मैं अपने जेठ की पत्नी बन कर चुदी -2

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अन्तर्वासना के पाठकों को आपकी प्यारी नेहारानी का प्यार और नमस्कार। अब तक आपने पढ़ा..

तभी मेरी निगाह दरवाजे पर पड़ी.. जेठ जी का लण्ड वीर्य उगलने लगा था। जेठ जी सिसिया रहे थे- आहह.. सी.. नेहा.. आह.. चुद जा मेरे लौड़े से.. आह.. सीई.. आह.. नेहा.. वे झड़ रहे थे.. जबकि उनकी आवाज मुझे सुनाई दे रही थी। वह सब भूल कर बस अपना पूरा वीर्य दरवाजे पर गिराकर चले गए। शायद यह सब वह उत्तेजना में बोल गए थे। मैं भी आखरी बार अपनी चूत को मसक कर पैन्टी-ब्रा और कपड़े पहन कर सारी घटना को बैठ कर याद कर रही थी। तभी मुझे बाहर जेठ के पुकारने की आवाज आई।

अब आगे..

मैं कपड़े ठीक करके बाहर गई, जेठ जी अपने कमरे में थे, उनके कमरे का दरवाजा खुला था। मैंने अन्दर जाकर पूछा- कोई काम है क्या? भाई साहब बोले- नेहा, मुझे एक कप चाय बना दो..

मैंने एक बात पर ध्यान दिया कि कुछ देर पहले जो भाई साहब मुझे देख कर कर रहे थे। ऐसा जेठ जी से बात करते कुछ जाहिर नहीं हो रहा था। मैं बोली- जी भाई जी..

और मैं जैसे ही कमरे के बाहर निकलने के लिए घूमी… जेठ जी की फिर आवाज आई- सुनो.. एक कप नहीं.. दो कप बनाना। मैं बोली- भाई जी.. कोई और आने वाला है क्या? बोले- नहीं.. क्यों? ‘आप दो कप के लिए बोले.. तो मैंने सोचा कि कोई आने वाला होगा।’

जेठ जी बोले- तुम मेरे साथ चाय नहीं पी सकती क्या.. जब से आपकी जेठानी का देहान्त हुआ.. मैं अकेले ही पीता और खाता आ रहा हूँ.. अगर तुमको बुरा ना लगे.. तो मेरे साथ बैठ कर कुछ देर चाय के लिए ही साथ दे दो.. ‘नहीं भाई साहब.. आप ऐसा क्यों बोल रहे हैं।’

मैं फिर चाय बनाने चली गई और दो कप चाय लेकर जेठ जी के कमरे में गई, एक कप उनको देकर मैं एक कप लेकर सोफे पर बैठ गई। तभी जेठ अपने चाय का कप लेकर मेरी बगल में बैठ गए। आज पहली बार जेठ के व्यवहार में बदलाव देख रही थी, जब से वह मेरे यहाँ रह रहे थे.. कभी ठीक से बात भी नहीं करते थे.. पर आज अकस्मात मेरे बगल में बैठ गए।

‘क्या हुआ नेहा.. बुरा तो नहीं लग रहा है?’ ‘किस बात का बुरा भाईसाहब?’ ‘यही.. जो मैं बिना पूछे आपकी बगल में बैठ गया।’ मैं शरमाते हुए बोली- नहीं..

और जेठ जी चाय पीते हुए धीरे से अपना एक हाथ मेरे पीछे कर मेरी कमर और चूतड़ों के पास रख कर हल्के से मेरी कमर को दबा कर हाथ वहीं रखकर रूक-रूक कर सहला देते। जेठ जी के ऐसा करने से मैं पानी-पानी हो रही थी.. पर मैं जानबूझ कर अंजान बनी रही।

तभी जेठ ने पूछा- तुम्हारा और आकाश का आगरा का टूर कैसा रहा? मैं बोली- बहुत बढ़िया रहा.. भाई साहब.. ‘बहुत समय लगा दिया तुम लोगों ने..’ ‘जी भाईसाहब.. कुछ काम भी था उनका..’

‘एक बात कहूँ.. बुरा न मानना..’ ‘बोलिए..’ ‘तुम्हारे जैसी बीवी पाकर आकाश का मन तो आने का कर ही नहीं रहा होगा..’

ऐसा कहते वक्त जेठ जी ने अपना पैर मेरे पैर से सटा दिया। एक तो कुछ देर पहले ही जो कुछ जेठ ने किया था.. उससे तो मेरी चूत गर्म थी ही.. उस पर से जेठ की हरकतें मेरे रोम-रोम में सेक्स का रोमांच पैदा कर रही थीं। मुझे लगा कि अगर मैं हटी नहीं.. तो मैं खुद जेठ जी की गोद में जा बैठूंगी।

चाय खत्म हो चुकी थी और मैं कप लेकर उठने लगी.. तभी जेठ जी ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे उठने से रोक लिया। ‘क्या हुआ.. क्यों जा रही हो.. क्या मुझ अकेले को अकेला छोड़ कर जा रही हो.. कुछ देर और बैठो ना..’ और मुझे जबरिया अपने पास बैठा लिया। मैं भी विरोध न करते हुए बैठ गई।

‘नेहा अब मेरा कौन है.. वाईफ के बाद तुम ही तो हो..’ यह दो-अर्थी बात जेठ जी ने बोली थी। इस बात से वे मेरी तरफ से अपनी नीयत साफ कर चुके थे.. पर मैं जानबूझ कर भी उनकी बात का मतलब नहीं समझना चाह रही थी।

मैं बोली- यह क्या कह रहे भाई साहब.. मैं भाभी जी की जगह कहाँ ले सकती हूँ? भाई साहब मैं समझ सकती हूँ कि आपका दु:ख.. आप अपनी दूसरी शादी कर लीजिए.. मैं आपको बना खिला तो सकती हूँ.. पर और काम तो आपकी वाईफ ही कर सकती है। मैंने भी यह बात जानबूझ कर कह दी।

‘नहीं.. नेहा.. मैं अब शादी नहीं करूँगा.. वैसे भी तुम तो हो ही..’ ‘मेरे होने ना होने क्या.. मैं तो आपका हर काम तो कर सकती हूँ.. पर ‘वो’ काम..’ मैंने जानबूझ कर बात अधूरी छोड़ दी।

‘कौन सा काम? जो तुम नहीं कर सकती… बोलो नेहा?’ ‘आप खुद समझदार हैं.. समझ लीजिए..’ ‘अगर वो काम भी तुम कर दो तो.. क्या फर्क पड़ेगा..’

यह कहते हुए जेठ जी ने मेरी जाँघों पर हाथ रख दिए और थोड़ा दबाकर बोले- तुम भी तो बड़ी खूबसूरत हो.. ‘मेरी खूबसूरती तो आपके भाई के काम आएगी.. आपके नहीं..’ मैं कहते हुए एक झटके से उठ कर उनके कमरे से भाग गई और पीछे जेठ भी लपके।

मैं अपने कमरे तक पहुँच पाती.. उसके पहले मुझे जेठ ने दबोच लिया और एक हाथ मेरे चूतड़ों और एक हाथ से मेरी चूची को पकड़ने के बहाने दबाते हुए बोले- तुम क्यों नहीं कर सकती?

मैं खुद को छुड़ाने को जितना छटपटाती.. उतना ही वह मेरे जिस्म को दबोच रहे थे। वह मेरे जिस्म के लगभग सारे हिस्सों को स्पर्श करते हुए बोले- नेहा.. सच बताओ.. हर काम तुम कर रही हो तो ‘वह’ क्यों नहीं? मैं बोली- मैं आपकी बहू हूँ.. छोटे भाई की बीवी हूँ.. कोई जेठ अपनी बहू को छूता तक नहीं है और आप तो.. मैंने फिर बात को अधूरा छोड़ दिया।

‘बोलो नेहा.. मैं तो.. क्या?’ ‘मैं नहीं जानती.. छोड़ो मुझे..’ ‘नहीं.. पहले बोलो..’ यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

आखिर में मैंने एक ही सांस में बोल दिया- आपकी नीयत अपने छोटे भाई की बीवी पर खराब हो गई है.. जो नहीं होना चाहिए! ‘नहीं नेहा.. ऐसी बात नहीं है.. मैं तुमको चाहता हूँ.. प्यार करता हूँ.. नहीं तो भला आज तक कभी भी मैंने तुमको कुछ बोला.. और कहा?’ मैं बोली- सभी मर्द ऐसे ही कहते हैं.. आज तक आपने मुझे कुछ दिया? ‘मैंने कई बार सोचा कि तुम्हें कुछ दूँ नेहा.. पर मैंने सोचा कि कहीं तुम गलत ना समझो।’

मैं अब भी उनकी बाँहों की पकड़ में थी। वे कहते हुए मेरे होंठों को अपने होंठों में भर के किस करने लगे। मैं बोली- प्लीज.. ऐसा मत करो.. पर वह मेरी छाती और चूतड़ों को मसकते हुए किस करते रहे। मेरी साँसें अकुला उठीं.. उनकी हरकतें मेरी चुदने की चाहत को भड़का रही थीं।

जेठ का हाथ और मेरी बुर की चुदाई.. जेठ के लण्ड से.. यह सब सोचते महसूस करते हुए मेरी बुर पानी-पानी हो रही थी। फिर भी मैं सती सावित्री बनते हुए मैंने जेठ से अपनी चूत को बचाने की कोशिश का ड्रामा करे जा रही थी। मेरी जाँघों में जेठ का लण्ड खड़ा होकर ठोकर मार रहा था और जेठ बिना मेरी इजाजत के मेरे जिस्म से खेल रहे थे।

तभी जेठ का हाथ मेरी बुर पर पहुँच गया और जेठ ने मेरी बुर को हाथ में भरकर भींच लिया और मेरे मुँह से एक मादक सिसकी निकल गई- आहसीईई.. भाई साहब.. यह क्या कर रहे हैं छोड़डड दीजिए.. आह..सीई.. मैं आपके भाई की पत्नी हूँ और मैं भी तो तुम्हारे पति का बडा भाई हूँ। ‘मेरी भी वासना है.. कितने दिन तेरी पैन्टी पर मुठ्ठ मार कर शान्त करूँ.. मेरी जान..’

और तभी दरवाजे की घन्टी बज उठी.. हम दोनों चौंक कर अलग हुए। इस टाइम कौन होगा? मैं जैसे ही जेठ के बाहुपाश से छूटी.. सीधे अपने कमरे की तरफ भागी और अन्दर जाकर मैंने दरवाजा बंद कर लिया।

जेठ जी मेन गेट खोलने चले गए.. मैंने अन्दर पहुँच कर कपड़े और चेहरे को ठीक किया.. फिर बाहर की आहट लेने लगी। तभी मुझे पति की जेठ जी से बात करने की आवाज सुनाई दी। मैं सीधे जाकर बिस्तर पर लेट गई ताकि लगे कि मैं आराम कर रही थी.. ऐसा ना लगे कि मैं उनके बड़े भाई से बुर चुदाने की कोशिश कर रही थी। मैं नहीं चाहती थी कि मेरे पति को मेरे और जेठ के बीच जो हुआ.. या होगा.. उसका पता चले। तभी पति ने दरवाजे पर दस्तक दी।

मेरी इस सच्ची कहानी में हुई मेरी मस्त चुदाई को लेकर मैं अगले भाग आऊँगी। आपकी प्यारी नेहारानी [email protected]

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