भाभी की चूत चुदाई उनके मायके में -1

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दोस्तो, एक बार फिर आप सबके सामने आपका प्यारा शरद एक नई कहानी के साथ हाजिर है। तो तैयार हो जाइए इस नई कहानी को पढ़ने के लिए।

जैसा कि भाभी ने मुझसे कहा था कि हम दोनों के मिलन के लिए तैयार रहना। हम सब लोग वापस इलाहाबाद आ चुके थे और इलाहाबाद आए हुए तीन महीने बीत चुके थे। न तो मुझे.. न ही नीलम को.. और न ही भाभी को.. किसी को भी रंगरेलियाँ मनाने का मौका मिल रहा था। मैं किसी न किसी बहाने नीलम के घर जाता था और इस ताक में रहता था कि भाभी कुछ कहें.. लेकिन भाभी थीं कि कुछ बोलती भी नहीं थीं। सब के सामने ऐसा बर्ताव करती थीं कि उसको मुझसे कुछ लेना-देना ही न हो।

यह मुझे बड़ा अटपटा लगता.. लेकिन मैं इस सम्बन्ध में कुछ भी बात नहीं करता था क्योंकि जब भाभी पहले ही इंतजार करने के लिए बोल चुकी थीं तो मैंने इंतजार करना ही उचित समझा।

क्योंकि भाभी के साथ तो गागर में सागर जैसी बात थीं कि गागर चाहे जितना भर जाए, लेकिन सागर खाली नहीं हो सकता था। मैं जानता हूँ कि इंतजार के बाद जो खुशी मिलती है.. वैसी ही खुशी मुझे भी मिलने वाली है।

अक्टूबर में नवरात्र चल रहा था, मैं दोपहर में उनके यहाँ चला गया। सब लोग बैठे हुए बातचीत में लगे हुए थे। मैं भी उनके साथ बैठ कर गप्पें हाँकने लगा।

तभी भाभी अपने सास और ससुर की ओर मुड़ते हुए अपने मायके जाने की बात कहने लगीं। सास-ससुर ने उसे जाने के लिए ‘हाँ’ कह दिया और भईया से बोले- इसे मायके छोड़ दो। तो भईया ने भी उन्हें उनके घर छोड़ने की सहमति जता दी।

उनकी सहमति से मेरा सारा जोश ठंडा हो गया, मैं वहाँ से जाने लगा.. तभी भाभी ने भईया से बोला- मुझे कुछ पैसे दे दो तो बाज़ार जाकर थोड़ी शॉपिंग कर लूँ। इतना कह कर मुझे आँख मारी जिसका मतलब था कि शाम को मेरी और उनकी मुलाकात चौक बाज़ार में होनी थी।

इशारों में उन्होंने मुझे शाम पाँच बजे का टाईम दिया। चूँकि मेरा और उनका घर आमने-सामने था तो मैं दस-पंद्रह मिनट पहले से ही अपने बारजे पर खड़ा होकर उनके मार्केट जाने का इंतजार करने लगा। थोड़ी देर बाद भाभी मार्केट जाने के लिए रिक्शा करने लगीं और मैं अपनी साईकिल उठाकर उनके रिक्शे के पीछे-पीछे हो लिया।

चौक पहुँचने के बाद मैं और भाभी एक रेस्टोरेन्ट में घुस गए। अन्दर एक केबिन में पहुँच कर मैंने भाभी को पकड़ कर खींच कर उनके होंठों को चूसने लगा और उनके मम्मों को दबाने लगा।

तभी भाभी ने मुझे धक्का देकर अपने से अलग किया और कहने लगीं- इतना भी उतावलापन अच्छा नहीं.. जहाँ इतना इंतजार किया.. थोड़ा और इंतजार कर लो.. और मैं तो तुम्हारी ही हूँ.. मैं कहाँ भागे जा रही हूँ? मैंने कहा- भाभी तीन महीने बीत गए हैं.. केवल एक बार अपनी बुर के दीदार करा दो.. फिर जैसा तुम कहोगी मैं वैसा ही करूँगा। ‘ठीक है वेटर को आ जाने दो.. कुछ आर्डर कर दें.. तो फिर तुमको दीदार करा दूँगी।’

वेटर का आर्डर होने के बाद भाभी ने अन्दर से दरवाजे को बन्द किया और अपनी साड़ी को ऊपर कर के मुझे दो मिनट का टाईम दिया और बोलीं- दो मिनट में मेरी बुर के साथ जो कर सकते हो.. कर लो। जब भाभी ने अपनी साड़ी को ऊपर किया तो उनकी बुर पर काफी बड़ी-बड़ी झाँटें हो चुकी थीं। मैंने भाभी से पूछा- क्यों भाभी.. इतनी बड़ी-बड़ी झाँटें क्यों रख ली हैं?

भाभी बोलीं- दो मिनट में जो तुम कर सकते हो.. वो करो.. फिर मैं बताऊँगी कि मैंने इतनी बड़ी-बड़ी झाँटें क्यों कर रखी हैं?

मैंने तुरंत ही अपनी उँगली उनकी बुर में डाली और बुर को खोदने के बाद उसको अपनी जीभ से चाटा और जीभ भाभी की तरफ कर दी.. भाभी ने भी जीभ से जीभ सटा दी और अपनी चूत के रस का पान करने लगीं। फिर हम दोनों अलग हुए और भाभी ने दरवाजे की सिटकनी हटा दी। फिर हम दोनों बैठ कर डोसा खाने लगे और भाभी मुझे अपना प्लान बताने लगीं।

‘झाटें तो तेरे प्यार में नहीं बनाईं.. तेरे भईया बहुत कह रहे थे.. लेकिन मैंने उनसे कह रखा था कि जब तुम मुझे मेरे घर जाने दोगे तो ही मैं अपनी झाँटों को बनाऊँगी.. क्योंकि इन झाँटों की सफाई मुझे तुझसे ही करानी थी। अब आगे सुनो.. कल मैं सिविल लाइन्स अपने घर जा रही हूँ और तुम कुछ हिन्दी की किताबों और अपने कपड़ों के साथ कल मुझे मेरे घर से पहले मिलो।’

मैंने हामी भरी और दूसरे दिन का इंतजार करने लगा। दूसरे दिन मैं भाभी के मायके वाले घर से 10 कदम पहले ही उनका इंतजार करने लगा। थोड़ी देर ही बाद भाभी का रिक्शा आता हुआ दिखाई दिया। भाभी मुझे देखकर मुस्कुरा रही थीं। मैंने भी उनके मुस्कुराहट का जवाब मुस्कुराहट से दिया। रिक्शा पास आने पर मैं भी रिक्शा में भाभी के बगल में बैठ गया, दो-तीन मिनट बाद ही हम लोग भाभी के घर पर पहुँच गए।

अपने घर पर भाभी ने मेरा परिचय अपने स्टूडेन्ट और पड़ोसी के रूप में कराया और उनके दोनों ही बातों में ही सच्चाई थी.. मुझे उन्होंने चोदने की शिक्षा दी थी।

भाभी के घर में उनके पिताजी-माताजी और एक भाई व एक बहन थी.. जिसका नाम प्रज्ञा था, बहुत खूबसूरत.. लेकिन भाभी की वजह से मैंने उस पर ध्यान न देना ही उचित समझा क्योंकि मैं इस बात को समझ चुका था कि मुझे अपने ऊपर संयम रखना है।

तो मैं और भाभी 7 दिनों के लिए आ गए। भाभी ने वहीं सबके सामने बोलीं- लो शरद.. अब हम सात दिन के लिए यहाँ पर हैं तुमको जितनी भड़ास निकालनी है.. निकाल लेना, तुम्हारी भाभी तुमको सब कुछ पढ़ा देगी.. इससे पहले मैं कुछ कहता भाभी की मम्मी बोली- हाँ..हाँ.. बेटा.. शर्माना मत जो कुछ जानना-समझना है.. पूछ लेना।

हम लोग चाय-नाश्ता करके फारिग हुए तो भाभी की माँ ने मुझे भाभी के बगल वाला कमरा दिखा दिया। मैंने वहीं पर जाकर अपने साथ लाई हुई किताबों को किनारे रख दिया और बिस्तर पर जाकर पसर गया।

थोड़ी देर बाद भाभी आईं और मेरे माथे को चूम कर बोलीं- देख तेरे लिए मैं क्या-क्या करती हूँ। मेरे सुसराल में मुझे मौका नहीं मिल रहा था.. सो मैंने अपने घर पर ही तुमसे चुदने की ठान ली। क्योंकि यहाँ पर सब दस से पाँच बजे तक काम पर जाते हैं। तुम रोज एक हफ्ते तक मुझे चोद सकते हो और हमें कोई कुछ कहने वाला भी नहीं होगा। बस तुम उन सबके घर छोड़ने से पहले यूनीवर्सिटी के बहाने निकल जाना ताकि किसी को शक न हो और जैसे ही सब चले जाएँ तो तुम और मैं बस हम दोनों ही होंगे और जैसा तुम कहोगे वैसा ही मैं करूँगी।

मैंने मुस्कुराते हुए मुंडी हिला दी- तो आज क्या ऐसे ही जाएगा.. कुछ करो? ‘चल रात को देखती हूँ..’ ‘अच्छा ठीक है.. अभी तो थोड़ा पीछे का दीदार करा दो।’ ‘तू मानेगा नहीं.. तेरी गाण्ड और मेरी गाण्ड एक जैसी ही तो है। फिर क्या देखना।’ ‘नहीं दिखा दो.. तुम्हारी गाण्ड को देखकर मेरा लौड़ा हिनहिनाता है। एक बार दिखा दो तो उसको भी चैन आ जाए।’ ‘ठीक है.. लेकिन चड्डी उतारने के लिए मत कहना।’

इतना कहकर भाभी दूसरी तरफ घूमीं और साड़ी को ऊपर उठा दिया और हल्का सा झुक गईं। मैंने तुरंत ही अपनी उँगली उनकी गाण्ड में घुसेड़ दी और उनकी गाण्ड को खोदने लगा.. तभी ऊपर किसी की आने की आहट सुनकर मैंने तुरंत अपनी उँगली गाण्ड से बाहर निकाली और भाभी ने अपनी साड़ी को नीचे कर लिया।

मित्रो.. भाभी की चुदाई की रसभरी कहानी आप सभी को मजा दे रही होगी। मेरी आपसे विनम्र प्रार्थना है कि मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए मुझे ईमेल जरूर कीजिएगा। कहानी जारी है। [email protected] [email protected]

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