चचेरे भाई की दिलकश बीवी- 1

जवान भाभी की कहानी में पढ़ें कि मेरा चचेरा भाई और उसकी बीवी मेरे बगल वाले फ्लैट में रहने के लिए आये. उसकी सुन्दरता पर मैं ऐसा मोहित हुआ कि …

‘नमस्ते भईया!’ एक दिन एक आवाज़ मेरे कानों में पड़ी. अचानक से इस शब्द ने मेरी तंद्रा भंग कर दी. वो आवाज ऐसी मीठी लगी कि उसके बाद मेरी रातों की नींद और दिन का चैन खत्म हो गया.

सामने एक सम्पूर्ण नारी को देखकर हृदय के किसी कोने से आकर्षित होने वाली भावनाओं की अनुभूति सी हुई। सिर से पैर तक रतिरूपी नारी को इतने पास से देखकर कामदेव ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी।

यह थी रेनू … मेरे दूर के चाचा के बेटे वैभव की पत्नी.

वो दोनों नवविवाहित थे और मेरे फ्लिअत के साथ लगते एक डबल बेडरूम फ्लैट में रहने आये थे। 24 वर्षीय वैभव और मैं वैसे तो हमउम्र थे मगर उसकी शादी मुझसे पहले हो गयी थी.

इससे पहले वैभव और रेनू अपने पारीवारिक घर में रहते थे. संयोगवश उसकी नौकरी मेरे शहर में लग गयी. मैं यहां पर पहले से ही अकेला रह रहा था तो इसी बिल्डिंग में मैंने उनको ये फ्लैट वाजिब किराये में दिलवा दिया था जो मेरे फ्लैट के एकदम साथ ही था.

पहले वैभव और मैं ज्यादा नहीं मिलते थे क्योंकि उसके पापा मेरे सगे चाचा नहीं थे. पर अब उसकी रेनू को देखने के बाद तो वैभव मुझे अपने सगे से भी अधिक प्रिय हो गया. उसकी 21 वर्षीय पत्नी का यौवन देखकर मेरे नीरस जीवन में जैसे बहार आ गयी थी.

अभी तक मैं अपने लिंग को अश्लील फिल्मों और कहानियों के माध्यम से ही बहलाता आ रहा था. रेनू को देखने के बाद जैसे मेरे लिंग को एक मंजिल मिल गयी.

वो मंजिल थी रेनू की नयी नवेली योनि जिसके ख्वाब मेरे लिंग ने पहले दिने से ही देखने शुरू कर दिये.

फिर बस जितनी बार मौका मिला मैंने उस सुंदरी के यौवन का मूक रसास्वादन किया। उसका सौंदर्य किसी पर्वतीय स्थल जैसा था. ना जाने क्यों नेत्र बार-बार उस सौंदर्य के उतार-चढ़ाव में भटक से रहे थे।

मैंने बहुत बारीकी से उस यौवना के यौवन का निरीक्षण किया। उसका हर अंग मादक और सम्पूर्ण था। जब वो चलती थी तो लगता था कि किसी झरने से पानी गिर रहा हो।

उसके नितंब इतने माँसल थे कि मानो वस्त्रों से बाहर निकल आएंगे. दोनों नितंबों के बीच का घर्षण किसी भी नर को कामरस में सराबोर कर सकता था। न चाहते हुए भी मैं उस यौवना के सौंदर्य का उपासक सा हो गया।

धीरे-धीरे दिन गुजरते गए मगर उस यौवना का आकर्षण कब प्रेम में परिवर्तित हो गया पता भी न चला। जब कभी मुझे मौक़ा मिला, मैं उसके बाथरूम में जाकर उसके अंतःवस्त्रों को हाथ में लेकर ऐसा महसूस करता कि जैसे वो मेरे आगोश में हो।

समय सदैव एक सा नहीं रहता. इतने दिनों से उसके यौवन के रसस्वादन और दर्शन की जो कल्पनायें की थीं वो एक सब अधूरी सी छोड़कर वैभव और रेनू यह फ्लैट छोड़कर चले गये. उन दोनों में मतभेद रहते थे और शायद वे अपने झगड़े को मेरे सामने उजागर करना नहीं चाहते थे.

आप कितना भी बचिए लेकिन विपरीत लिंगी के लिए प्रेम के साथ कहीं न कहीं वासना दबे पैर आ ही जाती है. एकांत के क्षणों में तो कामदेव वासना के रथ पर सवार रहते हैं।

वो चली गयी लेकिन जैसे मेरी आत्मा को साथ ले गयी. जो आकर्षण एक अरसे से दबा हुआ था वो बाहर आने को मचलने लगा। मैंने उसे व्हाट्सएप पर फॉलो करना शुरू कर दिया. उसके हर फ़ोटो को सेव करना, स्टेटस पर कमेंट देना शुरू कर दिया।

उसने मुझसे व्हाट्सएप पर बातचीत शुरू कर दी. मैंने उसे सब कुछ सच-सच बता दिया। मेरा सच सामने आया तो उसका भी दिल खुल गया और उसने बताया कि वो भी मुझे पसंद करती थी.

उस दिन मैंने अपनी किस्मत को खूब कोसा. जिस रूप की देवी को मैं अपने इतने करीब रहते हुए पूज सकता था, मैं उस मौके से चूक गया. काश ये हिम्मत मैं कुछ साल पहले कर पाता.

फिर इससे पहले कि मेरा प्यार परवान चढ़ता … उसके पति ने उसके फोन में मेरे मैसेज देख लिए। उस वक्त सब कुछ ख़त्म हो गया। मगर वो आकर्षण उसी स्तर पर था जो उससे पहली बार मिलकर उत्पन्न हुआ था।

उसको लेकर मन में न जाने कितनी बार कितने प्रकार के कामुक विचार आये और कितनी बार संयम टूटा।

बीतते वक्त के साथ अब वो एक बेहद समझदार और सुलझी हुई महिला में परिवर्तित हो चुकी थी। मैं भी विवाहित हो चुका था किंतु मेरी पत्नी भी रेनू के लिए मेरी आसक्ति को तृप्त न कर पायी थी.

रेनू के सपने उसे हमेशा से व्यथित करते थे. वो एक स्वावलंबी और स्वतंत्र जीवन जीना चाहती थी। उसके अंदर की छटपटाहट को मैंने कई बार महसूस किया था। उसका ज्ञान और दर्शन सीमित था और पारिवारिक दायित्वों ने पैरों में बेड़ियां डाल रखी थीं.

खुले आसमान में उड़ने की ख़्वाहिशों को दफ़न कर वो जमीं पर चलने में ही संतोष किये हुए थी. मैंने उसे कई बार वासना के सागर में उतारने की कोशिश की मगर उसकी तैरने की क्षमता पर संदेह था मुझे.

पुरुष शुरू से ही काम-वासना से पीड़ित रहा है, ना जाने कितने रजवाड़े इस वासना की आग में जल गए। स्त्री अगर रतिरूप है तो वो ज्ञानपुंज भी है।

स्त्रियों ने सदैव पुरुषों को मार्गदर्शित किया है. पुरूष की काम वासना का अंत ही स्त्री है. चाहे वो किसी रूप में करे, गुरु बनकर या रति के रूप में। मेरे लिये वो एक मार्गदर्शक बन गयी।

मगर इतने वर्षों के बाद आज भी हम दोनों आपस में बेहद खुले हुए बहुत अच्छे मित्र थे किंतु फिर भी बात नहीं कर पाते थे। यही सोचता रहा कि मित्रता पर वासना का बोझ पड़ गया तो वो संबंध कहीं टूट न जाये.

कुछ वक्त और बीत जाने के बाद आखिरकार रेनू ने मुझे मिलने की स्वीकृति दे दी. उस वक्त मेरे मन उपवन में हर्ष के हजारों फूल खिल उठे थे. मेरे घर से उसके घर की दूरी मात्र 20 मिनट की ही थी.

मैंने शाम का खाना हल्का ही खाया ताकि स्वास्थ्य खराब ना हो। रात में सही से नींद नहीं आ रही थी. 8-9 साल पहले मिली उस नवयौवना का यौवन बार-बार नेत्रों के सामने आ रहा था।

उसके उन माँसल नितंबों को न जाने मैंने कितनी बार कामुक कल्पनाओं में दुलारा था। उसने वैभव के दफ्तर जाने के बाद सुबह 9 बजे बुलाया था।

उस सुबह का समय पहाड़ जैसा प्रतीत हो रहा था। 8.45 बजे उसकी कॉल आयी और मैं उस रास्ते पर निकल पड़ा जिस पर पर मैंने कई बार कल्पनाओं का सफर किया था।

दरवाजे पर पहुंचकर कांपते हाथों से डोरबेल बजाई. जैसे ही दरवाजा खुला और सामने साक्षात रतिरूपी उस अप्सरा को साड़ी में देखा तो जैसे कामदेव ने बाणों की बरसात कर दी।

“दरवाजे से ही देख कर जाना है क्या?” उसने हँसते हुए कहा और धीरे से हाथ पकड़ कर मुझे अन्दर बुला लिया। उस दिन पहली बार उसने मेरे शरीर को छुआ था.

मानो जिस्म में करंट सा दौड़ गया हो. अंदर आकर मैंने उसके चेहरे को देखा जिस पर एक मादक मुस्कान थी। वो पहले से और ज्यादा सम्मोहक हो गयी थी. उसका हर अंग पहले से ज्यादा मादक और मांसल हो गया था।

समय ने उसके जिस्म में और भी अधिक सौंदर्य भर दिया था। उसने अपनी 3 साल की बेटी को दूसरे कमरे में टी.वी. चलाकर बाहर से बन्द कर दिया।

“चाय लोगे या ठंडा?” उसने तंद्रा भंग करते हुए कहा. मैंने मुस्कराकर कर उसके होंठों की तरफ इशारा किया और वो किचन की ओर चल दी. आज भी वो माँसल नितंबों का घर्षण वैसा ही था जो किसी भी पुरूष का पुरूषत्व हिला दे।

वो इठलाती हुई रसोई में चली गई. उसको भी अपनी कमनीय काया का ज्ञान था। ये नजारा देखने के बाद मेरे कई सालों के संयम के बाँध की दीवारें कमजोर होकर उसके नितम्बों के घर्षण से टूट चुकी थीं।

वासना से वशीभूत होकर मैं रसोई में गया और उसके माँसल और सुपुष्ट नितंबों को देखने लगा. उसने पीछे मुड़कर देखा और मुस्करा दी। उसने मानो मौन स्वीकृति दे दी थी.

मैंने उसके मजबूत कंधों को अपने हाथों से पकड़कर उसकी गर्दन पर चुम्बन अंकित कर दिए।

वो चुम्बनों से सिहर उठी और पलट कर मेरे सीने से चिपट गयी और सीने के बालों में उंगलियां फिराने लगी।

मेरे हाथ उसके सौंदर्य के पर्वतीय स्थलों का भ्रमण करने लगे और उसके माँसल नितंबों को पहली बार सहलाया। चाय और कामुकता दोनों ही उफान पर थे. अब या तो चाय पीनी थी या यौवनरस।

कामुकता ने यौवनरस चुना और मैं रेनू को उठाकर बेडरूम में ले आया. उसकी आंखों में वासना और प्यास के डोरे तैर रहे थे।

उसकी साड़ी को उसके मादक जिस्म के आगोश से मैंने अलग किया. उसने दोनों हाथों से अपने पूर्णविकसित वक्षस्थल को छुपा लिया।

मैंने धीरे से रेनू की गर्दन के पीछे और नग्न क़मर को चूमा तो उसके माँसल नितंबों में एक कंपन सा हुआ और उसके मुंह से एक सीत्कार सी निकली।

जब वो दोनों हाथों से वक्षस्थल को छुपा रही थी तो मैंने चुपके से उसके पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया. जब तक वो पेटीकोट पकड़ती वो उसके पैरों में गिर चुका था।

पहली बार उसके नितंबों को इतने करीब से देखकर मेरी हालत खराब हो रही थी. उसके माँसल नितंब मेरी कामुक कल्पनाओं से भी कामुक थे। मैंने धीरे से उसके नितम्बों को दोनों हाथों से छुआ.

मुझे अहसास हुआ कि उसके नितंब कितने कोमल और माँसल हैं। उसके नितंबों को आहिस्ता-आहिस्ता दबाना और सहलाना शुरू किया तो रेनू की मादक आहें बेडरूम को संगीतमय बनाने लगीं।

उसने वासना के वशीभूत होकर अपने वक्षस्थल को अपने ही हाथों से दबाना शुरू कर दिया. मैंने पीछे से उसकी ब्रा के हुक खोल दिये और धीरे से उसके अतिविकसित स्तनों को ब्रा की कैद से आज़ाद कर दिया।

अब तक उसके दोनों स्तनों के बीच कत्थई रंग के चूचक तन कर खड़े हो गए थे, मानो दो कबूतर उड़ने को तैयार हों। अब वो सिर्फ पैंटी में थी. वो एक हाथ से चूचों को छुपाने की कोशिश कर रही थी और दूसरे हाथ से योनि द्वार की रक्षा कर रही थी।

मैंने उसके एक चूचक को मुँह में लेकर चूसना शुरू किया तो उसका शरीर नृत्य सा करने लगा। वो मदहोशी की हालत में आँखों को बंद करके अपने दोनों हाथों से मेरे सिर को सहला रही थी.

फिर मैंने दूसरे चूचक को भी न्याय देते हुए मुँह में ले लिया और अपने दोनों हाथों से उसके नितंबों को दबाने लगा।

शायद वो काफी समय से प्यार से वंचित थी. अब वो कुछ हिंसक सी होने लगी थी. उसने मेरे होंठों को अपने होंठों में लेकर काफी देर तक चूसा।

अब उसके हाथ भी अमर्यादित होने लगे थे. वो शायद सुख के साधन को ढूँढने लगे थे।

इसी बीच मैंने उसके हर खुले अंग पर अपने होंठों से स्पर्श किया. फिर उसकी गुलाबी पैंटी को धीरे से नीचे खिसकाया तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया.

शायद अभी भी कुछ शर्म की बची हुई दीवार गिरनी बाकी थी.

मैंने अपने हाथ को उसके सम्पूर्ण योनि प्रदेश पर रख दिया और आहिस्ता से दबाना शुरू किया तो वो सिहर सी उठी और मेरे बालों को कस कर पकड़ लिया.

इसी बीच मैंने उसकी पूरी पैंटी उतार दी। सामने नग्न हल्के काले बालों से ढकी हुई अत्यंत उभरी हुई सी योनि थी। ईश्वर ने उस रतिरूपा का हर अंग फुरसत से बनाया था.

उसकी योनि को देखकर कोई सोच भी नहीं सकता था कि वो कई वर्ष से विवाहिता स्त्री है. उसकी योनि अभी भी कमसिन थी। शायद मेरे चचेरे भाई के लिंग ने उसकी योनि को वह प्यार नहीं दिया था जिसकी वो हकदार थी.

मैंने एक हाथ से उसकी योनि को स्पर्श किया और उंगली से उसके योनि द्वार पर दस्तक दी.

एक उंगली से योनि की दोनों दरारों को खोला तो उंगलियों में कुछ चिपचिपाहट सी महसूस हुई. शायद वो योनिरस था।

कब मेरे होंठ उसके योनिद्वार से चिपक गए पता ही नहीं चला. मेरी इस हरकत ने उसे बेड पर लेटने को मजबूर कर दिया और वो दोनों टांगें खोल कर लेट गयी. मुझे उसकी योनि की खुशबू मदहोश कर रही थी.

मैंने धीरे-धीरे उसका सारा योनि रस चाट लिया। जैसे ही मेरी जीभ योनिछिद्र के अन्दर जाती तो उसके नितंब स्वत ही उठ जाते थे। मैंने देखा कि योनिद्वार के नीचे एक छोटा सा छिद्र जो इस क्रिया में हल्का सा खुल जाता था.

योनिरस से भीगी हुई उंगली मैंने उस छिद्र में डाली तो रेनू का शरीर अकड़ सा गया. शायद ये उस छिद्र में पहला प्रवेश था।

उसकी माँसल जाँघें, समतल पेट, गहरी नाभि, अतिविकसित वक्षःस्थल, मादक और माँसल नितंब किसी को भी पागल बना सकते थे।

अब शायद रेनू भी संयम की रेखा पार कर चुकी थी. उसने मुझे देखा और मुस्कराकर अगले कदम के लिए आमंत्रित किया। अब युद्ध का आरम्भ होना था.

मैंने स्वयं पर नियंत्रण किया और उसकी योनि को फिर से मुखमैथुन का सुख दिया. अब वो चरम पर थी.

मैंने अपने लिंग को उसकी छोटी सी माँसल योनि के योनिछिद्र पर रखा तो रेनू मचल सी उठी।

जैसे-जैसे लिंग उसके योनिद्वार के अंदर जा रहा था, उसकी सिसकारियों की आवाज मादक होती जा रही थी। पूरा लिंग योनि में जाते ही उसने एक मादक आह भरी और मुझे एहसास हुआ कि उसकी योनि न जाने कितने दिनों से अनछुई थी।

लिंग जैसे ही योनि की दीवारों से टकराया उसने मुझे कसकर अपनी छाती से चिपका लिया और मैंने उसके कत्थई चूचक को चूसना शुरू कर दिया। अब वो नितंबों को उठा-उठाकर मेरे लिंग को घर्षण दे रही थी।

बीच में दो बार वो ढीली पड़ी लेकिन फिर से उसी गति से साथ देने लगी। आज शायद वो मुझे अपनी योनि में समा लेना चाहती थी. फिर मैंने उसे ऊपर आने को बोला.

उसने मुझे नीचे लिटाया और अपने हाथों से लिंग को योनिछिद्र में प्रवेश करवाकर मेरे ऊपर उछलने लगी. वो जिस गति से उछल रही थी उसके वक्ष भी उसी गति से उछल कर मुझे पागल बना रहे थे।

मैंने दोनों हाथों से उसके नितंबों को दबाना शुरू किया। अब हम दोनों स्खलन की ओर बढ़ रहे थे. मानो बेड पर सच में युद्ध चल रहा हो। उसका हर झटका लिंग को उसकी योनि की दीवारों से टकराता था.

शायद उसे इसमें बहुत आनंद आ रहा था। अचानक उसने धक्कों की गति बढ़ा दी और मैंने भी उसके स्तनों को कसकर पकड़ लिया।

हम दोनों के मुंह से आह-आह की कामुक आवाजें निकल रही थीं। अचानक वो धड़ाम से मेरे सीने पर आ गिरी और बोली- हो गया! मैंने भी उसी समय उसके नितंबों को कसकर पकड़ते हुए योनि को लिंग पर दबाया और सारा वीर्य उसकी योनि की गहराई में छोड़ दिया।

मेरी जांघों पर उसकी योनि से निकला हुआ योनिरस और वीर्य का मिश्रण बह रहा था।

हम दोनों ने एक दूसरे को देखा. दोनों की आँखों में संतुष्टि और थकान दिख रही थी।

मैंने उसकी आँखों में देखा जिसमें फिर से एक युद्ध की चुनौती थी। शायद आज वो वर्षों की प्यास बुझाना चाहती थी और मैं बरसना चाहता था। हमारी इस काम की प्यास और बरसात का आनंद आप अब कहानी के अगले भाग में लेंगे.

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