Bhoot To Chala Gaya – Part 8

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000

मेरे पति की बात सुनकर मेरी आखें नम हो गयीं। भला ऐसा पति किसी को मिलेगा क्या? मैंने कहा, “जानूं, मैं नहीं जानती तुम क्या सोच रहे हो। पर तुम निश्चिन्त रहो, मैं समीर को रात के लिए रोकूंगी और तुम्हारे दोस्त को कुछ भी ऐसा नहीं कहूँगी जिससे उसे ठेस पहुंचे। मैंने बहुत भाग्य शाली हूँ की मैं तुम्हारी पत्नी हूँ। मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ। अब मैं बातें करके थक गयी हूँ और फ़ोन रखती हूँ, ओके? डार्लिंग, आई लव यू।” देसिसेक्स हिन्दी चुदाई कहानी

राज ने उत्तर में कहा, “डार्लिंग, आई लव यू टू।” यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।

मैंने जैसे ही फ़ोन काटा तो पीछे से मुझे समीर की खांसने की आवाज सुनाई दी। मेरा फ़ोन मेर हाथ से गिर पड़ा। मैं पलटी तो देखा की समीर बैडरूम के दरवाजे पर खड़ा था। समीर घर के अंदर कैसे आया? क्या समीर ने मेरे और मेरे पति के बिच हुई बातों को सुन लिया था? मैं तो बात करते करते लगभग नंगी हालत में खड़ी थी। मेरा तौलिया छोटा था और मुझे पूरी तरह से ढक नहीं रहा था। मैं चिल्लाई और बोली, “तुम? तुम यहां क्या कर रहे हो? तुम अंदर कैसे आये?” मैं एकदम बाथरूम की और भागी।

मैंने समीर को हिचकिचाहट से भरी टूटीफूटी दबी हुई आवाज में जवाब देते हुए सुना, “देखो। … गुस्सा .. मत.. करो.. इसमें मेरी कोई… गलती .. नहीं थी। मैं तो .. दवाई .. लेने गया.. था। मैंने।  दरवाजा खुला देखा। .. तो अंदर आ गया। तुम इस… हालात में होगी … उसका मुझे जरा.. भी … अंदाज़ नहीं था।

मैं शर्म के मारे मरी जा रही थी। मुझे समीर की घबराहट भरी आवाज सुनकर गुस्सा भी आ रहा थाऔर हंसी भी। मुझे समझ नहीं आ रहा था की मैं रोऊँ या हँसूँ। मैंने अपनी हालत देखि। तौलिया या तो मेरी चूँचिया छिपा सकता था या तो मेरी इज्जत। तो मैंने अपनी इज्जत ढंकी। पर इस वजह से मेरे उद्दंड स्तन मंडल जो अकड़ से खड़े थे वह साफ़ साफ़ खुले दिख रहे थे।

मेरी फूली हुई निप्पलं मेरी उत्तेजना बयाँ कर रही थी। निप्पलोंके चारों और गोलाई में मेरे चॉकलेट रंग के एरोला फुले हुए दिख रहे थे। मेरे जीवन में पहली बार मैं एक परपुरुष के सामने ऐसी अधनंगी खड़ी हुई थी। मैं “प्ले बॉय” मैगज़ीन के कवर पेज की मॉडल की तरह लग रही थी। मैंने तौलिया सख्ति से पकड़ा और बाथरूम की और भागी।

बाथरूम का दरवाजा समीर के पीछे था। वहाँ जाने के लिए मुझे समीर के पास से ही गुजर ना पड़ता था। मैं जैसे ही समीर के पास से निकली तो समीर ने मुझे अपनी बाहों में पकड़ लिया। वह मुझे चुम्बन करना चाहते थे। उन्होंने मेरे मुंह को अपनी तरह करने की कोशिश की। पर मैंने उनका हाथ मेरे मुंह से हटा दिया। तब उन्होंने मेरे खुले हुए दोनों स्तनों को दोनों हाथों में पकड़ा और उत्तेजना से उन्हें अपने हथेलियों में सहलाने लगे और मेरी फूली हुई निप्पलों को जोर से दबाने लगे। उनकी शकल उनका हाल बयान कर रही थी।

समीर की आँखों में लोलुपता झलक रही थी। उनकी आँखें नम थीं और जैसे मुझे उनकी बाहों में आनेके लिए मिन्नतें कर रही थी। उनमें आत्मविश्वास नहीं था। वह परेशान और अनिश्चित नजर आ रहे थे। उस समय मेरा हाल भी कोई ज्यादा अच्छा नहीं था। मैं भी उनकी बाहों में जाने के लिए एकदम अधीर हो उठी और मैंने एक सेकंड के लिए सोचा “अब जो होगा सो देखा जाएगा।”.

पर तभी मेरी बुद्धि ने कहा “नहीं, अगर तू अब रुक गयी तो समझले समीर तुझे छोड़ेंगे नहीं। तू जरूर उनसे चुद जाएगी, और अपने पति को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहेगी। ”

मैंने समीर के हाथों करारा झटका देते हुए कहा, “यह क्या कर रहे हो? मुझे छोडो।” समीर ने मुझे छोड़ दिया और मैं भागती हुई बाथरूम में जा पहुंचि।

मैंने दरवाजे की कुण्डी अंदरसे बंद की और चैन की सांस ली। मुझे समझ नहीं आरहा था की मैं समीर पर गुस्सा करूँ या उससे डरूं। यह झंझट और मानसिक तनाव से मुझे सर दर्द होने लगा था। मेरी छींकें फिर से चालु हो गयीं। बाथरूम में मेरे पहनने के कपडे नहीं थे। मैंने समीर को आवाज लगाई, “समीर, प्लीज मेहरबानी करके मुझे अलमारी में से बदलने के लिए कपडे दे दो?”

चंद सेकंडों बाद मुझे बाथरूम के दरवाजे पर समीर ने दस्तक दिए। मैंने धीरे से थोड़ा सा दरवाजा खोला और उसके पीछे छिपते हुए मेरे कपडे समीर से लिए और फटाक से दरवाजा बंद कर दिया। मुझे डर था की कहीं समीर दरवाजे में अपना पाँव न अड़ा दे और मुझे उस नग्न हाल में देखने की जिद न करे। अगर समीर ने ऐसा किया होता और मुझे नग्न देख लिया होता तो? यह सोच कर मेरी रगों में रोमांच फ़ैल गया। मुझे ऐसी उत्तेजना क्यों हो रही थी? क्या मैं चाहती थी की समीर मुझे नग्न हालत में देखे?

मैंने समीर के लाये हुए कपडे देखे। उसने मुझे सिर्फ मेरा गाउन दिया था। बेचारा समीर। या तो उसको मेरी ब्रा और पैंटी मिली नहीं अथवा तो उसको मुझे उन कपड़ों को देने में शर्म आ रही थी। खैर, मैंने धीरे से कपडे बदले और वही गाउन पहन लिया और अंदर वाले कपडे नहीं पहने। मैंने दरवाजा थोड़ा खोल के देखा तो समीर वहीं खड़े थे। मैं उस समय भी ठीक परिवेश में नहीं थी पर मैं थक गयी थी। मैं बाहर आ गयी। मैंने समीर से बाथरूम में जाकर तौलिये से खुद को पोंछ कर कपडे बदल ने को कहा। मैंने मेरे पति राज का कुर्ता पजामा उसे दे दिया और मैं बैडरूम में चली गयी।

मैं अपने आप में शर्म और गुस्से से त्रस्त थी। मैं कैसे दरवाजा बंद करना भूल गयी? एक तरफ मैं अपने आप को कोस रही थी तो साथ साथ में मुझे एक अद्भुत रोमांच का भी अनुभव हो रहाथा। यह ऐसा अनुभव था जो मुझे स्कूल में जब मैं छोटी थी और सेक्स के बारे में कुछ नहिं जानती थी तब एक लड़के ने मुझे पकड़ कर होंठ पर चुम्बन किया था तब हुआ था। मुझे गंदा, उत्तेजक, विचित्र, बीभत्स जैसे अलग अलग तरह के भाव मनमें एक साथ हुए।

मैं समीर से काफी नाराज थी। मान लिया की मैंने गलती से दरवाजा खुला छोड़ा था। पर उसे दरवाजा खटखटाना तो चाहिए था। मैंने उसे चिल्लाते हुए ऊँचे आवाज़ में बैडरूम में से कहा, “समीर, सभ्य लोग अंदर आने से पहले दरवाजा खटखटाते हैं।” यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।

तब फिर समीर घबड़ायी हुई आवाज में बोलै, ‘मैंने तो दरवाजा काफी समय तक खटखटाया था। पर तुम तो उस समय अपने पति के साथ बात कर रही थी और मेरे दरवाजे खटखटा ने की आवाज नहीं सुनी तो क्या करता? तो फिर मैं अंदर आगया।”

समीर की बात सही थी। तब मुझे याद आया की जब मैं बात कर रही थी तो मैंने दरवाजा खटखटा ने की आवाज सुनी थी, पर राज के साथ बात करते करते मैंने आवाज पर उस समय ध्यान नहीं दिया था। दोष तो मेरा ही था पर बेचारे समीर को मैंने बिना वजह बुरी तरह झाड़ दिया। मुझे समीर के लिये बुरा लगा।

मैंने पैंटी और ब्रा नहीं पहनी थी, पर मैं इतनी थकी हुई थी की तब और कपडे पहनने की हालत में नहीं थी। मैं पलंग के एक छोर पर बैठी और मैंने समीर से कहा, “समीर, मैं बहुत थक गयी हूँ। मुहे बहुत जुखाम भी हुआ है और चक्कर आ रहें है। पूरा बदन दर्द कर रहा है। मैं कुछ भी खाना बनाने की स्थिति में नहीं हूँ। मैं थोड़ी देर लेटना चाहती हूँ। कुछ खाना बना हुआ फ्रिज में रखा है। क्या मैं थोड़ी देर सो लूँ और फिर तुम्हारे लिए खाना गरम कर दूँ और कुछ चपाती बना दुँ तो चलेगा? आप चाहो तो ड्राइंग रूम में बैठ कर टीवी देख सकते हो।”

मैं आगे कुछ बोलूं उसके पहले मैं पलंग पर गिर पड़ी और गहरी नींद में सो गयी। मुझे लगा की शायद समीर ने मेरे ऊपर चादर ओढ़ा दी थी।

हालांकि मैं गहरी नींद में सोई हुई थी पर मेरे दिमाग में कई धुंधली भ्रमित छबियाँ और चलचित्र आते जाते रहते थे। मुझे सपना आया की कोई काला सा आदमी मेरे सर के ऊपर मंडरा रहा था और जोर जोर से बोल रहा था, “तुमने होम वर्क नहीं किया है। तुम्हें सजा मिलेगी। …” क्या वह मेरे बॉस थे? इतने में ही एक बहुत बड़ा कॉक्रोच मुझ पर आक्रमण करने लगा और मैं चिल्लाने लगी, पर मेरे मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी। अचानक समीर जैसा ही कोई इंसान मुझे अपनी बाहों में लेकर कुछ पीला रहा था ऐसा मुझे आभास हुआ।

जब समीर ने मुझे अपनी बाहों में जकड़ा हुआ था तब अचानक एक बहुत विशाल काय पक्षी मुझ पर टूट पड़ा और आक्रमण करने लगा। मैं समीर से चिपक गयी और जोर जोर से चिल्लाने लगी, “समीर मुझे बचाओ, यह मुझे खा जाएगा….। प्लीज …… ”

और उस बार मेरे गले में से जोरोंसे चीखें निकली और मैंने अपनी आवाज सुनी भी।

तब समीर ने मेरी पीठ सहलाते हुए मुझे हलके से और प्यार भरे शब्दों में कहा, “प्यारी नीना, सब ठीक है। यहां कोई नहीं है। शांत हो जाओ। मैं तुम्हारे साथ हूँ न?”

समीर की इतने करीब से धीमी और मधुर आवाज सुनकर मैं जाग उठी और देखा तो समीर का चेहरा मेरे शेहरे के साथ लगभग जैसे सटा हुआ था। समीर का चेहरा मेरे इतने करीब था की मैं थोड़ा सा और उठती या समीर थोड़ा सा और झुकता तो हमारे होंठ मिल जाते। एक पल के लिए मरा मन भी किया की मैं समीर को चुम लूँ, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।

मुझे अपना फीडबैक देने के लिए कृपया कहानी को ‘लाइक’ जरुर करें। ताकि कहानियों का ये दोर देसी कहानी पर आपके लिए यूँ ही चलता रहे।

समीर ने धीरे से मुझे पलंग पर बिठाया। मैंने घडी में देखा तो रात के ११.३० बजे थे। इसका मतलब हुआ की मैं करीब एक घंटे सोई थी। मुझे धीरे से समझ आया की जब मुझे बुरे सपने आ रहे थे तब समीर ने मुझे उठाया, पलंग पर बिठाया और मुझे कुछ दवाइयां दी थीं। समीर ने जब देखा की मैं उठ गयी थी तब उन्होंने मुझे जुखाम की दवाई दी और उसे पानी के साथ निगल जाने को कहा.

मैंने जब प्रश्नात्मक दृष्टि से समीर को देखा तो समीर ने कहा, “चिंता मत करो, यह तुम्हारे लिए जुखाम, बदन में दर्द और बुखार की दवाइयां है। इन्हें मैं डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन के अनुसार दवाई की दूकान से लाया हूँ। और एक और बात, आप जब सो रहीं थीं तो मैंने न तो आपके कपडे उतारे और न ही कोई गलत काम किया है।”

मैं समझ गयी की मेरे डाँटने से समीर को काफी दर्द हुआ था और वह उस कारण बड़ा ही दुखी था।

मैंने मुस्करा कर समीर के कानों में धीमी आवाज में कहा, “बकवास मत करो। मैंने तुम्हें गलत ही झाड़ दिया। मैं तुम पर चिल्लाने और सख्त शब्दों के प्रयोग के लिए माफ़ी मांगती हूँ। वह शब्द मेरे मुंहसे मेरी झुंझुलाहट के कारण अकस्मात ही निकल पड़े। मैं जानती हूँ की तुम सभ्य हो और कोई उलटिपुलटि हरकत नहीं करोगे। अगर आज तुमने कुछ किया भी होता तो मैं तुम्हें कुछ न कहती। हे बुद्धू राम! तुमने आज मेरी जान बचाई और मुझे ठीकठाक घर ले आये और मेरी अच्छी देख भाल की जो शायद मेरे पति राज भी न करते। मुझे पता नहीं मैं तुम्हें कैसे धन्यवाद दूँ?”

पढ़ते रहिये.. क्योकि ये कहानी अभी जारी रहेगी..

पाठकों से निवेदन है की आप अपना अभिप्राय जरूर लिखें ईमेल का पता है “[email protected]” देसिसेक्स हिन्दी चुदाई कहानी

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000