किरायेदार का लण्ड

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अन्तर्वासना के सभी पाठकों को मेरा प्रेम भरा प्रणाम! मेरा नाम सागर मेहता है मेरी आयु उन्नीस वर्ष है, मेरा रंग गोरा है और मैं दिखने में भी अच्छा हूँ, मैं उत्तर प्रदेश के बिजनौर ज़िले में रहता हूँ।

इस रोचक वेबसाइट का पता मुझे 2012 में अपने एक मित्र से चला। तब से मेरी हार्दिक इच्छा थी कि मैं भी अपनी कहानी लिखूं। यह मेरी पहली कहानी है.. तो यदि कोई भूल-चूक हो जाए तो क्षमा कर देना।

हमारा घर तीन भागों में बंटा हुआ है.. जिसमें से एक हिस्से में मेरा परिवार रहता है.. दूसरे में हमने किराएदार रख रखे थे और तीसरे हिस्से में बगीचा है।

बात आज से कुछ समय पहले की है जब मैं पढ़ता था। तब मेरे ऊपर नई-नई जवानी आई थी.. मुझे वैसे तो मर्द-औरत दोनों में इंटरेस्ट है पर मेरा झुकाव मर्दों के प्रति बढ़ता गया।

इसकी शुरूआत हमारे किराएदार से हुई, उसके परिवार में कुल छः लोग थे। उसका नाम दिनेश और उसकी बीवी का नाम शांति था.. जो एक स्कूल में चपरासन थी। दिनेश की चार बेटियां थीं.. जिसमें से दो सगी और दो सौतेली थीं। दोनों पति-पत्नी खूब अशांति फैलाया करते थे। दिनेश एक ड्राईवर था और उस पर मेरा दिल आ गया था.. पर कुछ करने का मौका नहीं मिलता था। हमारे घर के दोनों हिस्सों के बीच दीवार है और एक दरवाज़ा है और एक-एक दरवाज़े दोनों तरफ हैं.. जो सड़क पर खुलते हैं।

मैं सुबह-सुबह सामान लेने के बहाने किराएदार वाली तरफ से बाहर जाता था.. उस समय दिनेश नल पर नहाते हुए दिखाई देता था। उसका भीगा हुआ बदन और कच्छे में उभरा हुआ लण्ड देखकर मेरे मुँह में पानी आ जाता था और मेरा लण्ड भी खड़ा हो जाता था।

ऐसे ही बहुत समय निकल गया.. गर्मी आ गई थीं। हमारे यहाँ इतनी तेज गर्मी होती है कि दोपहर में कोई घर से बाहर नहीं निकलता।

गर्मी में दिनेश अपने घर में सिर्फ कच्छा पहन कर घूमता था या कभी-कभी दुपट्टे को लुंगी जैसा लपेट लेता था। अब मैंने सोच लिया कि कैसे भी करके इसका लण्ड ज़रूर देखना है।

हमारे किराएदारों वाले हिस्से में तीन कमरे थे.. जिसमें से एक में कबाड़ पड़ा था और बहुत गन्दा पड़ा हुआ था। दिनेश कई बार मुझसे कह चुका था कि भैया मुझे कमरे की चाभी दे दो.. मैं इसकी सफाई कर दूँगा। पहले तो कई बार मैंने उसे टाल दिया.. पर फिर मुझे लगा कि इस बहाने मैं उसे पटा सकता हूँ।

एक दिन दोपहर को जब सब लोग सुस्ता रहे थे.. मैंने माँ से उस कमरे की चाभी ली और दूसरी तरफ चला आया। उस समय दिनेश के बीवी-बच्चे सो रहे थे और दिनेश बैठा हुआ अपने पैर धो रहा था। मैंने दिनेश से कहा- चलो अंकल कमरे की साफ-सफाई करते हैं। उसने कहा- हाँ चलो आओ।

मेरे मन में तो कुछ और ही खुराफात चल रही थी। कमरे के पास चींटियों का एक बिल था जिसमें से मैंने चुपके से दो-तीन चींटियाँ उठाईं.. और चुपके से उसकी कमर पर डाल दीं और उससे बोला- अरे अंकल जी तुम्हारे कच्छे में चींटियाँ घुस रही हैं।

इतना कहकर मैंने उसका कच्छा नीचे कर दिया.. ऐसा करने से उसकी नंगी गाण्ड मुझे दिख गई.. पर लण्ड अभी नहीं दिखा। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

मेरी इस हरकत से वो एकदम चौंक गया और बोला- अरे भैया ये क्या कर रहे हो? मैं डर गया और चुपचाप सफाई करने लगा।

मैं नीचे बैठ कर कूड़ा समेट रहा था। वो खड़ा था.. उसने सिर्फ कच्छा पहन रखा था.. जो थोड़ा ढीला था। मैं नीचे बैठा उसके कच्छे की तरफ चोर नज़र से देख रहा था। उसके ढीले कच्छे से उसके टट्टों की झलक मिल रही थी, उसने शायद मेरी नज़र भांप ली थी।

तभी सफाई करते-करते उसके ऊपर धूल गिर गई तो मैंने कहा- अंकल जी, मैं साफ़ कर दूँ? उसने सहमति में सर हिला दिया और मैं साफ़ करने के बहाने कभी उसकी छाती छूता.. कभी हल्के से दबा देता.. तो कभी उसकी कमर और पेट सहलाता.. मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था।

थोड़ी देर बाद वो बोला- कच्छे में जो चींटियाँ घुस गई थीं.. उन्होंने मेरे लौड़े पर काट लिया है.. उसे भी साफ़ कर लेना चाहिए। अब वो मुझसे खुल गया था और उसने झट से अपना कच्छा नीचे किया और अपने लौड़े को देखने लगा। ये शायद मुझे दिखाने के लिए था.. मुझे तो जैसे ग्रीन सिग्नल मिल गया।

मैंने उसका लौड़ा पकड़ लिया। उसका लौड़ा छ: या साढ़े छ: इंच का होगा। उसका लण्ड था तो काला.. पर झाटें साफ़ कर रखी थीं.. जिससे उसका लण्ड सुन्दर लग रहा था।

मैंने उसका लौड़ा और गाण्ड अच्छी तरह से देखे और छुए.. पर डर के मारे इसके आगे कुछ नहीं किया और उसने भी ज़्यादा जोर नहीं दिया।

सफाई के बाद मैं अपने कमरे में आकर लेट गया, उस समय मेरे मन में डर और उत्तेजना का मिश्रित भाव था, मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था। आज मैंने पहली बार अपने अलावा किसी और का लण्ड देखा था। उस समय मैं सेक्स से अनभिज्ञ था.. पर इतना पता था कि गाण्ड मरवाने में बहुत दर्द होता है।

फिर भी मुझे दिनेश पर भरोसा था कि वो मेरी मर्जी के बिना मुझे नहीं चोदेगा। उस दिन के बाद मेरी और उसकी मेरे प्रति नज़र बदल गई। जब भी हमें एकांत मिलता.. मैं उसका लण्ड निकालकर उससे खेलने लगता और उसका लण्ड खड़ा हो जाता।

उसने मुझे समझाया कि यह लण्ड ऐसे ही खेलने की चीज़ नहीं है.. इसे तुम्हारे पीछे जो गाण्ड है.. उसमें या औरत के आगे मूतने की जगह यानि चूत या भोसड़ा के अन्दर डालकर आगे-पीछे करके मज़ा लिया जाता है। वो मुझे गाण्ड मरवाने के लिए कहता.. पर मैं टाल देता।

जब मैं उसके साथ होता तो उत्तेजना के कारण मेरा लण्ड भी खड़ा हो जाता था.. तो वो कहता था कि तेरा लण्ड भी अच्छा बड़ा है।

एक बार हम अकेले में मिले और उसने मुझे उसका लण्ड मुँह में लेने को कहा.. पर मैं ना-नुकुर करने लगा। उसके ज़ोर देने पर मैंने उसका लण्ड मुँह में लिया और धीरे-धीरे चूसने लगा।

उसे मज़ा आ रहा था.. पर मुझे बड़ा गन्दा लग रहा था, मैंने लण्ड चूसना छोड़कर थूकता हुआ वहाँ से भाग गया। उसके बाद मुझे ऐसा लगा जैसे मुझसे कोई पाप हो गया हो.. मैंने बार-बार कुल्ला किया और आत्मशुद्धि के लिए गंगाजल पी लिया। पूरे दिन ये बात मेरे दिमाग में घूमती रही.. पर रात में ही ये अन्तर्वासना फिर सर उठाने लगी।

अगले दिन मौका पाकर मैं फिर उसके पास गया, वो बिस्तर पर बैठा हुआ था, मैं दिनेश के लौड़े को कच्छे के ऊपर से सहलाने लगा। उसके सांप ने अपना फन उठाना शुरू कर दिया।

मैंने दिनेश का लौड़ा मुँह में भरकर चूसने लगा.. स्वाद थोड़ा बुरा था.. मगर ठीक लग रहा था। बीच-बीच में मैं उसकी छाती को चूम और चाट लेता.. मैं उसकी नाभि और उसका पेट के बीच में चाट रहा था। उसके मुँह से आनन्द भरी सिसकारियाँ निकल रही थीं.. वो मेरे बालों को सहला रहा था।

दस-पंद्रह मिनट बाद वो मेरे मेरे मुँह में झड़ गया.. मैंने सारा माल थूक दिया। फिर मैंने पूछा- ये सफ़ेद चिपचिपी चीज़ क्या है अंकल जी?

उसने मुझे बताया- सागर इसे माल.. बीज या वीर्य कहते हैं.. और इससे ही बच्चे पैदा होते हैं।

उस दिन के बाद मैंने कई बार उसका लंड चूसा। जिस कमरे में दिनेश और उसका परिवार किराए पर रहता था.. वो काफी पुराना था और बारिश में चूता था। जिस वजह से उसने कमरा खाली कर दिया। मुझे बड़ा दुःख हुआ.. उसके बाद वो मुझे एकाध बार मिला.. पर अकेले में मिलने का मौका कभी नहीं मिला।

अब वो पता नहीं कहाँ है..? मुझे अब भी तलाश है और अफ़सोस भी कि मैंने अपनी गाण्ड का उदघाटन उससे क्यों नहीं करवाया। अब अगर वो मुझे मिल गया तो मैं उसे पूरा मज़ा दूँगा।

आपको मेरी कहानी कैसी लगी.. मुझे ज़रूर बताना। saagarmehta9 @gmail.com

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