मुम्बई से दुबई- कामुक अन्तर्वासना-7

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पिछले भाग में आपने पढ़ा –

मेरे मन में कई सवाल थे जो मैं उससे जानना चाहता था। पर अब इतना समय नहीं था। मेरी ट्रेन का भी तो समय होने वाला था।

काफी दिनों से भूखे शेर को दुबारा खून लग गया था। देखो क्या होता है? कई महीनों से प्यासी मधु से मुलाकात कैसी रहेगी?

मैंने जल्दी जल्दी अपनी पैकिंग की और स्टेशन पहुंच गया। स्टेशन पर ट्रेन लग चुकी थी, मैंने अपना सामान और चीज़ें रखी और आराम से अपनी सीट पर कम्फ़र्टेबल हो गया।

जल्दी ही ट्रेन चल पड़ी पर मैं चुदाई के नशे में खाना नहीं खा पाया था इसलिए अपने कम्पार्टमेंट से पैंट्री तक में जा रहा था।

पैंट्री में अभी खाने को कुछ नहीं आया था। वहाँ एक स्टाफ ने बताया कि आप उस केबिन में देख लो अगर उनके पास कुछ होगा तो। केबिन का दरवाज़ा खोला तो एक मोटा सा आदमी बनियान और लुंगी में बैठा पत्ते खेल रहा था। उसके आस पास एक दो लोग और थे पर शायद वो उसके ही कर्मचारी थे और उसके पास एक शराब का पेग भी बना हुआ था। उसका पेग देखकर साफ़ पता चल रहा था की हो न हो, यह रम है या कोई सस्ती सी व्हिस्की।

मैं- कुछ खाने को मिलेगा। मोटू- क्या साब अवि गाडी चला तब खाने का था न। मैं- अरे जल्दी में नहीं खा पाया। तुम्हारे पास है क्या कुछ? मोटू- आप किधर बैठीला है। अपुन उधरिच आके देंगा। अवि कुछ वि नक्को है।

साला मद्रासी मुंबइया बोलने की कोशिश में भाषा की ऐसी वाट लगाया की हसी निकल पड़ी। मैं- वैसे एक बात बोलूँ? मोटू- हाँ। बोलने का। मैं- ये शराब पीना, गैर कानूनी है और सेहत के लिए नुक्सान दयाक भी।

मोटू मुझे घूर रहा था, उसके चेहरे से लग रहा था कि अगर मौका लगेगा कुछ खाने को होगा तो भी नहीं देगा तेरे को। मैं थोड़ा रूककर- अकेले अकेले… फिर मैं हंसने लगा।

मोटू की ट्यूब लाइट थोड़ी देर में जली फिर हंसने लगा, बोला- अरे क्या साब!! आप लेंगे क्या?? मैं- ये तो नहीं, ये तो आप पियो कुछ और हो तो देकर जाना। मैं बी-3 में हूँ। सीट शायद 56 होगा। मोटू- ओके, मैं अगले स्टॉप पे खाना आएगा उधर से लाता आपके लिए!

मैं अपनी सीट पर वापस आ गया था। थोड़ी ही देर में एक लड़की आई और उसने मुझसे बिना पूछे अपना सामान मेरी सीट पर रखा और बैठ गई।

मैंने लगभग पांच मिनट तक इंतज़ार किया और उसे घूरता रहा कि वो कुछ बोलेगी पर वो मुझसे नजर बचा कर चुपचाप बैठी रही। मैंने ही पहल की और बोला- मैडम, यह मेरी सीट है।

मैं- आप की सीट कौन सी है? लड़की- यही है। मैं- अपना टिकट दिखाओ। लड़की- तुम क्या कोई टीटीई हो।

मुझे बड़ा गुस्सा आया एक तो साली बिना पूछे बैठ गई, ऊपर से बात करने का ढंग नहीं है। मैं- उठ यहाँ से, उठ जा!

लड़की- ऐसे कैसे बात कर रहे हो?

मैं- अभी तक अच्छे से कर रहा था, तेरे सुर ही नहीं मिल रहे थे, चल अब उठ जा! बड़बड़ाते हुए- माँ की लौड़ी

लड़की- मुझे ये सीट टीटीई ने दी है। मैं- तो जा टीटीई को बुला कर ला।

लड़की- मैं क्यू जाऊँ, तुम जाओ तुम्हें प्रॉब्लम है। मैं- खोपड़ी मत ख़राब कर। एक तो मेरी सीट पर बैठ गई है ऊपर से बातें ऐसी जैसे तेरे बाप की ट्रेन हो। लड़की- तो क्या तुम्हारी अम्मा की है?

लड़का होता तो अब तक मेरा हाथ उठ गया होता, पर लड़की थी इसलिए शांत था।

इतने में AC कम्पार्टमेंट में काला कोट घुसता हुआ दिखा। मैं- अरे! सुनिए… टीटीई को आवाज़ लगाकर बुलाते हुए! टीटीई- हाँ जी क्या हुआ?

मैं- अरे ये सीट तो मेरी है। आपने इसे दे दी क्या? टीटीई- अरे जब मैं आया तो आप यहाँ नहीं थे। इसलिए मैंने… आप कहाँ थे? मैं- अरे यह क्या बात हुई? मैं पैंट्री तक गया था।

टीटीई- अपना टिकट दिखाओ। मैंने अपना टिकट बढ़ाया। फिर टीटीई ने अपने रजिस्टर में कुछ लिखा, मेरी शक्ल देखी और लड़की से बोला- चलो मैं आपको दूसरी सीट देता हूँ। वो सीट इन्ही भाई साहब की है।

मेरी तरफ देखकर- सॉरी सर! मैं- इट्स ओके।

लड़की मुझे घूरती हुई जैसे मैंने उसकी जमीन पर कब्ज़ा कर लिया हो वहाँ से चली गई।

मैं थोड़ी बहुत देर मैगज़ीन पलटता रहा फिर भूख मारने के उद्देश से एक सिगरेट पीने गेट पर चला गया।

गेट पर खड़ा सिगरेट पी ही रहा था कि वो लड़की मुझे फिर दिखी, वो मुझे ऐसे देख रही थी कि जैसे मुझे खा जाएगी।

उसके पीछे पीछे टीटीई भी वहाँ आ गया। टीटीई- अरे यह गेट बंद कीजिये… और सिगरेट पीना मना है। मैं कश लगाकर- बस फेंक ही रहा था।

सिगरेट फेंककर गेट बंद किये और जैसे ही मुड़ा टीटीई मेरे काफी करीब आकर खड़ा हो गया।

लड़की टीटीई की तरफ देखकर- देखिये न शायद आपको कोई सीट मिल जाए। मैं जनरल में सफर नहीं कर सकती! प्लीज!

टीटीई- मैडम, मैं क्या करूँ? आप देख तो रही हो, सब फ़ुल है। (धीरे से) भाई साहब से ही बात करके देख लो शायद अपनी सीट पर बैठने की परमिशन दे दे।

लड़की मुझे ऐसे देख रही थी कि काम पड़े तो गधे को भी बाप बनाना पड़ता है।

मैं अपनी सीट की तरफ चलना शुरू कर चुका था, तभी लड़की- हेलो!!! क्या आप मुझे अपनी सीट पर बैठने दे सकते हैं? मैं- नहीं।

लड़की- प्लीज न, बीती बात भूल जाइये। इतने कठोर भी न बनिए, मुझे सीट टीटीई ने दी थी इसलिए मुझे लगा कि आप ही गलत बैठे हो। मैं- ठीक है। कहा तक जाना है तुम्हे। लड़की सामान उठाकर- मैं झाँसी जा रही हूँ और आप?

लड़की अब अपनी औकात में आ गई थी या गधे को बाप बना रही थी समझ तो नहीं आ रहा था पर मैंने भलमानसता के नाते उसके हाथ का बैग ले लिया और अपनी सीट की तरफ चल दिए।

मैं- मुझे तो विदिशा जाना है।

मेरी नीचे वाली साइड वाली सीट थी, उसके सामान को बर्थ के नीचे रखकर हम दोनों एक एक साइड की दीवार से टिक्कर बैठ गए। हम दोनों के मुंह आमने सामने थे और पैर मोड़ कर बैठे थे फिर भी पैर एक दूसरे से टकरा ही रहे थे।

अब तक उसने अपने आप को इस सीट पर कम्फ़र्टेबल कर लिया था। उसने अपना हेड फ़ोन लगाकर शायद गाने सुन रही थी। अपने बैग से कोई नावेल निकाल कर वो भी साथ साथ पढ़ रही थी। हमारे बीच कोई ज्यादा बात चीत नहीं हुई थी।

गाड़ी अगले स्टेशन पर रुकी, रुकते ही एक अजीब सा कौतुहल होने लगा, सभी तरफ अफरा तफरी थी। फिर धीरे धीरे सब आवाज़ें खत्म हुई और लोग अपने बिस्तर ऊपर नीचे लगाने लगे। ख़ास तौर पर बीच वाली बर्थ पर।

तभी मेरी सीट पर एक पैंट्री का बन्दा आया और बोला ‘सार आपका काना…’ कहने का मतलब था ‘सर आपका खाना…’

खाने के साथ उसने मुझे एक पेप्सी की बोतल भी दी। मैंने कहा- कोल्ड ड्रिंक नहीं चाहिए।

उसने बताया कि वो (उसका नाम तो बोला था पर मुझे समझ नहीं आया) मोटू साब ने भेजी है।इसका पैसा नहीं चार्ज किया है।

तभी दिमाग में आया कि ट्रेन में पीने को आरामदायक बनाने के लिए पेप्सी में शराब मिलाकर ही भेजी है। मैंने कहा- अन्ना को थैंक्स बोलना।

मैंने सोचा अब पहले पेप्सी खत्म की जाये फिर खाना खाएंगे।

तभी लड़की- बड़ा गला सूख रहा है। क्या मुझे एक सिप मिल सकती है पेप्सी की? मैं हँसते हुए- नहीं, यह तुम्हारे मतलब की पेप्सी नहीं है।

लड़की- अरे नहीं देनी तो कोई बात नहीं। पर ऐसी कौन सी पेप्सी होती है जो सिर्फ तुम पी सकते हो और मैं नहीं? मैं थोड़ा उसके करीब आकर- इसमें थोड़ी दवाई मिली हुई है।

लड़की- ओह्ह अच्छा, ये जो खाने के साथ पानी का ग्लास है उसमें से पी लूँ? मैं- हाँ ठीक है, मैं अभी आता हूँ।

मैं बाहर गेट पर खड़ा सिगरेट के साथ अपनी व्हिस्की मिश्रित पेप्सी और सिगरेट का मजा लेने लगा। पेप्सी में व्हिस्की की मात्रा इतनी ज्यादा थी कि लगभग हर घूंट पर कुछ खाने की ज़रूरत थी पर खाने को तो कुछ था ही नहीं मेरे पास।

और इधर जब से मैंने उस लड़की के करीब जाकर उसे बोला था उसका भीना भीना परफ्यूम की खुशबू ने मुझे मदहोश बना दिया था। मुझसे पूरी पेप्सी तो खत्म ही नहीं हुई आखिर के एक दो घूंट तो मैंने ढक्कन बंद करके फेंक ही दिए।

मैं लौटकर अपनी सीट पर आकर बैठ गया।

अब मेरा सर घूमना शुरू हो गया था। एक तो बहुत तगड़ा वाला पेग था ऊपर से व्हिस्की भी कोई बहुत अच्छी तो होगी नहीं। इसलिए शायद हिट कर रही थी। और सबसे बड़ी बात की खाली पेट बिना चकने के दारु पी ली है तो असर ज्यादा ही हो रहा होगा।

इसलिए मैंने सबसे पहले खाने की प्लेट खोली और खाना खाया। मैंने देखा की वो लड़की मुझे खाना खाते समय घूर कर देख रही थी।

मैं- अरे मैं तो पूछना ही भूल गया, आप खाएंगी? लड़की- नहीं आप खाओ, आपको अभी ज़रूरत भी है और शायद भूख भी, मेरा तो पेट भरा हुआ है। मैं- पक्का?

लड़की- पक्का… और आप थोड़ा धीरे बोलो, आप बहुत तेज़ बोल रहे हो। मैं धीरे से- ओह्ह अच्छा, सॉरी!

लगता है मैं नशे में जोर से बोल रहा होऊँगा।

मैंने खाना खाकर प्लेट बाहर डस्टबिन में डाला हाथ धोए और सिगरेट पीकर वापस अपनी सीट पर आ गया।

लड़की- आप सिगरेट कुछ ज्यादा नहीं पीते हो? मैं- अरे सफर में ज्यादा हो ही जाती है। पहले भूख मारने के लिए पिया। फिर दारु के साथ तो बनती है। और फिर खाना खाकर तलब मचती ही है। क्यूँ बहुत स्मेल आ रहा है क्या ?? तो मैं कोई माउथ फ्रेशनर खा लेता हूँ।

लड़की- नहीं नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। पर हाँ स्मेल तो आ रही है पर कोई बात नहीं मुझे उसकी स्मेल इतनी बुरी भी नहीं लगती। मेरे पापा भी पीते है न इसलिए मुझे इस स्मेल की आदत सी है।

हमारी बातों को सिलसिला जारी हो चुका था, उसने अपने बारे में बहुत कुछ बताया जैसे कहाँ की रहने वाली है, क्या करती है, कहाँ जा रही है, क्यूँ जा रही है।

मैंने भी अपने बारे में जो जो अच्छा था सब बताया। बस न उसने मुझे अपना नाम बताया और मैं भी अपना नाम बताना भूल ही गया था।

रात के करीब साढ़े ग्यारह बज चुके थे, नशे में था ही और थका भी हुआ था। आप तो जानते ही हैं कि दिन में कितनी मेहनत की थी मैंने। तो मुझे नींद आरही थी।

मैं- मैं अपने पैर सीधे कर लेता हूँ तुम थोड़ा सीधा बैठ जाओ। लड़की- हाँ!! आप पैर सीधे कर लो।

मेरी टाँगें सीट की दूसरी दीवार को छू रही थी। मेरी टांगों की तरफ वो लड़की थी। लड़की के इतने करीब मेरा लंड था, जिसका अभी तक तो कोई मूड नहीं हुआ था पर अब धीरे धीरे नशे की हालत में वो लड़की अच्छी दिखने लगी थी।

मैं- तुम चाहो तो तुम भी लेट जाओ, आखिर कब तक जागती रहोगी। लड़की- नहीं, मैं ऐसे ही ठीक हूँ। मैं- ठीक है, तुम्हारी इच्छा।

मैं थोड़ी देर तो सीधा लेटा रहा पर फिर मुझे करवट लेना था क्योंकि ऐसे सीधे लेटे हुए नींद नहीं आ रही थी। तो मैंने करवट लेकर उसकी एक टांग को अपनी टांग के नीचे दबा लिया। लड़की के पैरों पर मेरे अध खड़े लंड ने अंदर से दस्तक दे दी थी।

तभी लड़की- हेलो!! सुनिए, मैं भी कमर सीधी कर लेती हूँ। मुझे भी थोड़ी जगह दे दो। मैं उठकर बैठते हुए- देखो, ऐसे तो एक साथ दो लोग इसपर लेट नहीं सकते, और तकिया भी एक ही है। तुम चाहो तो मेरी तरफ ही मुंह कर लो और मेरी जैसी ही करवट तो हम दोनों आराम से लेट पाएंगे।

लड़की- ठीक तो नहीं है पर कोई चारा भी नहीं है। मैं बहुत थकी हुई हूँ और थोड़ी देर कमर तो सीधी करनी ही पड़ेगी।

हम दोनों अल्टा पलटी होकर चादर वगैरह अच्छे से बिछा कर कम्बल ओढ़ कर लेट गए। तकिया बहुत बड़ा तो नहीं था इसलिए मैंने उसके सर को अपने बाजुओं पर रखवा दिया था, अब हम दोनों बिल्कुल चिपके हुए थे। उसके परफ्यूम की खुशबू अब और भी बेहतर तरह से मुझे मदहोश बना रही थी, मेरे लंड ने अब सलामी देना शुरू कर दिया था।

धीरे धीरे वो अकड़ कर तनने को तैयार था। मेरा लंड कपड़ों के ऊपर से ही लड़की के पिछवाड़े में अपनी मौजूदगी का प्रमाण दे रहा था।

मैं- क्यों ठीक है न, अब अच्छा लग रहा है न? लड़की- हाँ ठीक है, बैठे बैठे कमर टूट गई थी।

उसने बिल्कुल महसूस नहीं होने दिया कि मेरे लंड को वो अपने पिछवाड़े पर महसूस कर पा रही है या नहीं।

मेरी हिम्मत थोड़ी और खुल गई, वैसे भी खुल का चुदाई का मज़ा अपना होता है पर छुप छुप कर नादानी और भोलेपन में किया हुआ खेल एक ज़बरदस्त रोमांच और उत्तेजना भर देता है।

मैंने अपने दूसरे हाथ को अब उसके ऊपर रख लिया और अगर कोई हमे कम्बल के अंदर देखता तो यही महसूस होता जैसे मैंने उसे दबोच लिया हो। उसने अपने हाथों को कुछ इस तरह मोड़ कर रख हुआ था कि उसके बूब्स टच न हो सके।

मैंने अपने हाथ की हथेलियों से उसके कंधे और कंधे से नीचे हाथों की तरफ धीरे धीरे सहलाना शुरू किया।

थोड़ा डर भी था थोड़ी ख़ुशी भी यही मिलीजुली मनोस्थिति में मेरा हाथ उसे गर्म करने की कोशिश कर रहा था। मेरा दूसरा हाथ तो उसका तकिया बना हुआ था इसलिए वो हाथ मेरे इस काम में मेरा साथ देने में असमर्थ था।

मैं बीच बीच में उसके हाथ को सहलाना बंद कर देता था। फिर मैंने हिम्मत करके ऐसे शो किया जैसे ये नींद में हुआ हो और अपना हाथ फिसला कर उसके पेट और जांघों की तरफ ले गया।

मेरा हाथ जैसे ही पेट और जांघों के आस पास घूमने लगा तो उसने अपना एक हाथ ले जाकर मेरे हाथ के ऊपर रख दिया और धीरे से थपथपाया। मैंने अपने हाथ को वहीं रोक दिया पर हटाया नहीं।

थोड़ी देर के इंतज़ार के बाद मैंने उसके पेट पर उसकी सलवार के नाड़े को ढूंढने लगा। नाड़ा मैंने खोल दिया, शायद उसकी झपकी लग गई थी।

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मैंने उसकी सलवार को नीचे करने की कोशिश की पर कुछ ख़ास कर न सका क्योंकि सलवार तो उसके नीचे भी फंसी थी। मैंने अब थोड़ी और हिम्मत दिखाते हुए अपना हाथ उसकी सलवार में अंदर डाल दिया और उसकी नंगी जांघों पर अपने हाथ घुमाने लगा।

मैं बस उसकी पेंटी छूने ही वाला था कि उसने अब की बार मेरे हाथों को जोर से पकड़ लिया।

मेरी गांड फट गई थी यह सोचकर कि कहीं यह चिल्ला न दे। लड़की- ये क्या कर रहे हो?

मैंने सोने की एक्टिंग करी जैसे कि ये सब अपने आप सोते में हो रहा था।

उसने मुझे कोहनी मार के जगाया और बोली- ये तुम क्या कर रहे हो? उसकी आवाज़ बहुत दृढ़ और कठोर थी पर आवाज़ उसने धीमी ही रखी थी। शायद उसे विश्वास था कि ये सब सोते में हो रहा होगा और साथ ही अपनी इज़्ज़त का भी तो ख्याल होगा ही।

गांड फटी तो बोला- हाजमोला। यारो, मेरी तो फटी पड़ी थी।

आगे की कहानी सिलने के बाद बताता हूँ।

थोड़ा सा इंतज़ार करिये और हमारे ईमेल [email protected] पर लिखकर बताइए अब तक का सफर कैसा रहा।

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