जिस्मानी रिश्तों की चाह-48

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सम्पादक जूजा

आपी ने मेरे लण्ड को चूस कर मेरा माल अपनी छाती पर गिराया और फिर मेरे लण्ड के जूस को काफ़ी सारी मिक़दार अपनी उंगली पर उठा कर अपने मुँह चखा और मुझे आँख मार कर आँखें गोल गोल घुमा कर कहा- उम्म्म यूम्मय्ययई.. यार सगीर, यह तो मज़ेदार चीज़ है। मैं मुस्कुरा दिया। अचानक आपी ने घड़ी को देखा, फिर बिस्तर से उछल कर खड़ी होती हुए बोलीं- शिट.. अम्मी और हनी आने ही वाली होंगी.. या शायद आ ही गई हों।

आपी ने मेरी शर्ट उठा कर जल्दी-जल्दी अपना जिस्म साफ किया और क़मीज़ पहन कर सलवार पहनने लगीं..

तो मैंने कहा- आपी आप तो आज डिस्चार्ज हुई ही नहीं हो? आपी ने सलवार पहन ली थी.. उन्होंने कहा- कोई बात नहीं.. फिर सही।

वे फरहान के पास गईं.. जो कि नीचे कार्पेट पर नंगा ही उल्टा सो रहा था, उसको फिर से उठाते हुए कहा- फरहान उठो.. कपड़े पहनो और सही तरह बिस्तर पर लेटो.. उठो शाबाश..

फरहान को उठा कर मेरे पास आईं और मेरे होंठों को चूम कर मेरे बाल सँवारते हुए बोलीं- उठो मेरी जान.. शाबाश, अपना जिस्म साफ करो.. मैं जा रही हूँ। इसके साथ ही कमरे से बाहर निकल गईं।

मैं उठा तो फरहान बाथरूम जा चुका था। मैंने वैसे ही अपना लोअर पहना और बिस्तर पर लेटते ही मुझे नींद आ गई.. शायद कमज़ोरी की वजह से!

शाम को आपी ने ही मुझे उठाया.. वो दूध लेकर आई थीं। वे हम दोनों को उठा कर फ़ौरन ही वापस नीचे चली गईं.. क्योंकि उन्होंने रात का खाना भी बनाना था।

दूध पी कर मैंने गुसल किया और बाहर निकल गया।

जब मैं वापस आया तो रात का खाना बाहर ही दोस्तों के साथ ही खा कर आया था। घर पहुँचा तो 11 बज रहे थे.. सब अपने-अपने कमरों में ही थे.. बस अब्बू टीवी लाऊँज में बैठे न्यूज़ देख रहे थे। अब्बू को सलाम वगैरह करने के बाद मैं अपने कमरे में आया तो फरहान सो चुका था।

मुझे भी काफ़ी थकान सी महसूस हो रही थी और मुझे यह भी अंदाज़ा था कि आज दिन में हमने सेक्स किया ही है.. तो आपी अभी रात में हमारे पास नहीं आएँगी। उनका दिल चाह भी रहा हो तब भी वो नहीं आएंगी क्योंकि वो हमारी सेहत के बारे में बहुत फ़िक़रमंद रहती थीं। हक़ीक़त यह थी कि इस वक़्त मुझे भी सेक्स की तलब महसूस नहीं हो रही थी.. इसलिए मैं भी जल्द ही सो गया।

सुबह मैं अपने टाइम पर ही उठा.. कॉलेज से आकर थोड़ी देर नींद लेने के बाद दोस्तों में टाइम गुजार कर रात को घर वापस आया.. तो खाने के बाद आपी ने बता दिया कि वो आज रात में आएँगी।

मैं कुछ देर वहाँ टीवी लाऊँज में ही बैठ कर बिला वजह ही चैनल चेंज कर-करके टाइम पास करता रहा और तकरीबन 10:30 पर उठ कर अपने कमरे की तरफ चल दिया। मैं कमरे में दाखिल हुआ.. तो फरहान हमेशा की तरह मूवी लगाए कंप्यूटर के सामने ही बैठा था.. मुझे देख कर बोला- यहाँ आ जाओ भाई.. जब तक आपी नहीं आतीं.. मूवी ही देख लेते हैं।

मैंने अपनी पैंट उतारते हुए फरहान को जवाब दिया- नहीं यार.. मेरा मूड नहीं है मूवी देखने का.. तुम देखो। मैं बिस्तर पर आ लेटा।

थोड़ी देर बाद फरहान भी कंप्यूटर बंद करके बिस्तर पर ही आ गया और बोला- भाई कल जब मेरे लण्ड ने अपना जूस निकाला.. तो मुझे तो इतनी कमज़ोरी फील हो रही थी कि आँखें बंद किए पता ही नहीं चला कि कब सो गया। मैं तो आपी के उठाने पर ही उठा था.. मुझे बताओ न.. मेरे सो जाने के बाद आपने आपी के साथ क्या-क्या किया था?

मैंने जान छुड़ाने के लिए फरहान से कहा- यार छोड़.. फिर कभी बताऊँगा।

लेकिन फरहान के पूछने पर मेरे जेहन में भी कल के वाक़यात घूम गए कि कैसे आपी मेरा लण्ड चूस रही थीं.. किसी माहिर और अनुभवी चुसक्कड़ की तरह।

फरहान ने मुझसे मिन्नतें करते हुए दो बार और कहा.. तो मैं उससे पूरी स्टोरी सुनाने लगा कि कल क्या-क्या हुआ था।

फरहान ने सुकून से पूरी कहानी सुनी और बोला- भाई आप ज़बरदस्त हो.. आपने जिस तरह आपी को ये सब करने पर राज़ी किया है.. उसका जवाब नहीं.. मैं तो ये सोच कर पागल हो रहा हूँ कि जब आपी मेरा लण्ड चूसेंगी तो.. उफफ्फ़.. यह कह कर फरहान ने एक झुरझुरी सी ली।

मैंने मुस्कुरा कर फरहान को देखा और कहा- फ़िक्र ना कर मेरे छोटे.. मेरा अगला टारगेट तो आपी की टाँगों के बीच वाली जगह है। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

फरहान ने छत को देखते हुए एक ठंडी आह भरी और बोला- हाँनन् भाई.. कितना मज़ा आएगा.. जब आपी की चूत में लण्ड पेलेंगे। फिर एकदम चौंकते हुए बोला- लेकिन भाई अगर कोई मसला हो गया तो.. मतलब आपी प्रेग्नेंट हो गईं या ऐसी कोई और बात हो गई तो फिर?

मैंने एक नज़र फरहान को देखा और झुंझला कर कहा- चुतियापे की बात ना कर यार.. मैं इसका बंदोबस्त कर लूँगा बस.. एक बार फिर कहता हूँ कि खुद से कोई पंगा मत लेना.. जैसा मैं कहूँ बस वैसा ही कर..

इन्हीं ख़यालात में खोए और आपी का इन्तजार करते.. हम दोनों ही पता नहीं कब नींद के आगोश में चले गए।

सुबह मैं उठा तो फरहान जा चुका था। मैं कॉलेज के लिए रेडी हो कर नीचे आया तो अम्मी ने ही नाश्ता दिया क्योंकि आपी भी यूनिवर्सिटी जा चुकी थीं। मैं नाश्ता करके कॉलेज चला गया।

कॉलेज से वापस आया तो 3 बज रहे थे मैंने आपी के कमरे के अधखुले दरवाज़े से अन्दर झाँका.. तो आपी सो रही थीं और हनी वहाँ ही बैठी अपनी पढ़ाई कर रही थी।

मुझे अम्मी ने खाना दिया और खाना खाकर मैं अपने कमरे में चला गया। फरहान भी सो रहा था.. मैंने भी चेंज किया और सोचा कि कुछ देर नींद ले लूँ.. फिर रात में आपी के साथ खेलने में देर हो जाती है और नींद पूरी नहीं होती।

शाम को मैं नीचे उतरा.. तो आपी अभी भी घर में नहीं थीं.. मैंने अम्मी से पूछा तो उन्होंने बताया कि सलमा खाला की किसी सहेली की छोटी बहन की मेहँदी है.. कोई म्यूज़िकल फंक्शन भी है तो फरहान, आपी और हनी तीनों ही उनके साथ चले गए हैं।

मैं भी अपने दोस्तों की तरफ निकल गया।

रात में 10 बजे मैं घर पहुँचा तो आपी अभी भी वापस नहीं आई थीं.. अब्बू टीवी लाऊँज में ही बैठे अपने लैपटॉप पर बिजी थे। मैंने कुछ देर उन से बातें कीं और फिर अपने कमरे में चला गया।

मैंने कमरे में आकर ट्रिपल एक्स मूवी ऑन की.. लेकिन आज फिल्म देखने में भी मज़ा नहीं आ रहा था.. बस आपी की याद सता रही थी। किसी ना किसी तरह मैंने एक घंटा गुज़ारा और फिर नीचे चल दिया कि कुछ देर टीवी ही देख लूँगा।

मैं अभी सीढ़ियों पर ही था कि मुझे अम्मी की आवाज़ आई- बात सुनिए.. सलमा का फोन आया है वो कह रही है कि सगीर को भेज दें.. रूही लोगों को ले आएगा।

मैं अम्मी की बात सुन कर नीचे उतरा तो अब्बू अपना लैपटॉप बंद कर रहे थे। मैंने उनसे गाड़ी की चाभी माँगी.. तो पहले तो अब्बू गाड़ी की चाभी मुझे देने लगे.. फिर एकदम किसी ख़याल के तहत रुक गए और चश्मे के ऊपर से मेरी आँखों में झाँकते हुए बोले- सगीर तुमने लाइसेन्स नहीं बनवाया ना अभी तक?

मैंने अपना गाल खुजाते हो टालमटोल के अंदाज़ में कहा- वो अब्बू.. बस रह गया कल चला जाऊँगा बनवाने।

अब्बू ने गुस्से से भरपूर नज़र मुझ पर डाली और बोले- यार अजीब आदमी हो तुम.. कहा भी है.. जा के बस तस्वीर वगैरह खिंचवा आओ.. अपने साइन कर दो वहाँ.. बाक़ी शकूर साहब संभाल लेंगे.. लेकिन तुम हो कि ध्यान ही नहीं देते हो किसी बात पर.. मैं देख रहा हूँ आजकल तुम बहुत गायब दिमाग होते जा रहे हो.. किन ख्यालों में खोए रहते हो.. हाँ?

मैं अब्बू की झाड़ सुन कर दिल ही दिल में अपने आपको कोस रहा था कि इस टाइम पर नीचे क्यों उतरा। अम्मी ने मेरी कैफियत भाँप कर मेरी वकालत करते हुए अब्बू से कहा- अच्छा छोड़ो ना.. आप भी एक बात के पीछे ही पड़ जाते हैं.. बनवा लेगा कल जाकर!

अब्बू ने अपना रुख़ अम्मी की तरफ फेरा और बोले- अरे नायक बख़्त.. लोग तरसते हैं कि कोई जान-पहचान वाला आदमी हो.. तो अपना काम करवा लें और शकूर साहब मुझे अपने मुँह से कितनी बार कह चुके हैं कि लाइसेन्स ऑफिस सगीर को भेज दो.. अब पता नहीं कितने दिन हैं वो वहाँ.. उनका भी ट्रान्स्फर हो गया.. तो परेशान होता फिरेगा.. इसलिए कह रहा हूँ कि बनवा ले जाकर..

अम्मी ने बात खत्म करने के अंदाज़ में कहा- अच्छा चलिए अब चाभी दें उसे.. वो लोग इन्तजार कर रहे होंगे।

अब्बू ने अपना लैपटॉप गोद से उठा कर टेबल पर रखा और खड़े होते हुए बोले- नहीं अब इसकी ये ही सज़ा है कि जब तक लाइसेन्स नहीं बनवाएगा.. गाड़ी नहीं मिलेगी। यह कह कर वे बाहर चल दिए।

अम्मी ने झल्ला कर अपने सिर पर हाथ मारा और कहा- हाय रब्बा.. ये सारे जिद्दी लोग मेरे नसीब में ही क्यों लिखे हैं.. जैसा बाप है.. वैसी ही सारी औलाद..

मैं चुपचाप सिर झुकाए खड़ा था कि दोबारा अम्मी की आवाज़ आई- अब जा ना बेटा.. दरवाज़ा खोल वरना हॉर्न पर हॉर्न बजाना शुरू कर देंगे।

मैं झुंझलाए हुए ही बाहर गया और अब्बू के गाड़ी बाहर निकाल लेने के बाद दरवाज़ा बंद करके सीधा अपने कमरे में ही चला गया।

वाकिया मुसलसल जारी है, आपसे गुजारिश है कि अपने ख्यालात कहानी के अंत में अवश्य लिखें।

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