उसकी और मेरी पहचान सोशल मीडिया से हुई थी, नाम था अवंती… मैं उसे प्यार से अवी बुलाता था। हम दोनों एक ही शहर में रहते थे। हमारी ज्यादातर बातें सेक्स विषयों पर ही होती थी।
एक दिन चाट करते हुए मैंने उससे पूछा- क्या कर रही हो? ‘अंदर बाहर!’ उसने कहा। ‘किसे?’ मैंने पूछा। ‘पेन को!’ उसने जवाब दिया। ‘क्यों? ओरिजिनल पेन नहीं है?’
‘नहीं है, अभी कुँवारी हूँ।’ ‘तो शादी कर लो ना!’ मैंने कहा। ‘मुझे तो बड़े लंड वाला चाहिए!’ उसने कहा। ‘अब पेन की जगह लंड मिलता हो तो, जो भी मिलता हो ले लेना चाहिए ना!’ मैंने समझाया। ‘छोटा होगा तो मजा नहीं आयेगा!’ उसने कहा।
‘ऐसा कुछ नहीं होता, वहम हैं तुम्हारा! चूत के दो ढाई इंच अंदर ही जी स्पॉट होता है और गांड में भी वो ज्यादा अंदर नहीं होता।इसलिए नार्मल साइज का लंड भी तुम्हें सुख देगा।’ ‘वैसे तुम्हारा कितना है?’ उसने सीधे सीधे मेरे लंड की आकार पूछ कर मुझे चौंका दिया।
‘नॉर्मल है!’ मैंने जवाब दिया। ‘बताओ?’ उसने फट से बोला। ‘क्या बताऊँ?’ मैंने फिर चौंक कर पूछा। ‘अपना वाला…’ उसने मेरा लंड देखने की इच्छा जाहिर की।
‘पागल हो? कुछ भी बोल रही हो?’ मैंने जवाब दिया। ‘मतलब छोटा है… हे हे हे हे,,,’ उसने चिढ़ाते हुए कहा। ‘आकर नाप ले लो ना!’ मैंने जवाब में लिखा।
‘फोटो भेज दो ना!’ ‘खुद आकर खींच लो ना!’ ‘हे हे हे हे, वहाँ आऊँगी तब भी नहीं दिखाओगे।’ ‘आ तो जाओ!’ ‘पहले फोटो में तो दिखाओ।’
‘मेरा सोने का डंडा, मैं लुहार को क्यों दिखाऊँ? क्या पता तुम खूबसूरत हो या बदसूरत हो?’ ‘बहाने मत बनाओ, यह बताओ कि नहीं दिखाना है।’ ‘दिखाना भी है और अंदर डालना भी है ताकि तेरे पेन की जगह ले सकूँ।’ ‘तो फिर दिखाओ?’ ‘मिल कर देख लो ना!’
जब उसे लगा कि मैं मानने वाला नहीं हूँ तो उसने मिलना तय किया। एक दिन तय दिन पर और तय वक्त पर मिलने का तय हुआ, पहचान कपड़ों के रंगो से और गुलाब के फूल से की जानी थी। जो जगह तय हुई थी मिलने की उस जगह मैंने अपने एक दोस्त को मेरी जगह तय रंग के कपड़ों में गुलाब थमा कर भेज दिया और खुद उसकी बगल में बैठ गया, अनजान बन कर!
थोड़ी ही देर में एक औरत आई, छोटी कद काठी की, साँवले रंग की। मेरे दोस्त को मैंने सब समझा दिया था, वो उस औरत से बात करने लगा। दोनों ने सेक्स पर तो बात नहीं की, बस यहाँ वहाँ की बातें करके मीटिंग ख़त्म कर ली।
रात को जब हम फिर चाट करने लगे, तो मैंने उससे पूछा- क्या मैं तुम्हें पसंद आया? ‘नहीं।’ ‘क्यों?’ ‘तुम बहुत नाटे हो और काले भी।’ ‘तो क्या हुआ? लंड तो बड़ा है ना, पूरा आठ इंच का?’ ‘होगा… पर पास आने के लिए दिल भी तो करना चाहिए ना?’
‘बदन से क्या लेना देना? तुम्हें तो बड़ा लंड चाहिए वो मिल रहा है ना?’ ‘नहीं, ऐसा नहीं है।’ ‘अच्छा, यह बताओ… तुम कौन सी अप्सरा हो? तुम भी तो साधारण ही हो दिखने में?’ ‘मैं इतनी खूबसूरत हूँ कि देखने पर लाल टपकने लगेगी मुँह से।’ ‘हा हा हा… पानी सूख गया था गले का देख कर… कहती हो लाल टपकने लगेगी।’
‘वो मैं थोड़ी ना थी, मेरी सहेली थी!’ ‘हा हा हा… हा हा हा…’ उसका जवाब सुनकर मैं हँसता ही रहा। नहले पे दहला मारा था उसने!
‘क्या हुआ? यूँ पागलों की तरह क्यों हंस रहे हो?’ क्योंकि हम दोनों पागल एक जैसे ही हैं। मैंने अपने एक दोस्त को डेटिंग के लिए आगे किया था।’ ‘हे हे हे हे… जाओ तुमसे बात नहीं करनी… यह तो चीटिंग है!’ ‘हा हा हा… चीटिंग तो तुमने भी की ना?’
‘हे हे हे हे तुम खुद क्यों नहीं आये? क्या तुम अपने दोस्त से भी ज्यादा बदसूरत हो?’ ‘मैं वहाँ आया था।’ ‘तुम वहाँ थे? कहाँ थे? ‘उन दोनों के बगल में बेंच पर!’ ‘बेंच पर तो एक गोरा लंबा लड़का बैठा था?’
‘मतलब तुम भी अगल बगल में ही थी?’ ‘हाँ, पास में पेड़ के पीछे… क्या वो बेंच पर बैठे तुम थे?’ ‘हाँ…’ ‘नहीं, मुझे यकीन नहीं होता।’
मैंने फ़ौरन उसे अपना फोटो सेंड कर दिया- यह फोटो देख लो, यकीन हो जायेगा। ‘हाँ, तुम ही थे वहाँ बेंच पर!’ ‘पसंद हूँ?’ ‘हे हे हे हे…’ ‘सिर्फ हंसो मत, जवाब दो?’ ‘हाँ…’ ‘तुम्हारा फोटो दिखाओ?’
उसने अपना फोटो सेंड किया। वाकयी खूबसूरत थी वो! ‘तो शादी करें?’ फोटो देख कर मैंने पूछा।
‘सॉरी, मैंने एक झूट बोला है तुमसे।’ ‘क्या?’ ‘मैं शादीशुदा हूँ।’ ‘क्या? फिर मेरा लंड क्यों देखना चाह रही थी? और मेन बात, घर में लंड होते हुये पेन क्यों अंदर बाहर करती हो?’
‘वो ज्यादातर ऑउट ऑफ़ स्टेशन रहते हैं।’ ‘आने के बाद तो काम पर लग जाते हैं ना?’ मैंने स्माइली के साथ कहा। ‘लग जाते हैं, पर साइज मैटर करता है।’ ‘ओ हो… तो इसीलिए बड़े लंड की तलाश है?’ ‘हाँ…’
‘तो जिसे डेटिंग के लिये भेजा था वो परफेक्ट था, तुम्हारे लिये।’ ‘ना रे बाबा, जागे हुये अरमान सो जायेंगे उसके साथ।’ ‘मैं चलूँगा क्या?’ ‘हाँ, चलोगे।’ ‘पर बड़ी साइज का क्या?’ ‘नहीं रहेगी तो भी चलेगा।’ ‘फिर कब ले रही हो?’ ‘जब मौका मिलेगा।’
‘अब पति आउट डोर रहते हैं तो मौके ही मौके हैं।’ नहीं, जॉइन फॅमिली में रहती हूँ।’ ‘तब तो बाहर ही मिलना पड़ेगा, होटल वैगेरा में?’ ‘नहीं, होटल में नहीं।’
‘फिर कहाँ?’ ‘मेरी उसी सहेली के घर जो डेट पर मेरी जगह आई थी।’ ‘उसके घर वाले?’ ‘उसके हसबंड भी अक्सर आउट डोर जाते हैं, तब वो अकेली ही घर में होती है।’
‘तो साथ में अपने उस दोस्त को भी लेकर आऊँ क्या?’ ‘मैं सिर्फ तुमसे ही करुँगी।’ ‘अरे दोस्त तुम्हारी सहेली के काम आएगा, जब हम काम में जुट जाएंगे वो बेचारी अकेली क्या करेगी?’ ‘बेचारी की बड़ी चिंता हो रही हैं? कही दिल तो नहीं आ गया उस पर?’ ‘तुम्हारे रहते उस पर कैसे आयेगा?’
‘कब मिलना है?’ मैंने पूछा। ‘बताती हूँ, इतने उतावले क्यों हो रहे हो?’ ‘अरे दिल करता है अभी उधर आ जाऊँ।’ ‘आकर क्या करोगे?’
‘पेन को बाहर निकाल के खुद अंदर घुस जाऊँगा पूरा का पूरा।’ ‘खुद क्यों? लंड नहीं है?’ ‘है ना, पर मैं खुद अंदर घुसूंगा तो थोड़ी देर अंदर बैठ के तुझे गुदगुदी करूँगा।’ ‘आआआअ…, उसका रिएक्शन आया।
‘क्या हुआ? अपने चूत में मुझे महसूस कर रही हो क्या?’ ‘हाँ, तुम क्या कर रहे हो? हिला रहे हो क्या?’ ‘तुम आओ ना हिलाने के लिए।’ ‘क्यों खुद के हाथ नहीं हैं क्या?’
‘कुछ काम औरों के हाथ से ही करवाने में मजा आता है।’ ‘मिल के सिर्फ हिलवाओगे या और भी कुछ करोगे?’ ‘तू मिल तो सही, फिर बताता हूँ क्या क्या कर सकता हूँ।’ ‘थोड़ा तो दिखाओ?’ ‘अच्छा, अभी फोटो नहीं हैं कल दिखाऊँगा।’
दूसरे दिन मैंने सच में लंड की फोटो सेंड कर दी। ‘पक्का तुम्हारी ही है ना? या ये भी डेटिंग की तरह बदली में है?’ ‘मेरा ही है!’ ‘मैं कैसे यकीन करूँ? नेट पर से भी उतारी हो सकती है।’ ‘हा हा हा, ठीक है, कल रात को अपने लंड पे अपनी साइन कर के उसकी फोटो भेजूंगा।’ ‘हे हे हे हे हाँ, पक्का साइन कर के भेजना!’
ऐसी ही सारी बातें हर रात चलती रही, हम रोज खुलकर सेक्स चाट की बातें करने लगे।
आख़िरकार वो दिन भी आया जब हम आमने सामने उसकी सहेली के घर मिले, उसके घर मैं अकेला ही गया था। उसकी सहेली अपने मम्मी पापा के घर गई थी हमें अकेला छोड़ कर।
पहले तो जब हम अकेले हुए तो काफी देर ख़ामोशी छाई रही, रात रात भर जागकर हम एक दूसरे से बातें किया करते थे। पर जब सामने आये थे और एकांत था तो जुबानें खामोश थी। हम दोनों एक सोफे पर बैठे हुए थे, दोनों भी सोच रहे थे कि बात की शुरुआत कैसे करें, इसलिए दोनों ही खामोश थे।
‘अवी, बात नहीं करनी है क्या?’ मैंने पहल की। ‘करनी है…’ उसने हल्की आवाज में कहा। ‘चैट करते वक्त तो कितनी चपर चपर जुबान चलती है?’ ‘हे हे हे हे…’ वो जाने पहचाने अंदाज में हंसी।
जो हंसी मैं महीनों से पढ़ रहा था, आज उसे सुन पा रहा था। ‘तुम्हारी हंसी बिलकुल चैट की तरह ही है। तुम्हारी वो पेन कहा है? मेरी सौत?’ ‘हे हे हे हे… उसे घर छोड़ आई।’ ‘क्यों? उसे भी साथ लाती!’
‘यहाँ, तुम्हारे होते हुए उसका क्या काम!’ ‘जिसका काम है, उसको काम पे तो लगाओ ना फिर?’ ‘हे हे…’ वो बस हंस दी।
मैं ही फिर बढ़कर उसके पास गया, जैसे ही मैं पास गया उसकी धड़कनें तेज हो गई। ‘तुम डर रही हो?’ ‘नहीं तो?’ वो सहम कर बोली। ‘फिर ये क्या… तुम्हारी धड़कनें कितनी तेज चल रही हैं?’
‘थोड़ा थोड़ा डर है, पहले कभी ऐसा कुछ किया नहीं पति के अलावा!’ ‘डरो मत, अगर तुम्हें ठीक नहीं लगे तो हम कुछ भी नहीं करेंगे। मुझ पर विश्वास रखो!’ कहते हुए मैंने उसके होठों पर हल्का सा चुम्बन लिया।
उसके होंठ काँपने लगे, धड़कनें और तेज हो गई। मैंने उसे अपने आगोश में ले लिया और उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगा, साथ ही उसको किस भी करने लगा। वो भी अब शर्म छोड़कर मेरा साथ देने लगी।
कुछ ही देर में हम नंगे होकर एक दूसरे के बदन से खेलने लगे। उसकी नजर जैसे ही मेरे लंड पर पड़ी, वो खिलखिलाकर हँसने लगी। मैंने सच में अपने लंड पर मेरा साइन किया हुआ था, उसका नॉटिनेस बनाये रखने के लिए।
मैंने एक हाथ से उसके बूब्स और दूसरे से उसकी उसकी चूत सहलाना शुरू किया। सहलाते सहलाते मैंने अपनी उँगली उसकी चूत में डालकर टेढ़ी कर दी और उससे उसे ऊपर उठाने की कोशिश करने लगा। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
‘आउच! क्या कर रहे हो?’ उसने मेरी हरकत देखकर पूछा। ‘कांटा डाल कर वजन चेक कर रहा हूँ।’ ‘क्यों? ऊँगली वाला कांटा क्यों? नीचे वाला वजन काटा ख़राब हुआ है? क्या वो मेरे वजन को झेल नहीं पायेगा?’
‘नीचे वाला वजन कांटा तो माल लोड होने का इंतजार कर रहा है।’ ‘माल तो कब का तैयार हैं लदने के लिये।’ ‘तो लद जाओ…’ कहते हुए मैंने उसे खींचा और अपनी जांघों पर बिठाया, अपने लंड को उसकी चूत में रखकर उसे नीचे बैठने को कहा। धीरे धीरे जगह बनाते हुए लंड उसकी चूत में समा गया।
जब लंड पूरा चूत में घुस गया, मैं उसकी गांड की गोलाईयों को पकड़कर खड़ा हो गया। ‘कितना वजन है?’ उसने अपने पैर मेरी कमर पर लपेटकर मेरी गोदी में झूलते हुए पूछा। ‘होगा कोई दो सौ… तीन सौ किलो!’ मैंने मजाक में कहा। ‘तो कम कर दो…’ कहते हुये उसने मेरा गाल काटा। ‘कम करने के लिए रोज मिलना पड़ेगा!’ मैंने कहा और उसका निप्पल मुँह में भर लिया।
वो कमर उचका कर चूत में लंड की रगड़ करवा रही थी। कुछ देर यूँ ही कमर हिलाने के बाद वो नीचे उतरी।
‘तुम मेरा निचला होंठ चबाने वाले थे ना? मैसेज में लिखा था? कैसे चबाने वाले थे?’ ‘बताता हूँ…’
उसे बेड पर लिटाकर मैंने अपना मुँह उसकी चूत पर रखा। ‘अंदर जाने वाले हो क्या? गुदगुदी करने?’ ‘हाँ, पूरा का पूरा…’ कहते हुए मैं उसके चूत पर जोर जोर से अपना मुंह रगड़ने लगा ताकि उसे गुदगुदी हो।
‘आआआ आआउच ओओओ ओओओ… घुसो सच में अंदर घुसो…’ अपनी टांगें उठाये मेरे बालों को नोचती हुई वो बोल रही थी। मैं भी मदहोश हो उसकी चूत से छेड़छाड़ किये जा रहा था। थोड़ी देर बाद मैंने सिक्स्टी नाइन की पोजीशन ले ली अब एक ओर मैं उसकी चूत चाट रहा था और वो मेरा लंड चूस रही थी। काफी देर हमने चटाई और चुसाई की फिर सीधे होकर एक दूसरे से लिपट गये।
मैंने उसे नीचे लिटा कर लंड को चूत में घुसेड़ा, दो तीन धक्कों में ही लंड अंदर चला गया। लंड को उसी तरह अंदर रखते हुए मैंने उसे किस करना शुरू किया, वो भी मेरा सहयोग देने लगी। बाद में मैंने उसके बूब्स भी चूसे और उन्हें चूसते चूसते लंड को अंदर बाहर करना शुरू किया।
वो भी मस्त हो नीचे से कमर हिलाने लगी, मेरे बालों में हाथ फेरने लगी, कभी मेरी कमर, कभी पीठ पर हाथ फेरने लगी। ऐसे ही करते करते उसके बदन को झटके लगने लगे और वो फड़फड़ाने लगी। मैंने उसे कसकर पकड़े रखा… वो झड़ रही थी।
थोड़ी देर बाद उसका फड़फड़ाना बंद हुआ, मैंने फिर धक्के मारने शुरू किये, उसके पानी से भरी चूत में लंड डुबकी लगाते हुये अंदर बाहर होने लगा। थोड़ी ही देर में मैं भी उसकी चूत में ही झड़ गया, हम दोनों के पानी का मिलाप हो गया था।
झड़ने के बाद भी मैंने अपना लंड उसकी झड़ी हुई चूत में ही रहने दिया और खुद उसके ऊपर लेट गया, वो मेरे होठों में अपने होंठ डालकर उनका रसपान करने लगी।
हमारी महीनों की चैट का नतीजा आज निकल आया था, हम सच में एक दूसरे के हो गये थे।
कहानी पूरी तरह काल्पनिक है इसलिए सिर्फ कहानी को लेकर कोई अच्छे सुझाव हो तो नीचे दिए गए मेल पर मुझसे संपर्क करें। रविराज मुंबई : [email protected]