ससुराल में बीवी और उसकी भानजी संग- 1

पत्नी की चुदाई कहानी में पढ़ें कि मेरी बीवी की ताऊ की मृत्यु पर वो मायके में रह गयी. इधर मेरे लंड ने सर उठाना शुरू कर दिया. तो मैंने क्या किया?

मेरे सभी पाठकों के लिए लगभग दो वर्ष बाद मैं यह कहानी लेकर आया हूं. पिछले काफी समय से पाठकों को कुछ नया देने का प्रयास कर रहा था किंतु निजी व्यस्तता के कारण कुछ भी लिखना संभव नहीं हो पा रहा था। मेरी पिछली कहानी थी: वो तोहफा प्यारा सा

अब कोरोना और लॉकडाउन ने इतना समय दे दिया कि मैं अपने पाठकों के लिए कुछ नया और रोमांचक प्रस्तुत कर सकूं. यह प्रस्तुत कहानी मेरे जीवन की ही एक घटना है।

यद्यपि यह पत्नी की चुदाई कहानी शत प्रतिशत सत्य नहीं है मगर पूरी तरह से झूठ भी नहीं है. एक सत्य कथा में कुछ मसाला मिलाकर पाठकों के लिए पेश कर रहा हूं. आशा है आपको ये प्रस्तुति पसंद आएगी।

सभी पाठकों से अनुरोध है कि अपने विचार और कहानी की कमियां जरूर बताएं ताकि आगे की कहानियों में सुधार किया जा सके. तो चलिए शुरू करते हैं।

यह कहानी लगभग 5 वर्ष पुरानी है। मेरी पत्नी शशि को सुबह 4:00 बजे फोन आया कि उसके ताऊ जी (पिता के बड़े भाई) का स्वर्गवास हो गया है. खबर सुनकर ही पत्नी विचलित हो गई. पत्नी के रोने की आवाज सुनकर मेरी आंखें खुलीं तो मुझे भी इस दुखद खबर का पता चला।

आनन-फानन में पत्नी के मायके जाने की तैयारियां शुरू हुईं और 1 घंटे के भीतर ही हम दोनों अपनी कार से निकल भी गए। मेरठ से लुधियाना के सफर में मेरी पत्नी शशि के कई बार आंसू ढलक आये क्योंकि उसके मायके में संयुक्त परिवार है तो आपस में लगाव होना स्वाभाविक ही है.

हालांकि 5 घंटे के सफर की थकान मुझपर भी हावी थी मगर वहां का गमगीन माहौल देखकर मैं भी परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अपने ताऊ ससुर के अंतिम संस्कार में शामिल हो गया।

धीरे-धीरे परिवार के सभी सदस्य वहां पहुंच गए। दोपहर को 2:00 बजे अंतिम संस्कार कर दिया गया।

तब तक थकान इतनी हो गयी थी कि घर आकर स्नान करने के बाद कब नींद आ गई पता ही नहीं चला।

रात्रि भोज के समय भी जब मेरी आंख खुली तब तक बचे हुए कुछ मेहमान भी आ रहे थे. मैंने शशि से पूछा कि वापस अभी चलना है या सुबह चलोगी?

इतना बोलते ही मेरी सासू मां मुझ पर गुस्सा करने लगीं और बोलीं- कम से कम ऐसे में तो लड़की को कुछ दिन मायके में रहने दो? सासू मां की स्नेहपूर्ण डांट सुनकर मैंने शशि को वहीं छोड़ने का निर्णय किया और अगले दिन सुबह अपनी कार से अकेला ही घर वापस आ गया।

अब 13 दिन के लिए शशि अपने मायके में ही रहने वाली थी और मेरी शादी के बाद यह पहला मौका था जब मुझे शशि के बिना अकेले इतने दिन और रात दोनों ही काटने थे।

मेरे लिए यह समय किसी सज़ा से कम नहीं था मगर परिस्थिति के आगे हम दोनों ही नतमस्तक थे।

शुरू के चार-पांच दिन तो बच्चों के साथ खेलते खेलते और शशि को याद करते बीत गए. फिर उसके बाद धीरे धीरे विरह की ज्वाला बहुत तेजी से धधकने लगी।

दसवां दिन आते आते तो मेरे लिए एक-एक पल काटना मुश्किल हो रहा था। मैं और शशि रोज एक दूसरे से फोन पर बात करते थे. अगर मौका लग जाता तो फोन पर ही थोड़ा बहुत कामक्रीड़ा का आनंद भी ले लेते।

मगर यह तो उस आनंद का एक प्रतिशत भी नहीं था जो शशि के मेरी बांहों में होने के बाद मिलता था।

मेरी तो रातों की नींद भी उड़ चुकी थी। अब अक्सर मैं दिन और रात जागता रहता।

कई बार शशि मुझे डांट भी चुकी थी मगर मैं क्या करूं कुछ किये नहीं बन रहा था। मुझे तो उसी के नग्न बदन से चिपक कर सोने की आदत पड़ी हुई थी। उसके बिना कैसे नींद आती?

आखिर में इंतजार करते-करते 11 दिन पूरे बीत गए। 12वें दिन जब मेरे सब्र का बांध टूट गया तो मैंने अपनी गाड़ी उठाई और लुधियाना के लिए निकल गया। इस बारे में मैंने किसी को कुछ नहीं बताया था।

शाम को 6:00 बजे जब मैं शशि के मायके पहुंचा तो वह भी मुझे अचानक सामने देखकर हतप्रभ थी। उससे ज्यादा मजा तो तब आया जब शशि की सहेली मनजीत ने शशि पर चुटकी मारते हुए पीछे से कहा- कौन सी घुट्टी पिलाती है तू जीजा जी को … जो ये तेरे बिना रह ही नहीं पाते?

शशि तो बेचारी शर्माकर सिर झुकाकर ही रह गई और मेरी सब सालियां मेरा मजाक उड़ाते हुए मुझे घर के अंदर ले गईं। अब घर के अंदर का माहौल ठीक हो चुका था। अगले दिन होने वाले तेरहवीं के संस्कार की तैयारियां चल रही थीं।

मैंने भी जाकर थोड़ा आराम करने के बाद काम में सबका हाथ बंटाना शुरू कर दिया। शाम तक सब अपने-अपने काम से निवृत हो चुके थे।

मैंने मौका देखकर शशि को इशारा भी कर दिया कि आज रात को उसे मेरे साथ कहीं अलग कमरे में सोना है। मेरा बदन उसके बदन के लिए तड़प रहा था।

शशि ने भी मेरे कान में फुसफुसाकर कहा- जानेमन … मैं कितनी बेचैन हूं बता नहीं सकती. मेरे पूरे बदन को तुम्हारी जरूरत है, चाहे कैसे भी करूं मगर आज रात यह बेचैनी जरूर मिटा दूंगी।

उसके प्यास भरे शब्दों से आश्वस्त होकर मैं नहाने चला गया और रात्रि भोज के पश्चात शशि के इशारे का इंतजार करने लगा। मुझे पक्का विश्वास था कि जल्दी या देर से ही सही … मगर शशि कुछ ना कुछ इंतज़ाम जरूर करेगी।

तभी मेरे साले ने आकर कहा- जीजा जी … आपके सोने का इंतजाम पड़ोस वाले चड्ढा जी के घर में किया गया है। चलिए मैं आपको वहां छोड़ आता हूं।

साला सामने खड़ा था और मैं चारों तरफ नजर घुमाकर शशि को ढूंढ रहा था। वो कहीं दिखाई नहीं दे रही थी। मैं मन मसोसकर चुपचाप अपने साले के साथ चड्ढा जी के घर पहुंच गया और बिस्तर पर लेटकर सोने की तैयारी करने लगा।

लेट तो गया किंतु नींद तो मुझसे कोसों दूर थी। मैंने मोबाइल निकालकर शशि को कॉल करने की कोशिश भी की मगर उसके फोन पर घंटी तो बज रही थी लेकिन वह कॉल नहीं उठा रही थी।

अब मुझे झुंझलाहट होने लगी थी। गुस्सा भी सातवें आसमान पर था। मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा था।

रात के करीब 11:00 बज चुके थे और आंखों में नींद का नामोनिशान नहीं था।

बराबर में ही शशि के मायके से सभी लोगों के बातें करने की आवाजें आ रही थीं मगर शशि की आवाज उसमें भी नहीं थी। ना ही शशि मेरा फोन उठा रही थी। मैं समझ नहीं पा रहा था कि यह क्या चल रहा है?

सोच रहा था कि शशि गई तो कहां गई? उसको कम से कम मेरा फोन तो उठाना चाहिए था?

अभी मैं इसी ऊहापोह में था कि किसी ने मेरा दरवाजा खटखटाया। मुझे लगा कि शायद शशि ही होगी।

मैंने उसे सीधे अंदर आने को कहा और तभी ‘मौसा जी, नमस्ते!’ की आवाज के साथ शशि की बड़ी बहन अनीता की पुत्री दिव्या कमरे में दाखिल हुई।

पहले मैं दिव्या के बारे में आपको बता दूं. दिव्या शशि की बड़ी बहन की सबसे बड़ी बेटी थी. दिव्या और शशि की उम्र में सिर्फ 8 साल का अंतर था।

यूं तो शशि दिव्या की मौसी लगती थी लेकिन वो दोनों आपस में पक्की सहेलियां थीं। दिव्या मुझे अपना जीजा ही मानती थी और अक्सर मुझे जीजाजी कहकर भी पुकार लेती थी.

दिव्या एक अति खूबसूरत, दुग्ध वर्ण कामायनी, छरहरी काया वाली महिला थी। फर्क सिर्फ इतना था कि शादी के बाद शशि तो मेरे पास आ गई थी और दिव्या अपने पति के साथ कनाडा चली गई थी।

आज मैंने दिव्या को करीब 5 साल बाद देखा था. अब तो दिव्या पहले से भी ज्यादा निखर गई थी। दिव्या का पति मनोज एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में मैनेजर था जो अब कनाडा शिफ्ट हो चुका था।

दिव्या आधुनिक परिपेक्ष में रहने वाली एक आधुनिक महिला थी। उसे सिर्फ एक ही दुख था कि पिछले 5 साल में उसके घर में संतान नहीं आई थी। इसके अलावा शायद दुनिया का कोई सुख ऐसा नहीं था जो दिव्या की झोली में नहीं था।

अंदर आते ही दिव्या ने अपनी खनकती आवाज में मुझे नमस्ते की और अपने मजाकिया अंदाज में हर बार की तरह मैंने भी उसे ‘आओ स्वीटहार्ट’ कहकर उसका स्वागत किया।

दिव्या मुझे आंख मारते हुए बोली- मौसा जी … मैं अभी आपसे मिलने नहीं आई हूं, अभी तो मैं एक सीक्रेट मिशन पर हूं! मैंने आश्चर्यचकित होते हुए कहा- कैसा मिशन? तो दिव्या ने कहा- आपको बिल्कुल चुप रहना है. आपकी आवाज नहीं आनी चाहिए और बिना कोई भी शोर किए आपको मेरे पीछे चुपचाप चलते जाना है!

‘ओके स्वीटहार्ट’ बोलकर हम भी उस कामायिनी के पीछे चुपचाप हो लिए! कमरे से निकलकर वो मुझे दबे पांव चड्ढा जी की सीढ़ियों से चलाते हुए चड्ढा जी की छत पर ले गई।

चड्ढा जी की छत मेरी ससुराल की छत से मिलती थी। छत पर जाकर दिव्या ने मुझे चड्ढा जी की छत कूदकर मेरी ससुराल की छत पर जाने को कहा।

बिना कोई आवाज निकाले जब मैंने उससे इशारे में सवाल किया तो उसने मुझे प्यार से धक्का देते हुए बहुत हल्की आवाज में कहा- आप जाओ, बस!

उसका इशारा पाकर मैं चुपचाप दोनों छतों के बीच की दीवार को फांदकर अपनी ससुराल की छत पर चला गया। मेरी ससुराल की छत पर एक छोटा सा कमरा बना हुआ था जिसमें अक्सर घर का पुराना सामान रखा जाता था।

मैंने देखा कि उस कमरे के अंदर की लाइट जल रही थी। मैं दबे पांव उस कमरे की तरफ गया, दरवाजा खुला था। जैसे ही मैं कमरे के अंदर दाखिल हुआ मैं तो देखता ही रह गया।

मेरी शशि बिल्कुल अद्भुत … अति सुंदर … रूपवान अप्सरा सी लग रही थी। मेरा सारा गुस्सा काफ़ूर हो चुका था। मेरे अंदर जाते ही शशि ने मुझे गले से लगा लिया. मैंने भी अपनी बांहें पसारकर उसे अपनी बांहों में भर लिया।

2 मिनट तक उसे अपनी बांहों में रखने के बाद मैंने उससे सवाल किया- 2 घंटे से तुम्हें ढूंढ रहा हूं … तुम थी कहां? तो शशि ने बताया- बुद्धू, तुम्हारे लिए ही तैयार हो रही थी। अब इस तरह के माहौल में अपने घर में तो तैयार नहीं हो सकती थी न? बड़ी मुश्किल से दिव्या को लेकर उसकी एक सहेली के घर गई थी। वहीं जाकर तुम्हारे लिए पूरी तरह से तैयार होकर दिव्या के साथ ही छुपते छुपाते यहां तक आई हूं। घर में किसी को नहीं पता कि मैं कहां हूं। इसीलिए मोबाइल भी साइलेंट कर रखा था, सिर्फ दिव्या ही हमारी राजदार है।

मैंने मन ही मन दिव्या को धन्यवाद दिया और अपने होंठों को शशि के होंठों पर रख दिया। शशि के होंठ किसी अंगारे की तरह तप रहे थे। ये तो जैसे इसी प्रतीक्षा में थे कि कब मेरे होंठ उसको छुएं।

शशि मेरे होंठों पर हावी होकर बहुत तेजी से मेरे होंठ चूसने लगी. अब समझ में आ रहा था कि जितना मैं बेचैन था उतनी ही बेचैन मेरे लिए मेरी शशि भी थी।

यह पति पत्नी का प्यार ही कुछ ऐसा होता है। गैरों से तो इंसान अपना प्यार जता भी देता है लेकिन पति पत्नी जितना प्यार एक दूसरे को करते हैं वह जता ही नहीं पाते।

आज शशि की बेचैनी देखकर मेरी पीड़ा खत्म हो गई थी। मैंने कसकर अपनी बांहों में शशि को दबा लिया। आह्ह … की सिसकारी के साथ शशि ने मेरे होंठों को छोड़ दिया।

मैं पागलों की तरह शशि के पूरे चेहरे को चूमने लगा। शशि की आंख … नाक … होंठ … गला … ये सभी अंग मेरे प्रिय रहे हैं।

शशि ने मेरी पीठ पर हाथ फिराना शुरू कर दिया।

अब मैंने भी चूमते चूमते शशि की हरे रंग की कुर्ती धीरे धीरे ऊपर सरकानी शुरू कर दी। शशि तो जैसे इसी इंतजार में थी। थोड़ी सी कुर्ती ऊपर सरकते ही उसे निकालने के लिए शशि ने अपने दोनों हाथ ऊपर कर दिये।

मैंने बहुत प्यार से शशि की कुर्ती को उसके बदन से अलग कर दिया। अब शशि का गोरा बदन मेरे सामने सिर्फ एक ब्रा में था। मैं चारों तरफ देखते हुए कोई बिस्तर खोजने लगा जहां शशि को लिटा सकूँ।

शायद शशि मेरी बात समझ गई थी। वो तुरंत बोली- साहब, यहां बिस्तर नहीं मिलेगा. नीचे से चादर लेकर आई हूं. उसे यहीं फर्श पर बिछा लो। उसी से आज काम चलाना पड़ेगा।

मैंने और शशि मिलकर उस चादर को कमरे के फर्श पर बिछा लिया और मैंने शशि को वहीं चादर पर लिटा लिया। शशि का गोरा गदराया हुआ कामुक बदन सदा से मेरी कमजोरी रहा था।

मैं तो पागलों की तरह शशि का बदन चाटने लगा। मेरी इस हरकत को देखकर शशि हंसने लगी। मैं अचानक रुका और शशि से पूछा- हंस क्यों रही हो?

वो बोली- तुम्हारी पागलों वाली हरकत पर हंस रही हूँ! अरे बाबा, अब मैं यही हूं तुम्हारे पास! कोई जल्दी नहीं है, हम आराम से एक दूसरे का साथ इंजॉय कर सकते हैं अब!

बोलकर वो अपने हाथ पीछे ले जाकर अपनी ब्रा का हुक खोलने लगी. मैंने उसकी मदद करते हुए उसकी ब्रा का हुक खोला और उसके दोनों दुग्ध कलश को आजाद कर दिया।

टेनिस बॉल की भांति दोनों दूध कूद कर मेरे सामने बाहर आ गए। शशि की ये चूचियां मेरे लिए ईश्वर के किसी प्रसाद से कम नहीं थीं। शादी के बाद आज तक मैंने इनसे ज्यादा शायद किसी को प्यार नहीं किया था।

आज तेरह दिन बाद यह दोनों मोटी मोटी पहाड़ियां मुझे निमंत्रण सा देती प्रतीत हो रही थीं। मगर अब मुझे भरोसा था कि शशि मेरी बांहों में है तो कोई जल्दी करने की जरूरत नहीं है।

मैं बहुत प्यार से हल्के हल्के अपनी जीभ से शशि के बाएं चूचक को सहलाने लगा और एक हाथ से हल्के हल्के शशि के दाएं चूचक को मसलने लगा। अब तो शशि को भी पूरा आनंद आने लगा।

अब शशि की हंसी सिसकारियों में बदल गई- ह्म्म … उफ़्फ़ … आहह … की मादक आवाज़ मुझे पागल कर रही थी और मैं अपने दोनों हाथों से उसके इस अधनंगे बदन का आनंद ले रहा था।

हालांकि मैं शुरू से ही शशि के नंगे बदन का दीवाना रहा हूं लेकिन आज तेरह दिन बाद उसकी ये चूचियां मुझे ज्यादा ही उत्तेजना दे रही थीं। मन तो हो रहा था कि बस इनके साथ ही खेलता जाऊं।

मैंने शशि के बदन को चाटते चाटते उसकी पजामी का नाड़ा भी खोल दिया। शशि तो जैसे इसी इंतजार में थी। नाड़ा खुलते ही उसने अपनी पजामी और उसके साथ ही अपनी पैंटी को भी अपनी टांगों से नीचे की तरफ सरका दिया।

शशि का गोरा बदन, शशि की केले के तने जैसी चिकनी जांघें और उसके बीच प्यारी सी चमचमाती हुई मूत्रदायिनी योनि मुझे पागल बना रही थी।

पजामी और पैंटी अपने बदन से अलग करते ही शशि का बायां हाथ सीधे मेरे बरमूडा पर गया। नाग की तरह फुँकार रहे मेरे लिंग को शशि ने अपने हाथ पाश में जकड़ लिया।

शशि के 36 साइज के मोटे भरे हुए दुग्ध कलश और आह्ह … की एक मीठी सिसकारी के साथ मैं शशि को और करीब से चिपक गया।

मेरी कामुक पत्नी ने अपना हाथ ऊपर करके मेरी टी-शर्ट और बनियान दोनों ही पकड़ कर मेरे बदन से हटा दिये। अब मैं सिर्फ एक बरमूडा में शशि के ऊपर था। उसने अपना पैर ऊपर करके, मेरे बरमूडा के इलास्टिक में फंसाकर उसे नीचे सरका दिया।

मैंने भी शशि की मदद करते हुए पूरा बरमूडा ही निकाल फेंका। अब शशि और मैं पूरी तरह से नग्नावस्था में एक दूसरे के साथ गुत्थम-गुत्था थे। मैंने वहीं फर्श पर शशि को उल्टा लेटा दिया और पीछे से शशि के बदन के ऊपर पूरा लेट गया।

लेटकर मैं अपने बदन से शशि के बदन की मालिश करने लगा। मेरा यह तरीका शशि को सदा से ही पसंद आया है। मेरा लिंग पूर्णावस्था में शशि के दोनों चूतड़ों के बीच की दरार पर रगड़ मार रहा था।

मैं पूरा शरीर ऊपर नीचे करके शशि के गोरे चिकने और मुलायम बदन की मालिश कर रहा था। शशि की मादक चीत्कार अब उस छोटे से कमरे में गूंज रही थी। तभी शशि ने मेरे कान में फुसफुसाया- जल्दी करो … कभी कोई छत पर ना आ जाए!

मैंने अपनी घड़ी में समय देखा तो रात के 12:00 बज चुके थे। मैंने भी देर न करते हुए शशि के ऊपर से हटकर उसी अवस्था में शशि को घुटनों के बल मोड़ दिया और शशि को डॉगी स्टाइल में बिठाकर पीछे की तरफ से नीचे लेट गया।

अब शशि के स्वर्गद्वार (योनि) का मुंह बिल्कुल मेरे मुंह के ऊपर था। शशि की योनि से निकलने वाली गर्म भांप सीधे मेरे मुंह पर आ रही थी। उसी से अहसास हो रहा था कि इस समय शशि के अंदर कितनी काम ज्वाला धधक रही है!

पाठकों से अनुरोध है कि पत्नी की चुदाई कहानी के विषय में अपने विचार अवश्य ही मुझतक पहुंचाकर उत्साहवर्धन करें ताकि निकट भविष्य में आपके लिए बेहतरीन कहानियों की रचना करने में मदद मिले। मेरा ईमेल आईडी है [email protected]

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