम्पादक की ईमेल तक भेज सकते हैं। अभी वाकिया बदस्तूर है। [email protected]