मेरा गुप्त जीवन- 9

मेरा जीवन कम्मो के साथ बड़े आनन्द के साथ चल रहा था, वह रोज़ मुझको काम क्रीड़ा के बारे में कुछ न कुछ नई बात बताती थी जिसको मैं पूरे ध्यान से सुनता था और भरसक कोशिश करता था कि उसके सिखाये हुए तरीके इस्तमाल करूँ और जिस तरह वह मेरे साथ चुदाई के बाद मुझको चूमती चाटती थी, यह साबित करता था कि मैं उसके बताये हुए तरीकों का सही इस्तेमाल कर रहा हूँ।

और धीरे धीरे मुझको लगा कि कम्मो को मुझसे चुदवाने की आदत सी बनती जा रही थी और मैं भी उसे चोदे बिना नहीं रह पाता था। हर महीने वो चार दिन मेरे पास नहीं आती थी और बहुत पूछने पर भी कारण नहीं बताती थी। बहुत पूछने की कोशिश की लेकिन वो इस बारे में कोई बात कर के राज़ी ही न थी। हाँ इतना ज़रूर कहती जब मैं शादी करूंगा तो समझ जाऊंगा। वो महीने के चार दिन मेरे बड़ी मुश्कल से गुज़रते थे, 5-6 दिन बाद वो खुद ही मेरे कमरे में दोपहर में आ जाती थी और हमारा चुदाई का दौर फिर ज़ोरों से शुरू हो जाता था।

उसने कई बार मेरे छूटने के बाद मुझ को लंड चूत के बाहर नहीं निकालने दिया था और कुछ मिन्ट में मेरा लंड फिर चूत में ही खड़ा हो जाता था और मैं फिर से चुदाई शुरू कर देता था। कई बार उसने आज़मा के देख लिया था कि मेरा लंड चूत के अंदर ही दुबारा खड़ा हो जाता था और मैं छूटने के बाद भी चुदाई जारी रख सकता था।

वो कहती थी कि मुझमें चोदने की अपार शक्ति है और शायद भगवान ने मुझको इसी काम के लिए ही बनाया है। उसने यह भी बताया कि मेरे अंदर से बहुत ज़यादा वीर्य निकलता है जो 3-4 औरतों को एक साथ गर्भवती कर सकने की ताकत रखता है।

अब मेरे लंड की लम्बाई तकरीबन 7 इंच की हो गई थी और खासा मोटा भी हो गया था। कम्मो हर हफ्ते उसका नाप लेती थी और कॉपी में लिखती जाती थी। उसका कहना था कि वो जो तेल की मालिश करती थी शायद उससे यह लम्बा और अच्छा मोटा हो गया है। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

लेकिन वो अभी भी हैरान हो जाती थी जब उसके हाथ लगाते ही मेरा लंड लोहे की माफिक सख्त हो जाता था। अब वो चुदाई के दौरान 2-3 बार छूट जाती थी क्योंकि मैंने महसूस किया था कि जब वो छूटने वाली होती थी वो कस के मुझको अपनी बाहों में जकड़ लेती थी और अपनी दोनों टांगों से मेरी कमर को कस के दबा लेती थी और ज़ोर से कांपती थी और फिर एकदम ढीली पड़ जाती थी।

हालाँकि वो बताती नहीं थी लेकिन मैं अब उसकी आदतों से पूरा वाकिफ़ हो गया था और बड़ा आनन्द लेता था जब उसका छूटना शुरू होता था। फिर उसने मुझको सिखाया कि कैसे औरतों के छूटने के बाद लंड को बिना हिलाये अंदर ही पड़ा रहने दो तो उनको बहुत आनन्द आता है और जल्दी दुबारा चुदाई के लिए तैयार हो जाती हैं। उसके सिखाये हुए सबक मेरे जीवन में मुझको बहुत काम आये और शायद यही कारण है कि जो भी स्त्री मेरे संपर्क में आती वह जल्दी मेरा साथ नहीं छोड़ती थी और मेरे साथ ही सम्भोग करने की सदा इच्छुक रहती थी।

और एक दिन कम्मो नहीं आई और पता किया गया तो पता चला कि वो गाँव छोड़ कर किसी के संग भाग गई थी। किसी ने देखा तो नहीं लेकिन ऐसा अंदाजा है कि वो अपने गाँव से बाहर वाले आदमी के साथ ही भागी है। पर कैसे यकीन किया जाए कि कम्मो के साथ कोई दुर्घटना तो नहीं हो गई?

मैंने मम्मी और पापा पर ज़ोर डाला कि पता करना चाहिये आखिर क्या हुआ उसको? लेकिन बहुत दौड़ धूप के बाद भी कुछ पता नहीं चला। मैं बेहद निराश था क्योंकि मेरा मौज मस्ती भरा जीवन एकदम बिखर गया। मम्मी ने कोशिश करके एक और औरत को मेरे लिए काम पर रख लिया। उसका नाम था चम्पा।

कम्मो के जाने के कुछ दिनों बाद ही वो काम पर आ गई थी, उसको देखते ही मुझको लगा कि इस लड़की को मैंने पहले कहीं देखा है। बहुत ज़ोर डाला तो याद आया कि इसको तो नदी के किनारे नहाते हुए देखा था और इसने मेरी छुपने वाली जगह के सामने ही कपड़े बदले थे।

वो नज़ारा याद आते ही मेरा लंड पूरे ज़ोर से खड़ा हो गया क्यूंकि इसके स्तन बड़े ही गोल और गठे हुए दिखे थे और चुचूक भी काफी मोटे थे बाहर निकले हुए ! चूत पर काली झांटों का राज्य था, कमर और पेट एकदम उर्वशी की तरह एकदम गोल और गठा हुआ था, उसके नितम्ब एकदम गोल और काफी उभरे हुए थे।

थोड़ी देर बाद मम्मी चम्पा को लेकर मेरे कमरे में आई और उसको मुझ से मिलवाया। वह मुझ को देख कर धीरे से मुस्करा दी और बोली- नमस्ते छोटे मालिक! मैंने भी अपना सर हिला दिया। मम्मी के सामने मैंने उसकी तरफ देखा भी नहीं और ऐसा बैठा रहा जैसे कि मुझको चम्पा से कुछ लेना देना नहीं।

मम्मी उसको समझाने लगी- सुनो चम्पा, सोमू भैया को सुबह बिस्तर में चाय पीने की आदत है, तुम रोज़ सुबह सोमू के लिए चाय लाओगी और चाय पिला कर उसका कप वापस रसोई में ले जाओगी और फिर आकर सोमू की स्कूल ड्रेस जो अलमारी में हैंगर पर लटकी है, वह बाहर लाकर उसके बेड पर रख दोगी और फिर उसके स्कूल वाले बूट पोलिश करके, उसका रुमाल वगैरा मेज पर रख देना। इसी तरह जब सोमू स्कूल से आये तो तुम इस कमरे में आ जाना और उसका खाना इत्यादि उसको परोस देना। और उसके कपड़े भी धो देना। समझ गई न?

यह कह कर मम्मी चली गई। अब मैंने चम्पा को गौर से दखना शुरू किया। वो मुझको घूरते देख पहले तो शरमाई और फिर सर झुका कर खड़ी रही। मैंने देखा कि वो एक सादी सी धोती और लाल ब्लाउज पहने थी, उसने अपने वक्ष अच्छी तरह से ढके हुए थे। उस सादी पोशाक में भी उसकी जवानी छलक रही थी।

उसने झिझकते हुए पूछा- सोमु भैया, मैं रुकूँ या जाऊँ बाहर? मैं बोला- चम्पा, तुम मेरे लिए एक गरमागरम चाय ले आओ।

‘जी अच्छा… लाई!’ कह कर वो चली गई और थोड़ी देर में चाय ले कर आगई। तब मैंने उससे पूछा- क्या तुम कम्मो को जानती हो? वो बोली- हाँ सोमू भैया। वो मेरे साथ वाली झोंपड़ी में ही तो रहती थी। ‘तो फिर तुम ज़रूर जानती होगी कि वो कहाँ गई?’ ‘नहीं भैया जी, गाँव में कोई नहीं जानता वो कहाँ गई और क्यों गई? बेचारी की बूढ़ी माँ है, पीछे उसको अब खाने के लाले पड़ गए हैं। कहाँ से खाएगी वो बेचारी? अभी तक तो गाँव वाले उसको थोड़ा बहुत खाना दे आते हैं लेकिन कब तक?

मैं कुछ देर सोचता रहा फिर बोला- क्या तुम उसकी माँ को यहाँ से खाना भिजवा दिया करोगी? मैं मम्मी से बात कर लूंगा। वो बोली- ठीक है भैया जी! और मम्मी से बात की तो वो मान गई और उसी वक्त चम्पा को हुक्म दिया कि दोनों वक्त का खाना कम्मो की माँ को चम्पा पहुँचा दिया करेगी।

अब मैं चम्पा को पटाने की तरकीब सोचने लगा, कुछ सूझ नहीं रहा था और इसी बारे में सोचते हुए मैं सो गया। सुबह जब आँख खुली तो चम्पा चाय का कप लिए खड़ी थी। मैंने जल्दी से चादर उतारी और कप लेने के लिए हाथ आगे किया तो देखा की चम्पा मेरे पायजामे को देख रही थी। जब मैंने उस तरफ देखा तो मेरा लंड एकदम अकड़ा खड़ा था, एक तम्बू सा बन गया था खड़े लंड के कारण और चम्पा की नज़रें उसी पर टिकी थी।

मैंने भी चुपचाप चाय ले ली और धीरे से गर्म चाय पीने लगा। मेरा लंड अब और भी तन गया था और थोड़ा थोड़ा ऊपर नीचे हो रहा था। चम्पा इस नाटक को बड़े ही ध्यान से देख रही थी। जब तक चम्पा खड़ी रही लंड भी अकड़ा रहा। जब वो कप लेकर वापस गई तो तब ही वो बैठा अब मुझको चम्पा को पटाने का तरीका दिखने लगा।

अगले दिन मैं चम्पा के आने से पहले ही जाग गया, हाथ से लंड खड़ा कर लिया, उसको पायजामे से बाहर कर दिया और ऊपर फिर से चादर डाल दी और आँखें बंद करके सोने का नाटक करने लगा।

जब चम्पा ने आकर बोला- चाय ले लीजये। मैंने झट से आँखें खोली और अपने ऊपर से चादर हटा दी और मेरा अकड़ा लंड एकदम बाहर आ गया। मैंने ऐसा व्यवहार किया जैसे मुझ को कुछ मालूम ही नहीं और उधर चम्पा की नज़र एकदम लंड पर टिक गई थी।

मैं चाय लेकर चुस्की लेने लगा और चम्पा को भी देखता रहा। उसका हाथ अपने आप अब धोती के ऊपर ठीक अपनी चूत पर रखा था और उसकी आँखें फटी रह गई थी। चाय का खाली कप ले जाते हुए भी वो मुड़ कर मेरे लंड को ही देख रही थी। अब मैं समझ गया कि वो लंड की प्यासी है।

उसके जाने के बाद मैंने कॉल बैल दबा दी, और जैसे ही चम्पा आई, मैंने पायजामा ठीक करते हुए उससे कहा- मेरे स्कूल के कपड़े निकाल दो।

और वो जल्दी से अलमारी से मेरी स्कूल ड्रेस निकालने लगी। मैं चुपके से उसके पीछे गया और उस मोटे नितम्बों को हाथ से दबा दिया। कहानी जारी रहेगी। [email protected]