जिस्मानी रिश्तों की चाह -8

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आपी हम दोनों को डांट रही थी वो बोलीं- तुम दोनों ही गन्दगी में धंसे हुए नापाक इंसान हो। अब आगे..

अन्दर से फरहान की रोती हुई आवाज़ आई- आपी प्लीज़ मुझे माफ़ कर दें.. आपी प्लीज़ अम्मी-अब्बू को नहीं बताना.. कह कर उसने बाकायदा रोना शुरू कर दिया।

रूही आपी ने मेरी तरफ देखा और कहा- इसे चुप करवाओ और शरम करो कुछ.. यह कह कर वो दोबारा कंप्यूटर टेबल के तरफ चली गईं और वहाँ कुछ करने के बाद कमरे से बाहर चली गईं।

मैंने भाग कर दरवाज़ा बन्द किया और बाथरूम के पास आकर फरहान से कहा- आपी चली गई हैं.. दरवाज़ा खोल और बाहर आ जा। यह कह कर मैं बेड पर जाकर लेट गया और आपी के बदलते रवैये के बारे में सोचने लगा।

कुछ देर बाद फरहान बाहर आया और मेरे पास आकर लेट गया और डरे सहमे लहजे में बोला- भाईजान अगर आपी ने अम्मी-अब्बू को बता दिया तो?? मेरे पास इस बात का कोई जवाब नहीं था.. लेकिन मैंने फरहान से कह दिया- यार तुम परेशान नहीं होओ.. कुछ नहीं होगा.. आपी किसी को नहीं बताएँगी!

मैंने फरहान को तो समझा-बुझाकर चुप करवा दिया.. लेकिन हक़ीक़त ये ही थी कि मैं खुद भी डरा हुआ था। डर के साथ-साथ ही मुझे तश्वीश थी। आपी के बदलते रवैए के बारे में ये सब सोचते-सोचते ही मुझे ख़याल आया कि मैं कंप्यूटर में से अपना पॉर्न मूवीज का फोल्डर तो डिलीट कर दूँ ताकि आपी अब्बू को बता भी दें.. तो कोई ऐसा सबूत तो ना हो।

मैंने फरहान की तरफ देखा तो वो सो चुका था। मैं उठा और कंप्यूटर टेबल पर आकर कंप्यूटर ऑन करने लगा.. तो मैंने देखा कि उसकी पावर कॉर्ड गायब थी। कुछ देर तो मुझे समझ नहीं आया लेकिन फिर याद आया कि आपी कमरे से जाने से पहले कंप्यूटर के पास गई थीं, यक़ीनन वो ही पावर कॉर्ड निकाल कर ले गई होंगी।

लेकिन उन्होंने ऐसा क्यूँ किया? यह ही सोचते हुए मैं अपने बिस्तर पर आकर लेट गया और मेरे जेहन में यही बात आई कि आपी यक़ीनन अम्मी या अब्बू को बता देंगी और इसी लिए वो पावर कॉर्ड निकाल कर ले गई हैं ताकि हम सबूत ना मिटा सकें।

यह सोच जेहन में आते ही मुझे ख़ौफ़ की एक लहर ने घेर लिया और कुछ देर बाद ही जब नींद भी अपना रंग जमाने लगी.. तो मैंने अपनी फ़ितरत की मुताबिक़ अपने जेहन को समझा दिया कि जो भी होगा.. देखा जाएगा। ज्यादा से ज्यादा अम्मी-अब्बू घर से निकाल देंगे ना.. तो मैं कुछ भी कर लूँगा.. अब मैं खुद भी कमा सकता हूँ.. ऐसी बागी सोच वैसे भी उस उम्र का ख़ास ख्याल होता है.. जिसे उम्र में मैं उस वक़्त था।

बस ऐसी ही सोच में उलझा-उलझा मैं नींद के आगोश में चला गया।

अगली सुबह जब हमारी आँख खुली.. तो आँख खुलते ही जेहन में पहला सवाल ये ही था कि अब क्या होगा??

मैं कॉलेज के लिए तैयार होकर बाहर निकला तो अम्मी टेबल पर नाश्ता लगा रही थीं.. जबकि डेली हमें नाश्ता रूही आपी बना के देती थीं और हमारे निकलने के बाद वो नाश्ता करके यूनिवर्सिटी जाती थीं।

मैं टेबल पर बैठा ही था कि फरहान भी सीढ़ियाँ उतर कर नीचे आता दिखाई दिया। उसी वक़्त रूही आपी और हनी के कमरे का भी दरवाजा खुला और हनी स्कूल यूनिफॉर्म पहने बाहर आती दिखाई दी।

इसी पल में मैंने दरवाज़े में से अन्दर देख लिया था कि रूही आपी अभी तक बिस्तर पर ही थीं।

फरहान टेबल पर आकर बैठा तो उसका चेहरा ऐसा हो रहा था.. जैसे बिल्ली को सामने देख कर चूहे का हो जाता है। मैंने उससे कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि किचन से अम्मी और हनी नाश्ता लेकर बाहर आती नज़र आ गईं।

अम्मी हनी से कह रही थीं- सच-सच बताओ मुझे.. कल तुम लोगों ने बाहर से कोई उल्टी-सीधी चीज़ मंगा कर खाई थी ना.. इसी लिए रूही का पेट खराब है और वो यूनिवर्सिटी भी नहीं जा रही है।

हनी मुसलसल इनकार कर रही थी.. खैर उनकी इस बहस से मुझे रूही आपी के ना उठने की वजह तो मालूम हो ही गई थी और फरहान के चेहरे पर भी ये सुन कर सकून छा गया था कि आपी अभी अपने कमरे में ही सो रही हैं।

मैंने भी शुक्रिया अदा किया कि अच्छा ही हुआ कि आपी से सामना नहीं हुआ। मैं बा ज़ाहिर तो पुरसुकून था.. लेकिन हक़ीक़तन खौफजदा तो मैं भी था ही।

हम घर से स्टॉप तक साथ ही जाते थे और फिर अपनी-अपनी बस में बैठ जाते थे.. आज भी हम तीनों एक साथ निकले। फरहान और हनी को उनके स्कूलों की बसों में बैठाने के बाद मैं भी अपने कॉलेज की तरफ चल दिया।

लेकिन मेरा जेहन बहुत उलझा हुआ था, अजीब ना समझ आने वाली कैफियत थी, ऐसा लग रहा था जैसे कोई बात है.. जो जेहन में कहीं अटक गई है.. लेकिन क्लियर नहीं हो रही है। इसी उलझन में मैं कॉलेज से भी जल्दी ही निकल आया।

घर में दाखिल होते हुए भी मैंने ये एहतियात रखी कि आपी सामने ना हों क्योंकि मैं रूही आपी का सामना नहीं करना चाहता था।

अन्दर दाखिल होने पर मैंने चारों तरफ नज़र दौड़ाई तो मुझे कोई भी नज़र नहीं आया.. जबकि मेरे हिसाब से अम्मी के साथ-साथ रूही आपी को भी घर में ही मौजूद होना चाहिए था।

जब मुझे कोई नज़र ना आया.. तो मैंने भी सिर को झटका और पैर अपने कमरे में जाने के लिए सीढ़ियों की तरफ बढ़ा दिए।

मैं सीढ़ियों से ज़रा दूर ही था कि मैंने अम्मी को उनके कमरे से निकल कर सीढ़ियों की तरफ जाते देखा। उसी वक़्त उनकी नज़र भी मुझ पर पड़ी.. तो वो फ़ौरन मेरी तरफ आईं और परेशान हो कर पूछने लगीं- क्या हुआ सगीर खैरियत तो है ना बेटा.. इतनी जल्दी वापस आ गए कॉलेज से?

तो मैंने सिर दर्द या पेट दर्द जैसे बहाने बनाने से ऐतराज़ किया कि उस पर अम्मी का लेक्चर सुनना पड़ जाता, मैंने कह दिया कि आज टीचर्स ने किसी बात पर हड़ताल कर रखी है।

अम्मी ने अपनी बगल में दबाए अपने बुर्क़े को खोला और बुर्क़ा पहनते-पहनते टीचर्स को कोसने लगी, फिर नक़ाब बाँधते हुए उन्होंने मुझे कहा- मैं तुम्हारी सलमा खाला के घर जा रही हूँ.. उसने बुलाया है.. कोई काम है उसे.. मैं ये ही रूही को बताने ऊपर जा रही थी कि दरवाज़ा बंद कर ले। कब से ऊपर जाकर बैठी है.. उसे पता भी है कि मुझसे सीढ़ियाँ नहीं चढ़ी जाती हैं.. लेकिन तुम लोगों को मेरी परवाह कब है.. सब ऐसे ही हो।’

उन्होंने ये कहा और मुझे दरवाज़ा बंद करने का इशारा करते हुए बाहर निकल गईं। मैंने डोर लॉक किया और सना आपी के बारे में सोचते हुए ऊपर अपने कमरे की तरफ चल पड़ा। ऊपर या तो हमारा रूम है.. या स्टडीरूम है।

मैं पहले स्टडीरूम की तरफ गया कि सना आपी को देख लूँ.. लेकिन स्टडी में सना आपी को ना पाकर मुझे बहुत हैरत हुई। स्टडी रूम में ना होने का मतलब ये ही था कि वो हमारे कमरे में हैं।

मेरी सिक्स सेंस्थ ने मुझे आगाह कर दिया कि कुछ गड़बड़ है.. मैं दबे पाँव चलता हुआ अपने कमरे के दरवाज़े पर आया और हल्का सा दबाव देकर देखा। लेकिन दरवाज़ा अन्दर से लॉक था। मैं वापस स्टडीरूम में आया और खिड़की के बाहर बने शेड पर उतर गया। शेड पर चलते-चलते मैं अपने कमरे की खिड़की तक पहुँचा और कमरे की तीसरी खिड़की पर हल्का सा दबाव दिया तो वो खुलती चली गई।

हम इस एक खिड़की का लॉक हमेशा खुला रखते थे कि कभी इसकी कोई जरूरत पड़ ही सकती है और आज इस बात ने फ़ायदा पहुँचा ही दिया था।

वैसे भी हमारा ये कमरा ऊपर वाली मंजिल पर था.. तो कोई ऐसा ख़तरा भी नहीं था कि कोई चोर डाकू आ जाएं। हमारे घर के चारों तरफ लॉन था उसके बाद दीवारें बनी हुई थीं.. वो भी 10 फीट ऊँची थीं और उन पर काँच लगे थे।

बरहराल.. मैंने आहिस्तगी से सिर उठा कर खिड़की से अन्दर झाँका। इस खिड़की से कंप्यूटर टेबल इस एंगल पर थी कि यहाँ से कंप्यूटर स्क्रीन भी नज़र आती थी और कुर्सी पर बैठे हो बंदे का लेफ्ट साइड पोज़ भी उसकी कमर के कुछ हिस्से के साथ-साथ देखा जा सकता था, ज़रा तिरछा सा एंगल बनता था।

उम्मीद है कि मैंने इस पोजीशन का आपके जेहन में मुकम्मल खाका बना दिया होगा।

यहाँ जरूरी है कि मैं अपनी आपी के जिस्म के बारे कुछ डीटेल्स बयान कर दूँ ताकि कहानी पढ़ते वक़्त आप लोगों के ज़हन में मेरी सग़ी बहन की तस्वीर बनी हुई हो।

मेरी आपी मुझसे 4 साल बड़ी हैं.. उनका रंग गोरा नहीं.. बल्कि गुलाबी है.. जिल्द बिल्कुल शफ़फ़ है। उनकी लम्बाई तकरीबन 5 फीट 4 इंच है.. उनका जिस्म भरा हुआ था.. पेट बिल्कुल नहीं था।

उनकी टाँगें काफ़ी लंबी-लंबी और भारी-भारी कदली सी जाँघें हैं और उनके सीने के दोनों उभार काफ़ी बड़े और वैलशेप्ड हैं.. जो शायद खानदानी जींस की वजह से हैं।

मेरे पूरे खानदान में ही सब औरतों के मम्मे बड़े-बड़े ही हैं। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

जब मेरी नज़र अन्दर पड़ी.. तो मेरा मुँह हैरत से खुला का खुला रह गया और मेरा लण्ड एक ही झटके लेकर तन गया। सामने मेरी आपी कुर्सी पर बैठी थीं।

इस कहानी में बहुत ही रूमानियत से भरे हुए वाकियात हैं.. आपसे गुजारिश है कि अपने ख्यालात कहानी के आखिर में अवश्य लिखें। कहानी जारी रहेगी। [email protected]

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