सपने में चूत चुदाई का मजा -2

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अब तक आपने पढ़ा..

मुझे ऐसा कुछ कहने में हर्ज नहीं था। मैं बाद में क्या करने वाला था, प्रोफेसर को कौन बताने वाला था.. इसलिए मैंने प्रोफेसर को बोला। ‘लेकिन प्रोफेसर किस लड़की के दिल में क्या है… उसको जानने के लिए तुम्हारी वो दवा बहुत हेल्प करेगी। दस महीने से चोदने के लिए कोई मिली नहीं है.. साला मेरा लण्ड भी अब मुझे गाली दे रहा है।’ तभी प्रोफेसर बोला- ठीक है 2-4 दिन रुक.. हो सकता है कि तेरी और मेरी दोनों की समस्या हल हो जाए। इतना कहकर वो मेरी ओर देखकर मुस्कुराने लगा। अब आगे..

प्रोफेसर की बात सुनकर अब मेरी नजर हॉस्टल में रहने वाली लड़कियों पर रहने लगी और प्रोफेसर की बात सुनकर मैं अपने दिन गिन रहा था। करीब पन्द्रह दिन बाद प्रोफेसर की मेहनत रंग लाई और उसने जो एक्सपेरीमेन्ट किया.. वो वास्तव में जीवन में रंग लाने वाली थी। सफल परीक्षण के बाद उसने वो दवा मुझे दी। चूँकि उसकी बनाई हुई दवा की एक बूंद से ही मैं चार से पाँच घन्टे तक गायब रह सकता था.. इसलिए प्रोफेसर ने मुझे वो दवा एक छोटी सी शीशी में दी.. जिसमें यह कहा जा सकता था कि पन्द्रह से बीस बूँद ही थीं। लेकिन देने से पहले किसी को न बताने का वादा करवा लिया और मैं रात को उस दवा को आजमाने जा रहा था।

करीब रात को दस बज गए थे.. हॉस्टल में रहने वाली सभी लड़कियों के कमरे की लाइट बंद हो चुकी थीं। बस एक कमरे की लाईट नहीं बंद नहीं थी.. उस कमरे में रहने वाली लड़की.. जिसका नाम सूजी था। वो पाँच फिट छ: इंच लम्बी एक मस्त लड़की थी। गदराया हुआ बदन था.. उसके बाल लम्बे-लम्बे.. तनिक साँवली सलोनी सी.. नाक एकदम सुतवां नुकीली.. गहरी आँखें.. पतले-पतले होंठ.. लगभग 32-30-32 का उसका फिगर होगा।

मैं उसके कमरे में गया और की-होल से झाँक कर देखा.. तो वो कुछ पढ़ रही थी और अपने जिस्म को सहला रही थी। मैं सब कुछ तो ठीक से नहीं देख पा रहा था, लेकिन इतना तो तय था कि वो अपने कटि प्रदेश को रगड़ रही थी।

अब मैं एक रिस्क के साथ उस दवा को अपने ऊपर आजमाने के लिए तैयार था। मैंने एक बूँद दवा ली.. उसको पिया। दवा थोड़ी कड़वी थी और मुझे अपने शरीर में ऐसा कोई परिवर्तन नजर नहीं आ रहा था.. जैसा कि पिक्चरों में होता है।

फिर मैंने दो मिनट का इंतजार किया और उसके दरवाजे को खटखटा कर किनारे हो गया। मैंने सोच रखा था अगर मैं उसको दिखाई पड़ता हूँ तो मैं बोल दूँगा कि तुम्हारे कमरे की लाईट क्यों जल रही है।

तभी दरवाजा खुला.. आवाज आई- कौन है?

मेरी तरफ उसकी नजर तो थी.. लेकिन शायद मैं उसे नजर नहीं आ रहा था। इसलिए वो थोड़ा बाहर आई और गैलरी के दोनों ओर देखा और अन्दर आकर बड़बड़ाने लगी- रात में भी परेशान करते हैं।

अब मुझे विश्वास हो गया था कि वो मुझे नहीं देख पा रही है.. इसका मतलब मैं गायब हो चुका था। उसने फिर से दरवाजा बंद किया लेकिन उससे पहले मैं कमरे में दाखिल हो चुका था। टेबल लैम्प को ऑन किया.. फिर मेन लाईट बंद कर दी और अपनी जगह आकर बैठ गई, फिर से पढ़ने में लग गई.. वो एक चार-पाँच पन्ने का प्रिन्ट आउट था.. उसको वो पढ़ रही थी और अपने योनि प्रदेश को रगड़ रही थी।

खास बात यह थी कि वो प्रिन्ट आउट अन्तर्वासना का था और मेरी ही लिखी हुई कहानी ‘मेरी सुहागरात की चुदाई’ को पढ़ रही थी, उसके साथ ही उसके चेहरे पर कंपन सी होती जा रही थी और काफी उन्माद में आती जा रही थी। वो जितनी उन्माद में आती.. उतनी ही तेज मध्यमा उंगली को अपनी चूत से रगड़ती और साथ ही बड़बड़ाती जाती- क्या सक्सेना जी.. क्या मस्त कहानी लिखी है।

जैसे ही उसने पढ़ना बंद किया.. वैसे ही ‘आह..’ की आवाज से साथ उसका जिस्म ढीला पड़ गया। मैंने देखा कि सूजी ने जो पैन्टी पहनी थी.. वो काफी गीली हो चुकी थी.. क्योंकि वो अपनी मध्यमा उंगली को अपने अंगूठे से रगड़ने लगी। उसके बाद सूजी ने अपनी पैन्टी उतारी और उसको सूँघने लगी.. फिर जीभ का थोड़ा सा हिस्सा बाहर किया और गीली पैन्टी को हल्के से टच किया मानो उसके जिस्म से निकली हुई मलाई का वो स्वाद ले रही हो। जैसे ही उसके जिस्म से निकली हुई मलाई उसके जीभ से टच हुई.. उसकी आँखें अपने आप बंद हो गईं। ऐसा लगा कि उसको अपनी मलाई का स्वाद मिल गया हो। इसलिए सूजी ने तुरन्त ही उसकी चड्डी में जितनी जगह गीली थी.. उसको मुँह में भर लिया और उसको लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी।

अपनी चड्डी को चूसने के बाद उसने उसको एक किनारे फेंक दिया.. मैंने तुरन्त ही उसकी चड्डी को उठा लिया। चड्डी में कोई खास महक नहीं थी.. लेकिन उसकी चड्डी में सूजी की गर्मी बहुत थी। तभी मुझे ध्यान आया.. कि अरे मेरी इस हरकत से सूजी को मेरे उसके कमरे में होने का अहसास न हो जाए.. मैंने तुरन्त ही उसकी चड्डी को एक किनारे फेंका और अपनी नजर सूजी की तरफ की.. तो देखा कि सूजी ने मुझे देखा नहीं था, वो तो बाथरूम की तरफ जा रही थी।

बाथरूम में पहुँचकर उसने अपनी स्कर्ट को ऊपर उठाया और पेशाब करने बैठ गई। ‘शुर्रररर ररररर..’ की आवाज से उसकी धार छूटी। पेशाब करने के बाद वो वापस आकर पलंग पर लेट गई। बार-बार वो करवट बदल रही थी, लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी। कभी वो तकिए को अपने सीने के ऊपर रखती.. तो कभी सिर के नीचे लगाती। लेकिन ऐसा करने पर भी उसे नींद नहीं आ रही थी।

फिर उसने अपना टॉप उतारा.. ब्रा के ऊपर से ही चूचे सहलाए और सोने की कोशिश करने लगी। लेकिन शायद कहानी पढ़ने के बाद उसके जिस्म में लगी हुई आग शान्त नहीं हुई थी.. इसलिए वो अभी करवट बदल रही थी। थोड़ी देर बाद उसने अपनी ब्रा उतारी और सीधी होकर लेट गई। उसकी चूचियों को देखकर मैं तो दंग रह गया। क्या मस्त चूचियां थीं उसकी.. ऐसी फैली हुई थीं कि मानो दो प्लेट के बीच में एक-एक काला अंगूर रखा हो.. बड़ी ही आकर्षक लग रही थीं।

खैर.. सूजी अब अपने चूचुक को दोनों हाथों की दोनों उंगलियों से लेकर मसल रही थी। फिर उसके दोनों हाथ नाभि की ओर फिसलते जा रहे थे। कभी उसकी हथेली नाभि की ओर फिसलती.. तो कभी फिर अपनी चूची की ओर आती।

अन्ततोगत्वा.. उसके दोनों हाथ थोड़ा सा नाभि से ओर नीचे होते हुए स्कर्ट से अन्दर जाने लगे। लेकिन ये क्या? उसने हाथों को वापस अपनी तरफ खींचा और अपने अन्तिम वस्त्र यानि की स्कर्ट को भी उतार दिया।

उसके जिस्म के एक-एक हिस्से की जितनी भी तारीफ करूँ.. उतनी कम है, वास्तव में वो काम की देवी दिखाई पड़ रही थी, उसकी चूत क्या थी.. बिल्कुल फूली हुई पॉव की तरह थी, उसकी चूत में बाल का एक रोआँ तक न था। पूरे जिस्म में उसके चिकहनाहट थी.. उसका जिस्म कांच सा चमक रहा था।

अब सूजी का पूरा हाथ उसकी जाँघों के आस-पास था, कभी वो अपने जाँघों को सहलाती.. तो कभी चूत को.. तो कभी चूची को मस्ती से मसलती।

पिछले दस मिनट से उसका यही चल रहा था। आखिरकार उसने अपनी दोनों टाँगों को मोड़ा और अपनी मध्य उंगली को चूत के छिद्र में ले गई और उंगली को अन्दर-बाहर करने लगी। फिर धीरे से उंगली को बाहर निकाला और अपने नाक के पास ले गई और उसको सूँघने लगी। फिर धीरे से उसी उंगली को अपने मुँह के अन्दर डालकर चूसने लगी। उंगली चूसने के बाद फिर उसने अपनी बुर में उंगली डाली और अन्दर-बाहर करने के बाद उसने फिर उंगली को चूसा। इस तरह उसने कई बार किया।

अब वो अपनी चूत में उंगली बहुत तेज-तेज चलाने लगी.. मुझे लगा कि वो खल्लास होना चाहती है.. इसलिए वो पूरी ताकत से और तेज-तेज उंगली को अन्दर-बाहर करने लगी। इधर मेरा भी अपने ऊपर से काबू खत्म होता जा रहा था। चूँकि मैं सूजी को इस समय चोद नहीं सकता था.. इसलिए मेरा भी हाथ लौड़े के ऊपर चल रहा था। उसी समय सूजी के जिस्म ने अंगड़ाई ली और शान्त हो गई। उसके हाथ में उसका माल लगा था और काफी कुछ बिस्तर में फैल गया था। हाथ में लगा हुआ माल उसने अपने मम्मों में लगा लिया।

उधर मैं भी झड़ने के कगार पर पहुँच चुका था। मैं सूजी के बिस्तर के पास पहुँचा.. उसकी टांगें अभी भी उठी हुई थीं। मैंने वहीं पर.. जहाँ कि सूजी का माल गिरा था.. उसी के ऊपर अपना माल गिरा दिया।

अब सूजी ने अपने सर से तकिया निकाली और जाँघों के बीच फंसा कर सो गई। मैंने भी पाँच-दस मिनट देखा कि कोई नई हरकत हो.. लेकिन अब शायद उसके जिस्म को शांति मिल गई होगी इसलिए मैं दरवाजा खोलकर बाहर आ गया और उसके दरवाजे को इस तरह से लॉक कर दिया कि गलती से भी कोई दूसरा उसके रूम में न घुस जाए।

अब एक का तो जुगाड़ मेरे पास हो गया था। करीब रात को एक बज गया था.. मुझे लगा कि सब सो रहे होंगे.. इसलिए मैं भी अपने रूम में आकर सो गया।

सुबह उठकर मैं सीधे लैब पहुँचा.. जहाँ प्रोफेसर अपना काम कर रहे थे। थोड़ी देर बाद कालेज के लड़के-लड़कियाँ प्रेक्टिकल के लिए लैब में आने लगे। आज सभी लड़कियाँ मुझे बहुत सेक्सी लग रही थीं। उनकी घुटनों से ऊपर उठी हुई स्कर्ट को देख कर मानो ऐसा लग रहा था कि वो स्कर्ट मुझे बुला रही हों और कह रही हों.. कि मेरे राजा शर्माओ नहीं.. आओ, मुझे ऊपर करके इस लड़की की बुर को चोद दो।

मैंने प्रोफेसर से 2-3 घंटे की छुट्टी मांगी और चारों ओर देखा.. पाया किसी का ध्यान मेरे ऊपर नहीं है और प्रोफेसर ने भी मुझे छुट्टी देकर फिर से अपने कार्यो में मन लगा लिया। मैं चुपचाप बाथरूम में गया और प्रोफेसर की दी हुई दवा की एक बूँद को पी गया।

मित्रो, मेरी यह कहानी मेरे एक सपने पर आधारित है.. मैंने अपनी लेखनी से आप सभी के लिए एक ऐसा प्रसंग लिखना चाहा है.. जो मानव मात्र के लिए सम्भोग की चरम सीमा तक पहुँचने की सदा से ही लालसा रही है। मुझे आशा है कि आपको कहानी पसंद आएगी। आपके ईमेल की प्रतीक्षा में आपका शरद सक्सेना कहानी जारी है। [email protected]

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