मेरी काम वासना के रंगीन सपने -5

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प्रिय दोस्तो, अब तक आपने पढ़ा..

अपने पति के साथ वो अधबुझी आग एक सुलगती लौ की तरह मेरे अन्दर ऐसी आग लगाकर रह जाती.. जो मुझे रात भर जलाती रहती। आख़िर मायके जाकर की सहेलियों से मिली.. और हस्तमैथुन प्रयोग सीख कर उसके उपचार से खुद को शांत करने लगी। पिताजी ने इस बेरंग शादी को अपनी नाकामयाबी के क़िस्सों में एक और किस्सा बनाकर अपना मुँह मोड़ लिया।

दोनों बहनें बच्चों की परवरिश में मग्न मुझसे दूर हो गईं। माँ भी क्या करती.. खुद हालत से मजबूर मुझे भी वही नसीयत देती.. जो उन्होंने अपनी जीवन में इस्तेमाल किया.. हालत से सुलह कर लो और पूजा-पाठ में लगे रहो। केवल 20 साल की उम्र में पूजा-पाठ कैसे होगा..? जब मन और तन की माँगें ज़ोर पकड़ रही हैं। मन को कैसे काबू करूँ..? जवानी की आग को कैसे बुझा दूँ..? यही सब सोचते हुए मैं अपने भांजे से रिश्ता बनाने के लिए सोचने लगी।

अब आगे लिख रही हूँ..

फिर मैंने किसी विद्वान की उस उक्ति को ध्यान में लिया.. जिसमें कहा गया था कि आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है.. मैंने इसी युक्ति को ध्यान में लेते हुए अपने भांजे से अपने जिस्मानी रिश्ते बनाने के लिए प्रयास शुरू कर दिए।

शाम को जब चंदर कॉलेज से लौट आया.. चाय देने के बहाने उसके कमरे में गई और उससे बातचीत छेड़ने का प्रयास किया।

चंदर बड़ा ही शर्मीला था.. मेरी तरफ देख भी नहीं रहा था और नज़र बचाते हुए बात कर रहा था। मैं एक पीले रंग की पारदर्शी साड़ी और सफेद रंग का पारदर्शी ब्लाउज पहने हुई थी, मेरा ब्लाउज काफ़ी सेक्सी किस्म का था। ब्लाउज का गला काफी खुला था जिसमें से मेरी चूचियों की गोलाई बीचों-बीच से बाहर निकली पड़ रही थीं।

ब्लाउज के अन्दर की ब्रा भी काफ़ी सेक्सी किस्म की थी.. और जिस तरह से उनमें मेरी गोलाइयाँ फंसी हुई थीं.. उससे सब कुछ साफ़-साफ़ नज़र आ रहा था। लेकिन जिसको दिखाना चाहती थी.. वो तो नज़र भी नहीं मिला रहा था।

मैं यूँ ही कॉलेज के बारे में कुछ बातें करने लगी। शरमाते हुए वो कुछ जवाब भी दे रहा था। इसी तरह बातों-बातों मैं उससे पूछ पड़ी- क्या तुम्हारे कॉलेज में लड़कियाँ नहीं पढ़तीं? उसने कहा- पढ़ती हैं.. लेकिन बहुत कम.. इंजीनियरिंग में आर्ट्स और कॉमर्स के मुक़ाबले कम लड़कियाँ हैं।

फिर मैंने पूछा- इन लड़कियों में कोई स्पेशल फ्रेंड? चंदर शर्मा गया और अपने मुँह और भी नीचे कर दिया, शरमाते हुए कहा- नहीं.. ऐसा कोई नहीं है.. मैंने और पूछा- क्या कोई भी गर्ल-फ्रेंड नहीं? तुम्हारी उम्र के लड़कों के लिए ये तो मामूली बात है..

चंदर और भी शरमाता रहा और मैं धीरे-धीरे हमारे बीच की दूरी मिटाती गई।

‘चंदर, शरमाते क्यों हो? गर्ल फ्रेंड होना कोई बुरी बात नहीं.. बल्कि आजकल तो ये ही जायज़ है कि लड़का-लड़की अपने जीवन-साथी को खुद ही चुन लें.. बताओ.. कभी लड़कियों के बारे में सोचते ही नहीं क्या..? उनकी ओर आकर्षित नहीं होते क्या?’

अब चंदर शर्म से पानी-पानी हो गया.. बड़ी मुश्किल से जवाब दिया- जी मामी.. ऐसी कोई बात नहीं.. मेरा ध्यान तो पढ़ाई में है.. आजकल कम्पटीशन ज़्यादा है.. इन सब बातों के लिए वक़्त ही कहाँ है.. मैं ऐसे मामलों में बहुत पीछे हूँ।

मैंने एक और तीर छोड़ा- तो क्या ये सब बेकार की बातें हैं?

‘अरे हमारे ज़माने में इस उम्र के लड़के-लड़कियों की शादी हो जाती थी और वो तो सुहागरात भी मना डालते और बच्चे भी पैदा कर लेते थे। तुम्हारा जेनरेशन तो फास्ट है.. और तुम कहते हो कि लड़कियों के बारे में सोचते ही नहीं हो.. क्या किसी लड़की को देखकर आकर्षण सा नहीं होता? कुछ नहीं लगता तुम्हें? और आजकल की लड़कियाँ ऐसे-ऐसे ड्रेस पहनती हैं.. उस सब को देख कर कुछ तो महसूस होता होगा.. उनके करीब जाने की इच्छा.. उनसे बात करने की इच्छा.. उन्हें छूने की इच्छा.. किस करने की इच्छा.. कुछ और करने की इच्छा?’

चंदर की आँखें एकदम बड़ी हो गई, उसे शरम तो आ रही थी.. लेकिन मेरी बात सुनकर उसे अचरज भी हुआ- मामी.. प्लीज़..! उसने ज़ोर से कहा और शर्म से मुस्कुराते हुए मुँह मोड़ लिया- मैं ऐसा कुछ नहीं सोचता हूँ.. मैं सीधा सादा लड़का हूँ.. मैं मुस्कुरा उठी.. मुझे मालूम था कि चंदर कितना सीधा-सादा था।

उस रात की हरकत ने खूब दिखाया मुझे.. ऐसी सेक्सी किताबें पढ़ता है और देखो कैसा नाटक कर रहा है। मैंने भी हार नहीं मानी.. मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था.. मेरे अन्दर भी बहुत कुछ हो रहा था.. मुझमें बेशर्मी बढ़ रही थी।

‘इतने भी सीधे-साधे मत बनो कि सुहागरात के दिन पत्नी को छूना तो दूर मुँह भी देखने से शरमाओ.. अरे इस उम्र में तो सबको सेक्स की जिज्ञासा होती है.. यह तो एक सहज बात है। झिझक छोड़ो और खुलकर बात करो.. अब तुम बड़े हो गए हो.. शरमाने से स्मार्ट नहीं बन सकते..’ चंदर फिर भी मुँह मोड़े हुए शर्म से मुस्कुरा रहा था।

‘ठीक है भाई.. अब और नहीं पूछती.. लेकिन गर्ल-फ्रेंड होना.. लड़कियों की ओर आकर्षित होना या सेक्स के बारे में सोचना.. ये सब बुरी बात नहीं है। अरे आजकल तुम्हारी उम्र के लड़के-लड़कियां एक दूसरे के साथ सेक्स भी कर लेते हैं.. अब सब चलता है..’

यह कहते हुए मैं कमरे से निकल गई। कल शनिवार है.. पति देर से घर आते हैं और वो भी शराब के नशे में धुत्त होकर आते हैं। हर शनिवार अपने निकम्मे दोस्तों के साथ दारू पीते और घर लौट कर चुपचाप सो जाते।

चंदर का कॉलेज सिर्फ़ आधे दिन के लिए खुलता और वो दोपहर को लौट आता था। मेरी योजना के मुताबिक उसके लौटने के बाद हम दोनों के पास 10 घंटों का एकांत समय होता था.. इसी दौरान मैं उसके साथ कुछ और सनसनीखेज बातें छेड़कर गद्दे के नीचे रखी अश्लील किताबें और कन्डोम उसके सामने निकालती और उसे प्रलोभित करके अपने वश में ले लेती और कामातुर होने पर मजबूर करने लगी थी। शर्म और लाज से वो पूरी तरह मेरे वश में हो गया था। मेरी जवान जिस्म को देख उसकी नीयत तो बदलेगी ही.. उसके बाद.. आप समझ सकते हो..

जब तन की प्यास बुझी.. तो सब कुछ बदल सा गया। पहले जब भी रात के अंधेरे में उसकी हरकत करती और चरम सुख के सनसनाते हुए पल जब बीत जाते.. तो ऐसा लगता कि अचानक मेरा मन पूरा शांत हो गया है। कुछ ही पल पहले की करतूतें बुरी और अश्लील लगने लगता था.. अपने कुकर्म पर पछतावा होता था.. लेकिन अब मुझे कोई पछतावा नहीं था। बल्कि एक ऐसी चंचल मस्ती चाह थी कि दोबारा करने को जी चाह रहा था। सेक्स की प्यासी तो थी.. लेकिन मैंने इस तरह अश्लील साहित्य के सहारे जलती हुई वासना की आग में और भी घी डाल दिया था।

भारी साँसें भरती हुई मैंने दोबारा उन किताबों के अन्दर झाँका.. गंदे अश्लील चित्रों को देखते ही एक नई उमंग मेरे अन्दर दौड़ी.. बहुत सारे सनसनीखेज विचार मन में जन्म ले रहे थे। उन विचारों में एक विचार था कि मेरा भांजा चंदर जब इन किताबों को पढ़ता तो उसके दिमाग़ में कैसे ख़याल आते? क्या वो भी किसी लड़की के साथ ये सब कुछ करता हुआ सपना देखता था क्या?

दिमाग़ की ट्रेन का ब्रेक फेल हो गया और मेरे मन में ऐसे-ऐसे विचार आने लगे कि मानो कोई बड़ा सा बाँध टूट पड़ा हो और बाँध में क़ैद पानी उछल-उछल कर बहता जा रहा हो।

चंदर के नंगे जिस्म का दृश्य मेरे मन में आने लगा। थोड़ी ही देर में ख़यालों में अपने आपको भान्जे के साथ संभोग करते हुए देखने लगी।

बस.. फिर क्या था.. ट्रेन पटरी से उतर गई और ख़यालों की दुनिया से असल जगत में आ पहुँची.. लाज और शर्म भी डूब गई.. छी: .. कितना गंदा ख़याल है।

मैंने तुरन्त उठकर सब कुछ ठीक कर दिया और ठंडे पानी से नहा लिया ताकि जिस्म की गर्मी मिटा सकूँ। नहाने के बाद नाइटी पहन ली और खाना खाकर बेडरूम में लेट गई।

इसके बाद एक बार चस्का जो लगा.. सो लगा.. यह तो पहले ही बता चुकी हूँ.. मन जब काबू में ना हो तो दौड़ पड़ता है.. और मेरा मन फिर से ट्रेन की तरह दौड़ने लगा। वही अश्लील विचार मुझे फिर से तंग करने लगे।

अन्तर्वासना की अवैध संबंध वाली कहानियों में मामी-भान्जे की एक सनसनाती हुई सेक्स की कहानी थी। जिसमें मामी सब हद पर करते हुए भान्जे के साथ ऐसी हरकतें कर बैठती.. जो एक पति-पत्नी भी एकांत में करने से शरमाते हैं।

मैं मामी की जगह अपने आपको देखने लगी और भान्जे की जगह चंदर को।

मेरे शरीर में करेंट सा दौड़ रहा था और मैं बेहताशा गीली हो रही थी.. अपनी आँखें बन्द करती तो यही दृश्य सामने आ जाता.. आँखें खोलती तो फिर से बन्द करके वही सपना देखने की इच्छा होती।

मन में शर्म और लाज ने मस्ती और वासना से जंग छेड़ रहे थे। आख़िर बहकता हुए मन ने शर्म और लाज को अपने आपसे मिटा डाला। आख़िर कब तक मैं अपने जिस्म को ऐसी दंड देती रहूंगी।

पहली बार जो मेरे और चंदर के अवैध सम्बन्ध बने तो मन ग्लानि से भर उठा था और उसी समय सोच लिया था कि अब आगे से इसके साथ ऐसा नहीं करूँगी.. पर आप सब तो जानते ही हैं कि ये आग ऐसी आग है जो कभी भी नहीं बुझती है सो चंदर से शारीरिक रिश्ते बनते रहे।

मुझे नहीं मालूम कि मैं सही किया या गलत किया पर तब भी यदि सामाजिक वर्जनाओं को एक बार के लिए भूल भी जाएं तो कायनात की शुरुआत में आदम और हव्वा की कहानी याद आती है जब न रिश्ते थे और न कोई सामाजिक बंधन था.. बस जिस प्रकार उस बनाने वाले की रचनाओं ने सृजन करते हुए खुद की ‘संख्या वृद्धि’ का प्रयास किया.. मैं उसी को अपनाती रही.. लेकिन सृजन करके सन्तान का कोई प्रयास नहीं किया.. उधर लोकाचार और पति से कुछ भय बना रहा।

ये मेरी जीवन डायरी के कुछ अंश हैं जो मैंने आप सभी के सामने प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। मेरे प्रिय साथियो, इस दास्तान की लेखिका नगमा तक आपके विचारों को भेजने के लिए आप डिसकस कमेंट्स पर लिख सकते हैं.. धन्यवाद।

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