एक भाई की वासना -27

सम्पादक – जूजा जी हजरात आपने अभी तक पढ़ा.. मैंने जाहिरा की ब्रेजियर की हुक को पकड़ा और उसकी ब्रेजियर को खोल दिया। इससे पहले कि वो कोई मज़ाहमत करती या मुझे रोकती.. मैंने उसकी ब्रा की स्ट्रेप्स उसके कन्धों से नीचे खींच दिए और उसके साथ ही उसकी शर्ट की डोरियाँ भी नीचे उतार दीं। एकदम से जाहिरा की दोनों चूचियों मेरी नज़रों की सामने बिल्कुल से नंगी हो गईं।

जाहिरा ने फ़ौरन से ही अपनी चूचियों पर अपने दोनों हाथ रख दिए और बोली- भाभिइ..भाभीई.. यह क्या कर रही हो आप..? मुझे क्यों नंगी कर दिया? अब आगे लुत्फ़ लें..

मैं हँसते हुए उसके हाथों को पीछे खींचने के लिए जोर लगाने लगी और वो भी मस्ती के साथ मेरे साथ जोर आज़माईश करने लगी। लेकिन मैंने अपने दोनों हाथ उसकी चूचियों पर पहुँचा ही दिए और अपनी ननद की दोनों नंगी चूचियों को अपनी मुठ्ठी में ले लिया और बोली- उउफफफफ.. क्या मजे की हैं तेरी चूचियाँ.. जाहिरा.. मेरा दिल करता है कि इनको कच्चा ही खा जाऊँ।

जाहिरा- सोच लो भाभी.. फिर मैं भी इन दोनों को खा जाऊँगी। मैं- हाँ हाँ.. पहले ही भाई नहीं छोड़ता इन सबको खाना और चूसना.. अब उसकी बहन भी इनके पीछे पड़ने लगी है।

अब मैंने जाहिरा की ब्रेजियर को उसकी बाज़ू में से बाहर निकाल दी और आहिस्ता-आहिस्ता उसकी दोनों चूचियों को हाथों से निकाल कर दोबारा से उसकी शर्ट की डोरियों को उसके कन्धों पर चढ़ा दिया.. लेकिन उसकी ड्रेस की डोरियाँ ठीक करने के बावजूद भी मैंने उसकी चूचियों को उसकी शर्ट के बाहर ही रखा.. तो वो हँसने लगी। ‘भाभी इनको तो अन्दर कर दो..’

अब वो मुझसे अपनी चूचियों को नहीं छुपा रही थी। मैं- चल ठीक.. आज तू अगर ऐसे ही अपने भैया के सामने रह जाती है ना.. तो जो मर्ज़ी मुझसे माँग लेना.. मैं दे दूँगी.. जाहिरा मेरी बात सुन कर हँसने लगी और बोली- लगता है कि आप मुझे भैया से मरवा कर ही रहोगी। मैं मुस्कुराई और धीमी आवाज़ में बोली- तुमको नहीं.. तुम्हारी मरवाऊँगी.. तुम्हारे भैया से.. जाहिरा बोली- भाभी क्या बोला आपने.. फिर से बोलना जरा..

मैं हँसने लगी.. उसकी बात पर मुझे पता चल गया था कि मेरी बात जाहिरा ने सुन तो ली ही है। मैंने जान बूझ कर उसकी ब्रा वहीं अपने बिस्तर पर फेंक दी और दोबारा से जाहिरा के मेकअप को सैट करने लगी। थोड़ी ही देर में मेरे मेकअप ने जाहिरा के हसीन चेहरे को और भी हसीन कर दिया।

उसके होंठों पर लगी हुई चमकदार सुर्ख लिपिस्टिक बहुत ही सेक्सी लग रही थी। मैंने उसे तैयार करने के बाद उसके गोरे-गोरे गालों पर एक चुटकी ली और बोली- आज तो मेरी ननद पूरी छम्मक-छल्लो सी लग रही है।

मेरी बात सुन कर जाहिरा शर्मा गई और बोली। जाहिरा- भाभी घर पर दिन के वक़्त यह ड्रेस कुछ ज्यादा ही ओपन नहीं हो जाएगा।

मैं- अरे नहीं यार.. कुछ भी ज्यादा या कम नहीं है.. देख मैं भी तो इसी ड्रेस में ही हूँ ना.. मैंने कौन सा इसे चेंज कर लिया हुआ है और एक बात तुमको बताऊँ कि तेरे आने से पहले तो मैं घर पर तुम्हारे भैया के होते हुए सिर्फ़ ब्रेजियर ही पहन कर फिरती रहती थी। अब तो सिर्फ़ तुम्हारी वजह से इतनी फॉरमैलिटी करनी पड़ती है। जाहिरा- क्या सच भाभी??

मैं- हाँ तो और क्या.. अगर तू कहे.. तो मैं ऐसी दोबारा से भी हो सकती हूँ। मेरी बात सुन कर वो खामोश हो गई। फिर हम दोनों बाहर लाउंज में आ गए और टीवी देखने लगे।

इतनी में घंटी बजी.. फैजान के आने की सोच कर मैंने जानबूझ कर जाहिरा से कहा- जाओ.. गेट खोलो.. तुम्हारे भैया आए हैं। वो शर्मा कर बोली- नहीं भाभी आप ही जाओ.. मैंने इन्कार कर दिया और उसे दरवाजे की तरफ ढकेला और वो चुप करके गेट की तरफ बढ़ गई।

मुझे पता था कि इतनी खूबसूरत हालत में अपनी बहन को देख कर फैजान को ज़रूर शॉक लगेगा.. इसलिए मैं भी उनकी तरफ ही गेट को देख रही थी।

वो ही हुआ कि जैसे ही जाहिरा ने गेट खोला.. तो उसे देख कर फैजान का मुँह खुला का खुला रह गया। अपनी बहन के खिलते हुए गोरे रंग और उस पर किए हुए इस क़दर खुबसूरत मेकअप की वजह से जाहिरा पर तो नज़र ही नहीं टिक पा रही थी। गेट खोल कर जाहिरा ने मुस्करा कर अपने भाई को देखा और फिर वापिस मुड़ते हुए फैजान ने जल्दी से गेट बंद किया और जाहिरा के पीछे-पीछे चलने लगा।

जाहिरा की कमर पर नज़र पड़ी तो उसे एक और शॉक लगा कि उसकी बहन ने अब रात वाली काली ब्रेजियर भी नहीं पहनी हुई थी.. और वो भी उतार चुकी हुई थी। अब बैक पर जाहिरा की गोरी-गोरी चिकनी कमर बिल्कुल नंगी हो रही थी।

मैंने महसूस किया कि जाहिरा भी बहुत ही धीरे-धीरे चलते हुए आ रही थी। अन्दर आकर जाहिरा नाश्ते का सामान लेकर रसोई में चली गई और फैजान मेरे पास आ गया। मैंने मुस्करा कर उसकी तरफ देखा और बोली- आज हमारी जाहिरा प्यारी लग रही है ना?

फैजान ने मेरी तरफ देखा और बोला- हाँ हाँ, बहुत अच्छी लग रही है।

मैं उठी और रसोई की तरफ जाते हुए फैजान से बोली- यार वो बेडरूम से चाय की सुबह वाला कप तो उठा लाना.. उसको भी साथ ही धो लेती हूँ।

यह कह कर मैं रसोई में चली गई.. मुझे पता था कि अन्दर का क्या हसीन मंज़र फैजान का मुंतजिर होगा। मैं रसोई में जाहिरा के पास आ गई और उसे नाश्ता लगाने मैं मदद करने लगी।

थोड़ी देर बाद मैंने जाहिरा से कहा- जाहिरा जाकर देखना कि तुम्हारे भैया क्या कर रहे हैं.. उन्हें बेडरूम से कप उठा कर लाने के लिए कहा था.. मुझे लगता है कि दोबारा से वहाँ जाकर सो गए हैं।

जाहिरा मुस्कराई और बेडरूम की तरफ बढ़ी और मैं उसको रसोई के दरवाजे के पीछे से देखने लगी।

जाहिरा ने जैसे ही अन्दर झाँका तो एकदम पीछे हट गई। उसने रसोई की तरफ मुड़ कर देखा.. लेकिन जब मुझ पर नज़र नहीं पड़ी.. तो दोबारा छुप कर अन्दर देखने लगी।

मैं समझ सकती थी कि अन्दर क्या हो रहा होगा। लाजिमी सी बात थी कि अपने बिस्तर पर जो मैंने जाहिरा की ब्रेजियर फैंकी थी.. वो फैजान के आने तक वहीं पड़ी हुई थी.. तो अब फैजान ने उसे देख लिया होगा और लाजिमन उसे उठा कर उसका जायज़ा ले रहा होगा। उसे अच्छे से अंदाज़ा था कि यह मेरी ब्रेजियर नहीं है और अब तो उसे साइज़ का भी पता हो गया था। उसे यह भी पता था कि मैंने तो कल से ब्रा पहनी ही नहीं हुई है।

अन्दर फैजान अपनी बहन की ब्रेजियर के साथ खेल कर मजे ले रहा था और बाहर खड़ी हुई जाहिरा अपने भाई को अपनी ही ब्रेजियर से खेलते हुए देख रही थी। यह नहीं पता था कि फैजान अपनी बहन की ब्रा के साथ कर क्या रहा है.. लेकिन बहरहाल और उसके लिए कुछ करने का था तो नहीं वहाँ.. पर तब भी कुछ देर तक मैंने दोनों को एंजाय करने दिया।

फिर थोड़ा दरवाजे से पीछे हट कर मैंने फैजान को और फिर जाहिरा को आवाज़ दी और जल्दी आने को कहा। मेरी आवाज़ सुन कर जाहिरा रसोई में आ गई। मैंने जाहिरा का चेहरा देखा तो वो सुर्ख हो रहा था.. मैंने पूछा- आए नहीं तुम्हारे भैया.. क्या कर रहे हैं? जाहिरा बोली- आ रहे हैं वो बस अभी आते हैं।

वो मेरे सवाल का जवाब देने में घबरा रही थी। फिर वो आहिस्ता से बोली- भाभी आपने मेरी ब्रा वहीं बिस्तर पर ही फेंक दी थी क्या? मैं- ओह हाँ.. बस यूँ ही ख्याल ही नहीं रहा बस.. क्यों क्या हुआ है उसे?

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