भूत बंगला गांडू अड्डा-3

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कहानी का पहला भाग : भूत बंगला गांडू अड्डा-1 कहानी का दूसरा भाग : भूत बंगला गांडू अड्डा-2

वो मुझे गले लगा कर किस कर रहा था और नीचे से अपना लंड चुसवा रहा था। हमने पाँच मिनट तक एक दूसरे को प्यार से किस किया, फिर पूरब बोला- चल जींस उतार! मैं झिझका। ‘शरमा मत। सब नंगे हैं यहाँ पर…’ उसने समझाया।

मैंने डरते डरते अपनी जीन्स और जूते उतारे। जीन्स उतार तो दी लेकिन रखता कहाँ? पूरब ने पास में दीवार में गड़ी लकड़ी खूँटी की तरफ इशारा किया। मैंने जीन्स उस पर टांग दी, जूते भी वहीं कोने में रख दिए। अब मेरे बदन पर सिर्फ पूरे आस्तीन की कमीज़ और जाँघिया था।

पूरब ने अपना लण्ड चूसते हुए लड़के को अलग किया, लड़का बिना कुछ कहे खड़ा हो गया और हम दोनों को देखने लगा। मुझे वो गौर से देख रहा था, शायद मुझे जानता था।

पूरब ने मुझे दीवार की तरफ मुंह करके खड़ा होने को कहा। ‘अब थोड़ा पीछे आ और झुक… हाथ दीवार पर पर टिका दे…’ उसने निर्देश दिया।

मैं दीवार पर दोनों हाथ टिकाये झुक कर खड़ा हो गया। हम पहले जब भी मिलते थे, या तो सोफे पर या पलँग पर प्यार करते थे। इस तरह से चुदवाना मेरे लिए नया था लेकिन मेरा साथी होशियार और अनुभवी था।

मेरे झुकते ही पूरब मेरे पीछे आ गया, मेरी कमर पकड़ी, मेरा कच्छा नीचे घसीटा, अपने लण्ड के सुपाड़े पर थूका और मेरी गांड के छेद पर टिका कर शाट मारा। लण्ड सट से अन्दर घुस गया।

‘म्म्म्म…!!!’ मेरी हल्की सी आह निकल गई। मुझे इतने दिनों बाद अपनी गांड में लण्ड मिला था… मैं बता नहीं सकता की कितना आनन्द आ रहा था।

और फिर पूरब ने मुझे मेरी कमर पकड़ कर गपर गपर हमेशा की तरह चोदना शुरू कर दिया। मैं आनन्द के सागर में गोते लगाने लगा, उसका लण्ड मुझे इतना सुख दे रहा था… मेरी गांड में मीठी मीठी सी खुजली हो रही थी। वो मुझे गपर-गपर चोदे चला जा रहा था और मैं छटपटाता हुआ, अपना सर झटकता, उसके जवान लण्ड के थपेड़ों का आनन्द ले रहा था। इच्छा तो हो रही थी कि पूरब मुझे ऐसे ही हमेशा चोदता रहे।

पहले तो मैं अपनी आवाज़ें दबाये चुपचाप संकोच में चुदवाता रहा, फिर जब नहीं रहा गया तो अपने मुँह को बन्द किए-किए ही सिसकारियाँ लेने लगा ‘म्म्म्ह…! म्म्म्म्म्म…. हम्म्म… !!! म्म्म्म… हम्म्म… म्म्म्ह्ह्ह्ह… !!’

मेरा तड़पना और कूंकना देख कर पूरब को और जोश चढ़ गया, वो और स्पीड से गपा-गप अपने लण्ड को मेरी गांड में अन्दर बाहर करने लगा। अब तो मुझसे नहीं रहा गया और मेरा मुंह खुल गया ‘हाह्ह्ह… !!! आअह्ह्ह.!! ऊ ह्ह्ह…!!

मैंने अपना एक हाथ दीवार से हटा कर अपनी गांड थाम ली, ऐसा लग रहा था मेरी गांड में कोई दानव घुस आया हो। लेकिन शायद पूरब को गुस्सा आ गया, उसने मुझे चोदते-चोदते ही दबी आवाज़ में डांटा ‘ चुप साले… चुप…!’

मुझे उस पर बहुत गुस्सा आया- बाकी सब लड़के तो चुदवाते हुए, चोदते हुए और चुसवाते हुए आहें भर रहे थे, उनकी कराहने की आवाज़ गूँज रही थी; और वो रस्सी से बंधा नेपाली लड़का तो खुले आम चिल्ला रहा था – मेरे वहाँ आने से लेकर अब तक, और पूरब को मेरी आहों से दिक्कत हो रही थी।

‘हाथ हटा…’ उसने मुझे गांड से हाथ हटाने को कहा, लेकिन मैंने नहीं हटाया। ‘साले… भोसड़ी के!’ उसने मुझे गाली दी और खुद ही मेरा हाथ हटा दिया।

मैं थोड़ी देर तो दोनों हाथ दिवार पर टिकाये, झुका हुआ, कूंकता हुआ चुदवाता रहा, लेकिन फिर मुझसे रहा नहीं गया। मैंने फिर एक हाथ से अपनी गांड थाम ली। पूरब ने फिर मेरा हाथ झटक कर अलग कर दिया और मेरी गांड पर एक चपत जड़ दी।

मैं आहें भरता हुआ चिल्ला दिया ‘ऊह्ह्ह…!! ऊह्ह…!! आई ईई…!!!’ जब पूरब ने मेरे चूतड़ पर चपत जड़ी ‘ओह्ह्ह…!!’ मैं अब दर्द में कराहता हुआ चुदवा रहा था।

तभी पीछे से कोई अवधी बोली में बोला ‘चिल्लाय लेयो मुन्ना… हियाँ तोहार चिल-पुकार सुने वाला कउनों नहीं’ मैंने देखा कि यह पुलिस वाला था, जो अब मेरे बगल आकर खड़ा था और मुझे चुदता हुआ देख रहा था।

मैं उसका काला काला लण्ड देख कर चौंक गया, उसका लौड़ा पूरब के लण्ड से भी बड़ा था। मैंने इतना बड़ा लण्ड पहले कभी नहीं देखा था। वैसे मैंने पूरब के अलावा और किसी का भी लण्ड नहीं देखा था- अब तक मेरा शारीरिक सम्बन्ध सिर्फ उसी के साथ था।

उस पुलिस वाले के लण्ड पूरा टाइट खड़ा हवा में लहरा रहा था, जैसे कोई एंटीना हो। वो खुद ऐसे खड़ा था जैसे किसी फैक्टरी में कोई मेकैनिक अपने औज़ार लेकर मुआयना कर रहा हो – न जाने कब कौन सा पेंच ढीला पड़ जाये और उसे कसना पड़े।

‘तुम लोग सोफ़ा पर चले जाओ… खाली होय गवा…’ पुलिस वाले ने पूरब को स्थानीय अवधि बोली में सुझाया ‘बेचारे लौण्डे से खड़ा नहीं हुआ जाय रहा…’

उसकी बात मान कर पूरब ने अपना लण्ड बाहर निकाला, मैंने अपना कच्छा ऊपर चढ़ाया और फिर पूरब के साथ ‘सोफे’ पर गया। मैंने तिरछी नज़र से देखा की पुलिस वाला मुझे भूखी नज़रों से घूर रहा था।

सोफ़ा क्या था, किसी ज़माने में सोफे रहा होगा। उसका कपड़ा उधड़ गया था। जगह जगह से नारियल बहर आ रहा था, एक कोने से तो स्प्रिंग भी बहार आ गया था। उस पर अब कोई नहीं था। उस पर विराजमान लोग इधर उधर चले गए थे।

‘घोड़ा बन जा’ और पूरब घुटनों के बल सोफे पर खड़ा हो गया। मैं उसके आगे, सोफे पर घोड़ा बन गया। मेरे घोड़ा बनते ही सोफे का सिरहाना टूट गया और फर्श से आ लगा। अब वो एक बेंच बन गया था।

पूरब मेरी कमर दबोच कर मुझे फिर से चोदने लगा, चुदाई और मेरी आहों की मिली जुली आवाज़ आ रही थी ‘गप.. गप.. गपागप… !!’ ‘आह्ह्ह… ऊह्ह्ह… आह्ह्ह.. ऊह्ह्ह… !!!’ ‘गपा-गप… गप.. गप… !!’ ‘आह्ह… आअह्ह्ह… !!’

सोफा भी हचर-हचर हिल रहा था ‘चुक … चुक … चुक … !!!’ आप कल्पना कीजिये, तीन अलग-अलग किस्म की आवाज़ें एक साथ !!!

हमारी चुदाई देखने अब सब हमारे इर्द गिर्द आ गए थे। शायद मैं नया नया उनके ‘क्लब’ में आया था, इसीलिए मुझे देखने लिए इकठ्ठा हो गए थे।

मुझे तो होश भी नहीं था कौन कौन खड़ा था- वहाँ जितने लौंडे इकट्ठे थे, अपनी अपनी चुदाई छोड़ कर हम दोनों को घेर कर हमारी प्रेम लीला का तमाशा देख रहे थे। कोई पूरा नंगा खड़ा था, कोई सिर्फ अपना लण्ड निकाले खड़ा था। बस सब हमें घूर रहे थे और सबके लौड़े खड़े थे।

मुझे तो बस इतना होश था की पूरब के लौड़े के थपेड़े मुझे जन्नत की सैर करा रहे थे।

अचानक वो ‘सोफा’ भी धड़ से नीचे आ लगा- वैसा का वैसा। शायद उसके चारों पाये एक साथ जवाब दे गए थे। हम जैसे थे, चुदाई करते हुए, वैसे के वैसे सोफे समेत नीचे आ लगे।

सभी लोग हमें देख कर हँसने लगे लेकिन मेरे पूरब सिंह एक मिनट के लिए भी नहीं थमे, बस अपने कमर हपर-हपर हिलाते हुए मुझे गपर-गपर चोदते रहे।

तभी किसी ने अपना लण्ड मेरे गाल पर लगाया। मेरी नज़र पहले लण्ड पर गई, इतने सारे लण्ड मैंने एक साथ पहले कभी नहीं देखे थे, बहुत बड़ा लण्ड था – पुलिस वाले के लण्ड से भी बड़ा – ऐसे तो मैंने सिर्फ ब्लू फिल्मों में देखे थे। लगभग साढ़े नौ इन्च का रहा होगा, खीरे जितना मोटा। रंग गेंहुआ था। उसका गहरा गुलाबी सुपाड़ा गुलाब जामुन की तरह फूला हुआ था। बिल्कुल टाइट, फनफनाता हुआ खड़ा था।

मैंने नज़रें ऊँची करके देखा तो ये लण्ड मेरे कॉलेज के छात्र नेता का था, अपने घुटने झुकाये, नेकर खोले अपना लण्ड मेरे मुँह में देने की कोशिश कर रहे थे। ‘चूस लो यार…!’

मेरे अंदर भी रोमांच जगा और मैं उसके कहने से उसका मुंह में लेने लगा पर पूरब के थपेड़ों से स्थिर नहीं रहा जा था। मेरा भी मन हो रहा था कि एक साथ दो लण्डो का आनन्द लूँ… एक मुँह में और एक गांड में- मेरे लिए ये अनोखा अनुभव था। हमेशा पूरब से चुदता था, हमेशा उसका लण्ड चखा, और आज अगर दो लण्ड एक साथ मिल रहे थे तो क्या बुरा था?

महामंत्री जी ने मेरा सर पकड़ा और अपना लण्ड मेरे मुंह में दे दिया, मैंने चूसना शुरू कर दिया। क्या मस्त लण्ड था ! लेकिन मुझे थोड़ा मुंह बड़ा करना पड़ा उनका खीरे जितना बड़ा लण्ड चूसने के लिए। महामंत्री भी मेरे बाल सहलाता अपनी कमर और नीची किये अपना लण्ड चुसवा रहा था।

तभी वो नेपाली लड़का भी कहीं से आ गया, उसे किसी ने खोल दिया होगा। अब उसने बॉक्सर शॉर्ट्स पहनी हुई थी और मेरे बगल फर्श पर बैठ कर मेरे साथ साथ महामंत्री का लण्ड चूसने लगा – एक लण्ड को दो लड़के चूस रहे थे !! बीच-बीच में मेरे और उस नेपाली की जीभ और होंठ आपस में छू जाते।

महामंत्री भी मज़े लेता चुसवा रहा था। उस वक़्त चूसने की आवाज़ के साथ साथ मेरी चुदाई की भी आवाज़ आ रही थी ‘स्लर्प… स्लर्प.. !! गप… गप… गप… !!’

तभी पूरब झड़ गया, मैंने उसका गरम गरम वीर्य अपनी गांड में गिरता महसूस किया। एक पल को वो वैसे ही, मेरी गांड में अपना लण्ड घुसेड़े खड़ा रहा। ऐसा वो हमेशा झड़ने पर करता था – अपने वीर्य की आखिरी बूँद गिराने के बाद ही अपना लण्ड बहार निकालता था।

और यही चुसवाने पर भी करता था, जब अपने माल की आखिरी बूँद मेरे गले में टपका नहीं देता था, मुझे छोड़ता नहीं था। फिर वो हट गया। मुझे लगा कि अब चलना चाहिए।

लेकिन तभी कोई और मेरे पीछे आ गया और मेरी कमर दबोच ली ‘रुक जाओ मुन्ना , हमउ का मजा ले लेय देयो…’ अब पुलिस वाला मेरी कमर दबोचे खड़ा था।

इससे पहले मैं हिलता या कुछ कहता उसने गपाक से अपना लण्ड मेरे छेद पर टिका दिया। मेरी गांड तो खुली तिजोरी बन गई थी। इधर मेरे कॉलेज का छात्र नेता अपना वाला मेरे मुँह दिए था और हटने को तैयार नहीं था।

पुलिसवाले ने पीछे से शॉट मारा। महामंत्री का लण्ड मुँह में लिए लिए ही मेरी चीख निकल गई… म्म्म्मम्म्म्म्म !!! मुझे बहुत दर्द हुआ। मेरी गांड को इतना बड़ा लेने की आदत नहीं थी। मुझे ऐसा दर्द तब होता था जब मैं नया नया पूरब से अपनी गांड चुदवाता था।

मैंने एक झटके से महामन्त्री का लण्ड उगला और ज़ोर की आह ली ‘ओह्ह्ह्ह… !!!’ मैंने अपने आप को छुड़ाने की कोशिश की लेकिन तब तक देर हो चुकी थी, उसका तगड़ा लण्ड पूरा का पूरा अन्दर घुस चुका था और उसने मुझे कायदे से दबोचा हुआ था। ‘जल्दी मा हो का मुन्ना? दुइ मिनट रुक जाओ… जाये देब तुमका!’ और वो भड़ा-भड़ अपनी कमर हिला हिला कर मुझे चोदने लगा। इधर वो हरामी मेरे कालेज का स्टूडेंट लीडर अपना लण्ड मेरे मुंह में दुबारा घुसाने का प्रयास कर रहा था। मैंने अपना मुंह दूसरी तरफ घुमाया और देखा कि पूरब सिंह जी वहाँ से निकल रहे थे, मुझे उस चुदाई क्लब में अकेला छोड़ कर… साला हरामी !!

मैं चीखता हुआ उस राक्षस से चुदवा रहा था ‘अआ ह्ह्ह… आअह्ह… आअह्ह्ह… अह्ह्ह्ह !!’ और वो बिना मेरे दर्द और चिल्लाने की परवाह किये, मुझे कामातुर साण्ड की तरह चोदे चला जा रहा था गप… गप… गपा गप… गपा गप… !!!

उसका काला-काला लालची लण्ड मेरी गांड फाड़ रहा था। मुझे दर्द इतना हो रहा था कि मेरी आँख में आँसू आ गए थे। मैं किसी तरह से प्रार्थना कर रहा था कि यह जल्दी से झड़े और मुझे छुट्टी मिले। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं

वो बहुत बलिष्ठ था, मैं अपने आपको उससे छुड़वा भी नहीं सकता था। बस मैं बेबस अपना सर झटकता, उसी तरह घोड़े की पोज़ में सिसकारियाँ लेता चुदवा रहा था।

उस वक़्त और भी लोग आहें ले रहे थे, छटपटा रहे थे लेकिन मेरी छटपटाहट और चीख पुकार सबसे ज़्यादा थी, इतने बड़े लण्ड से जो चुद रहा था।

अब मैंने दूसरी तरफ देखा, जिस तरफ से महामंत्री जी अपना अफ़्रीकी छाप लण्ड चुसवाने पर आतुर हो रहे थे- कोई और भी आहें भरने में मेरा साथ दे रहा था, वो नेपाली लड़का उन से चुद रहा था, मेरी तरह घोड़ा बना हुआ और मेरे कालेज का छात्र नेता उसी तरह घुटनों के बल खड़ा उसे चोद रहा था। बस नेपाली की गांड मेरे चेहरे की तरफ थी, और मेरी गांड उसके चेहरे की तरफ।

इसी बहाने मैंने चुदाई को बहुत करीब से देखा, पहली बार (अपने आप को तो चुदते नहीं देख सकता था) – महामंत्री का विकराल, गदराया लौड़ा सटा-सट किसी मशीन की तरह नेपाली की गोरी गोरी गांड के अन्दर-बहार आ-जा रहा था।

और एक-दो झटकों के बाद पुलिस वाला भी झड़ने लगा। झड़ते हुए उसकी पकड़ ढीली हो गई, मुझे मौका मिला और मैं उठकर भागने लगा। उसका लण्ड झटके से बाहर आया, उसके लण्ड के झटके से निकलने से मुझे थोड़ा दर्द तो हुआ लेकिन मैंने बर्दाश्त कर लिया। मैंने एक पल के लिए पीछे मुड़ कर देखा तो पुलिस वाला सोफे पर एक घुटना टिकाये अपने लण्ड से वीर्य टपका रहा था। उसकी शक्ल देखने लायक थी।

मैं भाग ही रहा था कि मेरे कालेज के लड़के ने मुझे पकड़ लिया- रुक जाओ दो मिनट… प्लीज़… मैं भी तुम्हारे साथ करना चाहता हूँ। वो अभी भी उस नेपाली की गांड्ड में अपना लौड़ा उसी तरह अटकाए घुटनों के बल खड़ा था। ‘नहीं… मुझे छोड़ दो… फिर कभी… मुझे अभी यहाँ से भागना है…’

अब तक शाम होने वाली थी, मैं सोच रहा था कि घर पर मम्मी को क्या जवाब दूंगा। लेकिन वो लड़का मुझे जाने नहीं दे रहा था, अब तो नेपाली को छोड़ कर खड़ा हो गया था- तुम बहुत सुन्दर हो… गले तो लग जाओ…’ उसने मेरी हाँ या न की परवाह किये बिना मुझे अपनी बाँहों में भर लिया, उसका लण्ड पहले की तरह फनफना रहा था। जब वो मुझसे लिपटा, मैंने उसके लण्ड की सख्ती महसूस करी। वो पूरे जोश में था मुझे चोदने के लिए लेकिन मेरे अंदर और हिम्मत नहीं थी, मेरी गांड उस हरामी पुलिस वाले ने पहले ही फाड़ दी थी।

उसने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए, मैं कुछ कह ही नहीं पाया और हम दोनों किस करने लगे। मैं जल्दी में तो था लेकिन एक बात माननी पड़ेगी- उसे प्यार करना आता था। यह बात उसके किस करने के तरीके से पता लगती थी।

मुझे आज तक पूरब ने भी ऐसे किस नहीं किया था। उसके गर्म गर्म होंठ मेरे होंठों को ऐसे चूस रहे थे जैसे कोई बरसों का बिछड़ा प्रेमी अपनी प्रेमिका के होंठ चूसता है।

मैं अपने आपको छुड़ा कर जाने लगा- बस करो… छोड़ दो मुझे! ‘थोड़ी देर और रुको… प्लीज़!’ उसने बहुत प्यार और कामातुर होकर मुझसे कहा। उसका निवेदन ठुकराना मेरे लिए बहुत मुश्किल था, अगर मम्मी की डांट का डर न होता तो मैं उसके लिए ज़रूर रुकता।

‘नहीं।… नहीं… मैं बाद में मिलूंगा।’ मैं उससे जबरन अलग हुआ और उस कोने की खूंटी पर लपका जहाँ मेरी जीन्स टँगी थी और जूते रखे थे। मैं भगवान का स्मरण करता, साथ ही साथ पूरब को गरियाता फटाफट अपनी जीन्स पहनने लगा, उसके बाद जूते पहने और वहाँ से भागने लगा। यकीन कीजिये, इतनी जल्दी आज तक कभी मैंने कपड़े नहीं पहने थे।

मैं उस दरवाज़े की तरफ भागा जहाँ से हम आये थे। तुरन्त मुझे महामंत्री जी ने फिर पकड़ लिया- तुम्हारा नाम ऋधिम है न… तुम रिकाबगंज में रहते हो न?’ उन्होंने मेरे बारे पूछा। मैंने घबराते हुए ‘हाँ’ में सर हिला दिया। ‘मुझसे मिलना ज़रूर…’ उसका कहना था कि मैं अपना हाथ छुड़ा कर वहाँ से सर पे पर रख कर भागा।

उस खण्डहर से बाहर जँगल में आया, फिर सिनेमा हॉल के कैम्पस में, फिर उसी टूटी हुई दीवार से बाहर आ गया। बाहर सड़क पर आते ही मेरी जान में जान आई। और मैंने कसम खाई की अब उस कमीने पूरब से कभी नहीं मिलूँगा जो मुझे ऐसी जगह पर अकेला छोड़ गया।

पूरब से नहीं मिलूँगा क्यूंकि अब मुझे प्यार करने वाला कोई और मिल गया था! रंगबाज़ [email protected]

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