मकान मालकिन और उसके बेटे की चुदास -4

अब तक आपने पढ़ा..

उसके पूरी तरह तने हुए चूचे.. जो बाहर से जितने मुलायम और कोमल महसूस होते थे.. दबाकर मसलने पर उताने ही कठोर लगते थे।

दूधिया रंगत लिए हुए चूचे कश्मीर की चोटियों के समान जन्नत थे.. उस पर सजे हुए गहरे लाल रंग के चूचुक.. जो इस वक्त तन कर पूरी तरह से उभरे हुए थे। मम्मी की पतली और नाज़ुक कमर के ऊपर झूलते हुए वो विशालकाय चूचे.. किसी अखंड ब्रह्मचारी का ब्रह्मचर्य भी भंग करने के लिए काफ़ी थे।

‘तुम्हारे चेहरे के हावभाव को देखकर लगता है.. तुम्हें अपनी मम्मी के ये मोटे चूचे बहुत भा गए हैं। रवि मैं सच कह रही हूँ ना..? दिव्या बेशरमी से अपने बेटे को छेड़ती है। अब आगे..

उसके हाथ अपनी पतली कमर पर थिरकते हुए ऊपर की ओर बढ़ते हैं और वो अपने विशाल.. गद्देदार चूचों को हाथों में क़ैद करते हुए उन्हें कामुकतापूर्वक दबाती है। दिव्या अपने पाँव को हिलाते हुए अपनी उँची एड़ी की सेंडिलों को निकाल देती है। फिर उसकी जींस का नंबर आता है.. काम-लोलुप मम्मी अपने काँपते हाथों से जींस का बटन खोलती है और फिर उसे भी अपने जिस्म से अलग कर देती है। एक काले रंग की कच्छी के अलावा पूरी नग्न माँ अपने बेटे के पास बिस्तर पर बैठ जाती है।

‘रवि आगे बढ़ो.. अब तुम अपनी मम्मी के मम्मों को चूस सकते हो.. मेरा अनुमान है.. तुम मुट्ठ मारते हुए इन्हें चूसने की कल्पना ज़रूर करते होगे..’ यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

अपनी मम्मी की बात के जवाब में रवि सहमति के अंदाज़ में सिर हिलता है. फिर वो अपनी मम्मी के सामने घुटनों के बल होते हुए उसके विशाल और कड़े चूचे को हाथों में भर लेता है.. चूचुकों पर अंगूठे रगड़ते हुए वो किसी भूखे की तरह उन जबरदस्त चूचों को निचोड़ने और दबाने लग जाता है। चूचों के मसलवाने का आनन्द सीधा दिव्या की चूत पर असर करता है और उसके जिस्म में एक कंपकपी सी दौड़ जाती है।

‘तु..तुम चाहो तो इनको चूस भी सकते हो.. अगर तुम्हारा मन करता है तो..’ दिव्या काँपते हुए लहज़े में बोलती है।

रवि अपनी मम्मी के जिस्म पर पसरते हुए मुँह खोल कर एक तने हुए चुचक को अपने होंठों में भर लेता है। कामुकतापूर्वक वो अपने गालों को सिकोड़ता हुआ अपनी मम्मी के विशाल चूचों को ‘सुडॅक.. सुडॅक..’ कर चूसता है.. ठीक उसी तरह जैसे कभी वो बचपन में अपनी मम्मी का दूध पीते हुए करता था।

दिव्या ‘आह.. आह..’ करती है.. उसकी चूत की प्यास हर बीतते पल के साथ बढ़ती ही जा रही थी। वो अपने प्यारे बेटे के सिर को कोमलता से सहलाते हुए उसे अपने मम्मे चूसने के लिए उकसाती है.. जो उसके बेटे को पसंद भी था। ‘तु..तुम.. अब मेरी चूत को भी चूस सकते हो..’ दिव्या फुसफुसते हुए बोलती है। ‘मेरा ख्याल है.. तुम वो भी ज़रूर करना चाहते हो..’

रवि अपना हाथ नीचे सरकाता हुआ अपनी मम्मी की जाँघों के दरम्यान ले जाता है और अपनी उंगली उसकी चूत पर कच्छी के ऊपर से दबाता है। वो अचानक मम्मों को चूसना बंद कर देता है। चेहरे पर विजयी भाव लिए हुए वो उसकी आँखों में झांकता है। ‘हाय मम्मी.. तुम्हारी चूत तो एकदम रसीली हो गई है..’

दिव्या शर्मा जाती है.. वो यह तो जानती थी कि उसकी फुद्दी गीली है.. मगर यह नहीं जानती थी कि इतनी गीली है कि उसकी जाँघें भीतर से.. उसकी चूत से रिसने वाले पानी के कारण पूरी तरह चिकनी हो गई थीं और सामने से कच्छी उसकी गीली चूत से बुरी तरह से चिपकी हुई थी।

उसका बेटा कच्छी को पकड़ता है और उसे खींच कर उसके जिस्म से अलग कर देता है। अब उसकी मम्मी उसके सामने पूरी तरह से नंगी पड़ी थी। रवि माँ की जाँघों को फैलाते हुए उसकी गीली और फड़फड़ा रही स्पंदनशील चूत को निहारता है। रवि प्रत्यक्ष रूप से अपनी माँ की मलाईदर चूत देखकर मंत्रमुगध हो जाता है।

‘बेटा तुम मेरी और इस तरह किस लिए देख रहे हो..?’ दिव्या हाँफती हुए बोलती है। ‘तुम अपने इस मूसल लण्ड को सीधे मेरी चूत में क्यों नहीं घुसा देते..? मैं जानती हूँ.. तुम्हारे मन की यही लालसा है.. भले ही मैं तुम्हारी माँ हूँ..’

‘नहीं.. मॉम.. मैं पहले इसे चाटना चाहता हूँ..’ रवि बुदबुदाता है। रवि अपनी मम्मी की लंबी टांगों के बीच में पसरते हुए उसकी जाँघों को ऊपर उठाता है.. ताकि उसका मुँह माँ की फूली हुई गीली और धधकती हुई चूत तक आसानी से पहुँच जाए।

दिव्या को एक मिनट के बाद जाकर कहीं समझ में आता है कि उसका अपना बेटा उसकी चूत चूसना चाहता है और जब उसके बेटे की जिह्वा कामरस से लबालब भरी हुई उसकी चूत की संगठित परतों पर पहला दबाव देती है.. तो उसका जिस्म थर्रा उठता है, उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं और वो मदहोशी में अपने होंठ काटती है। ‘उंगघ.. हाय… रवि.. तु..तुम ये क्या कर रहे हो बेटा.. उंगघ.. उंगघ.. म्म्म्म म..’

मगर रवि चूत चूसने में इतना मस्त था कि उसने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। स्पष्ट था कि उसे अपनी मम्मी की चूत का ज़ायक़ा बहुत स्वादिष्ट लगा था।

अपनी जिह्वा को रस से चमक रही गुलाबी चूत में ऊपर-नीचे करने में उसे बड़ा मज़ा आ रहा था। दिव्या ने तुरंत ही अपने मन में एक डर सा महसूस किया कि पता नहीं वो अपने बेटे के सामने अब कैसे बर्ताव करेगी। वो अपने बेटे द्वारा चूत चूसे जाने से पहले ही बहुत ज्यादा कामोत्तेजित थी।

जब उसके बेटे ने अपनी जिह्वा के इस्तेमाल से ही उसकी कुलबुला रही चूत को और भी गीला कर दिया था.. उसकी खुजली में और भी इज़ाफ़ा कर दिया था.. तो आगे चलकर उसकी क्या हालत होगी.. उसे यह बात सोचते हुए भी डर लग रहा था कि कहीं हूँ मदहोशी में अपनी सुधबुध ना खो बैठूं और बेटे के सामने एक रंडी की तरह बर्ताव ना करने लग जाऊँ।

‘नहीं.. बेटा.. तुम्हें हहम्म.. तुम्हें मम्मी की चूत चूसने की कोई ज़रूरत नहीं है.. उंगघ.. बस अपनी मम्मी को चोद डालो.. बेटा.. मैं जानती हूँ.. तुम भी सिर्फ़ यही चाहते हो..’

रवि कोई जवाब नहीं देता है.. उसकी उंगलियाँ चूत के होंठों को फैलाए रखती हैं ताकि वो अपनी जिह्वा अपनी माँ के गीले और सुगन्धित छेद में पूरी गहराई तक डाल सके। चूत की गहराई से बह रहे मलाईदार रस का बहना लगातार जारी था और चूत का दाना सूज़ कर और भी मोटा हो गया था.. जो रोंयेदार चूत की लकीर के ऊपर उभरा हुआ साफ़ दिखाई दे रहा था।

रवि अपनी जिह्वा को चूत के ऊपर की ओर घुमाता है। वो चूत चूसने के कौशल में अपनी प्रवीणता उस समय साबित कर देता है.. जब वो अपनी जीभ अपनी मम्मी की चूत के दाने पर एक तरफ़ से दूरी तरफ तक कोमलता से रगड़ता है। निर्वस्त्र माँ सीत्कार करते हुए बेटे के सिर को दोनों हाथों में थाम लेती है और फिर वो अविलंब अपने नितंब बिस्तर से ऊपर हवा में उछालते हुए शीघ्रता से आती.. अपने बेटे का मुँह अपनी गीली फुद्दी से चोदने लगती है।

दिव्या भर्राए गले से बोलती है ‘हाय.. बेटा.. उंगघ.. मम्मी को चूसो बेटा.. मम्मी को बुरी तरह से चूस डालो.. उंगघ.. मम्मी के दाने को चाट.. चूसो इसे.. अच्छे से चूसो.. ओह्ह.. अपनी मम्मी को झड़ा दो मेरे लाल.. मेरा पूरा पानी निकाल डालो.. और पी जाओ.. हाअई एयई..’

रवि चूत को चूमते हुए उसकी चुसाई चालू रखता है। केवल तभी विराम लगाता है.. जब वो अपना चेहरा मम्मी की घनी.. सुनहरी रंग की घुँघराली झांटों पर रगड़ता है। अब वो अपनी उंगलियाँ सीधी करता है और उन्हें अपनी माँ की चूत के संकीर्ण और बुरी तरह से चिपके हुए होंठों के अन्दर तक डालता है।

उस वक्त दिव्या के जिस्म में कंपकंपी दौड़ जाती है.. जब उसका बेटा उसकी चूत में उंगली करते हुए उसके दाने को मुँह में भरकर चूसता है। ‘ह..हहाय..रवि.. चूस इसे.. हहाँ..मैं तेरी मिन्नत करती हूँ बेटा..’

रवि दाने को होंठों में दबाए हुए उसे कोमलता से चूसता है.. मगर जिह्वा को उस पर कठोरता से रगड़ते हुए और साथ ही साथ शीघ्रता से उसकी फुद्दी में अपनी उंगलियाँ अन्दर तक डालता है। दिव्या अपने भीतर गहराई में रस उमड़ता हुआ महसूस करती है.. जिसके कारण उसके चूचुकों और गुदाद्वार में सिहरन सी दौड़ जाती है और स्खलनपूर्व होने वाले मीठे अहसास से उसके जिस्म में आनन्द की खलबली मच जाती है। फिर वो जिस्म को अकड़ाते हुए अनियंत्रित ढंग से स्खलित होने लगती है.. जब उसका अपना बेटा उसकी चूत को चूस रहा होता है।

‘चूस इसे बेटा ज़ोर से चूस.. उंगघ.. चाट इसको.. अपनी मम्मी की चूत चाट.. मैं झड़ रही हूँ बेटा.. हाँ.. मैं झड़ रही हूँ.. आअहह..’

दिव्या की तड़पती चूत संकुचित होते हुए इतना रस उगलती है कि उसका लाड़ला दिल खोल कर चूत-रस को चूस और चाट सकता था। रवि मम्मी के दाने को लगातार चूसते हुए और उसकी चूत में उंगली करते हुए उसे स्खलन के शिखर तक ले जाता है। लगभग एक मिनट बीत जाने पर चूत का संकुचित होना कम होता है।

तब तक दिव्या को अपनी फुद्दी के भीतर गहराई में एक ऐसी तड़पा देने वाली कमी महसूस होने लग जाती है.. जैसी उसने आज तक महसूस नहीं की थी। वो चाहती थी कि उसका बेटा जितना जल्दी हो सके उसकी चूत में अपना मूसल जैसा लण्ड घुसेड़ दे। वो अपने बेटे के मोटे मांसल लण्ड से अपनी चूत ठुकवाने के लिए मरी जा रही थी।

दोस्तो, यह कहानी सिर्फ और सिर्फ काम वासना से भरी हुई.. जो भी मैं इसमें लिख रहा हूँ.. अक्षरश: सत्य है.. आप इसकी कामुकता को सिर्फ कामक्रीड़ा के नजरिए से पढ़िए.. और आनन्द लीजिए। मुझे अपने विचारों से अवगत कराने के लिए मुझे ईमेल अवश्य कीजिएगा।

कहानी जारी है। [email protected]