Khul Gaya Darwaja – Part 4

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जब मैंने मंजू के नंगे स्तन देखे तो मैं पागल सा हो गया। मेरा मन किया की मैं भी अंदर घुस जाऊं और मंजू की चूचियों को चूसने लगूं और उसकी फूली हुई निप्पलों को काट कर लाल करदूँ। पर सब मुझे छोटा मानते थे। देव लगा हुआ था तो मेरा नंबर कहा लगने वाला था? खैर, मैं मन मारकर अपने लण्ड को हिलाता हुआ, जो अंदर चल रहा था वह अद्भूत दृश्य देखने में जुट गया।

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देव के दोनों हाथ मंजू को चरम सीमा रेखा पर पहुंचाने में ब्यस्त थे। मंजू की आँखें बंद थीं और वह पूरी तरह से देव के एक हाथ से उंगली चोदन और दूसरे हाथ से अपने स्तनों को जोश से दबवाने का उन्माद भरा आनंद अपनी आखें बंद कर महसूस कर रही थी। मुझे लगा की उसके बदन में अचानक जैसे कोई भूत ने प्रवेश किया हो ऐसे मंजू का बदन कांपने लगा।

मैं अचम्भे में पड गया की यह मंजू को क्या हो गया। मंजू के मुंहसे आह… आह… निकलने लगी। मंजू जो कुछ समय पहले देव से भाग रही थी अब देव को चोदने के लिए बिनती कर रही थी। उस के मुंह से बार बार, “ओह… देव… आह… ओह… आह.. मुझे चोदो और.. और…” मंजू का बदन इतने जोर से हिलने लगा की साथ साथ मेरा पूरा पलंग भी उसके साथ हिल रहा था। और फिर अचानक एक झटके में वह शांत हो गयी।

इतनी फुर्ती से मंजू की टांगों के बिच में उसकी चूत में से अपने हाथ और उँगलियों को अंदर बाहर करते हुए देव भी थोड़ा सा थक गया था। थोड़ी देर के लिए दोनों शांत हो गए। मैंने देखा की मंजू पलंग पर से थोड़ी उठी और उसने देव को उसकी बाहों में लेने के लिए अपनी बाहें उठायीं। देव खड़ा हुआ। उसका लंबा घंट जैसा लण्ड एकदम्म कड़क खड़ा हुआ था। वह अपना लण्ड एक हाथ से सेहला रहा था। मंजू ने देव का लण्ड अपनी एक हथेली में पकड़ा और उसे हिलाती हुई वह पलंग पर ठीक तरह से लम्बी होती हुई लेट गयी और तब उसने देव को उसके ऊपर चढने के लिए इंगित किया।

देव मंजू के लेटे हुए नंगे बदन को देखता ही रहा। मंजू की हलके फुल्के बालों से छायी हुई उभरी हुई चूत उसके मोटे लण्ड को ललकार रही थी। देव ने लेटी हुई मंजू की टांगों को अपनी टांगों के बिच में लेते हुए अपने घुटनों के बल दो हाथ और दो पाँव पर झुक कर मंजू के नंगे बदन को निहार ने लगा। नग्न लेटी हुई मंजू गज़ब लग रही थी। मंजू ने अपने दोनों हाथों को लंबाते हुए देव का सर अपने हाथों में लिया और देव का मुंह अपने मुंह से चिपका कर उसके होंठ अपने होठों से चिपका दिए।

दोनों पागल प्रेमी एकदूसरे से चिपक गए और एक अत्यंत गहरे घनिष्ठ अन्तरङ्ग चुम्बन में लिप्त हो गए। देव का लण्ड तब दोनों के बदन के बिच मंजू की जांघों के बिच था। वह मंजू की गीली चूत पर जोर दे रहा था। उनका चुम्बन पता नहीं कितना लंबा चला। थोड़ी देर के बाद मंजू ने देव का मुंह अपने मुंह से अलग किया। मुझे दोनों की गहरी साँसे कमरे के बाहर खड़े हुए भी सुनाई पड़ रही थी। इतना लंबा चुम्बन करने के समय दोनों की साँसे रुकी हुई थी सो अब धमनी की तरह ऑक्सीजन ले रही थी।

मंजू ने देव की आँखों में आँखें मिलाई और थोड़ा सा मुस्कुरा कर बोली, ‘देख पगले! कुछ पाने के लिए मेहनत तो करनी पड़ती है। अब मुझे देखता ही रहेगा या फिर अपनी मर्दानगी का अनुभव मुझे भी कराएगा? मैं भी तो देखूं, तू कैसा मर्द है?”

देव चुप रहा। उसने फिर झुक कर मंजू के लाल होठों पर अपने होंठ रख दिए और थोड़ा सा उठकर अपने घोड़े से लण्ड को ऊपर उठाया। मंजू ने देव का लण्ड अपनी हथेली में लिया और उसे हलके से हिलाते हुए धीरे से अपनी चूत के केंद्र बिंदु पर रखा। फिर थोड़ा ऊपर सर करके मंजू देव के कानों में बोली, “देख, अब तू तेरे यह मरद को धीरे धीरे ही घुसेड़ियो। तेरा लण्ड कोई छोटा नहीं है। मेरी बूर को फाड़ न दे।”

मंजू फिर पहली बार देव से डरी, दबी हुई प्यार भरे लहजे में बोली, “देख यार, अच्छी तरह उसे गीला करके हलके हलके डालियो। ध्यान रखना अब मैं और मेरी यह चूत सिर्फ मेरी नहीं है। यह तेरी भी है। अब यह जनम जनम के लिए तेरी हो गयी। जब तू चाहे इसका मजा ले सकता है।”

देव मंजू को देखता ही रहा। उसकी समझ में नहीं आरहा था की उस दिन तक जो मंजू उसकी रातों की नींद हराम कर रही थी और जो मंजू उससे भाग रही थी उस को अपने पास फटक ने नहीं दे रही थी वही मंजू कैसे उससे इतने प्यार से भीगी बिल्ली की तरह अपनी टांगें उठाकर उसे बिनती कर रही थी और उससे चुदवाने के लिए उत्सुक हो रही थी। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।

देव को भी एहसास हुआ की अब वह कोई साधारण छैला नहीं रहा। अब उसकी सपनों की रानी उस दिन से तन और मन से उसकी हो गयी थी। अब उसे मंजू के पीछे दौड़ने की जरुरत नहीं थी। वह जान गया की जवानी की जो आग उसके बदन में लगी हुई थी वही आग मंजू के बदन में भी लगी हुई थी। उस सुबह वह मंजू के पीछे भागने वाला सड़क छाप रोमियो नहीं बल्कि मंजू का प्रेमी बन गया था। मंजू अब जनम जनम की उसकी संगिनी बनाना चाहती थी। देव भी तो यही चाहता था। पर शायद देव प्यार की जो शरारत भरी हरकतें मंजू ने उसके साथ और उसने मंजू के साथ तब तक की थीं उसकी उत्तेजना खोना भी नहीं चाहता था।

देव ने भी उसी प्यार भरे लहजे में कहा, “देख मेरी छम्मो। तुझे तो मेरी बनना ही है। मैं तुझे छोडूंगा नहीं। पर इसका मतलब यह नहीं है की हमारे बिच जो यह लुका छुपी कहो या पकड़म पकड़ी का खेल चलता आ रहा था वह ख़तम हो जाए। यह तो जारी रहना चाहिए। तुझे तेरे पीछे भागके पकड़ कर चोदने ने का जो मजा है वह मैं खोना नहीं चाहता।”

यह सुनकर मंजू का अल्हडपन सुजागर हो गया। वह देव के नंगे पेट पर अपना अंगूठा मार कर बोली, “साले, एक तरफ मुझे चोदना चाहता है, और फिर कहता है की मैं भाग जाऊं और तू मुझे पकड़ ने आये? अरे साले तू मंजू को नहीं जानता। मेरे पीछे भागने वाले बहुत हैं। तू मुझे क्या पकड़ता। यह तो मुझे तुझ पर तरस आ गया और मैं जानबूझ कर तुझसे पकड़ी गयी। अब चल जल्दी कर वरना मैं कहीं भाग निकली तो तू फिरसे हाथ मलता रह जाएगा।“

देव अपनी मुस्कान रोक न सका। उसे अच्छा लगा की उसकी मंजू कोई साधारण औरत नहीं थी की वह किसी भी मर्द की चगुल में आसानी से फँसे। उसे यह भी यकीन हो गया की आगे की उसकी राह उतनी आसान नहीं रहने वाली की जब उसका जी चाहे तो मंजू उससे चुदने के लिए अपने पाँव फैलाकर सो जायेगी। उसे वही मशक्कत करनी पड़ेगी जो उसने तब तक की थी।

देव ने कहा, “ठीक है मेरी रानी। अब ज़रा मैं तेरी जवानगी का और तु मेरी मर्दानगी का मजा तो लें! हाँ मैं तेरा जरूर ध्यान रखूंगा तू चिंता मत करियो। ”

ऐसा कह कर देव ने अपना कड़ा छड़ जैसा मोटा लण्ड मंजू की फैली हुई टांगों के बिच में उसकी उभरी हुई चूत के होठोंको के केंद्र बिंदु पर धीरे से सटाया।

मंजू ने अपनी उँगलियों से अपनी चूत के होठों को फैलाया और देव के फौलादी लण्ड को अपनी मुट्ठी में पकड़ कर थोड़ी देर के लिए अपनी चूत पर रगड़ा ताकी दोनों का पुरजोर झर रहा पूर्व रस से देव का लण्ड और उसकी चूत पूरी तरह सराबोर हो जाए और मंजू को देव के लण्ड के अंदर घुसनेसे ज्यादा पीड़ा न हो।

उसके बाद मंजू ने अपना पेंडू को ऊपर की और धक्का देकर देव को यह संकेत दिया की वह उसका लण्ड अंदर घुसेड़ सकता है। देव ने जैसे ही अपना लण्ड मंजू की चूत में थोड़ा सा घुसेड़ा की अनायास ही मंजू के मुंह से निकल गया, “धीरे से साले यह मेरी चूत है। तेरे बाप का माल नहीं है।”

देव अपनी हंसी रोक न सका। उसने एक धक्का मारा और अपना लण्ड थोड़ा और घुसेड़ा। मंजू अपनी आखें मूँदे देव के छड़ का उसकी चूत में घुसने का इंतजार कर रही थी। मुझे दोनों की यह प्रेमक्रीड़ा का पूरा आनंद लेना था। मेरा लण्ड भी एकदम कड़क और खड़ा हो गया था।

मैं दरवाजे करीब पहुँच गया और छुप कर दोनों को देखने लगा। मेरा पलंग दरवाजे के एकदम करीब ही था और मुझे दोनों प्रेमियों की हर हरकत साफ़ दिख रही थी और उनका वार्तालाप साफ़ सुनाई दे रहा था। मैं सोच रहा था की शायद वह दोनों मुझे देख नहीं रहे थे। पर मैंने एक बार देखा की मंजू अपनी टांगें उठाकर देव के कन्धों पर रखे हुई थी और उसकी फैली हुई चूत मैं साफ़ देख रहा था तो उसने मुझे आँख मारी। मैं हतप्रभ रह गया। शायद मुझे मंजू ने चोरी से छिप कर उन दोनों को देखते हुए पकड़ लिया था।

पर उसके बाद जब देव ने अपना लण्ड मंजू की चूत में थोड़ा और घुसेड़ा तब मंजू के मुंह से सिसकारी निकल ही गयी। उसे बोले बिना रहा नहीं गया, “साले कितना मोटा है तेरा लण्ड। मेरी चूत फाड़ देगा क्या? साले धीरे धीरे डाल।”

मंजू की दहाड़ सुन कर मुझे हँसी आगयी। मैं अपने मन में सोच रहा था, “यह लड़की कमाल की है. चुदते हुए भी अपनी दादागिरी और अल्हड़पन से वह बाज नहीं आती। कोई और लड़की इसकी जगह होती तो चुप रहकर चुदने का मजा ले रही होती।”

देव ने उसका कोई जवाब न देते हुए एक हल्का धक्का और मारा की उसका आधा लण्ड मंजू की चूत में घुस गया। मंजू के मुंहसे आह.. निकल पड़ी पर वह और कुछ न बोली। देव ने फिर अपना लण्ड वापस खींचा और फिर एक धक्का और दिया। उस बार मंजू ने अपनी आँखें जोर से भिंच दीं। शायद उसने सोचा जो होता है होने दो। देव ने जब एक आखिरी धक्का और दिया और तब उसका फैला हुआ मोटा लण्ड मंजू की चूत में करीब करीब घुस ही गया तब मंजू के मुंह से कई बार “आह… आह… आह…” निकल गयी पर उस “आह..” में दर्द कम और रोमांच ज्यादा लग रहा था।

जब देव ने मंजू को चोदने ने की गति थोड़ी सी बढ़ाई तो मंजू के मुंह से बार बार “आह… आह… उँह…” निकलने लगा। वह दर्द की पुकार नहीं बल्कि मंजू को अपनी पहली चुदाइ का जो अद्भुत अनुभव हो रहा था उसका जैसे पुष्टिकरण था। शायद उसके मनमें यह भाव आरहा होगा की तब तक उसने देव को उकसाने की जेहमत की थी, वह इस चुदवाने के उन्मत्त अनुभव से सार्थक नजर आ रही थी। एक लड़की जो पहली बार चुदने में अद्भुत अनुभव पाने की आशा रखती है, जब उसे चुदने के समय वैसा ही अनुभव होता है तो उसके मन का जो हाल हो रहा होगा वह मंजू की यह “आह.. हम्फ … उँह…” से प्रतिपादित हो रहा था।

देव की शक्ल भी देखते ही बनती थी। वह आँखें मूंदे मंजू की चिकनाहट भरी गीली चूत में अपना मोटा लण्ड पेले जा रहा था। वह भी मंजू को चोदने का अद्भुत अनुभव का आनन्द ले रहा था। उसके हाथ मंजू के दोनों पके हुए फल सामान गोलाकार स्तनों को कस के दबा रहे थे। मंजू के स्तनों को देव इतनी ताकत से पिचका रहा था जो उसकी उत्तेजना और आतंरिक उत्तेजित मनोदशा का प्रतिक था। मुझे लगा की कहीं देव के नाख़ून मंजू के स्तनों को काट न दे। मंजू के स्तन देव के दबाने से एकदम लाल दिख रहे थे। मंजू के स्तनों की निप्पलं फूली हुई और देव की हथेली से बाहर निकलती साफ़ दिख रही थीं।

देव का पूरा फुला हुआ लण्ड मंजू की चूत में ऐसे अंदर बाहर हो रहा था की देखते ही बनता था। दोनों के रस से लिपटा हुआ देव का लण्ड सुबह के प्रकाश में चमक रहा था। मंजू की चूत दोनों के रस से भरी हुई थी। देव का लण्ड जैसे ही मंजू की चूत में जाता तो एकदम उनका रस चूत में से बाहर निकल पड़ता। मैं जहां खड़ा था वहाँ से मंजू की चूत की ऊपर वाली गोरी पतली त्वचा जो लण्ड के बाहर निकलने पर बाहर की और खिंच आती थी और जब देव का लण्ड मंजू की चूत में घुसता था तो वह पतली सी त्वचा की परत वापस मंजू की चूत में देव के लण्ड के साथ साथ चली जाती थी।

मेरा कमरा उन दोनों की चुदाइ की “फच्च फच्च” आवाज से गूंज रहा था। दोनों की “उन्ह… आह… ओफ्….. हम्म… ” की आवाज “फच्च फच्च” की आवाज से मिलकर मेरे कमरे में एक अद्भुत ड्रम के संगीतमय आवाज जैसी सुनाई दे रही थी। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।

मैं अपने जीवन में पहली बार किसी की चुदाई का दृश्य देख रहा था। मुझे पता नहीं था की किसी औरत की चुदाइ देखना इतना उत्तेजक हो सकता है। देव और मंजू दोनों के चेहरे के भाव अनोखे थे। देव उत्तेजना से भरा अपनी सहभोगिनि को कैसे ज्यादा से ज्यादा उन्माद भरे तरीके से चोद सके उस उधेड़बुन में था और साथ साथ स्वयं भी उसी उन्माद का अनुभव भी कर रहा था। जब की मंजू पलंग पर लेटी हुई, देव के करारे लण्ड का उसकी चूत की गहराईयों में होते हुए प्रहार का आनंद अपनी आँखें मूँदे ले रही थी। उन दोनों में सो कौन ज्यादा उत्तेजित था यह कहना नामुमकिन था।

जैसे जैसे देव ने अपने लण्ड को मंजू की चूत में पेलने की गति बढ़ाई वैसे ही मंजू के मुंह से आह… आह… ओह… हूँ… आअह्ह्ह… इत्यादि आवाजें जोर से निकलने लगी। मंजू को किसी भी तरह के दर्द का एहसास नहीं हो रहा था यह साफ़ लगता था। देव के इतने मोटे लण्ड ने मंजू की चूत को पूरा फैला दिया था और उसका लण्ड अब आसानी से मंजू की चूत में भाँप चालक कोयले के इंजन में चलते पिस्टन की तरह अंदर बाहर हो रहा था। इतना ही नहीं, ऐसा लग रहा था जैसे मंजू भी अपना पेडू उछाल उछाल कर देव के लण्ड को अपनी चूत के कोने कोने से वाकिफ कराना चाहती थी।

धीरे धीरे मंजू की आह… की सिसकारियां बढ़ने लगीं। देव का लण्ड जैसे जैसे मंजू की चूत की गहराईयों को भेदने लगा वैसे वैसे मंजू की चीत्कारियाँ और बुलंद होती चली गयीं।

मंजू जोर से देव को “हाय… ओफ्फ… ओह… ऊँह…” के साथ साथ “ऊँह…साले…”

तो कभी “ओह…क्या चोदता है।“

और फिर थोड़ी देर बाद फिरसे, ” ओफ्फ… गजब का चोदू निकला तू तो यार।“

“ चोद, और जोर से चोद। आह…मजा आ गया।” की आवाजें और तेज होने लगी।

“ऊई माँ….. मर गयी रे….. यह मुझे क्या हो गया है….? अरे बापरे…. आह…. ऑय….. ” मंजू की आवाजें सुनकर ऐसा लग रहा था की वह झड़ने वाली थी। उधर देव के माथे से पसीने की बूंदें बहनी शुरू हो गयी थी। देव ने भी अपनी आँखें मुंद ली थीं और वह बस अपने पेंडू को जोर से धक्का देकर अपना लण्ड फुर्ती से पेल रहा था और उसके ललाट पर बनी सिकुड़न से यह साफ़ लग रहा था की वह भी अपने चरम पर पहुँचने वाला था।

थोड़ी ही देर में देव भी, “आह….. मंजू रे….. आह… ऑफ…. मैं झड़ रहा हूँ रे… अब रोका नहीं जा रहा….” ऐसी आवाज के साथ ऐसा लगा जैसे अपने वीर्य का एक बड़ा फव्वारा उसके लण्ड से पिचकारी सामान छूट पड़ा। उधर मंजू भी, “हाय रे… मैं भी….. गयी काम से….. जाने दे… छोड़ साले… जो होगा देखा जाएगा…. ” कहते ही मंजू एकदम थरथराती हुई बिस्तर पर मचलने लगी। उसके मुंह से हलकी सी सिसकारियां निकलने लगी।

देव ने अपना लण्ड मंजू की चूत में ही रखते हुए अपना सर निचे झुका कर मंजू के होठों पर अपने होंठ रख दिए और मंजू को अपनी बाहों में लेकर वह उसे बेइंतेहा चूमने लगा।

ऐसा लग रहा था जैसे अपने प्रेम का महा सागर मंजू की चूत में उंडेलकर देव मंजू को अपने से अलग करना नहीं चाहता था। मंजू भी अपनी गोरी गोरी नंगी टाँगें देव के कमर को लपेटे हुए उसके पुरे बदन को ऐसे चिपक रही थी जैसे एक बेल गोल घूमते हुए एक पेड से चिपक जाती है। दोनों पाँवको कस कर दबाने से देव का लण्ड मंजू की चूत में और घुसता जा रहा था। मंजू की कमर से निचे की और देव के लण्ड की मलाई बह रही थी और मेरी चद्दर को गीला कर रही थी।

दोनों झड़ चुके थे और अत्यंत उत्तेजना पूर्ण चुदाई करने से साफ़ थके हुए भी थे और गहरी साँसे ले रहे थे। देव का बदन गर्मी में परिश्रम के कारण पसीने तरबतर था। मंजू देव को अपने से अलग नहिं करना चाहती थी।

अपनी नंगी टांगों के अंदर देव के धड़ को अपने अंदर और दबाते हुए मंजू बोली, “साले, अब तूने जब अपनी मलाई मेरे अंदर ड़ाल ही दी है तो मैं तेरे बच्चे की माँ भी बन सकती हूँ। अब तो मैं तुझे नहीं छोडूंगी। पहले मैं तुझे पास फटकने नहीं देती थी। अब मैं तुझे दूर जाने नहीं दूंगीं। अब तो मैं तेरे बच्चे की माँ ही बनना चाहती हूँ। अगर आज नहीं बनी तो फिर सही। पर मैं अब तेरे बच्चे की ही माँ बनूँगी। तू क्या बोलता हे रे?”

देव मंजू की कोरी गंवार भाषा सुनकर हंस पड़ा और बोला, “अरे यहां कौन तुझे छोड़ने वाला है, साली? अब तो मैं तुझे माँ बना कर ही छोडूंगा। साली तुझे मैं ब्याह के घर ले आऊंगा और रोज चोदुँगा और कभी नहीं छोडूंगा। अब मुझसे भागके दिखा साली। बड़ी भाग जाती थी पहले।”

मेरे से उन दोनों प्रेमियों की बाते सुनकर हंसी रोकी नहीं जा रही थी। देव और मंजू ने मुझे देखा तो था ही। देव ने मुड़कर मेरी और देखा और बोला, “छोटे भैया, देखा न? बड़ी भगति थी छमियाँ मुझसे। अब कैसे फँस गयी साली? देखा न कैसे उछल उछल कर चुदवा रही थी साली? पहले से ही उसको मेरा लण्ड चाहिए था। पर मांगने की हिम्मत नहीं थी।”

मुझे अपना फीडबैक देने के लिए कृपया कहानी को ‘लाइक’ जरुर करें। ताकि कहानियों का ये दोर देसी कहानी पर आपके लिए यूँ ही चलता रहे।

मैं उन दोनों प्रेमियों के प्रेम के सामने नत मस्तक हो गया। गँवार, रूखी और तीखी जबान में भी वह एक दूसरे को कितना प्यार कर रहे थे। अचानक मैंने देखा की घर में चारो और पानी बह रहा था। जो पाइप देव ने टंकी में रखी थी उससे टंकी भर गयी थी और उसमें से पानी ऊपर से बहता हुआ पूरे घर में फ़ैल गया था। बल्कि मैं भी कुछ समय से पानी में ही खड़ा था। पर उन दो प्रेमियों की चुदाई देख कर कुछ भी ध्यान नहीं रहा था।

अचानक मैंने एक अद्भुत दृश्य देखा। देव और मंजू की चुदाई का मंजू की चूत से निकला हुआ देव के प्रेम रस की बूंदें टपक कर चारों और फैले हुए पानी में गिर और उसमें मिल कर एक नया ही रंग पैदा कर रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे देव की पाइप में से मंजू की चूत की टंकी में भरा हुआ प्रेम रस अब पुरे घर में फ़ैल रहा था।

तब अचानक ही मुझे दरवाजे पर माँ की दस्तक और आवाज सुनाई दी। वहचिल्ला कर बोल रही थी, “अरे दरवाजा तो खोलो। ”

माँ कैसे जानती की मंजू ने अपना दरवाजा तो खोल ही दिया था।

मेरी कहानी पढ़ कर अपना अभिप्राय मुझे जरुर लिखें, मेरा ईमेल पता है “[email protected]”.

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